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वनों पर निर्भर समुदायों को ध्यान में रखते हुए वन संवर्धन हो गया है जरूरी

मेरठ

 06-05-2023 10:35 AM
जंगल

भारत के ‘द एलिफेंट व्हिस्परर्स’ (The Elephant Whisperers) वृत्तचित्र को मिले ऑस्कर (Oscar) पुरस्कार की खुशी ने पूरे देश का ध्यान हमारे वन्य जीवन और जंगलों की ओर मोड़ दिया है। हमारे देश में लगभग 35,000 हाथी अपने पोषण के लिए जंगलों पर निर्भर हैं, बदले में ये हाथी जंगल को भी पोषित करते हैं। हालांकि, आज ये शानदार जीव अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं, क्योंकि उनके जीवन में मानव हस्तक्षेप समस्याएं पैदा कर रहा है। यदि हम अपने शानदार वन्य जीवन का संरक्षण करना चाहते हैं, तो हमें इन सबसे बड़े स्तनधारियों से लेकर छोटे से छोटे वन कृन्तकों का भी विचार करना होगा। साथ ही, हमें पहले से विकसित वनों की रक्षा करने की भी आवश्यकता है।
इसके साथ ही यदि हम मानव कल्याण के लिए कार्बन पृथक्करण पर अपनी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करना चाहते हैं, तो हमें तत्काल ही इस दशक के अंत तक अपने वनों को कम से कम 12% अधिक विकसित करने की आवश्यकता है। अतः हमें वन एवं वन्य जीवन संरक्षण हेतु समाज, सरकार और बाजार की भूमिका पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है। आइए पहले वनों के संरक्षण में समाज की भूमिका के बारे में जानते हैं, जिसमें सभी नागरिक, समुदाय, सभी प्रकार के नागरिक संगठन और उनका नेतृत्व शामिल हैं। आज भी हमारे देश में 500 से अधिक आदिवासी समूह हमारी कुल आबादी का 8.9% हैं। ये लोग जंगल को अपने हाथ की हथेली की तरह जानते थे। फिर भी आज, उनमें से अधिकांश अब जंगल के अंदर नहीं रहते हैं। भारत की 104 दशलक्ष जनजातीय आबादी के आधे से अधिक लोग अब देश के 809 आदिवासी बहुल क्षेत्रों के बाहर रहते हैं। सोचिए, कितना सारा ज्ञान हमेशा के लिए खो जाएगा, अगर जंगलों के प्राथमिक हितधारक ही अपनी जड़ से उखड़ कर नष्ट हो जाएंगे ? वैसे तो, जनजातीय लोगों के लिए आजीविका के अवसर बढ़ाने के लिए वन विभाग, स्थानीय समुदायों और नागरिक समाज संगठनों के बीच कई साझेदारियां हुई हैं, किंतु आदिवासी युवाओं को अपने पूर्वजों की भूमि के साथ गहरे जुड़ाव में रहने की बहुत कम उम्मीद और कारण दिखाई देता है। क्योंकि वन अधिकार अधिनियम और सामुदायिक वन अधिकार अधिनियम द्वारा भूमि और उसकी उपज के अधिकारों के वादे को पूरा करने में काफी धीमी गति से कार्य किया जा रहा है। अतः निश्चित रूप से सरकारों द्वारा और अधिक प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। क्योंकि यदि आदिवासी समुदाय जंगल के प्राथमिक प्रबंधक बने नहीं रह सकते हैं, तो अन्य सकारात्मक परिदृश्यों की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। इसके लिए सबसे पहले, हम वनसंरक्षण के बारे में नया ज्ञान और अभ्यास उत्पन्न करने के लिए अधिक नागरिक समाज संगठनों और शोध संस्थानों का समर्थन कर सकते हैं। हमारे सामने चिपको आंदोलन में शामिल लोगों के संघर्षों का समृद्ध इतिहास भी रहा है। तमिलनाडु राज्य की अन्नामलाई पहाड़ियों के एक छोटे से शहर वालपराई में ‘नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन’ (Nature Conservation Foundation) इस बात का एक उल्लेखनीय उदाहरण है कि कैसे राज्य, बाजार और नागरिक समाज बिगड़े हुए पारिस्थितिक तंत्र को पुनर्स्थापित करने के लिए मिलकर काम कर सकते हैं। दूसरा, हम अपनी जैव विविधता के प्रबंधन में शहरी निवासियों को शामिल करने के लिए भी बहुत कुछ कर सकते हैं। शहरों में बेहतर गतिशीलता के लिए अधिक खुले तथा हरे भरे स्थानों, अधिक वृक्षावरण और स्वच्छ हवा की बड़े पैमाने पर सार्वजनिक मांग है। साथ ही, यह उम्मीद है कि भविष्य में देश के युवा इस चुनौती के लिए ज़रूर आगे बढ़ेंगे।
