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हाथियों के संरक्षण में बेहद कारगर साबित हो रहा हैं, उनके डीएनए तथा अनुवांशिकता का अध्ययन

मेरठ

 28-06-2024 09:40 AM
डीएनए

आधुनिकता के नाम पर किए गए कई अविष्कारों ने लंबे समय में इंसानों को हानि भी पहुंचाई है। हालांकि मनुष्यों द्वारा की गई कई खोंजें इतनी शानदार रही हैं कि इन्होंने इंसानों के साथ-साथ जीव जंतुओं का भी कल्याण किया है। इंसानों द्वारा कि गई ऐसी ही एक शानदार खोज का नाम है: "संरक्षण आनुवंशिकी।" चलिए धरती के एक सबसे शानदार जीव हाथी का उदाहरण लेते हुए इस बेहतरीन तकनीक के बारे में जानने की कोशिश करते हैं।
जीव जंतुओं की प्रजातियों और आबादी के विलुप्त होने से रोकने में मदद करने के लिए आनुवंशिक विज्ञान (Genetic Science) का उपयोग करने की प्रकिया को “संरक्षण आनुवंशिकी (Conservation Genetics)” कहा जाता है। इसके तहत उन आनुवंशिक मुद्दों (जैसे कि अंतःप्रजनन और आनुवंशिक विविधता का नुकसान) का विश्लेषण किया जाता है, जिनके कारण जीव जंतुओं की कई प्रजातियाँ दुर्लभ या लुप्तप्राय हो जाती हैं। संरक्षण आनुवंशिकी में इस तरह के जोखिमों को कम करने के लिए आनुवंशिक कारकों का प्रबंधन करने और खतरे में पड़ी प्रजातियों के वर्गीकरण को स्पष्ट करने और उनके जीव विज्ञान को समझने जैसे उपायों का प्रयोग करना भी शामिल है। संरक्षण आनुवंशिकी का क्षेत्र विकासवादी आनुवंशिकी, आणविक आनुवंशिकी और जीनोमिक्स (Genomics) को आपस में जोड़ता है। आज जीव-जंतुओं की कई प्रजातियों के संरक्षण की तत्काल आवश्यकता आन पड़ी है, क्योंकि मानवीय गतिविधियों के कारण हमारे ग्रह की जैव विविधता को काफी नुकसान पंहुचा है। कई प्रजातियाँ पहले ही विलुप्त हो चुकी हैं, और कई प्रजातियाँ संरक्षण नहीं मिलने पर बस विलुप्त होने ही वाली हैं। इन प्रजातियों के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए अब पहल करना बहुत जरूरी हो गया है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (International Union For Conservation Of Nature (IUCN) के अनुसार आज 26% स्तनधारी, 13% पक्षी, 42% उभयचर और 40% जिम्नोस्पर्म (Gymnosperms) विलुप्ति की कगार पर खड़े हैं। कई अन्य समूह भी इसी तरह के गंभीर मुद्दों का सामना कर रहे हैं, लेकिन आज हमारे पास उनसे जुड़े सटीक आंकड़े प्रदान करने के लिए पर्याप्त डेटा नहीं है।
संरक्षण आनुवंशिकी की बदौलत हम इस धरती के सबसे शानदार जीवों में से एक “हाथियों” की प्रजाति को विलुप्त होने से बचा सकते हैं। बहुत कम लोग इस बात से अवगत हैं कि आज से 4,00,000 वर्ष पहले “पेलियोलोक्सोडोन एंटिकस (Palaeoloxodon Antiquus)” नामक हाथी की एक प्रजाति इस पृथ्वी पर मौजूद थी। दरअसल लंबे समय तक, प्राणीशास्त्रियों का मानना ​​था कि ऐतिहासिक रूप से हाथियों की केवल दो ही प्रजातियाँ (एशियाई और अफ्रीकी) थीं। लेकिन आनुवंशिक विश्लेषणों की बदौलत आज हम यह जानते हैं कि अफ्रीकी हाथियों को भी दो अलग-अलग प्रजातियों में विभाजित किया जा सकता है:
१. अफ्रीकी वन हाथी
२. अफ्रीकी सवाना हाथी
हाल ही में, पेलियोलोक्सोडोन एंटिकस (Palaeoloxodon antiquus) नामक एक नई प्रजाति को इस मिश्रण में जोड़ा गया है। हालांकि आज यह प्रजाति विलुप्त हो चुकी है लेकिन आज से लगभग 4,00,000 वर्ष पहले, अंतिम हिमयुग के दौरान यह हाथी यूरोप और पश्चिमी एशिया में घूमता था। इसके डीएनए के अध्ययन से पता चलता है कि यह वास्तव में अफ्रीकी वन हाथियों का सबसे करीबी रिश्तेदार है। इसकी आनुवंशिक समानताएं अफ्रीकी सवाना हाथी की तुलना में आधुनिक अफ्रीकी वन हाथी के साथ अधिक मिलती हैं। यह नई खोज आधुनिक हाथियों और उनके निकटतम रिश्तेदारों के विकासवादी इतिहास और वंशावली के बारे में हमारी समझ को पूरी तरह से बदल देती