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आज जो बीमारियां हमें बेहद आम या साधारण प्रतीत होती हैं, वही बीमारियां आज से
सैकड़ो या हजारों वर्षों पूर्व हमारे पूर्वजों के लिए घातक सिद्ध साबित होती थी।
उदाहरणस्वरूप बीसवीं शताब्दी में चेचक (Smallpox) नामक बीमारी, 300 मिलियन से
अधिक लोगों की मृत्यु का कारण बनी। वहीँ 8 मई 1980 को, विश्व स्वास्थ्य सभा ने
घोषणा की कि चेचक के प्रमुख कारण वेरियोला वायरस (Variola Virus) को ही मिटा
दिया गया है।
प्रारंभिक मानव पूर्वजों ने बैक्टीरिया और अन्य घातक बीमारियों के साथ कई लड़ाइयाँ
लड़ी हैं। इनमें से कुछ बीमारियाँ आज भी मौजूद हैं। जीवाणु डीएनए को देखकर और
उत्परिवर्तन की दर की जांच करके उम्र और उपभेदों के संबंध को देखा जा सकता है।
बैक्टीरिया के भीतर "स्यूडोजेन्स (Pseudogenes)" की पहचान करना भी संभव है।
माइकोबैक्टीरियम लेप्री (Mycobacterium Leprae) के कारण होने वाली बीमारी कुष्ठ
रोग, हाल ही में इसी विश्लेषण से गुजरी है, जिससे इसकी उत्पत्ति और प्रसार के बारे
में कुछ दिलचस्प तथ्य सामने आए हैं। हालाँकि इस बीमारी को मनुष्यों में पहली बार
भारत में 600BC के आसपास दर्ज किया गया था, लेकिन आणविक साक्ष्य इसके और
भी पुराने होने की ओर इशारा करते हैं, संभवतः इसकी उत्पत्ति पुरापाषाण काल के
दौरान अफ्रीका में हुई थी।
आनुवंशिक विश्लेषण से गुजरने वाला एक और बैक्टीरिया बोर्डेटेला पर्टुसिस
(Bordetella Pertussis) भी है, जो काली खांसी के लिए जिम्मेदार बैक्टीरिया है। मूल
रूप से माना जाता है कि इसे घरेलू जानवरों में पाई जाने वाली एक समान प्रजाति के
माध्यम से मनुष्यों में स्थानांतरित किया गया है। इन सभी के साथ ही इस साल की
शुरुआत में, एक अध्ययन में पाया गया कि खसरा वायरस, जिसके बारे में माना जाता
है कि वह नौवीं शताब्दी के आसपास मनुष्यों में उभरा था, ।
लेकिन हाल ही में उसकी
उत्पत्ति के प्रमाण भी पहली सहस्राब्दी ईसा पूर्व में मिले हैं, जब इसके क्रम संबंधित
रिंडरपेस्ट वायरस (Rinderpest virus), ने मवेशियों को संक्रमित किया।
हालाँकि सभी आनुवांशिक अध्ययनों ने बीमारी की उत्पत्ति को समय के साथ पीछे की
ओर नहीं बढ़ाया है, बल्कि 2014 में, एक जर्मन-नेतृत्व वाले समूह ने बताया कि
तपेदिक 6,000 वर्षों से मनुष्यों को संक्रमित कर रहा था। वहीं पहले इसे 12,000 वर्ष
पूर्व का माना जाता था। ये निष्कर्ष शोधकर्ताओं की समझ को हिला रहे हैं कि कैसे
बीमारियों ने पूरे इतिहास में मानव आबादी को प्रभावित किया है। डीएनए (DNA)
सबूत बताते हैं कि प्लेग और हेपेटाइटिस बी (Plague and Hepatitis B) जैसी
बीमारियां प्रमुख प्रागैतिहासिक प्रवास से जुड़ी हैं। वहीं ऐतिहासिक अभिलेखों से पता
चलता है कि चेचक जैसी बीमारी 3,000 से अधिक वर्षों से हमारे साथ है।
जब हम दवा के बारे में सोचते हैं, तो आमतौर पर हम अस्पताल, डॉक्टर के कार्यालय,
और गोलियों की कल्पना करते हैं। लेकिन, हजारों साल पहले चिकित्सा व्यवस्था कुछ
अलग तरह की दिखती थी। प्रागैतिहासिक चिकित्सा, उस चिकित्सा को संदर्भित करती
है जो मनुष्य के पढ़ने और लिखने में सक्षम होने से पहले प्रयोग की जाती थी।
