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महिला, दलित व वंचितों के प्रति दमनकारी विचारों वाले ग्रंथों को आंबेडकर ने किया अस्वीकार

मेरठ

 13-04-2024 08:52 AM
सिद्धान्त 2 व्यक्ति की पहचान

मनुस्मृति, एक ऐसा ग्रंथ है, जिसने ऐतिहासिक रूप से महिलाओं के अधिकारों तथा जाति से जुड़ी कई बहसों और विवादों को जन्म दिया है। बाबा साहेब अंबेडकर का मानना था कि इस पाठ में महिलाओं, दलितों और वंचितों के प्रति दमनकारी विचारों की प्रबलता है, जिस कारण उन्होंने इसे सार्वजनिक रूप से जला दिया गया था। तो चलिए आज अंबेडकर जयंती के अवसर पर मनुस्मृति की उन विशिष्ट शिक्षाओं पर एक नज़र डालते हैं, जिनके कारण यह कृति इतने अधिक विवादों में रहती है।
भारतीय समाज को आकार देने में मनुस्मृति ने बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। साथ ही पश्चिमी शिक्षा जगत में भी इसका व्यापक रूप से अध्ययन किया जाता है। इस पाठ के लेखकत्व का श्रेय उन अज्ञात योगदानकर्ताओं को दिया जाता है, जिन्होंने इसे सदियों से संकलित किया है। इन संकलनकर्ताओं ने मनुस्मृति की विभिन्न कहावतों, नैतिक दिशानिर्देशों और कानूनी सिद्धांतों को एकत्र किया है। इसलिए, पाठ की रचना को किसी एक लेखक की मंशा या उसके समय के ऐतिहासिक संदर्भ से अलग देखा जाता है। आसान शब्दों में कहें तो मनुस्मृति में एक "आदर्श महिला" को कैसे व्यवहार करना चाहिए, इससे जुड़े निर्देश शामिल हैं, जिनमें से कई निर्देशों को आज विवादित माना जाता है।
ऐतिहासिक संदर्भ में, 25 दिसंबर, 1927 का दिन भारतीय महिलाओं के अधिकारों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इसी दिन डॉ. बी.आर. अंबेडकर (Dr. B.R. Ambedkar) ने सार्वजनिक रूप से मनुस्मृति की निंदा की थी।
नीचे मनुस्मृति के उल्लेखित कुछ ऐसे तर्क दिए गए हैं, जिनकी वजह से यह कृति अक्सर विवादों में रहती है:
1. पति जैसा भी है, भगवान् तुल्य है।: मनुस्मृति, इस बात पर ज़ोर देती है कि स्वर्ग में अपना स्थान सुरक्षित करने के लिए एक महिला को अपने पति के कर्मों की परवाह किये बिना उसके प्रति सदाचार और समर्पित रहना चाहिए। यह उन नारीवादियों के लिए विवाद का मुद्दा है, जो तर्क देते हैं कि ऐसी शिक्षाओं ने लिंगभेद को आज भी कायम रखा है।
2. महिलाओं के लिए कोई स्वतंत्रता नहीं: मनुस्मृति, महिलाओं को निजी क्षेत्र तक ही सीमित रखने को उचित ठहराती है। इस कृति में महिलाओं को निरंतर सुरक्षा और मार्गदर्शन की आवश्यकता वाली आश्रित प्राणियों के रूप में चित्रित किया गया है। यह सुझाव देती है कि एक महिला, स्वतंत्रता की हक़दार नहीं है और वह हमेशा एक पुरुष की संरक्षकता में रहती है।
3. महिलाओं की हर हाल में सुरक्षा होनी चाहिए: मनुस्मृति महिलाओं को "नैतिक मूल्यों के संरक्षक" के रूप में देखती है। यह एक पत्नी तथा पति के कर्तव्यों को भी रेखांकित करती है। मनुस्मृति का अध्याय 9 पत्नी और पति के कर्तव्य को रेखांकित करता है। इसमें उन विभिन्न तरीकों के बारे में बताया गया है, जिनसे एक पुरुष अपनी पत्नी की वफ़ादारी सुनिश्चित कर सकता है।
