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प्रत्येक वर्ष संपूर्ण भारत में हनुमान जयंती बहुत धूमधाम और भव्यता के साथ मनाई जाती है। इस शुभ अवसर पर भगवान श्रीराम के भक्त भगवान हनुमान के जन्म का जश्न मनाया जाता है, जिसे हनुमान जन्मोत्सव के रूप में भी जाना जाता है। इस संसार में किसी भी व्यक्ति के लिए एक आदर्श, दोष-मुक्त जीवन व्यतीत करना लगभग असंभव है - एक ऐसा जीवन जो आलोचना से ऊपर हो। महान महाकाव्य, रामायण का अध्ययन करते हुए, हम यह देखते हैं कि धर्म और धार्मिकता के अवतार भगवान राम और भक्ति और पवित्रता की साक्षात दिव्य मूर्ति माता सीता को भी आलोचनाओं एवं दोषों का सामना करना पड़ा था। हालाँकि, रामायण में एक पात्र ऐसा हैं जो सभी आलोचनाओं से परे हैं - श्री हनुमान जी, जो प्रभु श्रीराम के सबसे महान भक्त हैं। संपूर्ण रामायण में एक भी ऐसी घटना का वर्णन नहीं है जिसमें हनुमान जी ने कोई गलती की हो या उन्हें दोष या निन्दा का सामना करना पड़ा हो। वह भक्ति, ज्ञान और सेवा का साक्षात् अवतार हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में आपने देखा होगा कि कार, स्कूटर और अन्य वाहनों पर हनुमान जी की क्रोधित रूप तस्वीर लगाने का प्रचलन चल गया है। यह तस्वीर आपने हमारे शहर मेरठ में भी अवश्य देखी होगी। इस तस्वीर में हनुमान जी को तीव्र क्रोध वाले भाव के साथ दिखाया गया है। लेकिन जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हनुमानजी प्रभु श्रीराम के अनन्य भक्त हैं और वास्तव में वह इस तस्वीर में दिखाई गई छवि से बिल्कुल विपरीत हैं। तो आज हनुमान जयंती के मौके पर आइए हनुमान जी के विषय में फैले कुछ मिथकों के विषय में जानते हैं। और देखते हैं कि वे श्रीराम के सबसे बड़े भक्त कैसे बने? साथ ही आइए ये भी जानें कि आज की नई पीढ़ी भगवान हनुमान से क्या सीख सकती है?
वास्तव में हनुमानजी एक वानर थे और उनके वानरीय स्वभाव को उनकी ईश्वरीयता से अलग नहीं किया जा सकता। वह चीज़ जो उन्हें रामायण में प्रभु श्रीराम का इतना आदर्श सहयोगी बनाती है, वह है उनका वानर स्वभाव, उनकी लंबी पूंछ, लंबी दूरी तक छलांग लगाने की उनकी क्षमता। उनके इस वानर स्वरूप में क्रोध का कोई स्थान नहीं है। संपूर्ण रामायण में एक भी ऐसा संदर्भ नहीं मिलता जहाँ उन्होंने क्रोध दर्शाया हो। समुद्र लांघते समय या अशोकवाटिका में राक्षसों द्वारा आक्रमण किए जाने पर या इन्द्रजीत द्वारा बंदी बना लिए जाने पर या अन्य भी किसी स्थल पर ऐसा कोई भी वृत्तांत नहीं है जहाँ हनुमान जी ने क्रोध किया हो, उन्होंने सदैव ही प्रभु श्रीराम का नाम लेते हुए शांत मन से प्रभु के संपूर्ण कार्य सिद्ध किए।
माना जाता है कि उनका नाम ‘हनुमान’ भी उनके चेहरे के आकार के कारण पड़ा: 'हनु' का अर्थ है 'जबड़ा', और 'मंत' का अर्थ है 'विकृत'। एक किंवदंती के अनुसार, बाल्यकाल में उन्होंने सूर्य को फल समझकर अपने मुँह में रख लिया था जिसके कारण देवताओं के राजा इन्द्र ने उनकी ठोड़ी पर वज्र से प्रहार किया था। जिसके कारण उनकी ठोड़ी विकृत हो गयी थी और तब उन्हें अपना नाम हनुमान प्राप्त हुआ।
यह सभी जानते हैं कि हनुमान ब्रह्मचारी थे, हालांकि एक कहानी इससे अलग भी है। कहानी के अनुसार जब हनुमानजी सूर्य देव के अधीन अध्ययन कर रहे थे, तो अध्ययन सामग्री का एक हिस्सा केवल विवाहित पुरुषों के लिए ही सुलभ था। लेकिन हनुमान जी ने ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया हुआ था, इसलिए भगवान सूर्य ने अपनी एक पुत्री, सुवर्चला , जो स्वयं तपस्या के लिए समर्पित थी, से उनका विवाह कराया और इसके बाद वे दोनों अपनी अपनी तपस्या में लीन हो गए।
