यदि हम इतिहास के पन्ने पलटें तो सबसे ज्यादा दुर्दशा मजदूर और श्रमिक वर्ग की देखने को मिलती है। यह ऐसा वर्ग था जिसके हित में आवाज़ उठाने वाला कोई नहीं था, यहाँ तक कि वह स्वयं भी नहीं। धीरे-धीरे इस वर्ग के अंदर अपने अधिकारों की भावना पनपने लगी तथा इन्होंने जगह जगह आवाज़ उठाना प्रारंभ किया। जिसके परिणाम स्वरूप प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात (1919) मजदूरों तथा श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO- International Labour Organization) का गठन किया गया। ये संघ नौ देशों के प्रतिनिधियों से बना था: बेल्जियम, क्यूबा, चेकोस्लोवाकिया, फ्रांस, इटली, जापान, पोलैंड, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका। जिसे 1946 में संयुक्त राष्ट्र संघ की मुख्य एजेंसियों में शामिल किया गया। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन को 1969 में विश्व शांति नोबेल पुरूस्कार से नवाज़ा गया।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन में संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्यों में से 187 सदस्य इस संगठन में शामिल हैं तथा इसका मुख्यालय जेनेवा में स्थित है। यह संगठन मजदूर वर्ग के लोगों के लिए अंतर्राष्ट्रीय नियमों के उल्लंघन की सभी शिकायतों को देखता है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संघ की समूची शक्ति अंतरराष्ट्रीय श्रम सम्मेलन के हाथों में है।
अंतराष्ट्रीय श्रम संगठन की तीन संस्थाएं हैं:
1. साधारण सम्मेलन/जेनरल कांफ्रेंस (General Conference)
2. शासी निकाय/गवर्निंग बॉडी (Governing Body)
3. अंतरराष्ट्रीय श्रम कार्यालय
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संघ के उद्देश्य:
* आई.एल.ओ. सामाजिक न्याय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर श्रमिकों के अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है।
* यह पूरे त्रिपक्षीय यूएन एजेंसी के 187 सदस्य देशों की सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिक प्रतिनिधियों को श्रम मानकों को स्थापित करने, नीतियों को विकसित करने और सभी महिलाओं और पुरुषों के लिए सभ्य काम को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम तैयार करने के लिए, एक साथ लाता है।
* आज अंतर्राष्ट्रीय श्रम संघ का मुख्य उद्देश्य संसार के श्रमिक वर्ग की श्रम और आवास संबंधी अवस्थाओं में सुधार लाना तथा पूर्ण रोजगार का लक्ष्य प्राप्त करने पर केंद्रित अंतर्राष्ट्रीय क्रिया-कलापों को प्रोत्साहित करना है।
इसके द्वारा निम्न मुद्दों पर ध्यान दिया जाता है:
1. काम के घंटों का निर्धारण
2. विश्रामकाल
3. वेतन सहित वार्षिक छुट्टियों की व्यवस्था
4. अल्पतम मजदूरी की व्यवस्था
5. समान कामों का समान पारिश्रमिक
6. नौकरी पाने की अल्पतम आयु
7. नौकरी के लिए आवश्यक डॉक्टरी परीक्षा
8. रात के समय कार्य स्थल पर स्त्रियों की सुरक्षा
9. औद्योगिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य
10. कार्यकालिक चोट की क्षतिपूर्ति
11. चिकित्सा की व्यवस्था
12. श्रमिकों के संगठित होने और सामूहिक माँग करने का अधिकार आदि
