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कैद (जेल) अपने शुद्ध और सरलतम रूप में एक प्रकार की क्रूर सजा है, जिसका उद्देश्य मुख्य रूप से अपराधी को उसकी स्वतंत्रता से वंचित करना है, जो कि एक व्यक्ति के लिए सबसे गंभीर क्षति हो सकती है। न्याय के सुधारवादी सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक अपराधी को बुराई को दूर करने, एक नई शुरुआत करने और एक ईमानदार जीवन जीने का मौका होना चाहिये जो कि मौलिक मानवीय गरिमा, आवश्यक संवैधानिक और मानवाधिकार के अनुरूप है।
वैदिक काल में चोरी, हत्या और व्यभिचार जैसे अपराधों का उल्लेख तो मिलता है लेकिन कारागार शब्द कम ही सुनने को मिलता है। ऐसा कुछ भी नहीं है जो यह दर्शाता हो कि राजा या न्यायाधीश के रूप में अधिकृत व्यक्ति को आपराधिक या नागरिक मामलों में कोई न्यायिक निर्णय पारित करने की शक्ति है। हालांकि हिंदू धर्मग्रंथों में गलत काम करने वाले व्यक्ति या दुष्कर्मी को समाज से अलग करने के लिए जेल में डालने की सजा का सुझाव दिया गया था । लेकिन प्राचीन समय में, भारत में जेल केवल एक ऐसा स्थान था जहां एक अपराधी को उसके मुकदमे और फैसले के निष्पादन तक हिरासत में रखा जाता था। प्राचीन काल में समाज की संरचना मनु द्वारा प्रतिपादित तथा याज्ञवल्क्य, कौटिल्य एवं अन्य द्वारा व्याख्या किये गये सिद्धांतों पर आधारित थी। कारावास, फाँसी, अंग-भंग और मौत जैसे विभिन्न प्रकार के शारीरिक दंडों के बीच कारावास सबसे आसान प्रकार का दंड था। हालांकि कारावास का मुख्य उद्देश्य गलत कार्य करने वालों को समाज से दूर रखना था। अतः ये जेलें पूरी तरह से अंधेरी, ठंडी और नम थीं। वहां साफ-सफाई की भी उचित व्यवस्था नहीं थी और इनमें मानव निवास के लिए कोई सुविधा का साधन नहीं था। प्राचीन समय में जुर्माना, कारावास, निर्वासन, अंग-भंग और मौत की सजा दंड के कुछ तरीके थे।
जुर्माना सबसे आम दंड था और जब कोई व्यक्ति भुगतान करने में सक्षम नहीं होता था, तो उसे तब तक बंधन में रखा जाता था जब तक कि वह अपने श्रम से भुगतान न कर दे। हिंदू धर्मग्रंथों में कानून एवं जेल जीवन का कुछ विवरण भी दिया गया है। धर्मग्रंथों के अनुसार जो व्यक्ति कैदी को जेल से भागने में सहायता करता था, वह मृत्युदंड का भागी होता था। उस व्यक्ति के लिए भी कारावास की सजा का प्रावधान था जो किसी व्यक्ति की आंख को चोट पहुंचाता था। जेल के अधीक्षक को भंडानगराध्यक्ष और सहायक को कर्क के नाम से जाना जाता था। जेल विभाग सन्निधाता के अधीन कार्य करता था। हर्षचरित से भी पता चलता है कि कैदियों की स्थितियाँ संतोषजनक नहीं थीं। हालांकि युद्ध और शाही राज्याभिषेक के समय कैदियों को जेल से रिहा कर दिया जाता था। ह्वेनसांग के अनुसार कैदियों के साथ व्यवहार सामान्यतः कठोर होता था।
मध्यकालीन भारत में अपराधों को तीन समूहों में विभाजित किया गया था: ईश्वर के विरुद्ध अपराध, राज्य के विरुद्ध अपराध, व्यक्ति के विरुद्ध अपराध। सामान्य अपराध के मामले में कारावास की सजा का प्रावधान नहीं था। कारावास की सजा का प्रयोग अधिकतर नजरबंदी के साधन के रूप में ही किया जाता था।
देश के विभिन्न हिस्सों में ऐसे किले थे जिनमें उन अपराधियों को हिरासत में लिया जाता था जिनका मुकदमा और फैसला लंबित होता था। मुगल भारत में तीन महान जेलें या महल थे: एक ग्वालियर में, दूसरा रणथंभौर में और अंतिम रोहतास में। कारावास के कैदियों के लिए केवल विशेष अवसरों पर ही रिहाई का आदेश जारी किया जाता था। गंभीर अपराधों की सजा काटने वाले अपराधियों के लिए विशिष्ट कैदखाने होते थे जिनको बंदीखाना या अदब खाना के नाम से जाना जाता था।
