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एक समय में कॉफ़ी शॉप (Coffee Shop) केवल आराम से बैठकर कॉफ़ी पीने और शांति से थकान मिटाने की जगह तक ही सीमित नहीं थी। आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत में “इंडियन कॉफ़ी हाउस (Indian Coffee House)” नामक एक ऐसी रेस्तरां श्रृंखला भी है, जहां बैठे हुए लोगों में केंद्र सरकार की सत्ता को भी डगमगा देनें की क्षमता थी। यहां बैठकर लोग राजनीति और अर्थशास्त्र से लेकर सामाजिक मुद्दों पर भी चर्चा किया करते हैं। क्या आप जानते हैं कि हमारे अपने शहर लखनऊ के हजरतगंज में भी एक कॉफी हाउस है, जिसका हमारे देश की राजनीति और नामी राजनेताओं के साथ एक समृद्ध इतिहास रहा है।
लखनऊ में स्थित इंडियन कॉफ़ी हाउस की स्थापना 1938 में की गई थी। इसका उद्घाटन उस समय के राज्यपाल रहे “वराहगिरी वेंकट गिरी” द्वारा किया गया था। अपनी स्थापना के बाद से ही यह स्थान, कॉफ़ी का आनंद लेते हुए बौद्धिक चर्चाओं में रूचि रखने वाले बुद्धिजीवियों का पसंदीदा स्थान रहा है। अपनी कई विशेषताओं के कारण यह स्थान कवियों, लेखकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, कलाकारों, ट्रेड-यूनियन नेताओं (Trade-Union Leaders), राजनीतिक हस्तियों, चिकित्सकों और आम जनता के बीच तेजी से लोकप्रिय हो गया।
लखनऊ में स्थापित इस कॉफी हाउस में देश की स्थिति में सुधार के लिए विचारों के आदान प्रदान के साथ-साथ सरल मैत्रीपूर्ण और आम बातचीत भी की जाती थी। यह एक शांतिपूर्ण जगह थी, जहां अलग-अलग समाजों और पृष्ठभूमियों के लोग एक साथ आ सकते थे और एक कप कॉफी का लुफ्त उठाते हुए अपने विचार साझा कर सकते थे।
हज़रतगंज में एक विरासत स्थल (Heritage Site) के रूप में माना जाने वाला यह स्थान, अपनी शुरुआत से ही लखनऊ के आम और ख़ास दोनों वर्गों का एक पसंदीदा स्थान रहा है। इंडियन कॉफ़ी हाउस के नाम से प्रसिद्ध इस स्थान ने कई जानी-मानी हस्तियों की खातिरदारी नवाज़ी है। हालांकि आज भले ही इसे अंतरराष्ट्रीय कॉफी श्रृंखलाओं (International Coffee Chains) से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है, लेकिन इसके बावजूद यह स्थान लखनऊ के निवासियों के दिलों में एक विशेष स्थान रखता है। इसका मुख्य कारण शहर के बौद्धिक अभिजात वर्ग के बीच इसकी लोकप्रियता को माना जाता है। यह कॉफी हाउस राजनीति और पत्रकारिता के क्षेत्र में खूब नाम कमा चुकी हस्तियों का पसंदीदा स्थान माना जाता है।
लखनऊ के इंडियन कॉफ़ी हाउस का इतिहास कई रोचक किस्सों और कहानियों से भरा पड़ा है। ऐसी ही एक कहानी भारत में पूर्व अमेरिकी राजदूत, हैरी बार्न्स (Mr. Harry Barnes) की भी है, जो 1984 के दौरान इस कॉफ़ी हाउस में गए थे। दरअसल यहां आने के लिए उन्होंने अपनी आधिकारिक कार के बजाय, रिक्शे से आने का विकल्प चुना, जिससे इस जगह के प्रति लोगों का आकर्षण और अधिक बढ़ गया। इसके अलावा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके “वीर बहादुर सिंह” भी इस कॉफी हाउस में नियमित तौर पर आते रहते थे। यहां पर वह आम लोगों की समस्याओं के बारे में चर्चा करते थे। हालांकि ऐसा करना उस समय प्रोटोकॉल (Protocol) के खिलाफ माना जाता था, लेकिन फिर भी उनके इस व्यवहार को सद्भावना के संकेत के रूप में देखा जाता था। एक किस्सा यह भी है कि पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री, श्री चंद्र शेखर भी इंडियन कॉफ़ी हाउस में अक्सर आया करते थे, और यहां पर उनके बैठेने के लिए एक निश्चित मेज निर्धारित की गई थी। ये सभी किस्से और कहानियां हमारे लखनऊ के कॉफ़ी हाउस के समृद्ध इतिहास को बयां करती हैं, तथा इसके आकर्षण को और भी बड़ा देती हैं।