रामायण में हम देखते हैं कि श्री हनुमान के अधरों पर सदैव प्रभु श्रीराम का नाम होता है और उनके हृदय में उनकी छवि बसी होती है। यह भगवान के प्रति उनकी एकनिष्ठ भक्ति ही थी, जिसने उन्हें दुर्गम बाधाओं को पार करने और अकल्पनीय कार्य करने में सक्षम बनाया, उदाहरण के लिए, 100 योजन समुद्र को एक बार में लांग जाना, पूरे पर्वत को उठाना और अकेले ही एक अच्छी तरह से किलेबंद लंका में प्रवेश करना और उसे जलाना। वास्तव में हनुमान जी अत्यंत विनम्रता के साथ सेवा के महान प्रेरक आदर्श हैं! इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि श्री हनुमान को प्रभु श्रीराम का सबसे प्रिय भक्त माना जाता है। श्री हनुमान भगवान राम के अत्यंत प्रिय हैं। वह न केवल एक अनुकरणीय भक्त हैं, जिन्होंने अपना संपूर्ण अस्तित्व भगवान की सेवा में समर्पित कर दिया, बल्कि वह दूसरों को भी प्रभु की भक्ति से सिखाते हैं ताकि वे भी भक्त बन सकें और भगवान का आशीर्वाद प्राप्त कर सकें। श्री हनुमान जी के सेवाभाव एवं भक्ति से अभिभूत होकर प्रभु श्रीराम भी स्वयं उनके प्रति अत्यधिक प्रेम और कृतज्ञता से भर गए। जब भगवान ने अपनी भावनाएँ व्यक्त कीं और उनकी प्रशंसा की, तो श्री हनुमान, एक सच्चे भक्त की तरह, भगवान के चरणों में गिर गए और एक सच्चे भक्त के रूप में अपनी आँखों में अश्रु लिए अपने सभी वीरतापूर्ण कार्यों के लिए सारा श्रेय प्रभु की भक्ति को देते हुए कहते हैं:
'सो सब तव प्रताप रघुराई, नाथ न कचु मोरी प्रभुताई।‘
पवनपुत्र हनुमान जी गुणों के भंडार एवं महाबलशाली हैं। तुलसी रामायण के सुंदरकांड में गोस्वामी तुलसीदास हनुमान जी की महिमा गाते हुए लिखते हैं:
“अतुलित बलधामं हेमशलैभदेहं।
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामअग्रगण्यम ।।
सकला गुणनिधानं वानरमाधिसम्
रघुपतिप्रिय भक्तं वातजातं नमामि।“
क्या आप जानते हैं कि हनुमान जी को भगवान शिव ने 'मृत्युंजय' का वरदान प्राप्त था? जिसके कारण हनुमानजी अमर हैं। हनुमानजी का व्यक्तित्व ऐसा है जो न केवल प्राचीन काल में बल्कि आज भी बच्चों से लेकर युवा पीढ़ी तथा बुजुर्गों तक सभी को प्रेरणा देता है। आज की पीढ़ी हनुमान जी के व्यक्तित्व से बहुत कुछ सीख सकती है।
आइए देखें क्या:
1. लक्ष्य सदैव ऊँचा रखें:
हनुमान जी के बचपन से जुड़ी दिलचस्प कहानी के अनुसार, जब हनुमान जी एक बालक थे, तो उन्होंने यह सोचकर आकाश में छलांग लगा दी कि सूर्य एक बड़ा पका हुआ आम है। आकाश में फल को पकड़ने और उसका आनंद लेने के लिए, हनुमान बड़े होते गए और सूर्य को निगल लिया। किंतु इंद्र ने सूर्य को छुड़ाने के लिए उन पर प्रहार किया और वे मूर्छित हो गए। जिसके कारण हनुमान जी के आध्यात्मिक पिता पवन देव ने संपूर्ण ब्रह्मांड से वायु को रोक लिया। जिससे सभी प्राणियों के प्राण संकट में आ गए। तब सभी देवताओं ने मिलकर हनुमान जी को अपनी अपनी शक्तियां प्रदान की। हनुमान जी की यह कहानी प्रेरणा देती है कि सदैव अपना लक्ष्य सूर्य के समान ऊंचा रखें। उसे प्राप्त करने के लिए रास्ता खुद ब खुद बन जाता है।
2. साहस एवं शक्ति:
