Post Viewership from Post Date to 08-Jun-2024 (31st Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2195 92 2287

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

कटहल एवं बांस की लकड़ी से होता दैवीय प्रभाव उत्पन्न, ढलें जब यह वीणा व बांसुरी में

मेरठ

 08-05-2024 09:27 AM
शारीरिक

वाद्य संगीत, सदियों से भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है। यह प्राचीन भारत में संगीत पर असंख्य ग्रंथों और प्राचीन पूजा स्थलों में संगीतकारों को चित्रित करने वाली प्रसिद्ध मूर्तियों से स्पष्ट है। देवी-देवताओं की मूर्तियों एवं चित्रों में अक्सर उन्हें विभिन्न वाद्ययंत्र बजाते हुए देखा जा सकता है, विशेष रूप से विद्या और कला की देवी, मां सरस्वती को, जिनकी छवि कभी भी वीणा के बिना नहीं देखी जाती है। विभिन्न संगीत वाद्ययंत्रों के निर्माण में भारत में उगने वाले विशिष्ट वृक्षों का विशेष योगदान है। क्योंकि कुछ वाद्य यंत्र ऐसे हैं जो विशिष्ट प्रकार की लकड़ी से ही बनाए जाते हैं। प्रकृति से प्राप्त वृक्ष रुपी धरोहर की लकड़ी को शिल्प कौशल के साथ मिलाकर, सामंजस्यपूर्ण ध्वनियाँ उत्पन्न करने के लिए वाद्य यंत्र के रूप में तैयार किया जाता है। वीणा जैसे वाद्य यंत्रों के लिए पनासा (कटहल) की लकड़ी का उपयोग किया जाता है, जो अपने लचीलेपन और ध्वनिक गुणों के लिए प्रतिष्ठित है। अपने सघन रेशों और मजबूत बनावट के साथ, कटहल की लकड़ी से बने वाद्ययंत्र तीव्र, गूंजने वाले स्वर उत्पन्न करते हैं। इसी प्रकार बांसुरी एक अन्य पारंपरिक वाद्य यंत्र है जो बांस से बनाई जाती है और अपनी सादगी और भावपूर्ण ध्वनि के लिए पूजनीय है। बांसुरी प्रकृति और संगीत के सामंजस्यपूर्ण संलयन का प्रतीक है। विद्या की देवी मां सरस्वती के वाद्य यंत्र वीणा के विषय में 13वीं शताब्दी के महान संगीतकार सारंगदेव ने लिखा है कि वीणा के दर्शन और स्पर्श से मनुष्य को पवित्र धर्म और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके दर्शन मात्र से ब्राह्मण की हत्या का दोषी पाप मुक्त हो जाता है। वीणा के प्रत्येक भाग में देवी देवताओं का वास है। वीणा में लकड़ी या बांस से बना दांडी, शिव का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि इसकी डोरी देवी उमा का। वीणा का कंधे पर रखा जाने वाले भाग विष्णु का प्रतिनिधित्व करता है, पाट लक्ष्मी का, थुम्बा ब्रह्मा का और तार वासुकी का। इस प्रकार वीणा के दर्शन मात्र से सभी देवी देवताओं के दिव्य आशीर्वाद प्राप्त हो जाते हैं। क्या आप जानते हैं कि आज तक वीणा बनाने की प्रथा केवल सरवसिद्दी समुदाय के परिवार के सदस्यों द्वारा जारी रखी गई है जो पीढ़ियों से चली आ रही है। वीणा पनासा की लकड़ी (कटहल का पेड़) से बनाई जाती है जो हल्की होती है और इसमें उत्कृष्ट गूंज, स्पष्ट महीन रेखाएं, स्थायित्व और न्यूनतम नमी जैसे गुण होते हैं। बोब्बिली और नुजविदु प्रकार की वीणा की विशिष्टता यह है कि वे लकड़ी के एक ही लट्ठे से बनाई जाती हैं। ऐसी वीणाओं को एकाण्डी वीणा कहा जाता है। दांडी के निचले आधार पर सहारा देने के लिए लगाए जाने वाली गोलाकार आकृति को थुम्बा कहते हैं। पेशेवर वीणा में थुम्बा खोखले कद्दू से बनाया जाता है। यदि आवश्यक आकार का कद्दू उपलब्ध न हो, तो थुम्बा अल्युमीनियम शीट से बनाया जाता है।
