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रूस (Russia) और यूक्रेन (Ukraine) के बीच चल रहे संघर्ष को एक साल से ज्यादा समय बीत जाने के बावजूद भी, रूस यूक्रेन पर कब्ज़ा नहीं कर पाया है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यूक्रेन जैसे देश के, रूस जैसे सैन्य शक्ति से संपन्न देश के सामने इतने लंबे समय तक टिके रहने में संचार प्रणाली का बहुत बड़ा योगदान है। वास्तव में आधुनिक समय के युद्धों को संचार प्रणाली के दम पर लड़ा जाता है। इसलिए आज यदि किसी भी देश को तोड़ना या हराना है तो सबसे पहले उस देश के संचार माध्यमों अर्थात अंतरिक्ष में तैरने वाले उसके उपग्रहों को नष्ट करना जरूरी है।
आज दुनिया के लगभग हर देश के पास अपने सैन्य उपग्रहों (Military Satellites) को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करने की क्षमता मौजूद है। इसका प्रमुख कारण है कि आज प्रौद्योगिकी के विकास के साथ और वाणिज्यिक स्तर पर बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण, प्रक्षेपण सेवाएं व्यापक रूप से उपलब्ध हो गई हैं। इसके परिणाम स्वरूप उन देशों की संख्या में भी वृद्धि हुई है, जो अन्य देशों के खिलाफ आक्रामक अंतरिक्ष हमले करने में सक्षम हो गए हैं।
अधिक किफायती होने तथा तकनीकी सुधारों के कारण ही अंतरिक्ष में उपग्रहों को बढ़-चढ़कर प्रक्षेपित किया जा रहा है। विभिन्न देशों के बीच मची, इस होड़ के कारण अंतरिक्ष युद्ध की संभावना भी बढ़ रही है। अंतरिक्ष युद्ध को पृथ्वी के वातावरण के बाहर, अंतरिक्ष में लड़ा जाता है। इस युद्ध में पृथ्वी से देशों द्वारा प्रक्षेपित उपग्रहों पर और उपग्रहों से उपग्रहों पर हमले किये जाते हैं। विभिन्न देशों को अंतरिक्ष युद्ध से कई लाभ होते हैं, जैसे कि वह आम लोगों की अनावश्यक मौत और विनाश के बिना भी किसी देश को आर्थिक रूप से विनाशकारी घाव दे सकते हैं। अंतरिक्ष युद्ध संभावित रूप से संघर्षों की अवधि को भी कम कर सकता है। हालांकि, अंतरिक्ष युद्ध के बाद अंतरिक्ष में मलबे के फैलने और आकस्मिक परमाणु युद्ध होने की संभावना भी बढ़ जाती है।
एक अनुमान के मुताबिक आज अमेरिका (America) के पास कुल 339 से 485 के बीच की संख्या में सैन्य उपग्रह मौजूद हैं। इसके बाद रूस (Russia) के पास 71, चीन (China) के पास 63, फ़्रांस (France) के पास 9 और जर्मनी (Germany) के पास 7 सैन्य उपग्रह हैं। इसके अलावा इटली (Italy) , भारत, यूके (United Kingdom), तुर्की (Turkey), मैक्सिको (Mexico), कोलंबिया (Columbia), स्पेन (Spain), डेनमार्क (Denmark) और जापान (Japan) जैसे अन्य देशों में इनकी संख्या 10 से भी कम हैं। आज विश्व स्तर पर, अंतरिक्ष में 2,500 से 2,800 की संख्या के बीच सक्रिय उपग्रह मौजूद हैं, और इन सभी उपग्रहों में लगभग पांचवां हिस्सा सैन्य उपग्रहों का है ।
अंतरिक्ष में स्थापित इन कृतिम उपग्रहों का उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जाता है, जिसमें पृथ्वी अवलोकन तथा इंटरनेट उपलब्धता प्रदान करने जैसे अनुप्रयोग शामिल हैं। उदाहरण के तौर पर, अंतरिक्ष में स्थापित स्पेसएक्स (SpaceX) कंपनी द्वारा निर्मित ‘स्टारलिंक’ (Starlink) उपग्रह का प्रयोग इंटरनेट सेवा प्रदाता के रूप में किया जाता है।
आज तकनीकी विकास के साथ उपग्रहों का उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है, जिनमें जासूसी, शहरी और ग्रामीण विकास, कृषि, जलवायु परिवर्तन का आंकलन, सड़क यातायात, या तस्करी करने वाले लोगों की निगरानी रखना आदि शामिल है।
आज दुनिया के कई संगठन और लोग अंतरिक्ष में उपग्रहों के एक-दूसरे से संभावित टकरावों को लेकर भी चिंतित हैं। उपग्रहों के आपस में टकराने के परिमाण स्वरूप अंतरिक्ष में मलबा उत्पन्न होता है जो अन्य उपग्रहों को नुकसान पहुंचा सकता है या संचार नेटवर्क को नष्ट कर सकता है।
भारत ने भी 'आई इन द स्काई' (Eye in the Sky) नाम से प्रसिद्ध रिसैट-2 (RISAT-2) नामक अपने पहले जासूसी उपग्रह को 2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों के तुरंत बाद प्रक्षेपित किया था। अंतरिक्ष में एक दशक से अधिक समय तक रहने और निगरानी कार्य पूरा करने के बाद, यह उपग्रह पिछले वर्ष पृथ्वी पर लौट आया था। ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ (Indian Space Research Organisation (ISRO) द्वारा प्रक्षेपित यह उपग्रह 30 अक्टूबर को जकार्ता (Jakarta) के पास हिंद महासागर में गिरा। यह भारत का पहला समर्पित ‘जासूस' या सैन्य पर्यवेक्षक उपग्रह था। देश की सीमाओं और समुद्रों को सुरक्षित रखने के लिए, तथा 2016 में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में आतंकी लॉन्चपैड्स (Launchpads) पर सर्जिकल स्ट्राइक (Surgical Strike) और फरवरी 2019 में बालाकोट हवाई हमले की योजना बनाने के लिए भी इस उपग्रह से प्राप्त छवियों का इस्तेमाल किया था ।
रिसैट-2 ने 13.5 वर्षों तक देश में कई घुसपैठ रोधी और आतंकवाद रोधी अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हिंद महासागर और अरब सागर में दुश्मनों के जहाजों का पता लगाने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया गया था। आज भारत बाहरी अंतरिक्ष में युद्ध के लिए नई हथियार प्रणाली विकसित करने की योजना पर काम कर रहा है। बिजनेस स्टैंडर्ड (Business Standard) के अनुसार, सरकार ने ‘रक्षा अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी’ (Defense Space Research Agency) नामक एक हथियार अनुसंधान एजेंसी शुरू करने की योजना को मंजूरी दे दी है। भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम स्पष्ट रूप से बता रहा है कि भारत अपनी सुरक्षा के लिए अंतरिक्ष में भी कितना जागरूक है ।
संदर्भ
https://bit.ly/3EXRZ9e
https://bit.ly/3ycOoAd
https://bit.ly/2KdLcgW
https://bit.ly/3Jfdu83
चित्र संदर्भ
1. सैन्य उपग्रहों को संदर्भित करता एक चित्रण (Needpix, Max Pixel)
2. सैन्य ठिकानों का पता लगाते सैन्य उपग्रह को संदर्भित करता एक चित्रण (picryl)
3. उपग्रहों के संचार को संदर्भित करता एक चित्रण (Rawpixel)
4. स्पेस एक्स के उपग्रह को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. स्पेस स्टेशन को दर्शाता एक चित्रण (rawpixel)
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