4. महिलाओं की भूमिका और ज़िम्मेदारियां: मनुस्मृति सलाह देती है कि, "एक पुरुष को अपनी पत्नी को अपने धन, घरेलू कामों और अन्य धार्मिक गतिविधियों के प्रबंधन में शामिल करना चाहिए। इसमें यह भी कहा गया है कि एक आदमी को व्यवसाय की खोज हेतु जाने से पहले अपनी पत्नी की देखभाल करनी चाहिए, क्योंकि अपनी आजीविका की कमी होने पर एक दृढ़ महिला भी भटक सकती है। एक पत्नी से अपेक्षा की जाती है कि यदि उसका पति किसी विशेष उद्देश्य के लिए घर से बाहर जाता है ,तो उसे कई वर्षों तक उसका इंतज़ार करना चाहिए।
5. पुनर्विवाह महिलाओं के लिए अपमानजनक है: मनुस्मृति में जहां पुरुषों को पुनर्विवाह की अनुमति दी गई है, वहीं महिलाओं के लिए ऐसा करना अपमानजनक बताया गया है। इसमें कहा गया है कि किसी भी परिस्थिति में एक महिला को किसी दूसरे पुरुष का नाम तक नहीं लेना चाहिए। यह पाठ किसी महिला की दूसरी शादी या किसी अन्य पुरुष के साथ उसके किसी भी बच्चे को मान्यता नहीं देता है। इसमें कहा गया है कि एक गुणी महिला को कभी भी दूसरा विवाह नहीं करना चाहिए।
6. महिलाओं का बहिष्कार: मनुस्मृति के अनुसार, भले ही पति नैतिक रूप से भ्रष्ट हो, लेकिन एक "अच्छी पत्नी" उसका सम्मान करने के लिए बाध्य होती है।
7. महिलाओं का अमानवीयकरण: पाठ में कहा गया है कि एक परिवार तब धन्य होता है जब पति और पत्नी एक-दूसरे से प्रसन्न होते हैं। हालाँकि, इसमें यह भी वर्णित है कि एक पुरुष को खुश करना महिला का कर्तव्य है। कुछ स्थानों पर यह पाठ मासिक धर्म के दौरान महिला से भेदभाव करने का भी संकेत देता है और जाति के आधार पर महिलाओं को अपमानित करता प्रतीत होता है। उदाहरण के तौर पर यदि कोई ब्राह्मण या क्षत्रिय किसी शूद्र स्त्री से विवाह करता है, तो वे अपने परिवार की सामाजिक प्रतिष्ठा को कम कर देते हैं। *पाठकों से अनुरोध है कि ऊपर दिए गए बिंदुओं का मूल अनुवाद अलग हो सकता है, किंतु सार वही है। अधिक स्पष्टता के लिए कृपया मूल पाठ को पढ़ें। अब आप भी समझ ही गए होंगे कि बाबा साहेब अंबेडकर मनुस्मृति के इतने धुर विरोधी क्यों रहे होंगे। आज उस घटना को 90 से अधिक वर्षों का समय हो गया है, जब डॉ. बीआर अंबेडकर ने 21 दिसंबर, 1927 के प्रसिद्ध 'महाड़ सत्याग्रह' के दौरान 'मनुस्मृति' जलाकर जातिगत भेदभाव के ख़िलाफ़एक शक्तिशाली संदेश दिया था। इस दिन को, जिसे 'मनुस्मृति दहन दिवस' के नाम से भी जाना जाता है। यह पहल, अस्पृश्यता का समर्थन करने वाले धार्मिक सिद्धांतों के ख़िलाफ़, विरोध जताने के लिए की गई थी।
