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धार्मिक धारावाहिकों में आपने यह अक्सर देखा होगा कि सदियों तक तपस्या करने के बाद, कोई भी दानव सबसे पहले अमर होने का ही वरदान मांगता है। यहां तक कि देवता भी अमर होने के मोह से ऊपर नहीं उठ पाए। दानवों तथा देवताओं के समग्र प्रयास के बाद, समुद्र मंथन में निकले अमृत कलश के पूरे अमृत को देवता खुद ही पी गए। जब स्वयं देवता भी अमर होने की इच्छा को नहीं रोक पाए, तो फिर हम इंसानों की बिसात ही क्या है! इसलिए हमेशा से इंसान भी दीर्घायु जीवन जीने के उपायों को खोज रहे हैं। हालांकि, अभी तक हम अमरता की कोई तकनीक या दवाई तो नहीं खोज पाए, लेकिन हमने ऐसी तरकीबें जरूर खोज ली हैं, जिनकी मदद से हम प्रत्याशित आयु से कई वर्ष, यहाँ तक की कई दशक ज्यादा जी सकते हैं।
कोई व्यक्ति कितना लंबा जीवन जीएगा, यह मुख्य रूप से तीन कारकों -उसके जींस (Genes), उसका वातावरण, जहां वह रहता हैं, और उसकी जीवन शैली पर निर्भर करता है। उदाहरण के तौर पर आपको जानकर हैरानी होगी कि 1900 के दशक के बाद, संयुक्त राज्य अमेरिका (United States of America) में पर्यावरण में सुधार, बेहतर भोजन, स्वच्छ पानी और अच्छी स्वास्थ्य देखभाल जैसे कारकों ने वहां के औसत जीवनकाल को लगभग 80 वर्ष तक बढ़ा दिया है। दशकों से कई वैज्ञानिक, नब्बे साल, सौ साल या उससे अधिक उम्र के लोगो की लंबी उम्र का राज़ जानने के लिए ऐसे व्यक्तियों का अध्ययन भी कर रहे हैं। अपने परिणामों में उन्होंने पाया है कि दीर्घजीवी व्यक्तियों में शिक्षा, आय या पेशे के मामले में बहुत अधिक समानताएं नहीं होती हैं। हालांकि, उनकी कई आदतें एक समान हो सकती हैं, जिनमें धूम्रपान न करना, स्वस्थ वजन बनाए रखना और तनाव को अच्छी तरह से प्रबंधित करना आदि शामिल हैं। इन स्वस्थ आदतों की वजह से उनमें उच्च रक्तचाप (High Blood Pressure), हृदय रोग, कैंसर (Cancer) और मधुमेह जैसी बीमारियां होने की संभावना कम हो जाती है।
लंबे समय तक जीवित रहने वाले लोगों के भाई, बहन और बच्चों का जीवन लंबा होने की संभावना भी दूसरे लोगों की तुलना में अधिक होती है। यदि किसी व्यक्ति के माता-पिता सौ साल तक जीवित रहे थे, तो उसे अन्य लोगों की तुलना में उम्र संबंधी सामान्य बीमारियां होने की संभावना कम होती है। यहां तक कि अगर उन्हें कोई बीमारी हो भी जाती है, तो वह उन्हें आम लोगों की तुलना में बहुत बाद में होती हैं। लंबा जीवनकाल अनुवांशिक होता है, जो बताता है कि साझा आनुवंशिकी तथा उत्तम जीवन शैली दीर्घायु का निर्धारण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
कुछ जीन भी लंबे समय तक जीवित रहने में योगदान देते हैं। क्योकि वे डीएनए (DNA) को ठीक करने में मदद करते हैं, कोशिकाओं को नुकसान से बचाते हैं और गुणसूत्रों (Chromosomes) को स्वस्थ बनाए रखते हैं।
दीर्घायु जीन का अध्ययन एक विकासशील विज्ञान है। वैज्ञानिक मानते हैं कि मानव जीवन काल में लगभग 25 प्रतिशत भिन्नता आनुवांशिकी द्वारा निर्धारित की जाती है। लेकिन कौन से जीन दीर्घायु में कैसे योगदान करते हैं, अभी इसके विषय में पूरी तरह से शोध नहीं हुआ है। लंबे जीवन से जुड़ी कुछ सामान्य जीन विविधताएँ (जिन्हें बहुरूपता (Polymorphisms) कहा जाता है), APOE, FOXO3 और CETP नामक जीन में पाई जाती हैं, हालांकि दीर्घायु वाले सभी लोगों में ये विविधताएँ नहीं होती हैं। हालांकि 110 साल से अधिक वर्षों तक जीवित रहने वाले लोगों से जुड़े एक अध्ययन में कुछ जीनों की समानता जरूर पाई गई है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि 70-80 साल से पहले ही मर जाने वाले लोगों की उम्र कम होने में उनकी आनुवंशिकी से अधिक जीवन शैली का योगदान होता है। अर्थात पौष्टिक भोजन करने वाले, अत्यधिक शराब और तंबाकू के सेवन से बचने वाले और शारीरिक रूप से सक्रिय व्यक्ति की उम्र कई बार दीर्घायु अनुवांशिकी वाले व्यक्ति से भी अधिक हो सकती है।
