Post Viewership from Post Date to 26-Dec-2022 (5th Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
364 874 1238

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

अनगिनत भावनाओं की सुगंध समेटे हुए हैं, हमारे रामपुर के ख़ास व्यंजन

मेरठ

 21-12-2022 01:07 PM
स्वाद- खाद्य का इतिहास

कुछ ऐसे व्यंजन हैं जो कि विशेष अवसरों पर बनाए जाते हैं या किन्ही विशेष भावनाओं को व्यक्त करते हैं –जैसे शादियों में तार कोरमा और रोटी हमेशा ही शामिल किया जाता है; क्षमा करने में कबाब अपनी भूमिका निभाता है; गुलथी पहले प्यार की निशानी, और किवामी सेवइयां ईद की खुशियों में अपनी भूमिका निभाती है,तो कीमा समोसा रामपुर में रमजान के दौरान इफ्तार का विशिष्ट भोजन बन जाता है । ऐसा ही एक व्यंजन रामपुर में बनने वाला एक विशेष पुलाव है जो अंत्येष्टि में परोसा जाता है और ऐसा माना जाता है कि यह पुलाव शोक संतप्त को आराम देता है। ईद अल-अधा (बलिदान का त्योहार) मुसलमानों द्वारा मनाई जाने वाली दो ईदों में से अधिक नाटकीय, भावनात्मक भी है। भावना का स्तर उसकेभाव के साथ हमारे जुड़ाव पर निर्भर करता है। ईद अल-अधा, जिसे भारतीय उपमहाद्वीप में बकर ईद के रूप में भी जाना जाता है, बलिदान के दर्द और हज यात्रा को पूरा करने की खुशी से उत्‍पन्‍न हुआ है।
देघ से दस्तरख्वान (Degh to Dastarkhwan) पुस्तक में रामपुर के व्यंजनों का विस्‍तार से वर्णन किया गया है। रामपुर के रजा पुस्‍तकालय में हस्तलिखित रसोई की पांडुलिपियों का एक बड़ा संग्रह है, जिन्हें नवाब सैयद अहमद अली खान (1794-1840 शासन) के समय लिखा गया था और यह नवाब की पाक आकांक्षाओं को दर्शाता है। 1857 के विद्रोह के बाद, दिल्ली और अवध के नष्ट सांस्कृतिक केंद्रों के कलाकारों और रसोइयों ने यहां (रामपुर) पलायन किया और यहां की संस्कृति में परिवर्तन को और बल मिला। यहां के नवाबों ने दिल्ली और अवध के धराशायी हुए राज्यों से आए लेखकों, कलाकारों, कवियों और रसोइयों का स्वागत किया और उन्हें अपने यहां नियुक्त किया। इन सांस्कृतिक केंद्रों के रसोइयों को शाही रसोइयों के रूप में नियुक्त किया गया था और उन्होंने अपने रामपुर समकक्षों के साथ मिलकर रामपुरी शाही व्यंजन तैयार किए। इस प्रकार, रामपुर 1857 के विद्रोह के विनाशकारी परिणामों से बच गया और उत्तर भारतीय मुस्लिम संस्कृति के साथ-साथ नवाब होशयार जंग बिलग्रामी का सांस्कृतिक केन्‍द्र बन गया, जो 1918 से 1928 तक नवाब सैयद हामिद अल खान (शासन1894-1930) के दरबार में एक दरबारी थे।अपने लेख मशहिदात में वे लिखते हैं कि “शाही रसोइयों में 150 रसोइया थे, जिनमें से प्रत्येक को केवल एक व्यंजन बनाने में विशेषज्ञता हासिल थी। ऐसे रसोइया मुग़ल बादशाहों के पास या ईरान, तुर्की और इराक में भी नहीं थे।”
वह कम से कम लगभग 200 व्यंजनों के बारे में लिखते हैं, जिनमें अंग्रेजी और मध्य पूर्वी व्यंजन भी शामिल हैं और जिन्हें नवाब सैयद हामिद अल खान द्वारा आयोजित भोज में पकाया गया था। रामपुर के नवाब के खासबाग महल में चावल की एक अलग रसोई थी और यहां के खानसामा सबसे उत्तम और अभिनव चावल के व्यंजन बनाने में प्रसिद्ध थे। बेगम जहांआरा हबीबुल्लाह ने अपने संस्मरण (रिमेंबरेंस ऑफ डेज़ पास्ट (Remembrance of Days Past)) में जोकि 1960 के दशक तक नवाब सैयद रज़ा अली खान (शासन 1930-1949) की रियासत के दौरान रामपुर की रियासत पर और आजादी के बाद के वर्षों पर आधारित है, नवाब सैयद रज़ा अली खानकी टेबल पर परोसे जाने वाले पुलाव की दस किस्मों के बारे में लिखा है। पूरे तीतर, बटेर, चिकन या मटन के साथ बनाया गया दमपुख्त पुलाव रामपुर की विशेषता है। रामपुर के ज्यादातर घरों में आज आम यखनी पुलाव बनाया जाता है। पुलाव सुगंधित चावल और मांस से तैयार पारंपरिक मुस्लिम व्यंजन है। कोई भी दावत, अंतिम संस्कार या प्रार्थना सभा इसके बिना पूरी नहीं होती। रामपुर में, पुलाव को पकाने में लगने वाला समय बहुत महत्वपूर्ण होता है। आटे की सील लगाए हुए बर्तन या कुकर में इसे दम लगाया जाता है। इतनी देर इसे ग्रहण करने वालों को प्रतीक्षा करनी होती है। दम का शाब्दिक अर्थ है जीवन, अर्थात दम की भाप निकलने पर पुलाव बेजान हो जाता है। अधिकांश लोगों के लिए इस पुलाव को शोक और स्मृतियों से जोड़ना अकल्पनीय होगा।
रामपुर में अंतिम संस्कार के दौरान पुलाव परोसने का समय और भी महत्वपूर्ण होता है। पुरूष अर्थी को कंधों पर ले जाते हैं और महिलाएं घरों पर शोक मनाती हैं। जब पुरुष कब्रिस्तान से लौटते हैं तो उनमें शांतित्याग की भावना होती है यदि मृत व्‍यक्ति बूढ़ा और बीमार हो तो एक संतोष का भाव होता है। घर में ईंट के चूल्हे पर पुलाव को तैयार किया जाता है और पुलाव की देघ को घर के आंगन में रखा जाता है। जो महिलाएं दिन भर मातम मचा रहीं थी, अब सबको पुलाव परोसती हैं। यहां तक कि शोक में भी यह महत्वपूर्ण है कि पुलाव को पूरे दम के साथ परोसा जाए। अत्‍यधिक दुःख में भी कोई ठंडा पुलाव नहीं परोस सकता। अब, रामपुरियों ने पुलाव को पीली मिर्च के गुच्छे और हरी मिर्च के साथ स्थानीय स्वाद के अनुरूप बनाना शुरू कर दिया है। पुराने समय के पकवान की नाजुक लाली को थोड़ी मात्रा में पीली मिर्च की चटनी और कभी-कभी दही के साथ लेना पसंद करते हैं। रामपुर के व्यंजनों में अब संकरित बासमती चावल और यखनी (मांस स्टॉक) के साथ तैयार एक बुनियादी यखनी पुलाव तैयार किया जाता है। नब्बे के दशक तक, पुलाव के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला चावल हंस राज था, जो अद्वितीय सुगंध देता था यह एक स्थानीय विरासत का चावल था। हंस राज अब व्यावहारिक रूप से विलुप्त हो गया है।लेकिन पुराने समय के लोगों को आज भी याद है कि इस चावल से बने पुलाव की सुगंध पूरे मुहल्ले में फैलती थी। हंस राज के चावल के दाने बासमती के चावल के दाने से छोटे होते थे, जो हमें इसकी घुमावदार लंबाई से आकर्षित करते थे।
रामपुरियों को यखनी पुलाव बहुत पसंद है और वे इसके समृद्ध और मसालेदार संस्करण, बिरयानी को भी पसंद करते हैं, जो पूरे भारत में चावल और मांस का सबसे लोकप्रिय व्यंजन बन गया है। बिरयानी को रामपुरियों द्वारा आधे-उबले चावल के साथ कोरमा को मिलाकर तैयार किया जाता है। इन्‍हें पकाने की प्रक्रिया पूरी तरह से अलग है। पुलाव का आधार मीट है, और यह मूलत: फारसी संस्करण के करीब है।दूसरी ओर, मसालेदार मांस करी को उबले हुए चावल के साथ परत करके और दम पर रखकर बिरयानी तैयार की जाती है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3EOvW3S
https://bit.ly/3W7GaUg
https://bit.ly/3UZmYqw

