रोहिलखंड के संगीत और उसके इतिहास का विस्तृत विवरण देती है, रज़ा पुस्तकालय की पुस्तकें

मेरठ

 15-06-2020 12:20 PM
ध्वनि 1- स्पन्दन से ध्वनि

रामपुर में स्थित रज़ा पुस्तकालय कई पुरानी पुस्तकों के संग्रह का केंद्र हैं। इस पुस्तकालय में संगीत आधारित ऐसी दो पुस्तकें उपलब्ध हुई हैं जो रोहिलखंड के संगीत और उसके इतिहास का विस्तृत विवरण देती हैं। ये दो पुस्तकें ‘उत्तर प्रदेश के रोहिलखंड क्षेत्र की संगीत परम्परा’ (Tradition of music of the Rohilkhand region of Uttar Pradesh) तथा ‘रामपुर दरबार का संगीत एवं नवाबी रस्में’ (Music of the Rampur court and Nawabi practices) हैं। ‘उत्तर प्रदेश के रोहिलखंड क्षेत्र की संगीत परम्परा’ पुस्तक जहां संध्या रानी के पी.एचडी थेसिस (Ph.D thesis) पर आधारित है वहीं पुस्तक ‘रामपुर दरबार का संगीत एवं नवाबी रस्में नफीस सिद्दीकी ने लिखी है। रोहिलखंड के कुछ क्षेत्र जहां युगों-युगों से चले आ रहे राजनीतिक घटनाक्रमों के साक्षी रहे हैं वहीं हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत और शीर्ष संगीतकारों के कई घरानों के उदय का गवाह भी बने हैं। यह क्षेत्र लोक संगीत परंपराओं में समृद्ध है। अवध के संयोजन के बाद, नवाब वाजिद अली शाह के शासन और 1857 के विद्रोह के परिणामस्वरूप अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर का रंगून में निर्वासन हुआ जिसके कारण अधिकांश संगीतकार और नर्तकियां अन्य छोटे राज्यों के अलावा रामपुर, बड़ौदा, हैदराबाद, मैसूर और ग्वालियर जैसे राज्यों में स्थानांतरित हुए। यह 1857 के बाद का दौर था, जब रामपुर हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत और नृत्य के एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में उभरा। संध्या रानी की पुस्तक रोहिलखंड के लोक संगीत के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करती है और इसे मुख्य तीन धाराओं - लोक गीत, जनवार्ता (Folklore), चहारबैत (Chaharbait) में विभाजित करती है। जहां लोक गीत और जनवार्ता अधिकतर मौसमों और विभिन्न अवसरों जैसे बाल जन्म, विवाह और त्योहारों से संबंधित होते हैं वहीं चहारबैत एक विशेष रूप है जो रामपुर और इसके आसपास के क्षेत्रों में अधिक प्रचलित है।

लोक कथाओं को भी किस्सा और राग कहा जाता है और लोक गायक आल्हा (Alha), पंदैन (Pandain), ढोला (Dhola), त्रियाचरित (Triyacharit), गोपीचंदेर (Gopichander), भरथरी (Bharthari), जाहरपीर (Jaharpeer), श्रवण कुमार (Shravan Kumar) और मोरध्वज (Mordhwaj) की कहानियां सुनाते हैं। चहारबैत, की उत्पत्ति पश्तो में हुई है और यह अफगानिस्तान के लोकप्रिय लोक संगीत का हिस्सा है जिसे पठानी राग भी कहते हैं। इसमें चार छंद होते है जिनमें से पहले तीन छंदों के तुक समान होते हैं जबकि चौथा छंद अलग है। भारत में चहारबैत का निर्माता मुस्तकीम खान को माना जाता है। इस क्षेत्र में बसने के बाद, अफगान रोहिलों ने जल्द ही स्थानीय भाषा (स्थानीय, फारसी और अरबी शब्दों का मिश्रण जिसे हम आज उर्दू के रूप में जानते हैं) को अपनाया। इसलिए, चहारबैत को मिश्रित भाषा में राग-बद्ध किया गया तथा ढफली संगीत उपकरण का उपयोग करते हुए गायकों के समूह द्वारा गाया गया। इस समूह को अखाड़ा कहा जाता था तथा धनी संरक्षकों द्वारा इन चहारबैत अखाड़ों के बीच प्रतिस्पर्धात्मक कार्यक्रम भी आयोजित किए गए थे। रामपुर नवाब, विशेष रूप से कल्बे अली खान, लोक संगीत के इस रूप के लिए उत्सुक थे। यह पुस्तक क्षेत्र में बजाए जाने वाले वाद्ययंत्रों जैसे ढोल, खंजरी, खरताल, नौबत, चमेली, चंग, नाल, नागर और इकतारा के बारे में भी बहुमूल्य जानकारी प्रदान करती है। इस क्षेत्र ने रामपुर घराना, सहसवान घराना और भेंदी बाजार घराना सहित हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के कई घरानों को जन्म दिया। बहादुर हुसैन खान, इनायत खान, फिदा हुसैन खान, निसार हुसैन खान, छज्जू खान, नजीर खान, खादिम हुसैन खान, अंजनी बाई मालपेकर और अमन अली खान इन घरानों के शीर्ष कलाकार थे।

