गुणवत्ता युक्त अंजीर की खेती से सुधार सकते हैं किसान अपनी आर्थिक स्थिति

मेरठ

 21-06-2021 07:31 AM
पेड़, झाड़ियाँ, बेल व लतायें

अंजीर (अंग्रेजी नाम फ़िग (Fig) , वानस्पतिक नाम: "फ़िकस कैरिका" (Ficus carica), प्रजाति फ़िकस (Ficus), कुल मोरेसी (Moraceae)) एक एशियाई प्रजाति है। यह फल, जिसे अंजीर भी कहा जाता है, उन क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण फसल है जहां इसे व्यावसायिक रूप से उगाया जाता है। भूमध्यसागरीय और पश्चिमी एशिया के मूल निवासी, इसे प्राचीन काल से ही उगाते आ रहे हैं। वर्तमान में इसके फल और सजावटी पौधे, दोनों को दुनिया भर में व्यापक रूप से उगाया जाता है। अंजीर कई प्रकार और आकार का होता है, इसके कुछ पेड़ होते हैं तो कई स्थानों में यह झाड़ियाँ या लताओं के स्वरूप में भी देखने को मिलता है। ये अधिकांश उष्णकटिबंधीय में पाए जाते हैं, हालांकि कुछ समशीतोष्ण जलवायु में भी बढ़ सकते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में इसके ताजे अर्द्ध-सूखे, सूखे फलों द्वारा तैयार पदार्थों की बढ़ती मांग को देखते हुये इसके व्यवसायिक उत्पादन की अपार सम्भावनाएं हैं। अंजीर एक लोकप्रिय फल है, जो ताजा और सूखा खाया जाता है। कच्चे अंजीर में 79% पानी, 19% कार्बोहाइड्रेट (carbohydrates), 1% प्रोटीन (protein) होता है और इसमें नगण्य वसा होती है। अंजीर कैल्शियम, रेशों व विटामिन ए, बी, सी से युक्त होता है। एक अंजीर में लगभग 30 कैलोरी (calories) होती हैं।
पुरातत्वविदों का कहना है कि आम अंजीर मनुष्यों द्वारा अपनाये गए पहले पौधों में से एक हो सकते हैं। बाइबिल (Bible) में भी इसका उल्लेख दिखाई देता है, जब आदम (Adam) और ईव (Eve) ने बगीचे में खुद को ढंकने के लिए अंजीर के पत्तों का उपयोग किया। बाद में, मूर्तिकारों और चित्रकारों ने अपने कुछ कलाओं में गोपनीयता प्रदान करने के लिए भी अंजीर के पत्तों का इस्तेमाल किया। अंजीर को प्रमुख भूमिका देने वाला ईसाई धर्म एकमात्र धर्म नहीं है। एक एशियाई प्रजाति, फिकस रिलीजियस (Ficus religiosa), को हिंदुओं, जैनियों और बौद्धों द्वारा पवित्र माना जाता है। कहा जाता है कि बुद्ध को पवित्र अंजीर के नीचे बैठकर ज्ञान प्राप्त हुआ था, जिसे बो(bo) या पीपल के पेड़ के रूप में भी जाना जाता है।इस्लाम भी अंजीर को पवित्र मानता है। दुसरी समूर्त पुस्तक या व्यवस्थाविवरण की पुस्तक (Book of Deuteronomy) में कनान देश की उर्वरता का वर्णन करते हुए अंजीर को सात प्रजातियों में से एक के रूप में निर्दिष्ट किया है। यह मध्य पूर्व के लिए स्वदेशी सात पौधों का एक समूह है जो एक साथ पूरे वर्ष भोजन प्रदान कर सकते हैं। बाइबिल के उद्धरण में अंजीर के पेड़ को शांति और समृद्धि को दर्शाने के लिए उपयोग किया गया है। कुरान के सूरा 95 का नाम अत-तीन (अंजीर या अंजीर वृक्ष) है क्योंकि यह "अंजीर और जैतून द्वारा" हलफ़ ​के साथ खुलता है। बौद्ध धर्म में एक कहानी बहुत प्रचलित है, कहते है कि 2,000 साल पहले, भारतीय सम्राट अशोक महान के आदेश पर एक महत्वपूर्ण पेड़ की एक शाखा को हटा दिया गया था। कहा जाता है कि इसी पेड़ के नीचे बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। फिर अशोक ने इस शाखा को एक ठोस सोने के फूलदान में लगाया। इसके बाद वे शाखा को बंगाल की खाड़ी में ले गये, वहां उनकी बेटी इसे एक जहाज पर ले गई और राजा को भेंट करने के लिए श्रीलंका के लिए रवाना हो गयी।अशोक को पौधे से इतना प्यार था कि उसने उसे जाते हुए देखा तो उसके आंसू छलक पड़े।