कद्दू का उपयोग एक अनुनादक के रूप में किया जाता है जो बजाए जाने वाले स्वर की अवधि को बढ़ाने में मदद करता है, और वीणा को स्थिर रखने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है। कद्दू के अंदर के सभी रेशेदार पदार्थ को हटा कर लगभग 3 दिनों तक धूप में सुखाया जाता है। फिर कद्दू के शीर्ष पर एक धातु का पाइप लगाकर ध्वनि को कद्दू में स्थानांतरित करने के लिए दांडी से जोड़ा जाता है। एक डंडे से जिसे एक पर्दापटल (फ्रेट बोर्ड) कहते हैं इन दोनों सिरों को जोड़ा जाता है, जिसमें पीतल की चौबीस खूटियाँ मोम और चारकोल में लगी होती हैं। इन खूटियों को दो अष्टकों में आधा-आधा लगाया जाता है। इस पर्दापटल से होकर चार मुख्य तार गुजरते हैं। दांडी के बाएं छोर पर एक "यली" जुड़ा होता है, जिस पर एक पौराणिक जानवर का सिर उकेरा गया होता है। इसके अलावा तीन अतिरिक्त तालम तार किनारे पर लगाए जाते हैं। मुख्य भाग के अलावा, कुछ पीतल और कांस्य के हिस्से वीणा के लकड़ी के हिस्सों को एक साथ रखने, टोन की गुणवत्ता में सुधार करने और इसकी सुंदरता को बढ़ाने के लिए भी उपयोग किए जाते हैं। एक अन्य प्राचीन वाद्य यंत्र, जो भगवान श्री कृष्ण का अत्यंत प्रिय है और प्रत्येक छवि एवं प्रतिमा में यह उनके साथ देखा जाता है, बांसुरी है।
कहा जाता है कि भगवान कृष्ण जब बांसुरी बजाते थे तो वृन्दावन की गोपियाँ, ग्वाले और यहां तक की पशु पक्षी और पेड़ पौधे भी मंत्र मुग्ध हो जाते थे। बांसुरी की इतनी मीठी ध्वनि के कारण ही भगवान श्री कृष्ण को ‘मुरली मनोहर’ के नाम से भी जाना जाता है। क्या आप जानते हैं कि यह बांसुरी भी एक भारतीय वृक्ष ‘बांस’ से बनी होती है जो अंदर से खोखला होता है और जिसमें 6 या 7 छेद किए गए होते हैं। प्राचीन भारतीय लोक कथाओं में मान्यता है कि जब कीड़े लकड़ी में छेद कर देते थे, तब बांस अपने आप 'गाने' लगता था और छेदों से बहने वाली हवा जादू की तरह धुन पैदा करती थी। यहां एक प्रश्न उठता है कि क्या किसी भी लकड़ी से वाद्य यंत्र बनाए जा सकते हैं? इसका उत्तर है नहीं। वाद्य यंत्र बनाने के लिए विशिष्ट प्रकार की लकड़ी का उपयोग किया जाता है। कुछ वाद्य यंत्र तो किसी विशिष्ट वृक्ष की लकड़ी से ही बनाए जाते हैं।
आइए अब वाद्य यंत्र बनाने के लिए लकड़ी में होने वाले कुछ विशिष्ट गुणों के विषय में जानते हैं:
1. मजबूती और स्थायित्व - किसी भी वाद्य यंत्र के निर्माण के लिए सघन दृढ़ लकड़ी अच्छी होती है। इस प्रकार की लकड़ी का उपयोग वाद्य यंत्र की गर्दन और सिरे को बनाने के लिए किया जाता है।
2. लचीलापन - किनारों पर या धनुषाकार पीठ और शीर्ष को बनाने के लिए लचीली लकड़ी बेहतर होती है।
3. ध्वनि गुणवत्ता - कई लकड़ियों में विशेष ध्वनि गुण होते हैं जो लकड़ी की प्रतिध्वनि से ही आते हैं।
4. सौंदर्य - वाद्य यंत्र बनाने के लिए आकर्षक महीन रेखाओं वाली लकड़ी बेहद उपयुक्त होती है। इसके अतिरिक्त वाद्ययंत्रों के लिए ऐसी लकड़ी सबसे अच्छी मानी जाती है जो लगभग सौ वर्षों से अधिक पुरानी हो, विशेषकर यदि यह मीठे पानी की नदी या झील से प्राप्त की जाए। हस्तनिर्मित और पेशेवर संगीत वाद्ययंत्रों के लिए पांच सामान्य प्रकार की लकड़ी में मेपल, शीशम, फ़र, महोगनी और बासवुड शामिल हैं। नरम मेपल को लचीलेपन के लिए बेशकीमती माना जाता है, जिससे घुमावदार सतहों को बनाना आसान हो जाता है और इसका उपयोग गिटार, और वायलिन की बॉडी में किया जाता है। फ़र का उपयोग इसके स्वर के कारण गिटार टॉप और आर्केस्ट्रा तार वाले वाद्ययंत्रों में बहुत अधिक किया जाता है। महोगनी का उपयोग फ्रेटबोर्ड बनाने के लिए किया जाता है। बासवुड की ध्वनि तीव्र होती है और इसका उपयोग ड्रम आदि बनाने के लिए किया जाता है।

