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कोई भी अपशिष्ट जो मानव या पशु के निदान, उपचार, या टीकाकरण के दौरान या मानव या पशु अनुसंधान गतिविधियों, जैविक या स्वास्थ्य शिविरों के दौरान उत्पन्न होता है, बायोमेडिकल अपशिष्ट (Biomedical waste (BMW) कहलाता है। इस अपशिष्ट को एकत्र करने के बाद इस अपशिष्ट की पहचान, मात्रा निर्धारण, अलगाव, भंडारण, परिवहन और उपचार किया जाता है। एक उचित बायोमेडिकल अपशिष्ट प्रबंधन अभ्यास 3Rs तकनीक अर्थात कम करना (Reduce), पुनः चक्रण (Recycle) और पुनः उपयोग (Reuse–) की अवधारणा पर आधारित है। एक सर्वोत्तम बायोमेडिकल अपशिष्ट प्रबंधन विधि का उद्देश्य कम से कम अपशिष्ट के उत्पादन के साथ-साथ निपटान के बजाय जितना संभव हो उतना कचरा पुनर्प्राप्त करना है। इसलिए बायोमेडिकल अपशिष्ट निपटान के विभिन्न तरीकों में रोकथाम, कचरे को कम करना, पुन: उपयोग करना, पुनः चक्रण करना, पुनर्प्राप्त करना, उपचार करना और अंत में अपशिष्ट का निपटान करना शामिल है।
बायोमेडिकल अपशिष्ट का लगभग 10%-25% हिस्सा खतरनाक श्रेणी में आता है, और शेष 75%-95% गैर-खतरनाक श्रेणी में आता है। कचरे का खतरनाक हिस्सा सामान्य आबादी और कचरे के प्रबंधन, उपचार और निपटान से जुड़े स्वास्थ्य देखभाल कर्मचारियों के लिए घातक होता है। जून 2007 में जिनेवा (Geneva) में आयोजित ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (World Health Organization (WHO) की बैठक में, स्वास्थ्य देखभाल अपशिष्ट के सुरक्षित और स्थायी प्रबंधन के लिए मूल सिद्धांत विकसित किए गए थे। साथ ही इस बात पर बल दिया गया कि संसाधनों के सही निवेश और पूर्ण प्रतिबद्धता के माध्यम से लोगों और पर्यावरण पर स्वास्थ्य देखभाल अपशिष्ट के हानिकारक प्रभावों को कम किया जा सकता है। वित्त पोषण और सहायक स्वास्थ्य देखभाल गतिविधियों से जुड़े सभी हितधारक दूसरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए नैतिक और कानूनी रूप से बाध्य हैं और इसलिए बायोमेडिकल अपशिष्ट के उचित प्रबंधन में उनके द्वारा सतत प्रयत्न किए जाने चाहिए। इसके अलावा, इसके सुरक्षित निपटान को सुनिश्चित करने के लिए पर्यावरण के अनुकूल चिकित्सा उपकरणों का उत्पादन करना निर्माताओं का भी कर्तव्य है। ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ के द्वारा इस बात पर भी जोर दिया गया है कि सरकारों को कुशल स्वास्थ्य देखभाल अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली के निर्माण, समर्थन और रखरखाव के लिए बजट का एक हिस्सा नामित करना चाहिए।
स्वास्थ्य देखभाल गतिविधियों से निकलने वाले कचरे के सुरक्षित प्रबंधन पर ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ द्वारा 1999 में ‘द ब्लू बुक’ (The Blue Book) नामक पुस्तक का पहला संस्करण भी प्रकाशित किया गया। इसके बाद 2014 में प्रकाशित ‘द ब्लू बुक’ के दूसरे संस्करण में सुरक्षित निपटान के लिए नए तरीके, नए पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण के उपाय, और पता लगाने की तकनीक के अलावा, आपात स्थिति में स्वास्थ्य देखभाल अपशिष्ट प्रबंधन, उभरती हुई महामारी, दवा प्रतिरोधी बैक्टीरिया और जलवायु परिवर्तन जैसे नए विषयों को दूसरे संस्करण में शामिल किया गया था।
जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन के लिए, भारत में 4 रंग (पीला, लाल, सफेद और नीला) वाली अपशिष्ट निपटान प्रणाली -के वैश्विक मानक का पालन किया जाताहै। यह ध्यान देने योग्य है कि यह प्रणाली सार्वजनिक स्थानों की अपशिष्ट निपटान प्रणाली से अलग होती है। कचरे को एकत्र करने के लिए कूड़ेदान का रंग संकेतीकरण (Colour coding) एक बहुत ही बुनियादी सिद्धांत का प्रतिनिधित्व करता है, जो यह बताता है कि हर प्रकार का कचरा एक ही स्थान पर एकत्र नहीं किया जाना चाहिए। विभिन्न प्रकार के कचरे का निपटान अलग-अलग तरीके से होना चाहिए। खतरनाक चिकित्सीय रासायनिक कचरे को सुरक्षित रूप से संसाधित करने के लिए अन्य प्रकार के कचरे से अलग करना अत्यंत आवश्यक है। खतरनाक चिकित्सा अपशिष्ट को आमतौर पर एक गड्ढे में डालने के बजाय भस्मीकरण (आग लगाने) द्वारा संसाधित किया जाता है, हालांकि वर्तमान समय में बायोमेडिकल अपशिष्ट प्रबंधन को संभालने के लिए और भी अधिक आधुनिक और व्यावहारिक तरीके मौजूद हैं, जैसे ऑटोक्लेव (Autoclave), या एकीकृत स्टरलाइज़र (Integrated sterilizer) और मेडिकल अपशिष्ट श्रेडर (Medical waste shredder)। कोई भी कंपनी जो जैव-चिकित्सा अपशिष्ट उत्पन्न करती है, उसे स्पष्ट रूप से रंग संकेतीकरण के साथ कचरे के डिब्बे को स्पष्ट रूप से लेबल (label)_करना होता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनके कर्मचारी सभी प्रकार के चिकित्सीय कचरे का सही तरीके से निपटान करते हैं। तो चलिए जानते हैं कि कौन से रंग के कूड़ेदान में किस प्रकार का जैव चिकित्सीय कचरा डाला जाता है-
1.पीला कूड़ेदान: इसमें पैथोलॉजिकल अपशिष्ट (Pathological waste), संक्रामक कचरा, चिकित्सीय-रासायनिक अपशिष्ट, क्लिनिकल लैब अपशिष्ट (Clinical lab waste), फार्मास्युटिकल अपशिष्ट (Pharmaceutical waste) आदि एकत्रित किया जाता है।
2.लाल कूड़ेदान: इसमें पुनर्नवीनीकरण योग्य दूषित अपशिष्ट एकत्रित किया जाता है।
3.सफेद या पारदर्शी कूड़ेदान: इसमें प्रायः ऐसे उपकरणों को एकत्रित किया जाता है, जो त्वचा को छेदने या चीरने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। जैसे इंजेक्शन, सर्जिकल नाइफ आदि।
4.नीला कूड़ेदान: नीले रंग के कूड़ेदान में प्रायः चिकित्सीय उपचार के लिए उपयोग की जाने वाली कांच से बनी वस्तुएं एकत्रित की जाती हैं।
बायोमेडिकल अपशिष्ट (Biomedical waste) का सुरक्षित और टिकाऊ प्रबंधन स्वास्थ्य देखभाल गतिविधियों से जुड़े हुए सभी लोगों की सामाजिक और कानूनी जिम्मेदारी है। प्रभावी बायोमेडिकल अपशिष्ट प्रबंधन स्वस्थ नागरिकों और स्वच्छ पर्यावरण के लिए अनिवार्य है। भारत में पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के लिए अलगाव, परिवहन और निपटान के तरीकों में सुधार करने के उद्देश्य से बायोमेडिकल अपशिष्ट के निपटान और उपचार की गतिशीलता को बदलने के लिए नए नियम भी बनाए गए हैं।