इन सभी के अलावा देश भर में फैले इंडियन कॉफ़ी हाउस, कई अन्य प्रतिष्ठित हस्तियों जैसे पंडित जवाहर लाल नेहरू, डॉ. राम मनोहर लोहिया, फ़िरोज़ गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, आचार्य नरेंद्र देव, अमृत लाल नागर,अली ज़हीर, रतन सिंह, बशेशर प्रदीप, राम लाल, यशपाल, विद्यासागर, चन्द्रशेखर, भगवती चरण वर्मा, बिशन कपूर, एन.डी. तिवारी, आबिद सोहेल, लालजी टंडन, मजाज़ लखनवी जैसी हस्तियों की मेहमान नवाजी भी कर चुके हैं। लखनऊ का कॉफ़ी हाउस उस समय में गंभीर सामाजिक, राजनीतिक और साहित्यिक गतिविधियों का केंद्र हुआ करता था। आज भी इसकी दीवारें, रंगीन ग्लास पैनल (Colored Glass Panels) वाले दरवाजे और खासतौर पर यहां की कॉफी, शहर के समृद्ध इतिहास की गवाही देते हैं। हालांकि पिछले छह दशकों में अपने बकाया बिजली बिल और बिक्री कर जैसे विभिन्न कारणों से यह कई बार बंद भी हो चुका है, लेकिन बिशन कपूर, राजनाथ सिंह और वीर बहादुर सिंह जैसे संरक्षकों ने इसकी डूबती नैय्या को हमेशा पार लगाया है। उन्होंने इस स्थान के महत्व और शहर की सांस्कृतिक विरासत में इसकी भूमिका को बखूबी समझा है। आज हमारे शहर में कई ऐसे ट्रेंडी कैफे (Trendy Cafe) खुल चुके हैं, जो युवाओं और वृद्धों सहित हर उम्र और हर वर्ग के लोगों को आकर्षित करते हैं। हालांकि इन आधुनिक रेस्तोरां में एक कप कॉफी के लिए ऊंची कीमत वसूली जाती हैं, जिससे कॉफी भी एक विलासिता जैसी प्रतीत होते हैं। इसके विपरीत हमारे पारंपरिक कॉफी हाउस में लगभग 30 रुपये में एक कप कॉफी मिल जाती है, लेकिन इसके बावजूद ये कॉफ़ी हाउस, नए जमाने के ट्रेंडी कैफे से कड़ी प्रतिस्पर्धा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। भले ही आज पूरी दुनियां में कॉफ़ी शृंखलाएँ फल-फूल रही हैं, किंतु आज इंडियन कॉफ़ी हाउस श्रंखला ख़त्म हो रही है। कई लोग उन पुराने दिनों को याद करते हुए भावुक हो जाते हैं, जब इन स्थानीय कॉफ़ी हाउसों में 'अड्डा' जम जाया करता था।
संदर्भ
http://tinyurl.com/4u8bu68w
http://tinyurl.com/5x9k8nwc
http://tinyurl.com/3a9a3x28
चित्र संदर्भ
1. लखनऊ के इंडियन कॉफ़ी हाउस और श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia, youtube)
2. लखनऊ के हजरतगंज के इंडियन कॉफ़ी हाउस को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
3. दिल्ली के कॉफी हाउस दर्शाता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
4. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके “वीर बहादुर सिंह" को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
5. इंडियन कॉफ़ी हाउस को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. मेहमानों से गुलज़ार इंडियन कॉफ़ी हाउस को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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