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लखनऊ शहर के नजदीक में ही आपको दो विशाल लेकिन पुरानी और क्षतिग्रस्त इमारतें दिखाई देंगी। इनमें से पहली को बिलहेरा महल और दूसरी इमारत को महमूदाबाद महल के रूप में पहचाना जाता है। बिलहेरा और महमूदाबाद महल, हमारे राज्य उत्तर प्रदेश के एक ही शहर महमूदाबाद में मौजूद दो अलग-अलग इमारतें हैं। इनका निर्माण, महमूदाबाद के नवाबों के ही परिवार की दो अलग-अलग शाखाओं, द्वारा किया गया था। एक समय में इन दोनों इमारतों का मालिकाना हक़ महमूदाबाद के राजा के पास था। हालाँकि, 1947 में भारत के विभाजन के दौरान इस शिया राजा द्वारा लिए गए कई निर्णयों ने इस शाही परिवार और इसकी खूबसूरत इमारतों की प्रतिष्ठा को काफी नुकसान पंहुचा दिया।
महमूदाबाद, जिसे महमूदाबाद अवध के नाम से भी जाना जाता है, सीतापुर जिले में स्थित एक शहर है, और लखनऊ से 52 किमी दूर है। आप उत्तर प्रदेश के किसी भी शहर या कस्बे से सड़क मार्ग द्वारा महमूदाबाद पहुंच सकते हैं। यहां का निकटतम हवाई अड्डा भी हमारे लखनऊ में है, जो महमूदाबाद से लगभग 60 किमी दूर है। आज़ादी से पहले महमूदाबाद एस्टेट, अवध साम्राज्य की सबसे बड़ी सामंती जागीरों में से एक हुआ करती थी। भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान, यह क्षेत्र अवध राज्य का हिस्सा था। महमूदाबाद के अंतिम शासक मोहम्मद अमीर अहमद खान मुस्लिम लीग के प्रमुख सदस्य और जिन्नाह के करीबी दोस्त थे, जिन्होंने पाकिस्तान के निर्माण में अहम् भूमिका निभाई थी। 1962 में, वह अपने छोटे बेटे और वारिस को लखनऊ में छोड़कर पाकिस्तान चले गए।
इसके बाद भारत सरकार ने महमूदाबाद की बड़ी संपत्तियों को "शत्रु संपत्ति" मानकर उन्हें अपने कब्जे में ले लिया। जब 1974 में लंदन में उनकी मृत्यु हो गई, तो उनके बेटे राजा “मोहम्मद अमीर खान” ने उनकी विरासत वापस पाने के लिए कानूनी लड़ाई शुरू कर दी। सितंबर 2005 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को उनकी संपत्तियाँ वापस देने का आदेश दिया। उनके बेटे अली खान महमूदाबाद, अशोक विश्वविद्यालय में इतिहास और राजनीति विज्ञान के शिक्षक हैं। उनके दूसरे बेटे का नाम अमीर खान महमूदाबाद है। मोहम्मद खान महमूदाबाद किले में अपने घर और दिल्ली में एक किराए के अपार्टमेंट, दोनों स्थानों पर बारी-बारी से रह रहे हैं।
मोहम्मद अमीर और मोहम्मद खान ने अपने जीवन का अधिकांश समय अपनी पारिवारिक संपत्तियों को वापस पाने के लिए सरकार के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ते हुए बिताया। इन संपत्तियों को सरकार ने 'शत्रु संपत्ति अधिनियम' नामक कानून के तहत अपने अधिकार में ले लिया था। यह कानून 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद बनाया गया था और इसने सरकार को ऐसे भारतीय जो 1947 में पाकिस्तान चला गया था, की संपत्ति को अपने कब्जे में लेने की अनुमति दी थी।
भले ही मोहम्मद खान एक भारतीय नागरिक हैं और एक निर्वाचित विधायक रहे हैं, फिर भी उनकी पारिवारिक संपत्तियों को 'शत्रु संपत्ति' माना जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि उनके पिता 1957 में पाकिस्तानी नागरिक बन गए थे।
खान के पिता एक कवि और राजनीतिज्ञ और मुस्लिम लीग के सदस्य थे। भारत के आज़ाद होने के बाद उन्होंने भारत छोड़ दिया और 10 वर्षों तक इराक में ही रहे, फिर थोड़े समय के लिए पाकिस्तान चले गए, और अंत में लंदन में बस गए। 1973 में अपनी मृत्यु तक वह लंदन में ही रहे। उनके पीछे छूट चुके मोहम्मद खान और उनकी मां ने पाकिस्तान न जाने का फैसला किया। लेकिन, 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के कारण उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में मौजूद उनकी अधिकांश संपत्ति सरकार ने अपने कब्ज़े में ले लिया। (add video link here) लेकिन 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि अगर कोई व्यक्ति भारतीय नागरिक और कानूनी उत्तराधिकारी है तो वह इस संपत्ति का उत्तराधिकारी हो सकता है।