चित्र संदर्भ

1. यखनी पुलाव को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. तैयार रामपुरी यखनी पुलाव को दर्शाता एक चित्रण (pikro)
3. देघ से दस्तरख्वान (Degh to Dastarkhwan) पुस्तक में रामपुर के व्यंजनों का विस्‍तार से वर्णन किया गया है। को दर्शाता एक चित्रण (amazon )
4. घर में तैयार यखनी पुलाव को दर्शाता एक चित्रण (Pixabay)

***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • अपने युग से कहीं आगे थी विंध्य नवपाषाण संस्कृति
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:28 AM


  • चोपता में देखने को मिलती है प्राकृतिक सुंदरता एवं आध्यात्मिकता का अनोखा समावेश
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:29 AM


  • आइए जानें, क़ुतुब मीनार में पाए जाने वाले विभिन्न भाषाओं के शिलालेखों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:22 AM


  • जानें, बेतवा और यमुना नदियों के संगम पर स्थित, हमीरपुर शहर के बारे में
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:31 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस के मौके पर दौरा करें, हार्वर्ड विश्वविद्यालय का
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:30 AM


  • जानिए, कौन से जानवर, अपने बच्चों के लिए, बनते हैं बेहतरीन शिक्षक
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:17 AM


  • आइए जानें, उदासियों के ज़रिए, कैसे फैलाया, गुरु नानक ने प्रेम, करुणा और सच्चाई का संदेश
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:27 AM


  • जानें कैसे, शहरी व ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के बीच अंतर को पाटने का प्रयास चल रहा है
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:20 AM


  • जानिए क्यों, मेरठ में गन्ने से निकला बगास, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के लिए है अहम
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:22 AM


  • हमारे सौर मंडल में, एक बौने ग्रह के रूप में, प्लूटो का क्या है महत्त्व ?
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:29 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id