बौद्धों, हिंदुओं और जैनियों ने इस प्रजाति को दो सहस्राब्दियों से अधिक समय तक पूजा है। अंजीर का उल्लेख 3,500 साल पहले वैदिक लोगों द्वारा गाए युद्ध गीतों में भी किया गया है। कहा जाता है कि बरगद की छाया का आनंद लेने वाले पहले यूरोपीय सिकंदर महान और उनके सैनिक थे, जो 326 ईसा पूर्व में भारत पहुंचे थे। इस पेड़ के बारे में उनकी कहानियाँ जल्द ही आधुनिक वनस्पति विज्ञान के संस्थापक यूनानी दार्शनिक थियोफ्रेस्टस (Theophrastus) तक पहुँच गईं। वह खाने योग्य अंजीर, फिकस कैरिका (Ficus carica) का अध्ययन कर रहे थे। प्राचीन मिस्रवासियों ने भी अंजीर की कई प्रजातियों क़ो अपनाया था। बहुत पहले, अंजीर मिस्र की कृषि का मुख्य आधार थे। किसानों ने बंदरों को पेड़ों पर चढ़ने और उन्हें काटने के लिए भी प्रशिक्षित किया था। यहां तक कि फिरौन (Pharaohs) ने सूखे अंजीर को कब्रों में भी रखवाया ताकि उनकी आत्माओं को उनके जीवन के बाद की यात्रा पर बनाए रखा जा सके। उनका मानना ​​​​था कि देवी हाथोर (Hathor) एक पौराणिक अंजीर के पेड़ से स्वर्ग में उनका स्वागत करने के लिए आयेंगी। वर्तमान में 1,200 से अधिक अंजीर की प्रजातियां खाई जाती हैं, दुनिया के सभी पक्षियों का दसवां हिस्सा, लगभग सभी ज्ञात फल- चमगादड़, प्राइमेट्स (primate) की दर्जनों प्रजातियां इसका सेवन करती हैं, इसलिए पारिस्थितिकीविद अंजीर को "कीस्टोन संसाधन" (keystone resources) कहते हैं।यह भी कहा जाता है कि उच्च ऊर्जा वाले अंजीर ने हमारे पूर्वजों को दिमाग विकसित करने में भी मदद की होगी। इसमें कई औषिधिय गुण भी हैं, इसका एक उदाहरण बाइबल में मिलता है, जब राजा हिजकिय्याह (Hezekiah) को फोड़े की एक प्लेग (plague of boils) हो गई थी तो उसके सेवकों द्वारा उसकी त्वचा पर कुचले हुए अंजीर का लेप लगाया गया था जिससे वे ठिक हो गये। अंजीर की प्रजातियों की उपचार शक्ति उनके फल तक ही सीमित नहीं है। पूरे उष्ण कटिबंध में लोगों द्वारा सहस्राब्दियों से विकसित दवाओं में उनकी छाल, पत्तियों, जड़ों और लेटेक्स (latex) का उपयोग होता आ रहा हैं। अंजीर का एक बड़ा हिस्सा भारत में और उत्तर प्रदेश में उगाया जाता है।बागवान अंजीर की खेती कर के इसकी फसल से अच्छा और गुणवत्ता युक्त उत्पादन प्राप्त कर सकते है। उदाहरण के लिये एक सॉफ्टवेयर की नौकरी छोड़ने वाला एक युवक मुंबई से अपने माता-पिता की देखभाल करने के लिए अपने पैतृक गांव लौटा और अंजीर की खेती की, जिससे उसे अच्छी आय प्राप्त हुई। हालांकि कतला श्रीनिवास को अंजीर की खेती के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। उन्होंने मीडिया के माध्यम से अंजीर की खेती की सारी जानकरीं प्राप्त की और कार्य शुरू किया। अंजीर की खेती पर शोध करने के बाद उन्होंने रायचूर से लगभग 1,000 पौधे मंगवाए और उन्हें वर्ष 2019 में प्रायोगिक आधार पर अपनी 2.5 एकड़ भूमि में लगाया और ड्रिप सिंचाई प्रणाली (drip irrigation system) का इस्तेमाल किया। उन्हें पौधे के पोषण में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा क्योंकि पौधा गर्म मौसम की स्थिति में नहीं बढ़ता है। उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों से परामर्श किया और पोषक तत्व प्रदान करके खेती में दक्षिण कोरियाई (South Korean) तकनीक का इस्तेमाल किया। 