मनुस्मृति, अपनी जाति-पक्षपाती शिक्षाओं के लिए कुख्यात थी, जो दलितों के साथ अनुचित व्यवहार को प्रोत्साहित करती थी। मनुस्मृति ने इन पिछड़े वर्ग के लोगों को यह कहते हुए बुनियादी अधिकारों से वंचित कर दिया, कि उनका एकमात्र कर्तव्य बिना किसी शिकायत के उच्च जातियों की सेवा करना था। इसमें निम्न वर्गों को शिक्षा के लिए 'अयोग्य' माना गया था और यहां तक कि उन्हें संपत्ति रखने के अधिकार से भी वंचित कर दिया गया था। इसे जलाकर और महिलाओं के अधिकारों की वकालत करके डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने महिलाओं की मुक्ति में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने मनुस्मृति की आलोचना करते हुए इस बात पर प्रकाश डाला कि “इस कृति ने महिलाओं की स्थिति को निम्न ही रखने में बड़ी भूमिका निभाई है।” मनुस्मृति में महिलाओं को वेदों का अध्ययन करने से भी मना किया गया था, जिससे उनके धार्मिक ज्ञान और अनुष्ठानों में भागीदारी न के बराबर हो गई। डॉ अंबेडकर द्वारा स्थापित समाचार पत्र, बहिष्कृत भारत के 3 फरवरी, 1928 के संस्करण में उन्होंने लिखा, “ज्ञान और शिक्षा केवल पुरुषों के लिए ही नहीं, बल्कि महिलाओं के लिए भी आवश्यक हैं। लड़कियों को शिक्षित करना भी बहुत महत्वपूर्ण है।”
हालांकि बहुत कम लोग जानते हैं कि मनुस्मृति से पहले, महिलाओं को समाज में सम्मानजनक स्थान प्राप्त था। अथर्ववेद और श्रौत-सूत्र जैसे ग्रंथों के संदर्भों से संकेत मिलता है कि महिलाओं को शिक्षा ग्रहण करने की पूरी आज़ादी थी। ऋषि गार्गी, विद्याधरी और सुलभा मैत्रेयी जैसी प्राचीन भारत की उल्लेखनीय महिला विभूतियों के योगदान को स्वयं डॉ अंबेडकर ने भी स्वीकार किया। अंबेडकर उस 'सुधार' के सिद्धांत में विश्वास करते थे, जो शिक्षा के माध्यम से महिलाओं की बुद्धि और आत्म-विकास के महत्व पर ज़ोर देता था। उनका दृष्टिकोण स्पष्ट था: "ज्ञान और शिक्षा" पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए आवश्यक है। 1950 के दशक के दौरान हिंदू कोड बिल (Hindu code bill) को पारित कराने में अंबेडकर का महत्वपूर्ण योगदान था। इन विधेयकों का उद्देश्य ऐतिहासिक खामियों को सुधारना था। विशेष रूप से, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 14, महिलाओं को संपत्ति का पूर्ण स्वामित्व प्रदान करती है। धारा 6 ने पुरुष एकाधिकार को तोड़ते हुए, हिंदू महिलाओं को विरासत के अधिकार प्रदान किए।

संदर्भ
https://tinyurl.com/2wrc65bt
https://tinyurl.com/uzcccepw
https://tinyurl.com/mrnvc78a

चित्र संदर्भ
1. दो भारतीय महिलाओं को संदर्भित करता एक चित्रण (lookandlearn)
2. मनुस्मृति पुस्तक को दर्शाता एक चित्रण (amazon)
3. एक हिंदू विवाह को दर्शाता एक चित्रण (Rawpixel)
4. बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर की तस्वीर को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
5. 14 अप्रैल 1948 के दिन अपने जन्मदिन पर अपनी पत्नी माईसाहेब के साथ डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर को दर्शाता एक चित्रण (picryl)

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