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अरबी(Arabic) एवं हिब्रू(Hebrew) दोनों सेमेटिक भाषाएं(Semitic languages) हैं, और इनमें बहुत समानताएं हैं। सेमिटिक भाषाएं अफ्रीकी–एशियाई(Afroasiatic language) भाषा परिवार की एक शाखा हैं। उनमें अरबी, अम्हारिक्(Amharic), हिब्रू और कई अन्य प्राचीन और आधुनिक भाषाएं शामिल हैं। वे पश्चिम एशिया, हॉर्न ऑफ अफ्रीका(Horn of Africa) और बाद में उत्तरी अफ्रीका, माल्टा(Malta), पश्चिम अफ्रीका, चाड(Chad) और अन्य देशों में 330 मिलियन से अधिक लोगों द्वारा बोली जाती हैं। साथ ही, उत्तरी अमेरिका, यूरोप और आस्ट्रेलिया(Australia) में बड़े अप्रवासी और प्रवासी समुदाय इसे बोलते हैं।
हालांकि, अरबी भाषा, हिब्रू की तुलना में व्यापक भाषा है, जिसमें बहुत अधिक शब्दावली है। यहां हम, इन भाषाओं के विस्तार के क्रम के बारे में बात कर रहे हैं। दरअसल, इसके कारण जटिल एवं विवादास्पद हैं। हालांकि, दोनों भाषाओं का अध्ययन करने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए, यह काफी स्पष्ट और निर्विवाद है। अतः आज हम इसके बारे में जानने का प्रयास करेंगे।
सबसे पहले, हिब्रू शब्द “शालोम(Shalom)” पर नजर डालते हैं।इसका उपयोग “शांति” के अर्थ में किया जाता है, जैसे कि, विश्व शांति। लेकिन, इसका उपयोग बोलचाल की भाषा में भी किया जाता है, जैसे कि, “माह श्लोम्खा”– आप कैसे हैं या आपकी पूर्णता की स्थिति क्या है? दूसरी ओर, अरबी शब्द “सलाम” एक ही समय में समान और अलग, बड़ा या छोटा अर्थ बयां कर सकता है। दरअसल, इसका भी अर्थ शांति ही है। हिब्रू मूल का उपयोग, एक ही मूल से कई अधिक शब्द बनाने के लिए किया जा सकता है, और ये शब्द “शांति” के विचार से काफी भिन्न प्रतीत होंगे। अरबी में तीन-अक्षर वाले मूल शब्द एसएलएम (SLM) का अर्थ “समर्पण” भी हो सकता है। यह एक जटिल मूल शब्द है।दरअसल, इस्लाम शब्द स्वयं इस मूल से आता है, और इसका अर्थ (आत्म) समर्पण है।
इस्लाम शायद दुनिया का एकमात्र ऐसा धर्म है, जिसके नाम का अर्थ ही उसकी “विचारधारा” है और उसकी विचारधारा का नाम ही, शांति और सर्वशक्तिमान ईश्वर के प्रति समर्पण है। इस्लाम, सलाम, और शालोम इन सभी शब्दों का मतलब दरअसल, शांति ही हैं!
यहां हम आपको बता दें कि,हिब्रू और बोली जाने वाली अरबी भाषा दरअसल, समान नहीं हैं। बहुत से लोग सोचते हैं कि, वे काफी समान हैं।और वास्तव में यह तथ्य भी है। हिब्रू और बोली जाने वाली अरबी के बीच निश्चित रूप से कई समानताएं हैं। इसमें साझा किए गए शब्द हैं, कुछ सामान्य व्याकरण संबंधी अवधारणाएं तथा समान स्वर आदि समानताएं पाई जा सकती हैं।
हिब्रू और अरबी दोनों तीन-अक्षर वाले मूल शब्द समूह की प्रणाली पर निर्भर हैं। तीन अक्षरों के समूह या “त्रिअक्षर मूल”, क्रिया और संज्ञा के रूप का आधार हैं। इसका मतलब है कि, आप शब्दों के समूहों में अक्षरों के समान समूह को संबंधित अर्थों के साथ देखेंगे। एक विशिष्ट उदाहरण: आप लेखन (क्रिया), लेखकों, पुस्तकों, कार्यालयों और पुस्तकालयों से संबंधित शब्दों में अक्षरों का एक ही समूह (दोनों भाषाओं में) पा सकते हैं।
कुछ संयोजन स्वरूप, हिब्रू और अरबी के बीच अधिव्याप्त होते हैं। हिब्रू और अरबी में भूत और भविष्य काल काफी समान हैं। लेकिन वर्तमान काल बिल्कुल अलग है।हिब्रू और अरबी वर्णमाला के कुछ अक्षर काफ़ी मिलते–जुलते हैं। कुछ अक्षर एक जैसे दिखते हैं, या उनके नाम भी एक जैसे हैं। इसके साथ ही, कुछ हिब्रू और अरबी शब्द समान हैं। शुरुआती या मध्यवर्ती स्तर पर, “रात”, “चार”, “घर” और “तारीख” के लिए शब्द समान हैं। हालांकि, इनका उच्चारण थोड़े अलग ढंग से किया जाता है।
