Post Viewership from Post Date to 02-Jun-2024 (31st Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2102 92 2194

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

संसार को गणित और राजनीतिक अवधारणाओं से परिचित कराने वाली संस्कृत की वर्तमान स्थिति

मेरठ

 02-05-2024 10:01 AM
ध्वनि 2- भाषायें

संस्कृत, एक सुंदर और प्राचीन भाषा है, जिसे भारत में 3,000 से अधिक वर्षों से बोला जा रहा है। दिलचस्प बात यह है, संस्कृत का अस्तित्व दुनियाँ की कई समृद्ध सभ्यताओं से भी अधिक पुराना है। संस्कृत का उपयोग शास्त्रीय हिंदू दर्शन, विज्ञान और साहित्य में भी प्रचुरता से किया जाता है। संस्कृत का एक अनोखा पहलू यह भी है कि यह एकमात्र ऐसी भाषा है, जहाँ संख्याओं के लिए शब्दों का प्रयोग क्रिया के रूप में भी किया जा सकता है।
इससे संस्कृत और गणित के बीच घनिष्ठ संबंध का पता चलता है। संस्कृत ने राजनीतिक अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हालाँकि, इसके समृद्ध इतिहास और महत्व के बावजूद, समय के साथ संस्कृत के उपयोग में गिरावट आई है। आज हम गणित और राजनीति में संस्कृत के योगदान के साथ-साथ संस्कृत के प्रयोग में गिरावट आने के मूल कारणों सहित संस्कृत की वर्तमान स्थिति का भी पता लगाएंगे। 'गणित' एक संस्कृत शब्द है, जिसकी उत्पति 'गण' धातु से हुई है, जिसका अर्थ गिनना या गणना करना होता है। भारत में गणित का विकास भी खगोल विज्ञान के साथ-साथ ही हुआ है।
गणित के प्रारंभिक संदर्भ वैदिक साहित्य में पाए जाते हैं। उदाहरण के लिए, छांदोग्य उपनिषद (7.1.2) में गणित के लिए 'राशिविद्या' शब्द का प्रयोग किया गया है। शुक्लयजुर्वेदीयमंत्रसंहिता के कुछ श्लोक (18/24,25) विषम संख्याओं और तालिकाओं के ज्ञान को दर्शाते हैं। इन सभी प्रमाणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि, भारत के लोग अन्य देशों की तुलना में अंकों के स्थानीय मान की प्रणाली से पहले ही परिचित हो गए थे। गणना करने की यूरोपीय प्रणाली की उत्पत्ति भी भारत से ही हुई थी। शून्य, दशमलव प्रणाली, बीजगणित, एल्गोरिदम, वर्गमूल और घनमूल सहित कई गणितीय अवधारणाओं का जन्म भी भारत में ही हुआ है। शून्य की दार्शनिक अवधारणा का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक गोल आकृति, शून्य का प्रतीक, यानी '0' उभरा था। लीबनिट्ज और न्यूटन (Leibniz and Newton) द्वारा अपने स्वयं के प्रमेय प्रस्तुत करने से तीन शताब्दी से भी पहले, भारत में कैलकुलस (calculus) की उत्पत्ति हो गई। भारत में गणित की शुरुआत संभवतः पाँच हज़ार सालों से भी पहले हो गई थी। 1000 ईसा पूर्व से लेकर लगभग दो हजार वर्षों तक भारत में अनेक गणितीय कृतियों का निर्माण हुआ।
5वीं शताब्दी ई. से, भारत में क्रमिक गणना की पद्धति शुरू की गई थी। उस समय तक, दुनियाँ में ज्यामितीय सिद्धांतों का ज्ञान केवल भारतीयों को ही था। इन अवधारणाओं को 5वीं शताब्दी ईसवी में आर्यभट्ट जैसे गणितज्ञों द्वारा एकत्र किया गया और आगे विकसित किया गया।
ब्रह्मगुप्त की कृति 'ब्रह्मस्फुट-सिद्धांत' संक्षेप में अंकगणितीय संचालन, वर्ग और घन मूल, ब्याज, प्रगति, ज्यामिति और सरल बीजगणितीय अवधारणाओं को उजागर करती है। इन सभी के अलावा महावीराचार्य का गणितसारसंग्रह, श्रीधर का त्रिशती, नारायण का बीजगणित भी भारतीय गणित पर कुछ प्रमुख शुरुआती संस्कृत ग्रंथ हैं। संस्कृत ने गणित के साथ-साथ भारत की राजनीतिक अर्थव्यवस्था को दिशा दिखाने में भी बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। राजनीतिक अर्थव्यवस्था, सामाजिक विज्ञान की एक शाखा है, जो बाद में अर्थशास्त्र के रूप में विकसित हुई। भारत में, अर्थशास्त्र उन सिद्धांतों और दिशानिर्देशों को संदर्भित करता है जो व्यावहारिक जीवन, घरेलू अर्थव्यवस्था, प्रशासन और राजनीति से संबंधित हैं। लगभग 320 ईसा पूर्व में रचित कौटिल्य के अर्थशास्त्र को भारतीय बौद्धिक इतिहास की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जाता है।