इंसानों की उम्र को निर्धारित करने में टॉरिन (Taurine) नामक एक विशेष प्रकार का अमीनो एसिड (Amino Acid) भी अहम भूमिका निभाता है, जो प्रोटीन (Protein) में पाए जाने वाले अमीनो एसिड से अलग होता है। पौधों में बहुत कम टॉरिन होता है, तथा जानवरों में उनके शरीर के वजन का लगभग 0.1% ही टॉरिन होता है। अध्ययनों से पता चलता है कि मनुष्यों में, टॉरिन की खुराक चयापचय और सूजन संबंधी बीमारियों के उपचार हेतु फायदेमंद हो सकती है।
शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि बढ़ती उम्र के साथ मानव और अन्य जानवरों में टॉरिन का स्तर भी घटता जाता है। आपको जान कर हैरानी होगी कि कीड़े और चूहों के आहार में टॉरिन को शामिल करने से उनका जीवनकाल 10% से 23% तक बढ़ गया। टॉरिन की खुराक ने उनकी ताकत, समन्वय क्षमता, स्मृति में जबरदस्त सुधार किया, और उनकी कोशिका क्षति (Cell Damage) तथा सूजन जैसे, उम्र बढ़ने के संकेतों को कम कर दिया। यहां तक की मध्यम आयु वर्ग के अफ्रीकी लंगूरों (Macaque Monkeys) में भी इसी तरह के सकारात्मक प्रभाव देखे गए। हालांकि इंसानों पर इसके प्रयोग की कोई भी अधिकारिक जानकारी मौजूद नहीं है।
यह अभी भी पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है कि टॉरिन, स्वास्थ्य और दीर्घायु में कैसे सुधार करता है। लेकिन यह शरीर में एंटीऑक्सीडेंट (Antioxidant) और सिग्नलिंग अणुओं (Signaling Molecules) के स्तर को बढ़ाकर, पोषक तत्वों के अवशोषण को प्रभावित करके या माइटोकॉण्ड्रिया (Mitochondria) में प्रोटीन उत्पादन की सटीकता को बढ़ाकर यह चमत्कार कर सकता है। टॉरिन कुछ रिसेप्टर्स (Receptors) के साथ तालमेल बिठाकर मस्तिष्क के संचार को भी प्रभावित कर सकता है।
लंबी उम्र का राज पता करने के लिए ‘डीप लॉन्गेविटी’ (Deep Longevity) नामक एक प्रमुख शोध संगठन ने भी कई अन्य संस्थानों के साथ मिलकर एक समीक्षा प्रकाशित की, जिसमें उन्होंने बताया कि तनाव, आहार और व्यायाम जैसे कारक भी हमारी उम्र को प्रभावित करते हैं। इसकी जाँच करने के लिए उन्होंने ‘एजिंग क्लॉक’ (ageing clock) नामक एक तकनीक का उपयोग किया, जो जैविक उम्र की भविष्यवाणी करने के लिए, डीएनए मेथिलेशन पैटर्न (DNA methylation pattern) का उपयोग करती है।
संदर्भ
https://t.ly/CIAG
https://t.ly/M3_R
https://rb.gy/o0tlc
चित्र संदर्भ
1. हाथ में सेब की टोकरी लिए खड़ी एक पहाड़ी महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. अपने पोते के साथ भारतीय बुजुर्ग को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. एक उत्पाद से जीन बनने की प्रक्रिया को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. 25 वाई-गुणसूत्र एकल-न्यूक्लियोटाइड बहुरूपताओं को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
5. टॉरिन अणु को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
6. अफ्रीकी बंदर को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
7. एक भारतीय बुजुर्ग को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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