Post Viewership from Post Date to 01-Jul-2023 30th day
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2696 521 3217

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

प्रकृति में कोई जीव तुच्छ कैसे, जब 'देवताओं की लकड़ी,अगर' की सुगंध प्राप्त होती कवक संक्रमण से

मेरठ

 27-05-2023 09:33 AM
गंध- ख़ुशबू व इत्र

अगरु, जिसे ज्यादातर अगरवुड (Agar wood) के नाम से जाना जाता है, उसकी सुगंध बहुत जटिल और मनभावन होती है। धीमी-नरम फूलों वाली महक, जो वेनिला (vanilla) और कस्तूरी के समान मनमोहक होती है, उसके कारण इत्र उद्योग में इस वृक्ष का अत्यंत विशेष स्थान है। किंतु क्या आप जानते हैं कि अगरवुड बनाने के लिए इससे सम्बंधित पेड़ को संक्रमित किया जाता है? जी हां, अगरवुड की सुगंध प्राकृतिक रूप से प्राप्त नहीं होती है, तथा इसकी सुगंध को प्राप्त करने के लिए इससे सम्बंधित पेड़ को कवक या अन्य किसी माध्यम से संक्रमित किया जाता है। अगरवुड मुख्य रूप से एक्विलेरिया (Aquilaria) पेड़ का राल वाला हिस्सा होता है, जिसका उपयोग दवा और सुगंध प्रयोजनों के लिए व्यापक रूप से किया जाता है। हालांकि आज पेड़ों की यह प्रजाति भी संकटग्रस्त है। अतः संकटग्रस्त एक्विलारिया प्रजाति के पेड़ों की रक्षा करने के लिए, इनका बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण किया जा रहा है, ताकि इनसे अगर वुड प्राप्त किया जा सके। अगरवुड का उत्पादन प्रायः दक्षिण पूर्व एशिया (Asia) के कुछ छोटे क्षेत्रों तक ही सीमित है, हालांकि यह दुनिया की सबसे महंगी लकड़ी में से एक है। सुगंधित अगरवुड का निर्माण एक्विलेरिया के पेड़ों पर शारीरिक संक्रमण या तनाव का परिणाम होता है। इस जटिल प्रक्रिया के द्वारा लगभग 150 विषम सुगंधित अणुओं का निर्माण होता है, जो अगरवुड को सुगंध प्रदान करते हैं। ऐसा माना जाता है कि अगरवुड और उसके उत्पादों का वैश्विक व्यापार 6 अरब अमेरिकी डॉलर (US$6 billion) से लेकर 8 अरब अमेरिकी डॉलर (US$8 billion) तक है, हालांकि इस बारे में कोई भी विश्वसनीय आंकड़े अभी तक मौजूद नहीं है। यूं तो स्वस्थ पेड़ों की लकड़ी की मांग अधिक होती है, लेकिन अगरवुड इस मामले में काफी अलग है। इसकी तनावग्रस्त या रोगग्रस्त लकड़ी या संक्रमित लकड़ी दुनिया की सबसे महंगी लकड़ी है।
प्राचीन संस्कृतियों के ग्रंथों और परंपराओं में अगरवुड का उल्लेख मिलता है, जो इसके प्राचीन महत्व को उजागर करता है। भारतीय वेदों में एक सुगंधित उत्पाद के रूप में इसका वर्णन किया गया है, जो यह इंगित करता है कि भारत में इसका उपयोग 1400 ईसा पूर्व से किया जा रहा है। औषधीय, सुगंधित और धार्मिक उद्देश्यों में व्यापक उपयोग के कारण, अगरवुड को देवताओं की लकड़ी के रूप में भी जाना जाता है। 2,000 साल से भी अधिक समय से इसका व्यापार होता आ रहा है। 1970 के दशक के बाद, विशेष रूप से मध्य पूर्व के क्षेत्रों में, अगरवुड की मांग में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। चूँकि, अधिकांश अगरवुड के पेड़ जंगली क्षेत्रों में उगते हैं, इसलिए उनके सतत उपयोग पर चिंता बनी हुई है। अगरवुड धारण करने वाली प्रजातियों के प्राकृतिक आवासों के विनाश के कारण अधिकांश प्रजातियां संकट की स्थिति में आ गई हैं। एक्विलेरिया की ज्ञात 19 प्रजातियों को ‘प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय संघ’ (International Union for Conservation of Nature (IUCN) द्वारा लाल सूची में रखा गया है। अगरवुड का व्यापार काफी हद तक असंगठित है और अक्सर नकली और मिलावटी लकड़ी को सस्ते अगरवुड के रूप में बाजारों में बेचा जाता है। अगरवुड को चोटिल या संक्रमित करने के बाद इसमें ओलियोरेसिन (Oleoresin) से भरपूर यौगिक बनते हैं, जो इसके हार्टवुड(hardwood) में जमा हो जाते हैं।
माना जाता है कि प्राचीन मिस्रवासी (Egyptians) 3,000 साल से भी पहले मृत्यु से सम्बंधित अनुष्ठानों में अगरवुड का इस्तेमाल करते थे तथा ऐसा करने वाले वे पहले लोग थे। वर्तमान में दुनिया भर में अगरवुड तेल का उपयोग इत्र और कॉस्मेटिक (Cosmetic) उत्पादों और दवाओं में किया जाता है। अगरवुड चिप (Agarwood Chip) से अगरबत्ती बनाई जाती है, और इसकी लकड़ी को कलात्मक आकृतियों में भी तराशा जाता है। अगरवुड तेल दुनिया में अब तक का सबसे कीमती ‘आवश्यक तेल’ (Essential oil) है, जिसकी कीमत 50,000 अमेरिकी डॉलर प्रति लीटर से 80,000 अमेरिकी डॉलर प्रति लीटर तक हो सकती है। अगरवुड उत्पादों का सबसे प्रमुख उपयोग स्वाद और सुगंध उद्योग में किया जाता है। अगरवुड का अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय व्यापार इत्र के उत्पादन के लिए होता है जिसका उपयोग सौंदर्य और धार्मिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है। मध्य पूर्व (Middle East) में, अगरवुड का उपयोग अगर-अत्तार और अगरबत्ती के रूप में किया जाता है। इसके अलावा इसका उपयोग अरोमाथेरेपी (Aromatherapy) में भी किया जाता है। पेट दर्द, उल्टी, दस्त और अस्थमा के लिए भी इसका उपयोग महत्वपूर्ण माना गया है। आयुर्वेद में, अगरवुड से प्राप्त उत्पादों को, जो एक निश्चित संयोजन में बने होते हैं, प्रशीतक, यानी रेफ्रिजरेंट (refrigerant), के रूप में इस्तेमाल करने की सलाह दी गई है। विभिन्न अध्ययनों के अनुसार, अगरवुड में कैंसर रोधी, जलन रोधी और अवसाद रोधी गुण भी होते हैं।
भारत का पूर्वोत्तर राज्य असम विश्व स्तर पर अगरवुड के प्रसिद्ध केंद्रों में से एक है। असम में 10,000 से अधिक आसवन इकाइयां (distilleries) काम कर रही हैं, जो लगभग 200,000 लोगों को आजीविका प्रदान करती है। भारत में अगरवुड पहाड़ी क्षेत्र में बहुत अच्छी तरह से बढ़ता है और इसका अच्छा लाभ भी मिल रहा है। पर्यावरण विभाग द्वारा भी इसे संकटग्रस्त प्रजातियों में से एक माना गया है। भारत के असम राज्य में इसकी कृत्रिम रूप से खेती की जा रही है तथा कर्नाटक राज्य के उत्तर कन्नड़ जिले में बागवानी के क्षेत्र में इसकी खेती मील का पत्थर साबित हो रही है। एक अध्ययन में यह देखा गया है कि प्रदूषित स्थलों में भी अगरवुड से सम्बंधित पेड़ों का विकास अच्छी तरह से हो रहा है, इसका मतलब है कि इस प्रजाति में धातु और हाइड्रोकार्बन (Hydrocarbon) प्रदूषण को सहन करने की क्षमता होती है। अतःअगरवुड के सतत उत्पादन के लिए उचित वैज्ञानिक जांच और प्रौद्योगिकियों के विकास की आवश्यकता है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3OIFGmY
https://t.ly/8_AF
https://t.ly/3-Fi

