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रामपुर शहर को ‘नवाबों की नगरी’ कहा जाता है। लेकिन किसी भी शहर की जनसंख्या जब बहुत अधिक बढ़ जाती है तो कहीं न कहीं हम सभी को अपनी कई सुविधाओं अर्थात नवाबियत से समझौता करना पड़ता है। आज इस लघु लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि शहर में लोगों की जनसख्या बढ़ने के और कौन-कौन से दूरगामी परिणाम हो सकते है ?
संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि साल 2035 तक भारत की शहरी जनसंख्या 675 मिलियन हो जाएगी, जो चीन की एक अरब की जनसंख्या के बाद दूसरी सबसे बड़ी आबादी है। संयुक्त राष्ट्र-आवास की विश्व शहरों की रिपोर्ट 2022 (The United Nations-Habitat’s World Cities Report 2022) में कहा गया है कि तेजी से बड़ते शहरीकरण में केवल कोविड-19 (Covid-19) महामारी के कारण अस्थायी विलंब हुआ है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की शहरी जनसंख्या 2035 में 67,54,56,000 होने का अनुमान है, जो 2020 में 48,30,99,000 से बढ़कर 2025 में 54,27,43,000 और 2030 में 60,73,42,000 हो जाएगी। 2035 तक, शहरी क्षेत्र में रहने वाली जनसंख्या का प्रतिशत कुल जनसंख्या का 43.2% होगा। 2035 में, चीन की शहरी जनसंख्या 1.05 बिलियन होने का अनुमान है, जबकि इस समय तक एशिया में शहरी आबादी 2.99 बिलियन और दक्षिण एशिया में 98,75,92,000 होगी।
चीन और भारत जैसी विशाल अर्थव्यवस्था वाले देशों में दुनिया की जनसंख्या का बड़ा हिस्सा निवास करता है किंतु इन देशों के विकास पथ ने वैश्विक असमानता को बहुत प्रभावित किया है। एशिया में, पिछले दो दशकों में, चीन और भारत ने तेजी से आर्थिक विकास और शहरीकरण में वृद्धि की, जिसके कारण गरीबी में रहने वाले लोगों की संख्या में भारी कमी आई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि निम्न-आय वाले देशों में बढ़ती जन्म दर के कारण वर्तमान शहरी जनसंख्या स्वाभाविक रूप से बढ़ती जा रही है।
शहरी क्षेत्रों में वायरस के अधिक प्रकोप और महामारी से उत्पन्न आर्थिक कठिनाइयों के बाद , भी कई शहर एक बार फिर रोजगार, शिक्षा और प्रशिक्षण की सुविधाओं के कारण लोगों के लिए अवसर के प्रकाश स्तंभ के रूप में उभर रहे हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार "21वीं सदी में शहरीकरण एक शक्तिशाली मेगा-ट्रेंड (Mega-Trend) बना हुआ है।" साथ ही सरकारों की सही नीतियों और सही प्रतिबद्धता के साथ, हमारे बच्चे एक उत्तम अधिक समावेशी, हरित, सुरक्षित और स्वस्थ शहरी भविष्य प्राप्त कर सकते हैं।
हालांकि, आज गरीबी और असमानता शहरों के सामने सबसे कठिन और अत्यधिक जटिल समस्याओं में से एक है, और शहरी गरीबी और असमानता से निपटना, समावेशी और न्यायसंगत शहरी भविष्य के निर्माण के लिए प्रमुख प्राथमिकताओं में से एक है।
इसके साथ ही बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण शहर जलवायु परिवर्तन की समस्याओं का भी सामना कर रहे हैं ।जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए, एक रिपोर्ट में कहा गया है कि शहर, गर्म जलवायु , जलवायु परिवर्तन और चरम मौसम की घटनाओं, बाढ़” के जोखिमों और प्रभावों के कारण अस्तित्व के खतरों का सामना करते हैं।
