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क्या आप जानते हैं कि भारत में 90 प्रतिशत जंगलों की कटाई के लिए कृषि क्षेत्र जिम्मेदार होता है। लेकिन इसके बावजूद, जंगलों की कटाई के बाद साफ की गई भूमि का लगभग आधा हिस्सा ही सक्रिय तौर पर कृषि उत्पादन में प्रयोग किया जाता है। हालांकि, सरकार द्वारा इस असमानता और जंगलों की बर्बादी रोकने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का काफी रचनात्मक तरीके से प्रयोग किया जा रहा है।
भारत के पर्यावरण, जंगल और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Environment, Forest and Climate Change Ministry) द्वारा प्रकाशित द्विवार्षिक ‘भारतीय जंगल स्थिति रिपोर्ट’ (Indian State of Forest Report (ISFR) 2021) के अनुसार, 2019 से 2021 तक भारत में जंगल आवरण क्षेत्र में मात्र 1,540 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई है। यह 0.22% की वृद्धि का प्रतिनिधित्व करती है, जो आठ वर्षों में सबसे कम द्वि-वार्षिक वृद्धि है। रिपोर्ट में यह भी दिखाया गया है कि वृक्षों के आवरण क्षेत्र में वृद्धि की दर2015 के बाद से अपने सबसे कम स्तर पर है। नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश राज्यों ने 2019 और 2021 के बीच अपने जंगल क्षेत्र में गिरावट देखी।
जर्नल साइंस (Journal Science) में प्रकाशित एक अध्ययन, जिसमें अफ्रीका (Africa), लैटिन अमेरिका(Latin America) और एशिया(Asia) में अध्ययनों का विश्लेषण शामिल है, के अनुसार कृषि संबंधित कार्य, जंगलों की विलुप्ति का प्रमुख कारण बनकर उभरे है। शोध का अनुमान है कि हर साल 6.4 मिलियन से 8.8 मिलियन हेक्टेयर (15.8 मिलियन और 21.7 मिलियन एकड़) उष्णकटिबंधीय जंगल, कृषि कार्यों के लिए काटे जाते हैं जो कि लगभग 8 मिलियन फुटबॉल के मैदान (Soccer Field) से अधिक के बराबर या रवांडा (Rwanda) के तीन गुना से अधिक आकार के बराबर होता है।
यह एक बड़ी समस्या है क्योंकि जंगलों को, जो कि कार्बन को वातावरण से सोख लेते हैं, काटने से बड़ी मात्रा में वातावरण में कार्बन की मात्रा बढ़ जाती है ।है इससे ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) अर्थात जलवायु परिवर्तन की दर और अधिक बढ़ सकती है। जंगलों की कटाई से जैव विविधता का भी भारी नुकसान होता है और यह स्थानीय जलवायु को प्रभावित कर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप बारिश भी कम होती है। उदाहरण के लिए, ब्राजील (Brazil) में, सोया की खेती के लिए बड़े पैमाने पर जंगलों की कटाई से स्थानीय जलवायु पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे सोया की पैदावार कम हो जाती है। इसके अतिरिक्त, पेड़ों के कटाव से मिट्टी का क्षरण भी हो सकता है।
अध्ययन ने 2011 से 2015 तक के आंकड़ों का विश्लेषण किया और पाया कि 90 से 99% जंगलों में कमी आने का प्रमुख कारण कृषि कार्य ही थे, जिसके अंतर्गत या तो सीधे खेती के लिए जंगलों की कटाई की गई या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि से संबंधित गतिविधियों के कारण जंगलों को काटा गया। शोध में यह भी पाया गया कि कृषि के लिए साफ की गई भूमि का लगभग एक-तिहाई से लेकर आधा हिस्सा ही खेती के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था।
कृषि के लिए साफ की गई जंगल भूमि की मात्रा और वास्तव में खेती के लिए उपयोग की जाने वाली राशि के बीच का अंतर सबसे बड़ी चिंताओं में से एक है। भूमि के स्वामित्व, आवंटन और उपयोग पर विवाद कुछ ऐसे मुख्य कारण हैं, जिनकी वजह से साफ की गई भूमि अप्रयुक्त हो जाती है। कुछ मामलों में किसान जमीन तो साफ कर देते हैं, लेकिन फिर मालिकाना हक को लेकर विवाद खड़ा हो जाता है और कोई भी उस जमीन का इस्तेमाल नहीं करता। अन्य कारणों में, किसानों को यह एहसास होता है कि भूमि उन फसलों के लिए उपयुक्त नहीं है जिन्हें वे उगाना चाहते हैं, इसलिए वे इसे छोड़ देते हैं। साथ ही उगाई जाने वाली फसलों के लिए पूंजी या बाजारों की कमी भी हो सकती है।