चित्र संदर्भ
1. अगरवुड की जलती हुई अगरबत्ती को दर्शाता चित्रण (prarang,wikimedia)
2. अगरवुड मुख्य रूप से एक्विलेरिया (Aquilaria) पेड़ का राल वाला हिस्सा होता है, को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. एक्विलारिया साइनेंसिस हैबिटस को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. अगरवुड के छिलकों को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
5. किंग-अगरवुड-लटकन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)

***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • अपने युग से कहीं आगे थी विंध्य नवपाषाण संस्कृति
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:28 AM


  • चोपता में देखने को मिलती है प्राकृतिक सुंदरता एवं आध्यात्मिकता का अनोखा समावेश
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:29 AM


  • आइए जानें, क़ुतुब मीनार में पाए जाने वाले विभिन्न भाषाओं के शिलालेखों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:22 AM


  • जानें, बेतवा और यमुना नदियों के संगम पर स्थित, हमीरपुर शहर के बारे में
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:31 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस के मौके पर दौरा करें, हार्वर्ड विश्वविद्यालय का
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:30 AM


  • जानिए, कौन से जानवर, अपने बच्चों के लिए, बनते हैं बेहतरीन शिक्षक
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:17 AM


  • आइए जानें, उदासियों के ज़रिए, कैसे फैलाया, गुरु नानक ने प्रेम, करुणा और सच्चाई का संदेश
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:27 AM


  • जानें कैसे, शहरी व ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के बीच अंतर को पाटने का प्रयास चल रहा है
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:20 AM


  • जानिए क्यों, मेरठ में गन्ने से निकला बगास, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के लिए है अहम
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:22 AM


  • हमारे सौर मंडल में, एक बौने ग्रह के रूप में, प्लूटो का क्या है महत्त्व ?
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:29 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id