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‘भाव’ एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ मानसिक दृष्टिकोण या मानसिक स्वभाव है। भाव हमारी आंतरिक अनुभूति होती है। मनुष्य में प्रधान गुणों की प्रकृति के अनुसार, भाव तीन प्रकार के होते हैं; अर्थात, सात्विक भाव, राजसिक भाव और तामसिक भाव। सात्विक भाव दिव्य भाव है, जो शुद्ध भाव होता है। जिस प्रकार विचार, स्मृति या इच्छा को अभ्यास द्वारा विकसित किया जा सकता है, उसी प्रकार भाव को भी विकसित किया जा सकता है। एक बुरे भाव को अच्छे भाव में भी बदला जा सकता है। जबकि, मित्रता या शत्रुता का भाव एक मानसिक रचना है। यह हमारी आंतरिक अनुभूति या कल्पना है। मानसिक भाव के आधार पर किसी का बहुत पुराना घनिष्ठ मित्र भी, क्षण भर में घातक शत्रु बन सकता है।बुरे भाव के साथ बोला गया एक कठोर शब्द पलक झपकते ही किसी भी अच्छी स्थिति को पूरी तरह बदल सकता है। जब कोई विशेष विचार हमारे मन पर हावी हो जाता है, तो उस विचार की प्रकृति के अनुरूप, हमारे मन में एक मानसिक स्थिति या भाव आ जाता है। आइए, एक छोटा सा प्रयोग करते हैं। कुछ समय के लिए, अपने शत्रु के बारे में सोचें। इससे, एक शत्रु भाव प्रकट होगा। अब, दया या सार्वभौमिक प्रेम के बारे में सोचिए; ऐसी स्थिति में, एक प्रेम भाव या करुणा भाव प्रकट होगा। और, इसी तरह, अगर हम वृंदावन में भगवान श्री कृष्ण और उनकी लीलाओं के बारे में सोचते है, तो कृष्ण-प्रेम भाव प्रकट होता है।
भाव से जुड़ा हुआ एक अन्य शब्द ‘रस’ है। ‘रस’ भी संस्कृत शब्द है। श्रील प्रभुपाद ने अपने गुरु, श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर के उदाहरण का अनुसरण करते हुए, ‘रस’ का अनुवाद “मधुर” के रूप में किया है।दोनों आचार्य इस शब्द का उपयोग विशेषण होते हुए भी एक संज्ञा के रूप में करते हैं। इस प्रकार, वेइस शब्द का मानक अर्थ, जो “नरम, मीठा, पका हुआ स्वादिष्ट में फल है,” को यथार्थ रूप में चित्रित करते हैं। इस समझ के साथ, रस का एक अधिक कार्यात्मक (यद्यपि कम काव्यात्मक) अर्थ – “स्वाद” है।
‘स्वाद’ शब्द से हम केवल भोजन के स्वाद का संकेत नहीं देते, बल्कि, इस शब्द के व्यापक अर्थ में स्वाद का संकेत देते हैं। रस वह आनंद है, जो हमें किसी अनुभव या रिश्ते से प्राप्त होता है। इस प्रकार, रस, हम जो कुछ भी करते हैं, उसके लिए प्रेरणा है। हमारे सभी प्रयासों में, हम एक विशेष रस का आनंद लेने की इच्छा से कार्य करते हैं। सांसारिक दुनिया में, रस का अनुभव शारीरिक और सामाजिक दोनों तरह से किया जाता है। हमारी पांच इंद्रियां वांछनीय वस्तुओं के संपर्क में आकर, रस उत्पन्न करती हैं। उदाहरण के लिए, हम रसदार आम खाकर, गंगा नदी पर पूर्णिमा के उगते चंद्रमा को देखकर, या एक बच्चे के गर्म व मुलायम शरीर को सहलाकर एक निश्चित रस (स्वाद) का अनुभव कर सकते हैं। इनमें से प्रत्येक गतिविधि एक विशिष्ट भावना पैदा करती है, और एक अद्वितीय प्रकार का आनंद प्रदान करती है। ये भावनाएं भौतिक स्तर पर, रस का उदाहरण हैं।