11 महीने बाद पेड़ फल देने लगे, अब वह रोजाना 15 से 20 किलो अंजीर की कटाई करने में सक्षम है। वह उन्हें मात्र ₹150 प्रति किलो के भाव से बेच रहे है। इन इलाकों में अंजीर की खेती में उनकी सफलता ने उन्हें किसानों के बीच लोकप्रिय बना दिया है और उनमें से कई ने उनके खेतों का दौरा किया और उनकी सराहना की।
दुनिया में अंजीर के सबसे बड़े उत्पादक स्पेन (Spain), तुर्की (Turkey), मिस्र (Egypt) और अल्जीरिया (Algeria) हैं जो कुल उत्पादन का लगभग 58% हिस्सा देते हैं। विश्व में कच्चे अंजीर का कुल उत्पादन 1.05 मिलियन टन से अधिक है। भारत में अंजीर की खेती ज्यादातर महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में की जाती है। अंजीर की खेती का कुल क्षेत्रफल लगभग 5600 हेक्टेयर भूमि है जिसमें लगभग 13,802 हजार टन उत्पादन होता है, यानी लगभग 12.32 टन प्रति हेक्टेयर। अंजीर की खेती भिन्न-भिन्न प्रकार की जलवायु में की जा सकती है, लेकिन अंजीर का पौधा गर्म, सूखी और छाया रहित उपोष्ण व गर्म- शीतोष्ण परिस्थितियों में अच्छी तरह फलता-फूलता है। फल के विकास तथा परिपक्वता के समय वायुमंडल का शुष्क रहना अत्यंत आवश्यक है। परिपक्व अवस्था में ये 9.5 से 12 डिग्री सेल्सियस की कम तापमान सीमा को सहन कर सकता है।अंजीर को सभी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है, परंतु दोमट अथवा मटियार दोमट,जलोढ़ मिट्टी, और मध्यम काली मिट्टी जिसमें उत्तम जल निकास हो, इसके लिए सबसे श्रेष्ठ मिट्टी है। फलों के विकास और परिपक्वता के दौरान शुष्क जलवायु वाले क्षेत्र को अंजीर के पेड़ों के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। उच्च आर्द्रता वाले क्षेत्रों में अंजीर के पेड़ कम तापमान के साथ आम तौर पर फटे और कम गुणवत्ता वाले फल देते हैं। अप्रैल-जून की अवधि के दौरान गर्म और शुष्क हवाओं वाले क्षेत्रों में पेड़ अच्छी तरह से फलते-फूलते हैं। अंजीर के पौधे मुख्यतः 20-30 सेमी लंबी और 0.5 से 0.7 सेमी मोटी परिपक्व कलमों द्वारा तैयार किये जाते हैं।ये कलमें 1 से 2 साल पुरानी शाखा से ली जानी चाहिए। मातृ पौधों से जुलाई-अगस्त में कलमें लेकर इन्हें 1 से 2 माह तक मिट्टी में दबाया जाता है। खेत की तैयारी करते समय खोदे गये गड्डों में संतुलित खाद और उर्वरक डाल कर पौधा रोपण करना चाहिये। पौधों की दूरी न्यूनतम 6 x 6 मीटर उपयुक्त रहती है, और रोपण का समय दिसम्बर से जनवरी या जुलाई से अगस्त होना चाहिए।

संदर्भ:

https://bit.ly/2U7dvUe
https://to.pbs.org/3gHKztM
https://bbc.in/3vJaC9y
https://bit.ly/3gJ5xIH
https://bit.ly/3zB3oYb

चित्र संदर्भ
1. अंजीर के वृक्ष का एक चित्रण (flickr)
2. बोधगया में श्री महाबोधि मंदिर में महाबोधि वृक्ष का एक चित्रण (wikimedia)
3. अंजीर के बृक्ष का एक चित्रण (wikimedia)
4. ताज़े अंजीर का एक चित्रण (Wikimedia)

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