इस अध्ययन ने कुछ ऐसी फसलों की भी पहचान की है जो जंगलों के लिए सबसे बड़ा जोखिम पैदा करती हैं। उदाहरण के लिए, सोया और ताड़ की खेती से का लगभग 20% जंगल नुकसान होता है, जबकि कोको, रबर, कॉफी, चावल और मक्का सहित अन्य फसलें भी जंगलों की कटाई में योगदान करती हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि जंगलों की कटाई को कम करने और जंगलों की रक्षा के लिए, बेहतर भूमि उपयोग योजना के साथ-साथ स्थायी भूमि उपयोग को बढ़ावा देने के लिए नीतियों और प्रोत्साहनों की आवश्यकता है। इसके अलावा, उष्णकटिबंधीय जंगलों की सीमा और स्थिति के बारे में सटीक जानकारी होना महत्वपूर्ण है, जिसके लिए बेहतर मानचित्रण प्रणाली (Mapping System) की आवश्यकता होगी।
हालांकि, भारत को अपने जंगलों के सुरक्षा प्रयासों में सुधार करने में मदद करने के लिए शोधकर्ताओं की एक टीम ने एक भूमि उपयोग निगरानी प्रणाली विकसित की है। प्रणाली को नॉर्वे के अंतरराष्ट्रीय जलवायु और जंगल पहल (International Climate and Forest Initiative (NICFI) के आंकड़ों का उपयोग करके विकसित किया गया था, जिसका उद्देश्य उष्णकटिबंधीय जंगल विनाश को कम करने के लिए उष्णकटिबंधीय क्षेत्र की उच्च-रिज़ॉल्यूशन छवियां (High-Resolution Images) प्रदान करना है।
यह प्रणाली भारत के 10 आधार मानचित्रों को संसाधित करने में सक्षम थी, जिसमें मौसमी बदलाव जैसे बंजर भूमि में परिवर्तन और फसलों पर मानसून का प्रभाव दिखाया गया था। शोधकर्ताओं का मानना है कि इन मौसमी परिवर्तनों को समझने से वैज्ञानिकों को जंगलों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझने में मदद मिल सकती है। दुनिया भर में बाढ़ जैसे वार्षिक परिवर्तनों का अध्ययन करने के लिए टीम इन आधार मानचित्रों के समय को कई वर्षों तक विस्तारित करने की योजना बना रही है। इसके अलावा भारत और दुनिया भर में जंगलों की रक्षा करने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence (AI) का भी उपयोग किया जा रहा है।
जंगलों की निगरानी के लिए एआई-सक्षम ड्रोन (AI-Enabled Drones), इन्फ्रा-रेड कैमरा (Infra-Red Camera), रीयल-टाइम मॉनिटरिंग डिवाइस (Real-time Monitoring Device), आरएफआईडी टैग (RFID Tags) और जीपीएस जियो-लोकेशन सिस्टम (GPS Geo-location System) का उपयोग किया जा रहा है। एआई का उपयोग जंगल की आग का पता लगाने, जानवरों के प्रवासन की निगरानी करने और जंगलों में पर्यटक गतिविधि की निगरानी के लिए किया जा सकता है। इसका उपयोग अनधिकृत जंगलों की कटाई, मानव अतिक्रमण, तस्करी और जंगल्यजीवों के अवैध शिकार का पता लगाने के लिए भी किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, एआई का उपयोग उन जानवरों की गतिविधियों का पता लगाने के लिए किया जा सकता है जिन्हें लुप्तप्राय माना जाता है, और यदि वे जोखिम में हैं तो एआई अधिकारियों को सतर्क कर सकती हैं।
संदर्भ
https://bit.ly/3FMlDh5
https://bit.ly/3FKpJ9H
https://bit.ly/3HUJ6zk
https://bit.ly/3hHhAef
चित्र संदर्भ
1. जंगल में फल उगाते व्यक्ति को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. 2021 तक वनावरण मानचित्र के प्रतिशत को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. जंगल के कटान को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. पहाड़ी किसानों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. ड्रोन से ली गई तस्वीरों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. विशाल जंगल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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