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असम में गैंडों की संख्या में वृद्धि किसी चमत्कार से कम नहीं है

मेरठ

 02-03-2023 09:55 AM
स्तनधारी

सींगों के लिए गैंडों का शिकार इनकी सभी प्रजातियों के पतन के प्राथमिक कारणों में से एक रहा है। अत्यधिक अवैध शिकार के चलते यह प्रजाति पूरी तरह से विलुप्त होने की कगार पर आ पहुंची है। हालांकि हमारे देश में मार्च 2020 में महामारी के कारण लगे देशव्यापी लॉकडाउन (Lockdown) के बावजूद भी, वन अधिकारियों ने अपनी जान को जोखिम में डालकर, देश की इस दुर्लभ वन्य जीव संपदा की रक्षा की, जिसका परिमाण अत्यंत सुखद रहा - । देशभर के विभिन्न हिस्सों से हमें कई मूक जानवरों के अस्तित्व से जुड़ी कई अच्छी खबरें प्राप्त हुई हैं! वर्तमान में गैंडों की केवल पाँच प्रजातियाँ (सुमात्रा गैंडे (Sumatran Rhinoceros), जावन राइनो (Javan Rhino), भारतीय गैंडा (Indian Rhinoceros), काला गैंडा (Black Rhinoceros), सफेद गैंडा (White Rhinoceros) ही जीवित मानी जाती हैं। इनमें से दो प्रजातियां (सफेद और काला गैंडा) अफ्रीका में और तीन प्रजातियां (सुमात्रा, जावन और भारतीय गैंडा) एशिया में पाई जाती हैं। दुर्भाग्य से मानव गतिविधियों के परिणामस्वरूप आज यह शेष प्रजातियां भी खतरे में पड़ गई हैं।
सभी पांच प्रजातियों में “सफेद गैंडा” सबसे बड़ा और सबसे आम माना जाता है। यह घास खाता है और इसे पूरे अफ्रीका में देखा जा सकता है। इससे जुड़ी एक अच्छी खबर यह है कि जहां 20वीं शताब्दी की शुरुआत में लगभग 20 सफेद गैंडे ही जीवित थे, वहीं आज इनकी संख्या बढ़कर 18,000 हो गई है। यह गैंडों की एकमात्र ऐसी प्रजाति है, जिसे ‘प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ’ (International Union for Conservation of Nature (IUCN) द्वारा खतरे की श्रेणी में नहीं रखा गया है।
काले गैंडे, सफेद गैंडों से छोटे होते हैं। सफेद और काले गैंडों के बीच सबसे उल्लेखनीय अंतर उनके मुंह की बनावट में होता है। काले गैंडों के झुके हुए ऊपरी होंठ नुकीला होता है , जो उन्हें टहनियां और पत्तियां खाने में मदद करता है । भारतीय गैंडा, एशियाई गैंडों में सबसे बड़ा होता है। अफ्रीकी प्रजातियों के विपरीत, इसमें केवल एक सींग होता है। गैंडे की यह प्रजाति भारत और नेपाल के घास के मैदानों में रहती है। गैंडों की अन्य दो एशियाई प्रजातियाँ, जावन गैंडे और सुमात्रा गैंडे दुनिया में सबसे दुर्लभ और विशाल स्तनपायी माने जाते हैं। आज पूरी दुनिया में इनकी संख्या 100 से भी कम रह गई है। जावन गैंडा भारतीय गैंडे से बहुत मिलता-जुलता है, हालांकि यह काफी छोटा होता है।
प्राचीन गुफा चित्रों और मिट्टी की मूर्तियों से पता चलता है कि गैंडे हजारों वर्षों पहले से वैश्विक चेतना का प्रमुख हिस्सा रहे हैं। गैंडे मानव इतिहास की सबसे पुरानी छवियों में उकेरे गए जीव हैं। फ्रांस (France) के चौवेट गुफा चित्रों (Chauvet Cave Paintings) में भी लगभग 30,000 साल पहले मनुष्यों द्वारा उकेरी गई गैंडे की छवि मिलती है। लेकिन मुख्यधारा की कला में उनकी उपस्थिति काफी बाद में, (1515) में देखी गई थी। इसी वर्ष (1515 में) पुर्तगाल के राजा ने पोप लियो X (Pope Leo X) को उपहार के रूप में एक भारतीय गैंडा भेजा था। दुर्भाग्य से इसे लाने वाला जहाज इटली (Italy) के तट पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया, लेकिन डूबने से पहले एक प्रसिद्द जर्मन कलाकार अल्ब्रेक्ट ड्यूरर (Albrecht Dürer) ने इसका रेखाचित्र बना लिया था, जो आज तक भी गैंडे का सबसे प्राचीन और दुर्लभ विवरण माना जाता है ।