संपूर्ण रामायण हनुमान जी के साहस और शक्ति का प्रमाण है। उन्होंने अकेले ही समुद्र पार करके लंका में प्रवेश करने का साहस किया। जब लक्ष्मण को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता हुई, तो हनुमान संजीवनी पौधे की तलाश में कैलाश पर्वत की ओर उड़ गए और संपूर्ण पर्वत को ही ले आये। और ना जाने ऐसी कितनी ही कहानियाँ हैं जो वीर हनुमान की असंख्य शक्ति और वीरता को दर्शाती हैं। इसलिए, यदि आप सफल होना चाहते हैं, तो अपनी क्षमताओं पर विश्वास रखें और ऐसे निर्णय लेने का साहस रखें जो आपके आराम क्षेत्र से बाहर हों।
3. निष्ठा:
अपने प्रभु श्रीराम के प्रति पूर्ण समर्पण के साथ साथ हनुमान जी अपने मित्र सुग्रीव के प्रति भी पूर्ण निष्ठावान थे। उन्होंने सुग्रीव को बाली से अपना राज्य वापस जीतने के लिए भगवान राम की सहायता लेने में मदद की। उन्होंने हर संभव तरीके से अटल निष्ठा के साथ भगवान राम की सहायता की। इसलिए उन्हें सदैव प्रभु का प्रेम प्राप्त हुआ। इसलिए यह जरूरी है कि आप हर रिश्ते में वफादार, ईमानदार और सहयोगी बने रहें।
4. निःस्वार्थ भक्ति:
हनुमान जी ने अपने प्रभु श्रीराम के प्रति सदैव ही निस्वार्थ भक्ति के साथ कार्य किया। उन्होंने प्रभु श्रीराम के कार्यों के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। राम से मिलने के बाद, हनुमानजी को जीवन में एक उच्च उद्देश्य मिला। राम की यात्रा उनका मिशन बन गई और उन्होंने बिना किसी स्वार्थ के इसके लिए अथक प्रयास किया। याद रखें, महानता तब आती है जब आप अपनी और दूसरों की भलाई के लिए मिलकर काम करते हैं।
5. अनुकूलनशीलता:
हनुमान की अद्भुत महाशक्तियों में से एक उनकी अनुकूलन क्षमता थी। वे कुछ ही पल में वह चींटी जितना सूक्ष्म रूप धारण कर लेते थे, तो पल भर में पहाड़ जितना बड़ा। पल भर में समुद्र लांघ जाते थे और हवा से भी तेज या पक्षी से भी ऊँचा उड़ सकते थे। उन्होंने अपनी असीमित शक्तियों और लचीलेपन से सभी बाधाओं को पार कर लिया था। हमें अपने जीवन में भी इसी प्रकार अनुकूलनीय होने की आवश्यकता है। हमें वस्तुओं को विस्तार से देखने, समग्र दृष्टिकोण अपनाने और समाधान खोजने के लिए अपने अहंकार को शांत करने की आदत विकसित करनी चाहिए।
6. निर्भयता:
हनुमान जी हमें सदैव निर्भयता का पाठ पढ़ाते हैं। उन्होंने अपने जीवन के सभी कार्य बिना किसी डर एवं भय के पूर्ण निष्ठा के साथ किये। आज भी जब किसी बच्चे को डर लगता है तो उससे कहा जाता है कि हनुमान जी का नाम लो और डर को दूर तक भगा दो। डर व्यक्ति की क्षमताओं को सीमित कर देता है। इसलिए निडर होकर पूर्ण आत्मविश्वास के साथ कार्य करें और देखें कि आप कितनी ऊंचाई हासिल कर सकते हैं।
7. कभी हार न मानें:
हनुमान हमें कभी हार न मानने की सीख देते हैं। उन्होंने कभी भी जिम्मेदारियों से मुंह नहीं मोड़ा, जिम्मेदारी संभाली और अपनी सभी प्रतिबद्धताएं पूरी कीं। उनके लिए कुछ भी असंभव नहीं था! आपको भी खुद पर विश्वास रखते हुए सदैव प्रत्येक कठिनाई का सामना करना चाहिए। और कभी हार नहीं माननी चाहिए।
संदर्भ
https://shorturl.at/bmFRX
https://shorturl.at/ayWZ3
https://shorturl.at/qtvFQ
चित्र संदर्भ
1. प्रभु श्री राम को नतमस्तक प्रणाम करते हुए हनुमान जी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. हनुमान जी को भोग खिलाते प्रभु श्री राम को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. माता अंजनी की गोद में नन्हे हनुमान जी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. हनुमान जी के सीने में प्रभु श्री राम और माता सीता की छवि को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. संजीवनी बूटी लाते हनुमान जी को संदर्भित करता एक चित्रण (picryl)
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