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इरिडियम (Iridium) एक ऐसा खनिज पदार्थ या रासायनिक तत्व है, जिसका उपयोग अनेकों वस्तुओं जैसे आभूषण, फाउंटेन पेन की निब की नोंक, इंजेक्शन की सुई आदि के निर्माण में किया जाता है। चांदी के समान दिखने वाली यह धातु प्लेटिनम (Platinum) समूह की एक बहुत ही कठोर सफेद धातु है। इसे एक ऐसी सघन धातु माना जाता है, जो स्वाभाविक रूप से उत्पन्न हो जाती है। प्रयोगात्मक एक्स-रे क्रिस्टलोग्राफी (X-ray Crystallography) के अनुसार इसका घनत्व 22.56 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर होता है। इसे सबसे अधिक संक्षारण प्रतिरोधी धातुओं में से एक माना जाता है। पहली बार इरिडियम की खोज 1803 में प्राकृतिक प्लेटिनम में मौजूद अघुलनशील अशुद्धियों से की गई थी। इरिडियम पृथ्वी की ऊपरी सतह (Crust) में मौजूद सबसे दुर्लभ तत्वों में से एक है, जिसका वार्षिक उत्पादन और खपत केवल 3 टन है।
इरिडियम के अनेकों महत्वपूर्ण गुण हैं, जिसकी वजह से इसका दुरूपयोग भी किया जा रहा है। कुछ समय पूर्व महाराष्ट्र में करीब 200 लोगों को यह कहकर ठगा गया कि वे 'राइस पुलर मेटल' (Rice puller metal) अर्थात चावल खींचने वाली धातु जिसे कॉपर इरिडियम भी कहा जाता है, पर निवेश करें। दरअसल, इस धातु में चावल के दानों को खींचने की जादुई क्षमता होती है।
इस धातु की इसी प्राकृतिक विद्युत शक्ति या चुंबकीय शक्ति इसे अत्यधिक मूल्यवान बनाती है। इरिडियम में कथित रूप से मौजूद इन्हीं दुर्लभ शक्तियों के कारण, अंतरिक्ष उपकरण बनाने सहित विभिन्न कार्यों के लिए ‘नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन’ (National Aeronautics and Space Administration (NASA) तथा अन्य अनेकों एयरोस्पेस (Aerospace) संगठनों द्वारा इसकी अत्यधिक मांग की जाती है। धोखाधड़ी करने वालों ने लोगों को बताया कि उन्हें एक बहुत ही दुर्लभ और अत्यंत मूल्यवान मिश्र धातु का स्रोत मिला है, जिसकी नासा को अत्यंत आवश्यकता होती है। और इस तरह इनके द्वारा कथित तौर पर इस धातु की खरीद के लिए आवश्यक निवेश के बहाने लोगों से पैसे ऐंठे गए। लोगों से कहा गया कि नासा को 5,000 करोड़ रुपये की राइस पुलर धातु उपलब्ध कराने पर 500 करोड़ रुपये का लाभ होगा। इस तरह उन्होंने लोगों को निवेश करने के लिए राजी किया। इस प्रकार की धोखाधड़ी महाराष्ट्र सहित अन्य राज्यों में भी देखी गई है।
सोने के समान इरिडियम किसी भी अन्य पदार्थ से अभिक्रिया नहीं करता है। इसका घनत्व और गलनांक बहुत उच्च होता है तथा यह पृथ्वी पर मौजूद सबसे दुर्लभ तत्वों में से एक है। यह नदियों द्वारा निक्षेपित अवसादों में प्रकृति में असंयोजित रूप से पाया जाता है। यह निकेल रिफाइनिंग (Nickel refining) के उप-उत्पाद के रूप में व्यावसायिक रूप से पुनर्प्राप्त भी किया जा सकता है। इरिडियम लवण अत्यधिक रंगीन होते हैं तथा इसका उपयोग एक ऐसी सामग्री को बनाने में किया जाता है, जो संक्षारण या जंग लगने की प्रक्रिया को रोक सकती है। यह तत्व विशेष रूप से मिश्र धातुओं में प्रयोग किया जाता है। ऑस्मियम (Osmium) धातु के साथ इसे मिलाकर एक मिश्र धातु बनाई जाती है, जिसका उपयोग पेन के ऊपरी हिस्से अर्थात निब और कंपस बियरिंग्स (Compass bearings) बनाने के लिए भी किया जाता है। 90% प्लैटिनम और 10% इरिडियम की मिश्र धातु के साथ इसका उपयोग मानक मीटर बार (Standard Meter Bar) बनाने में भी किया जाता है । अभी तक इरिडियम का कोई जैविक उपयोग ज्ञात नहीं हुआ है, तथा साथ ही यह धातु कम विषाक्त होती है।
