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8 नवंबर 2016 की रात 12 बजे के बाद पांच सौ और हजार के नोट के बैन होने के साथ ही हमारे रामपुर सहित पूरे देश में अफरा-तफरी मच गई थी। प्रतिबंध लगने के बाद लोगों को इन नोटों की अहमियत तो जरूर पता चल गई, लेकिन इनका इतिहास भी हम सभी को पता होना चाहिए।
“कागजी मुद्रा (Paper Money) या कागज का पैसा” कागज के रूप में देश की आधिकारिक मुद्रा होती है। इसका उपयोग सामान खरीदने और सेवाओं के भुगतान के लिए किया जाता है। देश का केंद्रीय बैंक या राजकोष आमतौर पर कागजी मुद्रा की छपाई को नियंत्रित करता है। ऐसा माना जाता है कि पहली बार लोगों ने कागजी मुद्रा का उपयोग 7वीं शताब्दी ईस्वी के आसपास चीन में करना शुरू किया था। ऐसा शायद लेनदेन की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए किया गया था। भारी धातु के सिक्के रखने के बजाय, लोग लेनदेन के लिए कागजी नोटों का प्रयोग कर सकते थे। उस समय लोग अपने सिक्के किसी ऐसे व्यक्ति को देते थे, जिस पर वे भरोसा कर सकते थे और बदले में उन्हें एक नोट मिलता था, जिसमें लिखा होता था कि उन्होंने कितना रुपया जमा किया है। बाद में, वे इस नोट को वास्तविक पैसे से बदल सकते थे।
“भारत में कागजी मुद्रा या पेपर मनी, 18वीं शताब्दी के अंत में पेश की गई थी।” इसे मुगल साम्राज्य के पतन और औपनिवेशिक शक्तियों के आगमन के बाद तीव्र राजनीतिक उथल-पुथल तथा अनिश्चितता के दौरान जारी किया गया। इन परिवर्तनों के कारण, स्वदेशी बैंकरों (Indigenous Bankers) ने भारत में बड़े वित्तीय मामलों (Financial Matters) पर अपनी पकड़ खो दी। इस समय काल में सत्ता संरचना बदल गई थी, युद्ध हुए और औपनिवेशिक प्रभाव बढ़ गया था। इसके कारण स्वदेशी बैंकरों का वित्तीय मामलों पर से नियंत्रण भी खो गया।
इसके बाद वित्तीय मामलों को राज्य द्वारा समर्थित एजेंसी हाउस (Agency Houses) ने अपने हाथ में ले लिया। “इनमें से कई एजेंसी हाउसों ने देश में बैंकों की शुरुआत की।” इनमे से एक प्रारंभिक बैंक, जनरल बैंक ऑफ़ बंगाल एंड बहार “General Bank Of Bengal And Bahar” (1773-75) भी था। इसे सरकार और स्थानीय विशेषज्ञों का समर्थन प्राप्त था। इस बैंक के नोट को सरकार का समर्थन मिल चुका था। बैंक सफल रहा और उसने खूब पैसा भी कमाया, लेकिन यह जल्द ही बंद भी हो गया। इसके अलावा बैंक ऑफ हिंदुस्तान “Bank Of Hindustan” (1770-1832) नामक बैंक भी सफल हुआ, जिसे अलेक्जेंडर एंड कंपनी के एजेंसी हाउस (Agency House Of Alexander & Company) द्वारा शुरू किया गया था। तीन पैनिक रन (Panic Runs) या “मुश्किल दौर” का सामना करने के बावजूद भी यह बैंक खूब फला-फूला। लेकिन 1832 में इसकी मूल कंपनी, मैसर्स अलेक्जेंडर एंड कंपनी (M/S Alexander & Company) के विफल हो जाने के बाद बैंक ऑफ हिंदुस्तान भी विफल हो गया।
बैंक नोटों के प्रसार में करों के भुगतान के रूप में, नोटों की स्वीकृति और आधिकारिक समर्थन ने अहम भूमिका निभाई। अर्ध-सरकारी प्रेसीडेंसी बैंकों (Semi-Government Presidency Banks) के साथ बैंक नोटों का उपयोग अधिक व्यापक हो गया। 1806 में 50 लाख रुपये की पूंजी के साथ स्थापित बैंक ऑफ बंगाल (Bank Of Bengal) इसका प्रमुख उदाहरण था। इन बैंकों की स्थापना सरकार द्वारा की गई थी और उन्हें प्रचलन के लिए नोट जारी करने का विशेष विशेषाधिकार प्राप्त था।