जबकि हमारे देश की वर्तमान जेल व्यवस्था ब्रिटिश (British) शासन की देन है। यह व्यवस्था हमारे औपनिवेशिक शासकों द्वारा बनाई गई स्थानीय दंड व्यवस्था की एक रचना थी, जिसका उद्देश्य अपराधियों के लिए कारावास को आतंक का पर्याय बनाना था। 1784 में ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) द्वारा भारत पर प्रशासनिक शक्ति प्राप्त करने के बाद कानून और न्याय प्रशासन में सुधार लाने के लिए भी कुछ प्रयास किए गए। उस समय भारत में 143 सिविल जेल, 75 आपराधिक जेल और 68 मिश्रित जेल मौजूद थीं। ये जेलें मुगल शासन का विस्तार थीं जिनका प्रबंधन ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा किया जाता था।
ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा जेल नीति केवल औपनिवेशिक हितों की पूर्ति के उद्देश्य से आसानी से तैयार की गई थी। 1835 में लॉर्ड मैकाले Lord Macaulay ने भारतीय जेलों की अस्वीकार्य स्थितियों की ओर भारत की विधान परिषदों का ध्यान आकर्षित किया और भारतीय जेलों की स्थिति से संबंधित जानकारी एकत्र करने और जेल अनुशासन की बेहतर योजना तैयार करने के उद्देश्य से एक समिति नियुक्त करने का प्रस्ताव रखा।
भारत की विधान परिषदों ने लॉर्ड मैकाले के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और 'जेल अनुशासन समिति' नियुक्त की। इस समिति ने 1838 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। यह जाँच समिति भारत में दंड प्रशासन के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुई। इसके बाद जेल संस्था का अर्थ, और स्वरूप दोनों बदल गए और अपराधियों के साथ अलग व्यवहार भी किया जाने लगा। हालांकि यह बदलाव मूलतः दंडात्मक प्रकृति का था।
समिति की सिफारिशों के अनुसरण में 1846 में आगरा में एक केंद्रीय कारागार की स्थापना की गई। यह भारत की पहली केंद्रीय कारागार थी, इसके बाद 1848 में बरेली में और इलाहाबाद में एक केंद्रीय कारागार की स्थापना की गई। इसके बाद 1852 में लाहौर में, 1857 में मद्रास में, 1864 में बंबई, अलीपुर, बनारस और फतेहगढ़ में और 1867 में लखनऊ में केंद्रीय कारागार की स्थापना की गई। हमारे देश में जेल प्रशासन में जेल सुधारों के इतिहास में यह एक सकारात्मक योगदान था। 1884 में उत्तर पश्चिमी प्रांत में प्रयोगात्मक आधार पर जेल के पहले महानिरीक्षक को दो साल के लिए नियुक्त किया गया और कार्यकाल आगे बढ़ाया गया।1850 में भारत सरकार ने इस पद को स्थायी पद बना दिया और यह भी सिफारिश की कि प्रत्येक प्रांत को एक जेल महानिरीक्षक नियुक्त किया जाना चाहिए।
1862 में उत्तर पश्चिमी प्रांत में सिविल सर्जन को जिला जेलों के अधीक्षक के रूप में नियुक्त किया गया। 1870 में भारत सरकार द्वारा जेल अधिनियम पारित किया गया, जिसमें कहा गया था कि प्रत्येक जेल में स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार एक अधीक्षक, एक चिकित्सा अधिकारी, एक जेलर और कुछ अन्य अधीनस्थ (subordinate) अधिकारी होने चाहिए। इस अधिनियम में जेल अधिकारियों के कर्तव्यों को भी निर्दिष्ट और वर्गीकृत किया गया। यह अधिनियम पुरुष कैदियों को महिला कैदियों से अलग करने, बाल अपराधियों को वयस्क अपराधियों से अलग करने और अपराधी को नागरिक अपराधियों से अलग करने से संबंधित प्रावधान भी प्रदान करता है। इसके बाद 1877 और 1889 में चौथी जांच समिति का गठन किया गया। समितियों की सिफ़ारिशों पर जेल अधिनियम 1894 पारित किया गया।
1919 में ब्रिटिश सरकार द्वारा जेलों के रख रखाव में सुधार के लिए एक संयुक्त आयोग का गठन किया गया। आयोग की रिपोर्ट में अपराधियों के अंडमान द्वीप तक परिवहन पर भी कुछ प्रकाश डाला गया और इस प्रथा को रोकने की सिफारिश की गई। इस रिपोर्ट के बाद एकान्त कारावास भी समाप्त कर दिया गया। जेलों में पुस्तकालय भी स्थापित किए गए थे। भोजन की गुणवत्ता में भी सुधार किया गया तथा बंदियों को दो जोड़ी कपड़े उपलब्ध कराए जाने लगे। वास्तव में इस समिति का मुख्य विचार या उद्देश्य कैदियों का सुधार था। लेकिन भारत सरकार अधिनियम, 1919 द्वारा जेल विभाग का नियंत्रण भारत सरकार से प्रांतीय सरकार को स्थानांतरित कर दिया गया जिससे संवैधानिक परिवर्तनों के कारण इस जेल सुधार प्रणाली में अचानक रुकावट आ गई।
