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क्या आप जानते हैं कि "आकाश" और "प्रकृति" जैसे कुछ संस्कृत शब्दों का सटीक अनुवाद नहीं किया जा सकता है। हालाँकि हम अक्सर अंग्रेजी में "आकाश" का अनुवाद "आसमान" और "प्रकृति" का अनुवाद "कुदरत" के रूप में करते हैं। लेकिन इन का वास्तविक अर्थ हमारी आम धारणा और समझ से कहीं परे हैं।
संस्कृत में, "आकाश" की उत्पत्ति मूल शब्द "काश" से हुई है, जिसका अर्थ चमकना या दिखाई देना होता है। इसी प्रकार, "प्रकृति" को संसार की प्रत्येक वस्तु के मूल कारण के रूप में देखा जाता है। इसलिए, ये शब्द अपने सरल अंग्रेजी अनुवादों की तुलना में संस्कृत में अधिक गहरे अर्थ रखते हैं।
हमारी पूरी श्रृष्टि का निर्माण पाँच तत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और अंतरिक्ष (आकाश) से मिलकर हुआ है।
इन सभी पंचतत्वों में “अंतरिक्ष” को सबसे विशेष माना जाता है, क्योंकि यह एक ही समय में शून्य (nothing) और सब कुछ दोनों है। यह ख़ुद में शांत है, लेकिन बावजूद इसके यह बाकी सभी चीज़ों को भी चलने और जीने की क्षमता या अनुमति देता है। आकाश या ईथर एक ऐसा तत्व है, जो अन्य सभी तत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु) को कार्य करने में सक्षम बनाता है।
कुछ लोग अंतरिक्ष को आम भाषा में 'आकाश' भी कहते हैं। लोग मानते हैं कि अंतरिक्ष पहला और सबसे महत्वपूर्ण तत्व है। अंतरिक्ष अन्य तत्वों की तरह नहीं है, क्यों कि इसका कोई आकार, तापमान, रंग या दिशा नहीं है। यह बिल्कुल खाली है, लेकिन फिर भी हम अपने शरीर में और हर जगह इसकी अनुभूति कर सकते हैं।
'ईथर' या 'अंतरिक्ष' को कुछ दार्शनिक, आध्यात्मिक और औषधीय परंपराओं में एक मौलिक तत्व माना जाता है। संस्कृत में, ईथर को 'आकाश' के रूप में जाना जाता है और इसे योगिक और आयुर्वेदिक विचारों में भी प्राथमिक तत्व माना जाता है। होमरिक ग्रीक में αἰθήρ ( एइथर ) शब्द का अर्थ "शुद्ध, ताजी हवा" या "स्पष्ट आकाश" होता है। अन्य तत्वों के विपरीत, ईथर में पृथ्वी की दृढ़ता या आग की गर्मी जैसे विशिष्ट गुणों का अभाव होता है।
यह मूलतः 'शून्यता' का अवतार है।
ऐतिहासिक रूप से, मध्ययुगीन कीमियागर (Alchemists) लोग ईथर के बारे में मानते थे कि यह सीसे को सोने में बदल सकता है या जीवन प्रत्याशा भी बढ़ा सकता है। उन्होंने इसे 'क्विंटेसेंस (quintessence)' कहा, यह शब्द सितारों और आकाशगंगाओं जैसे आकाशीय पिंडों के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है।
प्राचीन यूनानियों ने ईथर को दिव्य और आध्यात्मिकता तथा अंतर्ज्ञान से जुड़ने का माध्यम माना। प्राचीन योगियों ने ईथर को असीमित और सर्वव्यापी, क्षमता का प्रतिनिधित्व के रूप में जाना।
आकाश की भाँति प्रकृति की मूल अवधारणा अथवा सीमा भी आम धारणा से एकदम अलग है। वास्तव में प्रकृति अपनी मूल परिभाषा के विपरीत वह सब कुछ है जो जीवित या जागरूक नहीं है। प्रकृति के तहत न केवल वे चीज़ें आती हैं, जिन्हें हम देख और छू सकते हैं, बल्कि हमारी भावनाएँ, विचार, सपने और स्मार्टनेस भी इसी के अंतर्गत आती हैं। पुरुष, प्रकृति का विपरीत होता है। यह हमारा वह हिस्सा है, जो जीवित और जागरूक है। यह किसी भी अन्य चीज़ पर निर्भर नहीं है। पुरुष, अक्सर प्रकृति के प्रति उत्सुक हो जाता है और उसमें ही फंस जाता है। यह उस व्यक्ति की तरह है जिसे एक नर्तकी से प्यार हो जाता है जो मुख्यतः एक अल्पकालिक आकर्षण का रूप है। जब ऐसा होता है, तो पुरुष भूल जाता है कि वह वास्तव में कौन है और इस प्रकार बाहर निकलने की कोशिश करना बंद कर देता है। आईये समझते हैं कि प्रकृति और पुरुष कैसे अलग हो सकते हैं?