मानवविज्ञानी मानवता के इतिहास का अध्ययन करते हुए, अभी तक यह पता नहीं
लगा पाए हैं कि प्रागैतिहासिक काल में लोग चिकित्सा पद्धति का अभ्यास कैसे करते
थे। हालांकि, वे मानव अवशेषों और कलाकृतियों के आधार पर अनुमान लगा सकते हैं।
अनुमानों के आधार पर हम निश्चित रूप से आश्वस्त हो सकते हैं कि प्रागैतिहासिक
काल में लोग स्थितियों और बीमारियों के लिए प्राकृतिक और अलौकिक कारणों और
उपचारों के संयोजन में विश्वास करते थे।
प्रागैतिहासिक दफन प्रथाएं (Prehistoric Burial Practices) बताती हैं कि प्राचीन लोग
हड्डी की संरचना के बारे में कुछ तो जानते थे। वैज्ञानिकों ने ऐसी हड्डियाँ पाई हैं
जिन्हें मांस से अलग किया गया था, प्रक्षालित किया गया था, और उन्हें इस आधार
पर वर्गीकृत किया गया था की वह शरीर के किस भाग से संबंधित थी। इस बात के
पुरातात्विक साक्ष्य भी हैं कि कुछ प्रागैतिहासिक समुदाय नरभक्षण का अभ्यास करते
थे। इस आधार पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इन लोगों को आंतरिक
अंगों के बारे में भी पता होना चाहिए था , जैसे मानव शरीर में सबसे अधिक दुबला
ऊतक या वसा कहां है।
उपनिवेशवादियों ने पाया कि ऑस्ट्रेलिया में लोग घावों को भरने और टूटी हुई हड्डियों
को ठीक करने के लिए मिट्टी को लपेटने में सक्षम थे। प्रागैतिहासिक कब्रों में
पुरातत्वविदों को मिले अधिकांश साक्ष्य, स्वस्थ लेकिन बुरी या ग़लत तरह से स्थापित
हड्डियों को दर्शाते हैं। यह इंगित करता है कि अधिकांश समुदायों में लोगों को यह
नहीं पता था कि टूटी हड्डियों को कैसे जोड़ा जाता है।
इसके विपरीत, कई चिकित्सा इतिहासकार काफी हद तक निश्चित हैं कि प्रागैतिहासिक
लोगों के पास सार्वजनिक स्वास्थ्य की कोई अवधारणा नहीं थी। इसके बजाय, लोग
बहुत अधिक घूमते थे और लंबे समय तक एक स्थान पर नहीं रहते थे, इसलिए
सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे का विचार तब शायद प्रासंगिक नहीं था।
नीचे कुछ बीमारियां और स्थितियां दी गई हैं जो प्रागैतिहासिक काल में सामान्य रही
होंगी:
१.पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस (Osteoarthritis): प्रागैतिहासिक काल में कई लोगों को
बार-बार बड़ी और भारी वस्तुओं को उठाना पड़ता था। इससे उनके घुटने के जोड़ों पर
दबाव पड़ सकता था, क्योंकि पुरातात्विक अवशेषों से पता चलता है कि
ऑस्टियोआर्थराइटिस पहले बेहद आम था।
२.रीढ़ और स्पोंडिलोसिस के माइक्रो-फ्रैक्चर (Micro-fractures of the Spine and
Spondylosis): कशेरुकाओं को प्रभावित करने वाली ये स्थितियां बड़ी चट्टानों को
लंबी दूरी तक खींचने के परिणामस्वरूप हो सकती हैं।
३. पीठ के निचले हिस्से का हाइपरेक्स्टेंशन और टॉर्क (Hyperextension and
Torque): बड़े बोल्डर और पत्थरों का परिवहन और उठाना, इन समस्याओं का कारण
हो सकते हैं।
४. संक्रमण और जटिलताएं: प्राचीन लोग शिकारी-संग्रहकर्ता के रूप में रहते थे, तथा
घाव, खरोंच और हड्डी के फ्रैक्चर शायद अक्सर होते रहते थे। लेकिन तब कोई
प्रतिजैविक, टीके या एंटीसेप्टिक्स पूतिरोधी (Antibiotics, Vaccines or Antiseptics)
नहीं उपलब्ध थे, और लोग शायद बैक्टीरिया, वायरस, कवक या अन्य संभावित
रोगजनकों के बारे में बहुत कम जानते थे। वे शायद इस बात से भी अनभिज्ञ थे कि