है। इससे यह भी पता चलता है कि अफ़्रीकी हाथियों की वंशावली अफ़्रीका तक ही सीमित नहीं थी। वास्तव में कई जानवर यूरोप और अन्य क्षेत्रों में अपनी आनुवंशिक छाप छोड़कर महाद्वीप से बाहर चले गए। पेलियोलोक्सोडोन एंटिकस के बारे में हमें जर्मनी में पाए गए जीवाश्मों के डीएनए से पता चला है। पेलियोलोक्सोडोन एंटिकस का अध्ययन करने से वैज्ञानिकों के बीच लंबे समय से चली आ रही डीएनए विसंगति की बहस भी सुलझ सकती है। पेलियोलोक्सोडोन एंटिकस को सीधे दांत वाले हाथी के रूप में भी जाना जाता है। इसके पूर्वज, पेलियोलोक्सोडोन रेकी (Palaeoloxodon Recki) 3.5 मिलियन से 1,00,000 साल पहले अफ्रीका में रहते थे। जीवाश्मों से पता चलता है कि सीधे दांत वाले हाथी लगभग 7,50,000 साल पहले यूरेशिया पहुंचे और उन्होंने मध्य पूर्व के रास्ते अफ्रीका छोड़ा था। पेलियोलोक्सोडोन एंटिकस का डीएनए कई प्रजातियों का मिश्रण प्रतीत होता है। मिश्रण की यह प्रक्रिया संभवतः तब घटित हुई जब पेलियोलोक्सोडोन ने अफ्रीका छोड़ दिया था।
इस तरह इसके वंशजों को एशियाई हाथी का डीएनए और यहां तक ​​कि ऊनी मैमथ (Woolly Mammoth) का डीएनए भी मिल गया। हाल ही में भारतीय विज्ञान संस्थान और भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (आईआईएसईआर) पुणे के वैज्ञानिकों ने एशियाई हाथी के जीनोम को अनुक्रमित करके उसके विकास को समझने में महत्वपूर्ण प्रगति की है। उनके द्वारा किये गए अध्ययन में दोनों प्रजातियों के बीच कई आनुवंशिक (विशेष रूप से गंध की भावना के लिए जिम्मेदार जीन में) अंतर पाए गए। ये अंतर इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इनसे पता चलता है कि अफ्रीकी हाथी की तुलना में एशियाई हाथी ने खुद को अपने पर्यावरण के प्रति अलग-अलग तरीकों से अनुकूलन किया है। एशियाई हाथी इस भूमि पर सबसे बड़े जीवित स्तनधारियों में से एक है, जिसके पूर्वजों का इतिहास 60 मिलियन वर्ष से भी पुराना है। ऐसा माना जाता है कि इसका विकास लगभग 7 मिलियन वर्ष पहले अफ़्रीकी हाथी के समान पूर्वज से हुआ था। तब से, एशियाई हाथी ने खुद को दक्षिण पूर्व एशिया में अपने नए निवास स्थान के अनुरूप अनुकूलित कर लिया है। हालांकि इस अनुकूलन के परिणाम स्वरूप इसमें कई आनुवंशिक परिवर्तन हुए हैं जो इसे अफ्रीकी हाथी से अलग करते हैं।
लगभग 4,000 साल पहले ऊनी मैमथों का अचानक विलुप्त होना पर्यावरण पर मानवीय गतिविधियों के विनाशकारी प्रभाव की याद दिलाता है। आज, उनके सबसे करीबी रिश्तेदार, अफ़्रीकी सवाना और वन हाथी भी इसी तरह के संकट का सामना कर रहे हैं। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (International Union For Conservation Of Nature (IUCN)) का अनुमान है कि पिछली सदी में अफ्रीकी सवाना हाथियों की संख्या में 60% की कमी देखी गई है, जबकि अफ्रीकी वन हाथियों की संख्या में 86% की गिरावट आई है और अब उन्हें "गंभीर रूप से लुप्तप्राय" जीवों के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
इस पतन को विलुप्त होने से रोकने के लिए, वैज्ञानिक पूरे अफ्रीका में हाथियों की विविधता का एक जीनोमिक एटलस (Elephant Diversity) बनाने पर काम कर रहे हैं। यह एटलस इन हाथियों के संरक्षण हेतु मूल्यवान डेटा प्रदान करेगा, जिससे लोगों और समुदायों को इन जानवरों की स्थिति को बेहतर ढंग से समझने और उनकी रक्षा करने में मदद मिलेगी। ऐसे एटलस बनाने में कई चुनौतियाँ भी आती हैं। सवाना हाथी विशाल होते हैं, उन्हें घूमने के लिए विशाल स्थानों की आवश्यकता होती है, और उनके प्रवासन पैटर्न अक्सर मानवीय गतिविधियों से बाधित होते हैं। इससे मनुष्यों और हाथियों के बीच संघर्ष हो सकता है। जिसके बाद हाथियों को बदले की भावना के साथ दंडित किया जाता है। जीवविज्ञानी, इन सभी चुनौतियों का समाधान करने के लिए, हाथियों के डीएनए के आधार पर उनकी पहचान करने और उनके प्रवासन पैटर्न के रिकॉर्ड के साथ उनका मिलान करने पर काम कर रहे हैं। इससे उन्हें वास्तव में कहाँ भेजना है, इसके बारे में जानकारीपूर्ण निर्णय लेने में मदद मिलेगी, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि हाथियों को शांतिपूर्वक गुजरने के लिए उचित जगह मिल सके।