शाहजहाँपुर में एक जीवंत सरोद घराना था जिसका प्रतिनिधित्व कौकब खान और सखावत हुसैन खान ने किया था। तबला वादक अहमद जान थिरकवा और खयाल प्रतिपादक मुश्ताक हुसैन खान जैसे महान कलाकार भी लंबे समय तक रामपुर दरबार से जुड़े रहे। नफीस सिद्दीकी की पुस्तक में रामपुर के कुछ शासकों से जुड़ी महिला गायकों के बारे में भी दुर्लभ जानकारी प्राप्त होती है। इससे पता चलता है कि कई महिला दरबारी गायकों को नवाब अहमद अली खान (1794-1840) द्वारा नियोजित किया गया था। इन महिलाओं में कल्लो खानम, नत्थो खानम, मधुमती, मित्थो खानम, पद्मनी, गुछिया दोमनी और जुमानिया शामिल थीं। जबकि रज़ा पुस्तकालय इस तरह की किताबें बाहर लाने के लिए सराहना की पात्र है, संपादन वांछित होने के लिए बहुत कुछ छोड़ देता है। इसके लिखित रूप में महत्वपूर्ण जांच के आधुनिक दृष्टिकोण के लिए बहुत कम स्थान है।

चित्र सन्दर्भ:
सभी चित्रों में पठान राग पेश करते कलाकारों का चित्र है।

संदर्भ:
1. https://www.thehindu.com/entertainment/music/tales-of-musical-akharas/article30634576.ece
2. https://bit.ly/2XIW3oy

RECENT POST

  • अपने युग से कहीं आगे थी विंध्य नवपाषाण संस्कृति
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:28 AM


  • चोपता में देखने को मिलती है प्राकृतिक सुंदरता एवं आध्यात्मिकता का अनोखा समावेश
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:29 AM


  • आइए जानें, क़ुतुब मीनार में पाए जाने वाले विभिन्न भाषाओं के शिलालेखों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:22 AM


  • जानें, बेतवा और यमुना नदियों के संगम पर स्थित, हमीरपुर शहर के बारे में
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:31 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस के मौके पर दौरा करें, हार्वर्ड विश्वविद्यालय का
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:30 AM


  • जानिए, कौन से जानवर, अपने बच्चों के लिए, बनते हैं बेहतरीन शिक्षक
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:17 AM


  • आइए जानें, उदासियों के ज़रिए, कैसे फैलाया, गुरु नानक ने प्रेम, करुणा और सच्चाई का संदेश
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:27 AM


  • जानें कैसे, शहरी व ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के बीच अंतर को पाटने का प्रयास चल रहा है
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:20 AM


  • जानिए क्यों, मेरठ में गन्ने से निकला बगास, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के लिए है अहम
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:22 AM


  • हमारे सौर मंडल में, एक बौने ग्रह के रूप में, प्लूटो का क्या है महत्त्व ?
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:29 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id