अच्छी स्वच्छता आदतें संक्रमणों और उनकी जटिलताओं को कैसे रोक सकती हैं।
परिणाम स्वरूप, संक्रमण के गंभीर और जीवन के लिए खतरा बनने की संभावना
अधिक थी, और संक्रामक रोग तेजी से फैल सकते थे और महामारी बन सकते थे।
५.रिकेट्स (Rickets): मानवविज्ञानियों के पास सबूत हैं कि अधिकांश प्रागैतिहासिक
समुदायों में शायद कम विटामिन डी या सी के स्तर के कारण रिकेट्स व्यापक रूप से
फैला हुआ था।
६.पर्यावरणीय जोखिम: प्राचीन लोगों में प्राकृतिक आपदाओं जैसे कि 10 साल या
उससे अधिक समय तक चलने वाली ठंड, सूखा, बाढ़ और बड़े खाद्य स्रोतों को नष्ट
करने वाली बीमारियाँ से बहुत कम सुरक्षा थी।
७.लिंग: हमारे पूर्वजों में पुरुष, महिलाओं की तुलना में अधिक समय तक जीवित रहे,
शायद इसलिए कि पुरुष शिकारी थे। इसलिए, उनमें कुपोषण की संभावना भी कम
होती थी। साथ ही, प्रसव से जुड़ी मृत्यु दर ने महिलाओं के औसत जीवनकाल को
छोटा कर दिया।
मानवविज्ञानी कहते हैं कि प्रागैतिहासिक काल में लोग औषधीय जड़ी-बूटियों का
इस्तेमाल करते थे। हम अनुमान लगा सकते हैं कि तब कई औषधीय जड़ी-बूटियाँ या
पौधे स्थानीय रहे होंगे। इराक में आज के पुरातत्व स्थलों से कुछ सबूत मिले हैं कि
लोग लगभग 60,000 साल पहले मल्लो और यारो का इस्तेमाल करते थे।
१.यारो (अचिलिया मिलिफोलियम (Achillea Millifolium): इसे कसैला, स्वेदजनक,
सुगन्धित और उत्तेजक कहा जाता है। इसमें सूजन-रोधी, अल्सर-रोधी और रोग-रोधी
गुण भी हो सकते हैं। लोग अभी भी घावों, श्वसन संक्रमण, पाचन समस्याओं, त्वचा की
स्थिति और यकृत रोग के इलाज के लिए दुनिया भर में यारो का उपयोग करते हैं।
२.मल्लो (मालवा नेग्लेक्टा (Malva Neglecta): संभव है की प्राचीन लोगों ने इसे
कोलन-सफाई गुणों के लिए हर्बल जलसेक के रूप में तैयार किया हो।
३. रोजमैरिनस ऑफिसिनैलिस (Rosmarinus Officinalis): दुनिया के कई क्षेत्रों से
इस बात के प्रमाण मिले हैं कि लोग रोजमेरी को औषधीय जड़ी-बूटी के रूप में
इस्तेमाल करते थे।
महिलाएं जड़ी-बूटी के उपचारों को इकट्ठा और प्रशासित करतीं थीं , और वे शायद
बीमारी के इलाज और अपने परिवारों को स्वस्थ रखने के लिए प्रभारी थीं। उन दिनों
लोग पढ़ते या लिखते नहीं थे, वह दवाओं के लिए उपयोग की जाने वाली विभिन्न
जड़ी-बूटियों के लाभ और हानि के बारे में अपने ज्ञान को मौखिक रूप से
स्थानांतरित कर देते थे।
संदर्भ
https://bit.ly/3ALJhbM
https://go.nature.com/3Xy388k
https://bit.ly/3ORQ8GR
चित्र संदर्भ
1. प्राचीन बिमारियों को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. चेचक की बीमारी को दर्शाता एक चित्रण (look&learn )
3. कुष्ठ रोग के कारण छाती और पेट पर निकले हुए दानों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. बोर्डेटेला पर्टुसिस बैक्टीरिया को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. फ्लोरेंस के प्लेग को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. मृत पड़े नर कंकालों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
7. घुटने के ऑस्टियोआर्थराइटिस को दर्शाता एक चित्रण (MaxPixel)
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