इस संदर्भ में एक और राहत की खबर ये है कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ एंड सीसी) ने प्रोजेक्ट एलिफेंट या हाथी परियोजना के तहत 270 हाथियों की डीएनए प्रोफाइलिंग (DNA profiling) पूरी कर ली है। इस पहल का उद्देश्य इन शानदार प्राणियों की सुरक्षा को बढ़ाना है।
परियोजना हाथी क्या है?
1992 में शुरू की गई, प्रोजेक्ट एलिफेंट एक केंद्र प्रायोजित योजना है जो हाथियों की सुरक्षा, उनके आवास और गलियारों में सुधार, मानव-हाथी संघर्ष को कम करने और उनके कल्याण को सुनिश्चित करने पर केंद्रित है। यह परियोजना जंगली एशियाई हाथियों की स्वतंत्र आबादी के लिए राज्यों को वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करती है।
परियोजना हाथी की मुख्य विशेषताएं:
- डीएनए प्रोफाइलिंग (DNA Profiling): डीएनए प्रोफाइलिंग प्रक्रिया में शारीरिक ऊतक के नमूने से एक विशिष्ट डीएनए पैटर्न प्राप्त किया जाता है। यह अनूठी प्रोफ़ाइल बंदी हाथियों के लिए "आधार कार्ड" के रूप में कार्य करती है, जिससे वन अधिकारियों को उनकी पहचान करने और उन्हें ट्रैक करने की अनुमति मिलती है।
- गज सूचना मोबाइल एप्लिकेशन (Gaj Suchana Mobile Application): यह मोबाइल ऐप वन अधिकारियों को बेहतर प्रबंधन और देखभाल सुनिश्चित करते हुए बंदी हाथियों के स्थानांतरण को रिकॉर्ड करने में सक्षम बनाता है।
- हाथियों की देखभाल: डीएनए प्रोफाइलिंग के साथ, बंदी हाथियों के कल्याण और स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान दिया जा सकता है, जिससे प्रत्येक हाथी से जुड़ी अनूठी जानकारी मिलती है।
भारत में हाथियों की जनसंख्या
- बंदी जनसंख्या: भारत, वैश्विक बंदी एशियाई हाथियों की आबादी में से 20% का घर है, हालांकि नियमित जनगणना नहीं की जाती है।
- जंगली जनसंख्या: भारत में एशियाई हाथियों की सबसे बड़ी और सबसे स्थिर आबादी है। देश में 60% से अधिक जंगली एशियाई हाथी पाए जाते हैं।
2017 में की गई हाथियों की जनगणना में 29,964 हाथियों की आबादी दर्ज की गई, जो वन्यजीव संरक्षण के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को उजागर करती है। प्रोजेक्ट एलिफेंट के लक्ष्यों में हाथी पारिस्थितिकी और प्रबंधन पर अनुसंधान का समर्थन करना, स्थानीय समुदायों के बीच जागरूकता पैदा करना और बंदी हाथियों के लिए बेहतर पशु चिकित्सा देखभाल प्रदान करना भी शामिल है। कुल मिलाकर यह परियोजना हाथियों के संरक्षण हेतु उठाया गया एक सराहनीय कदम है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/54h7nh7v
https://tinyurl.com/2x6wve6b
https://tinyurl.com/49j5wchh
https://tinyurl.com/bdmw8v3p
https://tinyurl.com/4tphy3jf

चित्र संदर्भ
1. एक नंन्हे हाथी को अपनी माँ के साथ दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. हाइब्रिडोजेनेटिक संकर के युग्मकों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. पेलियोलोक्सोडोन एंटिकस को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. पेलियोलोक्सोडोन रेकी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. ऊनी मैमथ को दर्शाता चित्रण (Animalia)
6. एक उद्यान में हाथियों को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
7. एक हाथी को अपने महावत के साथ दर्शाता एक चित्रण (imaggeo)

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