हिब्रू और अरबी की दैनिक, गैर-धार्मिक भाषा में, स्वर नहीं लिखे जाते हैं।इसके अलावा, हिब्रू और अरबी दोनों का एक “शास्त्रीय” रूप भी है। यह बोली जाने वाली हिब्रू और अरबी की तुलना में बहुत अधिक औपचारिक है। इन शास्त्रीय रूपों को सभी स्वरों में लिखा भी जाता है और अधिकतर धार्मिक परिस्थितियों में इसका उपयोग भी किया जाता है।जबकि, हिब्रू और अरबी दोनों दाए से बाए लिखी जाती हैं।
यहां एक अन्य मुद्दा भी महत्त्वपूर्ण है, और वह अरबी भाषा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का है। क्या आप जानते हैं कि, ‘तक्षशिला का अरामी शिलालेख(Aramaic inscription of Taxila)’ संगमरमर पर बनाया गया एक शिलालेख है, जो मूल रूप से एक अष्टकोणीय स्तंभ से संबंधित है। इसे 1915 में, ब्रिटिश भारत के तक्षशिला में सर जॉन मार्शल (Sir John Marshall) द्वारा खोजा गया था। यह शिलालेख संभवतः 260 ईसा पूर्व के आसपास भारतीय सम्राट अशोक द्वारा अरामी भाषा में लिखा गया था, और इसे अक्सर ‘लघु शिलालेखों में से एक’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है। चूंकि, अरामाइक (अरामी) फ़ारसी अचमेनिद साम्राज्य (Iran) की आधिकारिक भाषा थी, अनुमान है कि, यह शिलालेख सीधे तौर पर इस प्राचीन साम्राज्य की आबादी को संबोधित किया गया था, जो उस समय उत्तर-पश्चिमी भारत में या सीमा पर मौजूद थे।
वैसे, सम्राट अशोक के शिलालेखों पर संदेश देने के लिए, सामान्यतः तीन भाषाओं का प्रयोग किया जाता था, प्राकृत, ग्रीक(Greek) और अरामी। जबकि, चार लिपियों का प्रयोग किया जाता था। ये शिलालेख प्राकृत भाषा के गैर-मानकीकृत एवं पुरातन रूपों में लिखे गए हैं। प्राकृत शिलालेख ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपियों में लिखे गए थे, जिन्हें एक सामान्य व्यक्ति भी पढ़ और समझ सकता था।
अरामी भाषा को यीशु मसीह द्वारा बोली जाने वाली भाषा के रूप में भी जाना जाता है। यह मध्य यूफ्रेट्स(Euphrates) में उत्पन्न हुई, एक सेमिटिक भाषा है। फिर 800-600 ईसा पूर्व में, यह वहां से सीरिया(Syria) और मेसोपोटामिया(Mesopotamia) तक फैल गई। इस भाषा के सबसे पुराने संरक्षित शिलालेख, इसी काल के हैं और पुरातन अरामी भाषा में लिखे गए हैं। फ़ारसी साम्राज्य में, अरामी आधिकारिक भाषाओं में से एक बन गई, जिसे आज पुरातन बाइबिल अरामी(Biblical Aramaic) के नाम से जाना जाता है।
ईसा मसीह के जन्म के बाद, अरामी बोलियों का उपयोग यहूदियों, ईसाइयों और ग्नोस्टिक(Gnostic) समूहों द्वारा साहित्यिक भाषा के रूप में किया गया था। ये बोलियां अभी भी यहूदियों तथा ईसाइयों द्वारा एक धार्मिक भाषा के रूप में उपयोग की जाती हैं। हालांकि, मुस्लिम विजय के बाद, अरामी भाषा का बोलचाल की भाषा के रूप में पतन हो गया और इसका स्थान अरबी ने ले लिया।
संदर्भ
https://tinyurl.com/23ys6nkz
https://tinyurl.com/yckjy569
https://tinyurl.com/7vsrjkn9
https://tinyurl.com/mrcn5rd5
https://tinyurl.com/yrukcdhx
https://tinyurl.com/ehcw5v29
https://tinyurl.com/yc6j93v2
https://tinyurl.com/yuwxk2c8
चित्र संदर्भ
1. एक अरब प्राथमिक विद्यालय की कक्षा को दर्शाता एक चित्रण (
Collections - GetArchive)
2. अरबी लेख को दर्शाता एक चित्रण (mtholyoke)
3. एक अरब लड़का और लड़की को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. शालोम शब्द को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
5. ‘तक्षशिला का अरामी शिलालेख को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. बाइबिल अरामी लेखन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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