भरत मुनि (200 ईसा पूर्व) के नाट्यशास्त्र में आठ रसों (भावनात्मक अवस्थाओं) की सूची मिलती है। तांत्रिक विद्वान और सौंदर्य दार्शनिक – अभिनवगुप्त द्वारा, इस सूची में नौवां रस भी जोड़ा गया था। अभिनेता और नर्तक नौ भावनाओं वाली चेहरे की मुद्राओ में पारंगत होते हैं, जिससे, वे एक अतिरंजित चेहरा बनाकर दर्शकों में नाटक से संबंधित भावनाओं को जागृत करने में सक्षम हो पाते हैं। रसों की इस सूची में, प्रेम/आकर्षण, हंसी, क्रोध, करुणा/दुख, घृणा, भय/आतंक, साहस/शौर्य, आश्चर्य और शांति, रस शामिल हैं।
भाव भी एक बहुत ही जटिल शब्द है। यह वह स्थिति है, जिससे भावना उत्पन्न होती है। प्रभाव एक संचार है, और भावात्मक गूंज के माध्यम से अन्य लोग जो हम अनुभव कर रहे हैं, उसके साथ प्रतिध्वनित होना शुरू कर देते हैं। इसका उपयोग प्राचीन काल से ही, नाटक और नृत्य प्रदर्शन में दर्शकों को उनकी भावनाओं के माध्यम से रंग मंच की यात्रा पर ले जाने के लिए किया जाता था। यदि अभिनेता या नर्तक भावनाओं का यथार्थ निरूपण करने में सक्षम होते थे, तो वे दर्शकों को उनकी भावनाओं के अनुभव में खींच लेते थे।
भरत मुनि के अनुसार, बिना रस के मंच पर कुछ भी, प्रदर्शित नहीं किया जा सकता। भरत ने भावों का विवरण भी इसी प्रकार दिया है। सरल अर्थ में, भाव वह भावना है, जो आनंद या अनुभव पैदा करता है, जो अपने आप में एक इकाई है। और, वह आनंद या अनुभव रस है। भाव तीन प्रकार के होते हैं, स्थायी भाव, संचारी भाव, और सात्विक भाव।
स्थायी भाव आठ प्रकार के होते हैं, जिनमें रति (प्रेम), खुशी, शोक (दुख), क्रोध, उत्साह, भय, जुगुप्सा (विमुखता) और विस्मय शामिल हैं। संचारी भाव 33 प्रकार के हैं, जिनमें निर्वैद (उदासी), ग्लानि (अवसाद), शंका (शक), असुया (ईर्ष्या), मद, शर्म, आलस्य, दैन्य (लाचारी), चिंता, मोह, स्मृति, साहस, गर्व आदि शामिल हैं। भाव की अभिव्यक्ति के साथ मंच पर बनाई गई कल्पना, दर्शकों के मन में रस पैदा करती है, और प्रदर्शन को पूरी तरह से सुखद बनाती है।
संदर्भ
http://tinyurl.com/2p8d2pvc
http://tinyurl.com/bdf5pyxb
http://tinyurl.com/22h7ak2c
http://tinyurl.com/4peb2xvj
चित्र संदर्भ
1. ‘भाव’ एवं ‘रस’ को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
2. भाव, रंगों और मनोदशा में संबंध को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
3. चेहरे के विविध भावों को संदर्भित करता एक चित्रण (picryl)
4. नृत्य और हस्तमुद्राओं की सम्मिलित अवस्थाओं को दर्शाता एक चित्रण (facebook)
5. रंगों के आधार पर चेहरे के भावों की अभिव्यक्ति को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
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