पृथ्वी की ऊपरी सतह (Crust) की तुलना में उल्कापिंडों में इरिडियम बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है। इस कारण से, क्रेटेशियस-पेलियोजीन (Cretaceous–Paleogene) सीमा पर मिट्टी की परत में इरिडियम की असामान्य रूप से उच्च बहुतायत ने अल्वारेज़ परिकल्पना (Alvarez Hypothesis) को जन्म दिया, जिसके अनुसार 66 मिलियन वर्ष पहले एक बड़े पैमाने पर अलौकिक वस्तु के प्रभाव से डायनासोर और कई अन्य प्रजातियों का विलोपन हुआ था। पृथ्वी की ऊपरी सतह में इरिडियम की एक बहुत पतली परत मौजूद है। ऐसा माना जाता है कि एक बड़े उल्कापिंड या क्षुद्रग्रह के पृथ्वी से टकराने के कारण ऐसा हुआ। उल्काओं और क्षुद्रग्रहों में पृथ्वी की ऊपरी सतह की तुलना में इरिडियम का उच्च स्तर होता है। कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि यह वही उल्कापिंड या क्षुद्रग्रह प्रभाव हो सकता है जिसने डायनासोरों को धरती से विलुप्त कर दिया था। मैक्सिको (Mexico) की खाड़ी के नीचे मौजूद चिक्सलुब क्रेटर (Chicxulub crater) में पाए गए साक्ष्यों से इस बात के पुख्ता सबूत मिले हैं कि डायनासोर करोड़ों साल पहले पृथ्वी से टकराने वाले क्षुद्रग्रह द्वारा मारे गए थे। वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम द्वारा क्रेटर में दुर्लभ तत्व इरिडियम की बहुतायत मापी गई है। ऐसा माना जाता है कि 200 किलोमीटर चौड़े चिक्सलुब क्रेटर का निर्माण 11 किलोमीटर चौड़े क्षुद्रग्रह के पृथ्वी से टकराने पर हुआ था। अनुमान लगाया जाता है कि इस टक्कर के कारण वायुमंडल में वाष्पीकृत चट्टान की एक भारी मात्रा एकत्रित हुई होगी, जिसने सूर्य की रोशनी को अवरुद्ध कर दिया होगा और एक ऐसे सर्द मौसम का निर्माण किया होगा, जिसका प्रभाव कई दशकों तक रहा।
वैज्ञानिकों का मानना है, कि इस घटना की वजह से पृथ्वी पर डायनासोर सहित लगभग 75% प्रजातियों का सामूहिक विलोपन हुआ था।यहां वैज्ञानिकों को क्रेटेशियस-पेलियोजीन सीमा पर स्थित तलछटी चट्टानों के समान असामान्य रूप से उच्च मात्रा में इरिडियम मिला। इरिडियम पृथ्वी की ऊपरी सतह में दुर्लभ है क्योंकि यह एक ऐसा तत्व है जो लोहे में घुल जाता है और इसलिए पृथ्वी की आंतरिक सतह कोर (Core) में डूब जाता है। इरिडियम क्षुद्रग्रहों में बहुत अधिक प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।अतः वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया कि एक क्षुद्रग्रह के वाष्पीकरण ने बड़ी मात्रा में इरिडियम को वायुमंडल में छोड़ा, जो तब धूल के रूप में जमीन पर गिर गया जिससे डायनासोर जैसी कई प्रजातियां विलुप्त हो गई।
संदर्भ:
https://bit.ly/3W2pXAQ
https://bit.ly/3M1RXzD
https://rsc.li/42yoiVT
https://bit.ly/3BlYlgl
चित्र संदर्भ
1. इरिडियम और डायनासोर को दर्शाता एक चित्रण (Flickr, publicdomainpictures)
2. इरिडियम तत्व को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. इरिडियम स्पेक्ट्रम; (400 एनएम - 700 एनएम) को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. विलमेट उल्कापिंड, दुनिया में पाया जाने वाला छठा सबसे बड़ा उल्कापिंड है, जिसमें 4.7 पीपीएम इरिडियम है, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. डायनासोर के सामूहिक विलोपन को दर्शाता एक चित्रण (Pixabay)
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