कौटिल्य, जिन्हें चाणक्य के नाम से भी जाना जाता है, एक रणनीतिकार थे जिन्होंने मौर्य वंश की स्थापना करने में चंद्रगुप्त मौर्य की मदद की थी। उनके द्वारा रचित अर्थशास्त्र हमें वैदिक तरीक़ों से राजनीतिक नेतृत्व का एक मॉडल प्रदान करता है और घरेलू नीति तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर शुरुआती विचारों में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। इसमें एक राज्य (धर्म) की नींव के रूप में भौतिक कल्याण (अर्थ) के महत्व पर भी ज़ोर दिया गया है। कौटिल्य, दर्शन की विभिन्न प्रणालियों, जनजातीय और गणतांत्रिक राजनीति की चर्चा करते हैं। वह वेदों और मनु का भी उल्लेख करते हैं। वह धर्म को व्यवस्था के निर्माता के रूप में देखते हैं और नैतिक लक्ष्यों पर ज़ोर देते हैं।
अर्थशास्त्र के माध्यम से वह कृषि के महत्व पर भी ज़ोर देते हैं और इसे विनिर्माण तथा कुशल कारीगरों के काम से जोड़ते हैं। वह राज्य द्वारा गुणवत्ता नियंत्रण, बेईमानी और चोरी के लिए सज़ा और उपभोक्ता संरक्षण उपायों की वकालत करते हैं। अपनी इस रचना में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय संबंधों का एक व्यापक सिद्धांत भी विकसित किया है, जिसमें शक्ति के तीन घटकों (उत्साह, सैन्य शक्ति और सलाह) पर प्रकाश डाला गया है। कौटिल्य ने विस्तृत प्रशासनिक व्यवस्था का भी वर्णन किया है। उन्होंने वानिकी, खनन, टकसाल, राज्य व्यापार, वजन और माप, सर्वेक्षण, परिवहन, कपड़ा और कारावास जैसे विभिन्न कार्यों पर विस्तार से चर्चा की है। वह न्यायशास्त्र की एक प्रणाली की रूपरेखा तैयार करते हैं , जिसमें अपराधों का संहिताकरण, न्यायाधीशों की भूमिका, जेलों के लिए एक नीति मैनुअल (policy manual) और साक्ष्य के नियम और अन्य प्रक्रियाएं शामिल हैं।
कौटिल्य का अध्ययन, अंतर-सांस्कृतिक बौद्धिक इतिहास और कूटनीति में प्रारंभिक राजनीतिक यथार्थवाद में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है। यहां तक कि भास, कालिदास, बाणभट्ट, विष्णुशर्मा और अन्य जैसे महान संस्कृत कवियों ने भी कौटिल्य और अर्थशास्त्र के प्रति सम्मान दिखाया है।
हालाँकि संस्कृत की प्राचीनतम भाषा होने और आधुनिक समाज के अनुरूप ढलने के बावजूद, इसके प्रति रुझान दिन प्रतिदिन घटता रहा है। 18वीं शताब्दी में जब यूरोपीय लोग भारत आये तो वे अपने साथ अंग्रेजी भाषा भी लेकर आये। इसके कारण संस्कृत, जो एक समय में अपनी बुद्धि और ज्ञान के लिए जानी जाती थी, की लोकप्रियता घटने लगी। देखते ही देखते अंग्रेजी ने सरकार, शिक्षा और विज्ञान जैसे क्षेत्रों में मुख्य भाषा के रूप में अपना स्थान ले लिया। दुर्भाग्य से अंग्रेज़ी के प्रयोग को प्रगति और आधुनिक समय के संकेत के रूप में देखा गया, जबकि संस्कृत को पुराने ज़माने के रूप में देखा गया। लेकिन फिर भी संस्कृत को पूर्णतः भुलाया नहीं गया। कई विद्वान, कवि और लेखक इसका निरन्तर अध्ययन और प्रयोग करते रहे। राजा राम मोहन राय, स्वामी विवेकानन्द और रवीन्द्रनाथ टैगोर जैसी महत्वपूर्ण विभूतियों ने संस्कृत के मूल्य को पहचाना और इसे जीवित रखने का भरपूर प्रयास किया।
भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद, संस्कृत में नए सिरे से रुचि पैदा हुई। भारत सरकार ने इस भाषा को बढ़ावा देने के लिए कई संस्थानों की स्थापना की, और स्कूलों ने संस्कृत कक्षाएं प्रदान करना शुरू कर दिया। इससे अधिक युवा लोग संस्कृत सीखने लगे। आज संस्कृत फिर से अपनी चमक बढ़ा रही है। इसका उपयोग धार्मिक समारोहों और दर्शन, भाषा विज्ञान और साहित्य जैसे क्षेत्रों में किया जाता है। शोधकर्ता इसका उपयोग पुराने ग्रंथों का अध्ययन करने के लिए करते हैं। संस्कृत का प्रभाव अन्य भाषाओं पर भी पड़ा है। अंग्रेज़ी, जर्मन और फ्रेंच जैसी कई भाषाओं ने संस्कृत से “योग," "कर्म," और "अवतार" जैसे कई शब्द उधार लिए हैं। इसका प्रभाव हिंदी, बंगाली और मराठी जैसी भारतीय भाषाओं पर भी पड़ा है।
आज संस्कृत विश्व की सांस्कृतिक विरासत का एक हिस्सा बन गई है। दुनिया भर के लोग इसकी सुंदरता, जटिलता और बुद्धिमत्ता की ओर आकर्षित हो रहे हैं।