विश्व बैंक की एक नई रिपोर्ट का अनुमान है कि यदि भारत को प्रभावी ढंग से अपनी तेजी से बढ़ती शहरी जनसंख्या की आवश्यकताओं को पूरा करना है तो हमें शहरी बुनियादी ढाँचे में अगले 15 वर्षों में $840 बिलियन का निवेश करने की आवश्यकता होगी। बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण फैले हुए शहरी बुनियादी ढांचे और भारतीय शहरों की सेवाओं जैसे स्वच्छ पेयजल, विश्वसनीय बिजली आपूर्ति, कुशल और सुरक्षित सड़क परिवहन आदि की अधिक मांग पर अतिरिक्त दबाव पड़ने की संभावना है।
वर्तमान में, केंद्र और राज्य सरकारें शहर के बुनियादी ढांचे के 75 प्रतिशत से अधिक का वित्त पोषण करती हैं, जबकि शहरी स्थानीय निकाय (Urban Local Body (ULB) अपने स्वयं के अधिशेष राजस्व के माध्यम से 15 प्रतिशत वित्त पोषण करते हैं।
भारत के शहरों के हरित, स्मार्ट, समावेशी और टिकाऊ शहरीकरण को बढ़ावा देने के लिए बड़ी मात्रा में वित्त पोषण की आवश्यकता है। पर्यावरणीय जोखिमों पर अधिक विचार किए बिना तेजी से बढ़ते शहरीकरण कई भारतीय शहरों के विकास मॉडल में एक बड़ी कमी है। अक्टूबर के पहले दस दिनों में देखा गया कि दिल्ली में 66 वर्षों में अब तक की सबसे अधिक मासिक वर्षा हुई । इसके साथ ही भारतीय राजधानी के अधिकांश हिस्से पूरी तरह से जलमग्न हो गए। भारी बारिश ने स्पष्ट कर दिया कि अभूतपूर्व बारिश को संभालने के लिए यह शहर कितना कमजोर है। दिल्ली के अतिरिक्त दक्षिण भारत में टेक हब (Tech Hub), बैंगलोर को भी इसी तरह के बुरे अनुभव का सामना करना पड़ा था।
मार्च 2022 में, प्रकाशित इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (Intergovernmental Panel on Climate Change (IPCC) की एक रिपोर्ट में चेतावनी दी गई थी कि पूर्वी भारत में कोलकाता जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न समुद्र के स्तर में वृद्धि और बाढ़ के कारण डूबने के उच्च जोखिम का सामना कर रहा है। नवंबर 2021 में, रात भर लगातार बारिश के कारण आई बाढ़ ने दक्षिणी शहर चेन्नई को ठप कर दिया। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (Indian Institute of Science (IISc) में सेंटर फॉर इकोलॉजिकल साइंसेज (Center for Ecological Sciences) के टीवी प्रमुख रामचंद्र के अनुसार उन्हें शहरी नियोजन जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन नहीं दिखता है।उनके अनुसार सरकार द्वारा बारिश के पैटर्न और तीव्रता में बदलाव के बाद भी , पानी के प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया है और खुली जगहों की रक्षा के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया है।
उत्तरी राज्य उत्तर प्रदेश को भी सितंबर और अक्टूबर में असामान्य रूप से भारी बारिश का सामना करना पड़ा। अक्टूबर में आई बाढ़ ने 5.8 मिलियन लोगों को प्रभावित किया। यह वह क्षेत्र है जो जुलाई में सूखे जैसी स्थिति से गुजर रहा था। मौसम की चरम स्थितियों के इन उदाहरणों ने दिखाया है कि भारतीय शहर पर्यावरणीय खतरों और जलवायु परिवर्तन के प्रति कितने संवेदनशील हैं।
संदर्भ
https://bit.ly/3Hdu5IB
https://bit.ly/3Y0KqpX
https://bit.ly/3h3BpvO
चित्र संदर्भ
1. रामपुर के विभिन्न प्रसिद्ध स्थलों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. रामपुर के मुख्य बाजार को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. धारावी को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. एक व्यस्त गली को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. बारिश में भारत के शहर को दर्शाता एक चित्रण (PixaHive)
6. सड़क पर चल रहे लोगों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
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