संदर्भ
https://shorturl.at/jkLM7
https://shorturl.at/akzES
https://shorturl.at/j0459

चित्र संदर्भ
1. एक बांसुरी और वीणा को संदर्भित करता एक चित्रण (PixaHive, wikimedia)
2. बांसुरी बजाते श्री कृष्ण को संदर्भित करता एक चित्रण (lookandlearn)
3. वीणा बजाती महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. पारंपरिक वीणा को संदर्भित करता एक चित्रण (lookandlearn)
5. भूरे रंग की बांसुरी को दर्शाता एक चित्रण (Peakpx)
6. बांस के तनों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)

***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • उत्तर भारतीय और मुगलाई स्वादों का, एक आनंददायक मिश्रण हैं, मेरठ के व्यंजन
    स्वाद- खाद्य का इतिहास

     19-09-2024 09:25 AM


  • मेरठ की ऐतिहासिक गंगा नहर प्रणाली, शहर को रौशन और पोषित कर रही है!
    नदियाँ

     18-09-2024 09:18 AM


  • क्यों होती हैं एक ही पौधे में विविध रंगों या पैटर्नों की पत्तियां ?
    कोशिका के आधार पर

     17-09-2024 09:16 AM


  • आइए जानें, स्थलीय ग्रहों एवं इनके और हमारी पृथ्वी के बीच की समानताओं के बारे में
    पर्वत, चोटी व पठार

     16-09-2024 09:34 AM


  • आइए, जानें महासागरों से जुड़े कुछ सबसे बड़े रहस्यों को
    समुद्र

     15-09-2024 09:27 AM


  • हिंदी दिवस विशेष: प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण पर आधारित, ज्ञानी.ए आई है, अत्यंत उपयुक्त
    संचार एवं संचार यन्त्र

     14-09-2024 09:21 AM


  • एस आई जैसी मानक प्रणाली के बिना, मेरठ की दुकानों के तराज़ू, किसी काम के नहीं रहते!
    सिद्धान्त I-अवधारणा माप उपकरण (कागज/घड़ी)

     13-09-2024 09:10 AM


  • वर्षामापी से होता है, मेरठ में होने वाली, 795 मिलीमीटर वार्षिक वर्षा का मापन
    जलवायु व ऋतु

     12-09-2024 09:25 AM


  • परफ़्यूमों में इस्तेमाल होने वाले हानिकारक रसायन डाल सकते हैं मानव शरीर पर दुष्प्रभाव
    गंध- ख़ुशबू व इत्र

     11-09-2024 09:17 AM


  • मध्यकालीन युग से लेकर आधुनिक युग तक, कैसा रहा भूमि पर फ़सल उगाने का सफ़र ?
    मध्यकाल 1450 ईस्वी से 1780 ईस्वी तक

     10-09-2024 09:32 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id