इस संगठन द्वारा बनाए गये नियमों का पालन सभी राष्ट्रों द्वारा समान रूप से तो नहीं किया जाता किंतु फिर भी श्रमिकों की स्थिति सुधारने में इस संगठन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
भारत के संविधान में मौलिक श्रम अधिकारों की एक श्रृंखला को शामिल किया गया है। विशेष रूप से व्यापार संघ में कार्रवाई करने का अधिकार, काम पर समानता का सिद्धांत, और सभ्य कामकाजी परिस्थितियों के साथ सही मजदूरी को शामिल किया गया। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14-19, 21, 23, 24, 39 में श्रमिकों को विशेष अधिकार दिये गये हैं।
1) अनुच्छेद 14 - समानता का अधिकार।
2) अनुच्छेद 15 - राज्यों द्वारा नागरिकों के विरूद्ध किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाएगा।
3) अनुच्छेद 16 - सार्वजनिक नियोजन में अवसरों की समानता।
4) अनुच्छेद 19 - संघ और यूनियन (Union) बनाने का अधिकार।
5) अनुच्छेद 21 - जीवन जीने के अधिकार के तहत आजीविका का अधिकार।
6) अनुच्छेद 23 - मानव तस्करी और बलपूर्वक श्रम करवाने पर प्रतिबंध।
7) अनुच्छेद 24 - 14 साल से कम आयु के बाल श्रम को प्रतिबंधित करना।
8) अनुच्छेद 39 - पुरुषों और महिलाओं के मध्य समान कार्य के लिए समान वेतन की व्यवस्था।
वहीं भारत में प्रत्येक राज्य में कुछ परिस्थितियों में विशेष श्रम नियम भी लागू किए जा सकते हैं। जैसे, 2004 में गुजरात के विशेष निर्यात क्षेत्र में श्रम बाजार लचीलापन की अनुमति देने के लिए अहमदाबाद राज्य ने औद्योगिक विवाद अधिनियम में संशोधन किया।
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा श्रमिक कल्याण, रोज़गार, प्रशिक्षण और मानव अधिकारिता से संबंधित मामलों के लिए नीतियां, नियम तथा कार्यक्रम का अयोजन किया जा रहा है। श्रमिकों के लिए कल्याणकारी उपाय तथा रोज़गार सृजन कार्यक्रम भी तैयार किये जा रहे हैं।
विभाग के मुख्य उद्देश्य / लक्ष्य:
• कामगारों को कानून के तहत न्यूनतम मजदूरी, विनिश्चित मौद्रिक लाभ, अदायगी सुनिश्चित करना।
• श्रमिकों के लिए सुरक्षित, स्वस्थ, और उत्पादक कार्य वातावरण और कल्याण उपलब्ध कराना।
• बाल श्रम और बंधुआ मजदूरी उन्मूलन, तथा उनका पुनर्वास के सुनिश्चित करना।
• दुर्घटना रहित, सुरक्षित तथा उत्पादक कार्य स्थलों को प्रोत्साहित करना व बढ़ावा देना।
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा श्रमिकों को दिए गए अधिकार:
• श्रम अनुभाग-2 - वेतन संदाय अधिनियम एवं नियमावली, संविदा श्रम सलाहकार बोर्ड, भवन एवं सन्निर्माण कर्मकार नियमावली, चीनी मिलों के श्रमिकों को अधिलाभ, अधिनियम के अन्तर्गत अधिलाभ का भुगतान।
• श्रम अनुभाग-3 - श्रमयुक्त संगठन के अराजपत्रित कर्मचारियों का स्थापना कार्य, बाल श्रम अधिनियम, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम से संबंधित कार्य।
• श्रम अनुभाग-6 - कर्मचारी राज्य बीमा योजना/निदेशालय का अधिष्ठान, दवाओं का क्रय तथा नीति निर्धारण, ई०एस०आई० अधिनियम 1948, ई०पी०एफ० अधिनियम 1952 से छूट, ई०एस०आई० प्रतिपूर्ति अग्रिम।
संदर्भ:
1.https://www.ilo.org/global/about-the-ilo/lang--en/index.htm
2.https://en.wikipedia.org/wiki/International_Labour_Organization
3.https://en.wikipedia.org/wiki/Indian_labour_law
4.http://uplabour.gov.in/
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