धारणा कहती है कि प्रकृति और पुरुष को एक साथ नहीं होना चाहिए, और इसे ठीक करने का सबसे अच्छा तरीका तेजी से और दृढ़ता से प्रकृति से अलग होना ही है। इसलिए योग का सहारा लिया जाता है। योग प्रकृति से छुटकारा पाने और खुद को मुक्त करने के लिए कांटों से भरी झाड़ी में कूदने जैसा है। लेकिन वास्तव में यह आगे चलकर एक दीर्घकालिक शांतिपूर्ण और आतंरिक संतुष्टि से जीवन जीने का मार्ग है।
गुण बुनियादी लक्षण होते हैं, जो प्रकृति की भाँति हममें और हमारे विचारों सहित हर चीज़ में पाए जाते हैं।
इन गुणों को समझने के दो तरीके हैं।
1. दार्शनिक दृष्टिकोण: इसमें योग सूत्र जैसे प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन करना, प्रकृति के प्रमुख गुणों (प्रकृति) पर चर्चा करना और वे ब्रह्मांड के निर्माण की भूमिका पर चर्चा करना शामिल है। यह दृष्टिकोण बौद्धिक रूप से प्रेरक है लेकिन दैनिक जीवन में इसका व्यावहारिक अनुप्रयोग नहीं हो सकता है।
2. मनोवैज्ञानिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण: यह दृष्टिकोण इस बात पर अधिक केंद्रित है कि गुण हमारे मन, भावनाओं और दैनिक जीवन को कैसे प्रभावित करते हैं। यह योग की मनोवैज्ञानिक शिक्षाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
गुणों के काम करने की प्रकृति समझ लेने पर हमें खुद को बेहतर ढंग से समझने और जीवन की चुनौतियों से निपटने में मदद मिल सकती है।
तीन गुण (तमस, रजस और सत्व) - ब्रह्मांड में हर चीज में मौजूद प्रकृति के पहलू माने जाते हैं। वे उन मूल तत्वों या पैटर्न की तरह हैं, जिनसे बाकी सभी चीज़ों की उत्पत्ति हुई है।
इन तीन गुणों में:
- तमस जड़ता का प्रतिनिधित्व करता है और इसका प्रतीक काला रंग है।
- रजस गति का प्रतिनिधित्व करता है और विभिन्न रंगों, पारंपरिक रूप से लाल, का प्रतीक है।
- सत्त्व संतुलन का प्रतिनिधित्व करता है और इसका प्रतीक सफेद रंग है।
इन गुणों का उपयोग योग, आयुर्वेद और ज्योतिष जैसे विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है, और ये स्वयं को समझने के लिए एक व्यावहारिक दर्पण की भाँति काम करते हैं।
गुणों के अनुसार विभिन्न मनोदशाओं/भावनाओं को निम्नवत् दिया गया है:
- तामसिक अवस्था में आलस्य, घृणा, अवसाद आदि भावनाएं हावी होती हैं।
- राजसिक अवस्था में क्रोध, उत्साह, चिंता आदि भावनाएं प्रेरित होती हैं।
- सात्विक अवस्था में खुशी, आनंद आदि भावनाएं प्रेरित होती हैं।
संदर्भ
http://tinyurl.com/2zparbt9
http://tinyurl.com/bdbsyn4j
http://tinyurl.com/53p4b96e
चित्र संदर्भ
1. ब्रह्मांडीय ऊर्जा को संदर्भित करता एक चित्रण (Needpix)
2. पृथ्वी के निर्माण को दर्शाता एक चित्रण (wallpaperflare)
3. पञ्च तत्व को दर्शाता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
4. ग्रीक भगवान ईथर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. प्रकृति तत्वों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. विश्वकर्मा और मेनका को दर्शाता एक चित्रण (getarchive)
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