संदर्भ
https://tinyurl.com/36vrxmer
https://tinyurl.com/mrvatmva
https://tinyurl.com/esx5w38t

चित्र संदर्भ
1. एक भारतीय ऋषि को उपदेश देते हुए संदर्भित करता एक चित्रण (creazilla)
2. एक संस्कृत की कक्षा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. बख्शाली पांडुलिपि में अंक "शून्य" के विवरण को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. महर्षि वाल्मीकि को संदर्भित करता एक चित्रण (picryl)
5. चाणक्य को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. एक संस्कृत पाण्डुलिपि को संदर्भित करता एक चित्रण (worldhistory)
7. स्वामी विवेकानंद को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)

***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • लोगो बनाते समय, अपने ग्राहकों की संस्कृति जैसे पहलुओं की समझ होना क्यों ज़रूरी है ?
    संचार एवं संचार यन्त्र

     30-12-2024 09:25 AM


  • आइए देखें, विभिन्न खेलों के कुछ नाटकीय अंतिम क्षणों को
    य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला

     29-12-2024 09:21 AM


  • आधुनिक हिंदी और उर्दू की आधार भाषा है खड़ी बोली
    ध्वनि 2- भाषायें

     28-12-2024 09:28 AM


  • नीली अर्थव्यवस्था क्या है और कैसे ये, भारत की प्रगति में योगदान दे रही है ?
    समुद्री संसाधन

     27-12-2024 09:29 AM


  • काइज़ेन को अपनाकर सफलता के शिखर पर पहुंची हैं, दुनिया की ये कुछ सबसे बड़ी कंपनियां
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     26-12-2024 09:33 AM


  • क्रिसमस पर लगाएं, यीशु मसीह के जीवन विवरणों व यूरोप में ईसाई धर्म की लोकप्रियता का पता
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     25-12-2024 09:31 AM


  • अपने परिसर में गौरवपूर्ण इतिहास को संजोए हुए हैं, मेरठ के धार्मिक स्थल
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     24-12-2024 09:26 AM


  • आइए जानें, क्या है ज़ीरो टिलेज खेती और क्यों है यह, पारंपरिक खेती से बेहतर
    भूमि प्रकार (खेतिहर व बंजर)

     23-12-2024 09:30 AM


  • आइए देखें, गोल्फ़ से जुड़े कुछ मज़ेदार और हास्यपूर्ण चलचित्र
    य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला

     22-12-2024 09:25 AM


  • मेरठ के निकट शिवालिक वन क्षेत्र में खोजा गया, 50 लाख वर्ष पुराना हाथी का जीवाश्म
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     21-12-2024 09:33 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id