समय के साथ, चिड़ियाघरों के लिए जीवित जानवरों को एक देश से दूसरे देश ले जाना अधिक आसान और लोकप्रिय हो गया। 1741 में, क्लारा (Clara) नामक एक अन्य भारतीय गैंडे को नीदरलैंड (Netherlands) भी भेजा गया। उसे इतिहास की पहली वास्तविक पशु हस्ती (Celebrity) कहा जा सकता है। उसकी लोकप्रियता इतनी अधिक थी कि फ्रांसीसी नौसेना ने उसके नाम पर एक जहाज का नाम ही राइनोसेरॉस (Rhinoceros) रख दिया था। 19वीं शताब्दी की शुरुआत में यूरोपीय साम्राज्यों के विस्तार के साथ ही अफ्रीकी गैंडों की छवियों की संख्या में भी वृद्धि हुई। अफसोस की बात है कि समय के साथ गैंडों के प्रति लोगों की जिज्ञासा एवं कौतूहल धीरे-धीरे लालच और शिकार में बदल गया। गैंडे भी तस्करी और शिकार की भेंट चढ़ने लगे ।
माना जाता है कि सींग के लिए किया गया शिकार, गैंडों की सभी प्रजातियों के पतन के प्राथमिक कारणों में से एक रहा है। प्रारंभ में, अपने घरों में इनके सींगो का प्रदर्शन करना शिकारियों के लिए बहादुरी का प्रतीक माना जाता था। 20वीं शताब्दी के बाद गैंडों के सींगों के लिए इनका अवैध शिकार काफी बढ़ गया। इनके सींगों को पारंपरिक चिकित्सा के लिए भी लाभदायक माना जाता है।इस कारण भी इनका शिकार किया जाने लगा।अत्यधिक शिकार के कारण यह प्रजाति अब पूरी तरह से विलुप्त होने की कगार पर आ पहुंची है, जिस कारण अब संरक्षण वादियो ने गैंडों के संरक्षण के लिए कई मुहिम शुरू की है।
गैंडों के संरक्षण के संदर्भ में भारत के लोगों और सरकार द्वारा उठाए गए कदम सराहनीय माने जा सकते हैं। मई 2021 में, भारतीय राज्य, असम के नए मुख्यमंत्री हिमन्त बिश्व सर्मा (Himanta Biswa Sarma) ने राज्य के संरक्षित क्षेत्रों में अवैध शिकार को पूरी तरह से समाप्त करने की अहम् घोषणा की थी। आपको जानकर हैरानी होगी कि जनवरी 2023 में लगभग 20 महीने बाद, राज्य के वानिकी और पुलिस विभाग ने बताया कि 2022 में असम में एक भी गैंडे का अवैध शिकार नहीं हुआ है। 1977 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है। असम को दुनिया के सबसे समृद्ध जैव विविधता क्षेत्रों में से एक माना जाता है। यहां काजीरंगा (Kaziranga), मानस (Manas) और ओरांग राष्ट्रीय उद्यानों (Orang National Parks) के साथ-साथ पोबितोरा वन्यजीव अभयारण्य (Pobitora Wildlife Sanctuary) भी मौजूद हैं। राज्य के 2,895 गैंडों में से लगभग सभी गैंडे इन्ही चार अभ्यारण्यों के भीतर पाए जाते है। जानवरों के संरक्षण के लिए मुख्यमंत्री हिमन्त बिश्व सर्मा ने विशेष पुलिस महानिदेशक जी. पी. सिंह (G. P. Singh) के नेतृत्व में एक विशेष अवैध शिकार विरोधी टास्क फोर्स (Task Force) का गठन किया था। टास्क फोर्स ने गैंडों के अवैध शिकार की पिछली घटनाओं से जुड़ा