भारत में जुलाई 1998 में, पहली बार बायोमेडिकल अपशिष्ट नियमों को तत्कालीन भारत सरकार के पर्यावरण और वन मंत्रालय (Ministry of Environment and forest), द्वारा अधिसूचित किया गया था। भारत में, कचरा ढोने वालों द्वारा बिना दस्ताने, मास्क, या जूते के पुनर्चक्रण के लिए खुले असुरक्षित कचरे को छाँटने के कारण बायोमेडिकल अपशिष्ट की समस्या और बढ़ गई थी। 2002-2004 के दौरान, ‘इंटरनेशनल क्लिनिकल एपिडेमियोलॉजी नेटवर्क’ (International Clinical Epidemiology Network) द्वारा भारत के 20 राज्यों में प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक स्वास्थ्य देखभाल सुविधा में मौजूदा बायोमेडिकल अपशिष्ट प्रथाओं, सेटअप और ढांचे की जांच की गई। उन्होंने पाया कि भारत में लगभग 82% प्राथमिक, 60% माध्यमिक और 54% तृतीयक स्वास्थ्य देखभाल सुविधा में कोई विश्वसनीय बायोमेडिकल अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली मौजूद नहीं थी। 2009 में गुजरात में लगभग 240 लोग कीटाणुयुक्त सीरिंज का पुनः उपयोग करने के कारण हेपेटाइटिस बी (Hepatitis B) से संक्रमित हो गए थे।इसी प्रकार अन्य कई ऐसे ही मामलों से पता चलता है कि भारत बायोमेडिकल अपशिष्ट के सुरक्षित निपटान के उपाय शुरू करने वाले पहले देशों में से एक होने के बावजूद, देश में बायोमेडिकल अपशिष्ट की मौजूदा प्रणाली क्षमता को मजबूत करने, अपशिष्ट के सुरक्षित निपटान के लिए धन और प्रतिबद्धता बढ़ाने के लिए तत्काल कार्रवाई करने की आवश्यकता है। बायोमेडिकल अपशिष्ट 1998 के नियमों को 2000, 2003 और 2011 में पुनः संशोधित किया गया। भारत के ‘पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय’ ने मार्च 2016 में जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियमों में संशोधन किया है। इन नए नियमों में अस्पतालों और स्वास्थ्य सुविधाओं सहित अधिक विस्तृत क्षेत्र को शामिल किया गया है और पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के लिए अलगाव, परिवहन और निपटान के तरीकों में सुधार करते हुए वर्गीकरण और प्राधिकरण को सरल बनाया गया है। बायोमेडिकल अपशिष्ट के प्रभावी निपटान के लिए वित्त और बुनियादी ढांचे का विकास, समर्पित स्वास्थ्य देखभाल कर्मचारियों और स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं, बायोमेडिकल अपशिष्ट की निरंतर निगरानी, मजबूत विधायिका और मजबूत नियामक निकायों के मामले में प्रतिबद्ध सरकारी समर्थन के साथ एक सामूहिक कार्यवाही की आवश्यकता है।
संदर्भ:
https://rb.gy/8s6yj
https://rb.gy/9sftp
चित्र संदर्भ
1. जैव-चिकित्सा अपशिष्ट निपटान को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. जैव-चिकित्सा अपशिष्ट को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. बक्सों में बंद जैव-चिकित्सा अपशिष्ट को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. रंगीन कूड़ेदान को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
5. अस्पताल में एकत्र जैव-चिकित्सा अपशिष्ट को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
6. चिकित्सा अपशिष्ट के लिए विशेष कंटेनर को दर्शाता एक चित्रण (Pixabay)
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