स्वतंत्रता के बाद भारत में जेल सुधारों में वृद्धि हुई। भारतीय संविधान के तहत जेल प्रशासन भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची में राज्य सूची के तहत उप सूची 4 के अंतर्गत आने वाला एक राज्य विषय है, जो जेल अधिनियम,1894 और संबंधित राज्य सरकारों के जेल नियम सूची द्वारा शासित होता है।इस प्रकार, मौजूदा जेल कानूनों, नियमों और विनियमों को बदलना राज्यों की प्राथमिक जिम्मेदारी और अधिकार है। केंद्र सरकार राज्यों को जेलों की सुरक्षा में सुधार, पुरानी जेलों की मरम्मत और नवीकरण, चिकित्सा सुविधाओं, बोर्स्टल स्कूलों के विकास, महिला अपराधियों को सुविधाएं, व्यावसायिक प्रशिक्षण, जेल उद्योगों के आधुनिकीकरण, जेल कर्मियों को प्रशिक्षण तथा उच्च सुरक्षा घेरे के निर्माण के लिए सहायता प्रदान करती है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau (NCRB) द्वारा 2021 में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार, 2021 तक भारतीय जेलों में 77% कैदी ऐसे थे जिन पर मुकदमे चल रहे थे, जबकि केवल 22% कैदी ही दोषी थे। 5,54,000 कैदियों में से 4,27,000 कैदी मुकदमे की प्रतीक्षा कर रहे थे, जिनमें से 24,033 विचाराधीन कैदी पहले से ही तीन से पांच साल तक की सजा काट चुके थे। जेलों की अधिभोग दर 130% थी।
यह तो हो गई भारत में जेलों एवं उनमें कैदियों की स्थिति की समीक्षा, आइए अब हम आपको विश्व की जेलों में बंद कैदियों की संख्या के आंकड़े बताते हैं। विश्व जेल जनसंख्या सूची के ग्यारहवें संस्करण में अक्टूबर 2015 के अंत तक उपलब्ध नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, स्वतंत्र देशों और आश्रित क्षेत्रों में 223 जेल प्रणालियों में बंद कैदियों की संख्या का विवरण दिया गया है जो दुनिया भर में कारावास के स्तरों में अंतर को दर्शाता है। इन आंकड़ों में वे दोनों कैदी शामिल हैं जो विचाराधीन है और जिन्हें दोषी ठहराया गया है और सजा सुनाई गई है।
आंकड़ों के अनुसार, दुनिया भर में 10.35 मिलियन से अधिक लोग जेलों में बंद हैं, जिनमें से सबसे अधिक संयुक्त राज्य अमेरिका (United States of America) में (2.2 मिलियन से अधिक) हैं। सेशेल्स (Seychelles) में सबसे अधिक जेल (कुल जनसंख्या पर प्रति 100,000 पर 799) हैं। इसके बाद संयुक्त राज्य अमेरिका (698), सेंट किट्स एंड नेविस (607), तुर्कमेनिस्तान (583), और यूएस वर्जिन आइलैंड्स (542) का स्थान है। वर्ष 2000 के बाद से महिला कैदियों की संख्या में वृद्धि हुई है, जबकि पुरुष कैदियों की संख्या में 18% की वृद्धि हुई है।
संदर्भ
https://rb.gy/cknw13
https://rb.gy/nda7y7
https://rb.gy/2ziqsq
चित्र संदर्भ
1. जेल में कैद श्री कृष्ण के माता-पिता और आधुनिक जेल को दर्शाता एक चित्रण (picryl, wikimedia)
2. कृष्ण अर्जुन के माध्यम से राजाओं को कारागार से मुक्ति दिला रहे हैं, इस दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. एक व्यक्ति को पीटते अधिकारीयों दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. हथकड़ी को दर्शाता एक चित्रण (PxHere)
5. कलकत्ता की जेल को दर्शाता एक चित्रण (World History Encyclopedia)
6. काला पानी की जेल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
7. हथकड़ी बांधे कैदी संदर्भित करता एक चित्रण (LatestLY)
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