मोहम्मद खान बताते हैं कि उनकी माँ को सरकार द्वारा एक कमरा लेने की अनुमति देने से पहले कई महीनों तक बरामदे में ही रहना पड़ा था। हालंकि संसद के पिछले सत्र में सरकार ने 2005 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को रद्द करने के लिए कानून में बदलाव करने की कोशिश की। इस कानून को बदलने की कोशिश इसलिए की जा रही है, ताकि अदालतों के बजाय सरकार यह तय कर सके कि जो लोग पाकिस्तान चले गए, उनकी संपत्ति का मालिक कौन होगा। हालांकि अभी तक यह बदलाव नहीं किया गया है। इस वजह से, खान को अपनी संपत्ति अभी तक उन्हें वापस नहीं दी गई हैं।
राजा महमूद खान ने 1677 में महमूदाबाद महल का निर्माण कराया। यह महल 20 एकड़ के बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है और अवध महल वास्तुकला का एक शानदार उदाहरण माना जाता है। इसका उपयोग मुगलों के समय और बाद में ब्रिटिश शासन के दौरान महमूदाबाद के शासकों के लिए एक महत्वपूर्ण कार्यालय और घर के रूप में किया जाता था। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से पहले यह एक महत्वपूर्ण स्थान हुआ करता था, लेकिन उस समय अंग्रेजों ने इसे पूरी तरह से नष्ट कर दिया था।
लखनऊ से कुछ ही दूरी पर मौजूद बिलेहरा महल को भी इंडो-यूरोपीय रीजेंसी वास्तुकला (Indo-European Regency Architecture) का एक उल्लेखनीय उदाहरण माना जाता है। यह महल 1918 में स्पेनिश फ्लू महामारी (Spanish Flu Pandemic) के कारण बिलेहरा के अंतिम राजा, अबुल हसन खान के निधन के बाद से काफी हद तक अछूता रहा है। तब से महल के मुख्य कमरों का उपयोग नहीं किया गया था। उनकी मृत्यु के बाद उनकी तीन बेटियाँ भारत के इस सबसे पुराने शिया राजवंशों में से एक की एकमात्र उत्तराधिकारी बन गईं।
अंग्रेजों को संपत्ति पर नियंत्रण करने से रोकने के लिए उनकी सबसे बड़ी बेटी, कनिज़ आबिद, बिलेहरा की रानी बन गईं। उन्होंने अपने चचेरे भाई से शादी की, अपने परिवार को महमूदाबाद के शक्तिशाली पड़ोसी राजाओं के साथ एकजुट किया और उन्होंने बिलेहरा पर किसी भी ब्रिटिश अधिकारीयों को अपना हक़ जमाने से रोक दिया। हालाँकि, ये दोनों महल कभी महमूदाबाद के राजा के स्वामित्व में थे।
यह महल अपने आप में इंडो-यूरोपीय रीजेंसी वास्तुकला का एक उल्लेखनीय उदाहरण है। इसका निर्माण 1835 और 1865 के बीच बिलेहरा के दो राजाओं द्वारा किया गया था। महल का निर्माण लाखौरी ईंटों और गारे से किया गया था। महल के सफ़ेद पुते बरामदे में आधी-अधूरी भव्यता का आभास होता है। आंतरिक भाग विक्टोरियन पार्लर (Victorian Parlor) की कुर्सियों और युवा राजकुमारों की चित्रित तस्वीरों से भरा हुआ है। शयनकक्षों को फ़िरोज़ा स्टेंसिलिंग (Turquoise Stenciling) से सजाया गया है, आज भी यह पूरा महल लगभग उतना ही जिवंत नजर आता है जितना कि 1840 के दशक में दिखाई देता था।
संदर्भ
Https://Tinyurl.Com/4nnzwevm
Https://Tinyurl.Com/Nw798rrw
Https://Tinyurl.Com/Muuv6ycc
Https://Tinyurl.Com/Bpapbm67
Https://Tinyurl.Com/5fzfsrs8
Https://Tinyurl.Com/4f7xv78j
चित्र संदर्भ
1. महमूदाबाद महल के दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (youtube, wikimedia)
2. ऊपर से महमूदाबाद महल को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
3. बाहर से महमूदाबाद महल को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
4. महमूदाबाद महल की आंतरिक सुंदरता को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
5. बिलहेरा महल को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
6. बिलहेरा के जर्जर किले को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
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