एक खाका तैयार किया था। इस दौरान शिकारियों के फोन पर भी नजर रखी जाती थी, और स्थानीय मछुआरों तथा ग्रामीणों को मुखबिर बनाया गया था। इसके अलावा गैंडों के संरक्षण हेतु एक सराहनीय कदम और भी उठाया गया है। दरअसल, मार्च 2020 में भारत में देशव्यापी तालाबंदी के बाद, आवश्यक आपूर्ति की कमी जैसी चुनौतियों के बावजूद भी, वन विभाग के कर्मचारियों ने वन्यजीवों के आवासों की निगरानी के लिए अपनी गश्त जारी रखी, जिसका पुरस्कारस्वरूप परिणाम यह हुआ कि अधिकारियों को असम में पहली बार एक सींग वाले गैंडे का एक बछड़ा दिखा, जोकि उस साल गैंडों की संख्या में तीसरी बढ़ोतरी थी। हालांकि पहले की कहानी बिल्कुल अलग थी। असम का मानस राष्ट्रीय उद्यान 1980 के दशक के अंत से 2000 के दशक के प्रारंभ तक स्थानीय संघर्षों से प्रभावित रहा है। इस अवधि के दौरान, उद्यान के 85 से 100 गैंडों की आबादी का पूर्णतः सफाया हो गया था। जिसके बाद असम सरकार ने 2005 में एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम: ‘इंडियन राइनो विजन’ 2020 (Indian Rhino Vision 2020 (IRV2020) के साथ गैंडों को फिर से अस्तित्व में लाने का फैसला किया।
कई चुनौतियों के बावजूद, पिछले 12 वर्षों में, असम वन विभाग ने भागीदारों की मदद और स्थानीय समुदायों के समर्थन से ‘मानस राष्ट्रीय उद्यान’ में फिर से 20 गैंडों को सफलतापूर्वक वापस लाया है। ‘मानस राष्ट्रीय उद्यान’ में 2003 से सक्रिय विभिन्न सामुदायिक संरक्षण संगठनों ने भी निगरानी और गश्त में मदद की, क्षेत्र की सुरक्षा के लिए अतिरिक्त कर्मियों को प्रदान किया और समुदाय के सदस्यों के लिए अतिरिक्त आय प्रदान की। क्षेत्र में संरक्षण के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए, असम सरकार के साथ-साथ बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद (Bodoland Territorial Council (BTC), डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया (WWF India), और अन्य गैर सरकारी संगठन भी, मानस माओजीगेंद्री इकोटूरिज्म सोसाइटी (Manas Maozigendri Ecotourism Society) और मानस एवर वेलफेयर सोसाइटी (Manas Ever Welfare Society) जैसे समुदाय-आधारित संरक्षण संगठनों की मदद कर रहे हैं।

संदर्भ
https://bit.ly/3KCOKrp
https://bit.ly/3KG5nSP
https://bit.ly/3Y9FyxI

चित्र संदर्भ
1. एक भारतीय गेंडे को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. गेंडो की चार प्रजातियों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. गेंडों के वितरण क्षेत्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. जावन गेंडे को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. जर्मन कलाकार अल्ब्रेक्ट ड्यूरर द्वारा निर्मित भारतीय गेंडे के रेखाचित्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में भारतीय गेंडे को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
7. एक सींग वाला गैंडा असम के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में देखा जाता है, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)

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