दूसरी उम्मीद है कि सरकार उनकी मदद करेगी और उन्हें बढ़ावा देगी। यह पारिस्थितिक तंत्र के पुनर्जनन का दशक है। और इसके लिए भारत के सामने चुनौतियों के साथ-साथ अवसरों की बहुलता भी है। साथ ही, हमारे सामने पारिस्थितिक और आर्थिक रूप से विकास जारी रखने की भी चुनौती है। 2021 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जारी की गई वन रिपोर्ट के अनुसार, पिछले आठ सालों में भारत में वन आवरण की वृद्धि सबसे धीमी हो गई थी; पिछले दो वर्षों में तो केवल 0.22% की वृद्धि हुई थी। इसके अलावा, इस दशक के अंत तक, हमारे 45-64% वन जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हो सकते हैं। वन प्रबंधन में सरकार की भूमिका को बढ़ा-चढ़ाकर पेश नहीं किया जा सकता। इस उत्तरदायित्व की फिर से कल्पना करने, वन विभागों की संरचना में मूलभूत परिवर्तन करने और इस महत्वपूर्ण मानव शताब्दी की आवश्यकताओं के लिए कुछ अधिक अनुकूल सह-सृजन करने की बहुत गुंजाइश है। सरकारों को मंत्रालयों में पर्यावरण के मुद्दों को बेहतर ढंग से एकीकृत करने की आवश्यकता है। हमारे पास पहले से मौजूद वनों की निगरानी और सुरक्षा के लिए बेहतर डेटा विज्ञान की आवश्यकता है, और निजी संरक्षण पर अधिक साहसिक नई नीतियों की आवश्यकता है। आइए, अब हम बाजार के बारे में जानते हैं कि बाज़ार और कंपनियाँ पर्यावरण के बेहतर संरक्षक कैसे बन सकती हैं? आज, हमारे कानूनों और नीतियों में संशोधन करने और निजी नागरिकों और कंपनियों को वनीकरण और उनके नवीनीकरण के लिए अपनी भूमि का उपयोग करने की अनुमति देने का समय है। हमारे पास, वनों से संबंधित अधिक सक्षम नीतियों के लिए एक स्पष्ट अवसर है। वनों के स्वयं संरक्षण के माध्यम से लाखों लोगों के सम्मानित जीवन स्तर को ऊपर उठाने की भी बहुत संभावना है।
हमारे देश में, 1981 के ‘वन संरक्षण नियम’ वनों के संरक्षण का प्रावधान करते हैं। हालाँकि, इस अधिनियम में एक खामी थी कि यह जनजातियों और वनवासियों के अधिकारों का उल्लेख या मान्यता नहीं देता है। इन नियमों में जनजाति शब्द का उल्लेख नहीं किया गया था। इस कमी को दूर करने के लिए , 2003 में वन संरक्षण नियमों द्वारा वन भूमि का उपयोग करने के लिए किसी भी संस्था द्वारा किसी भी आवेदन के लिए अनुमोदन के दो चरण निर्धारित किए गए थे। इसके अलावा, अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी अधिनियम, 2006 के प्रावधानों द्वारा वन अधिकारों की मान्यता और निहितता और ग्राम सभा से सहमति जैसे उल्लेख, लोगों के शासन आदि को अत्यधिक महत्व दिया गया । इस प्रकार आदर्श रूप से, वनवासियों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर दिया गया। वन संरक्षण अधिनियम 2022 के संशोधित नियमों में सैद्धांतिक मंजूरी से पहले जिलाधिकारी को ग्राम सभा से सहमति लेने की आवश्यकता नहीं है। यह निर्देश देता है कि राज्य सरकारें केंद्र सरकार की अंतिम मंजूरी के बाद अब आदेश पारित कर सकती हैं। साथ ही, वन अधिकार केवल नियमों में प्रकट हो सकता है। 2022 के नए नियम पुरातन सोच को प्रदर्शित करते हैं जो भूमि पर अधिक राज्य नियंत्रण की मांग करते हैं। वनवासी और जनजातियाँ अपनी संस्कृति और परंपराओं के संदर्भ में वन पारिस्थितिकी तंत्र से जुड़े हुए हैं। उनकी आजीविका के लिए खतरा पर्यावरण के लिए खतरे के बराबर है। इसके अलावा, निजी खिलाड़ियों के विपरीत, उनके जैविक अनुकूलन और आध्यात्मिक विश्वास वनों और उनके संसाधनों के सतत उपयोग में योगदान करते हैं। यह अनुमान लगाया गया है कि हमारी आबादी का पांचवां हिस्सा वनों द्वारा प्रदान की जाने वाली पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर सीधे निर्भर करता है। अतः वनों के संरक्षण के माध्यम से लाखों लोगों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने की बहुत संभावना है। भारत उन विरले देशों में से एक है, जहां जनसंख्या के इतने दबाव के बावजूद, हमने अपने चारों तरफ इतनी जैव विविधता को बनाए रखा है। किंतु अब हमें इस जैव विविधता को बनाए रखने के लिए नई प्रथाओं का निर्माण करना चाहिए जो हम में से प्रत्येक को जंगलों एवं उनमें रहने वाले वनवासी एवं जनजातियों का संरक्षण करने में सक्षम बनाएं।

संदर्भ
https://bit.ly/44p9haq
https://bit.ly/3HqIqAW

चित्र संदर्भ
1. वन सुरक्षा कर्मियों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. 2015 तक भारतीय वन आवरण मानचित्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. एक आदिवासी समुदाय को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
4. पेड़ लगाते किसानों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. भारत के वन आच्छादित क्षेत्र को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)

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