बैंक ऑफ बंगाल के नोटों को तीन मुख्य श्रृंखलाओं (‘यूनिफेस्ट (Unifaced)’ श्रृंखला, ‘कॉमर्स (Commerce)' श्रृंखला और ‘ब्रिटानिया (Britannia)' श्रृंखला।) में बांटा जा सकता है। बैंक ऑफ बंगाल के शुरुआती नोटों में सिर्फ एक तरफ चित्र होता था और वे विभिन्न मूल्यवर्ग (100, रु. 250, रु. 500, इत्यादि) में होते थे। 1861 के कागजी मुद्रा अधिनियम (Paper Currency Act Of 1861) ने इन बैंकों के नोट जारी करने के अधिकार को वापस ले लिया, लेकिन, प्रेसीडेंसी बैंकों ने भारत सरकार के लिए नोट प्रबंधन अधिकार बरकरार रखा।
आज भारत में मुद्रा की छपाई और प्रबंधन, भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank Of India (RBI) द्वारा किया जाता है, जबकि भारत सरकार यह नियंत्रित करती है कि, किस मूल्यवर्ग को प्रसारित किया जाए। भारत अपने कागज के नोट बनाने के लिए हांगकांग, संयुक्त अरब अमीरात (United Arab Emirates) और संयुक्त राज्य अमेरिका (United States Of America) जैसी जगहों से बहुत सारा कागज़ खरीदता है। यहां तक कि “भारत को पूरी दुनिया में पेपर मनी का सबसे बड़ा खरीदार माना जाता है।” भारत में बैंक नोट छापने के लिए वर्तमान में उपयोग किया जाने वाला कागज, कपास से बनाया जाता है। इन सूती नोटों में आम तौर पर 75% कपास और 25% लिनन (Linen) होता है। भारत सालाना लगभग 2,000 करोड़ करेंसी नोट (Currency Notes) छापता है। पहले जो नोट गलत छपे होते थे या गंदे हो जाते थे, उन्हें जला दिया जाता था, जिससे पर्यावरण को भी नुकसान होता था। लेकिन, अब, इन नोटों को औद्योगिक उद्देश्यों के लिए टुकड़ों में काटकर मोटी परतों में बदल दिया जाता है। यह बदलाव पर्यावरण के भी अनुकूल है।
हर साल बैंक के नोटों की मुद्रित संख्या और मूल्य विभिन्न कारकों पर निर्भर करते हैं। जैसे:
(I) सार्वजनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रचलन में नोटों "Notes In Circulation" यानी एनआईसी (NIC) की संख्या में अपेक्षित वृद्धि।
(II) पुराने या क्षतिग्रस्त नोटों को बदलने की आवश्यकता।
एनआईसी अनुमानित वृद्धि की गणना, सांख्यिकीय मॉडल (Statistical Model) का उपयोग करके जीडीपी वृद्धि (GDP Growth), मुद्रास्फीति, ब्याज दरों और गैर-नकद भुगतान वृद्धि जैसे कारकों पर विचार करते हुए की जाती है। नोट बदलने की आवश्यकता, वर्तमान नोटों और उनके औसत जीवनकाल पर निर्भर करती है। रिज़र्व बैंक इन कारकों और अपने क्षेत्रीय कार्यालयों और बैंकों से मिले इनपुट (Input) यानी जानकारी के आधार पर मुद्रण का अनुमान लगाता है।
अधिनियम की धारा 22 अनुसार, रिजर्व बैंक भारत में बैंक नोट जारी करने के लिए पूरी तरह से अधिकृत है। धारा 25 में कहा गया है कि नोटों के डिजाइन, रूप और सामग्री को आरबीआई केंद्रीय बोर्ड (RBI Central Board) की सिफारिशों पर विचार करते हुए केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदित किया जा सकता है। रिजर्व बैंक, सरकार और हितधारकों से इनपुट के साथ, वार्षिक मूल्यवर्ग के अनुसार आवश्यक बैंक नोटों की मात्रा का अनुमान लगाता है। इसके बाद प्रेसों को मुद्रा मुद्रण ऑर्डर दिए जाते हैं। रिज़र्व बैंक स्वच्छ नोट नीति अपनाता है, और लोगों तक केवल अच्छी गुणवत्ता वाले नोट उपलब्ध कराता है। उपयोग के लिए उपयुक्त नोट फिर से जारी किए जाते हैं, जबकि अन्य (घिसे हुए, क्षतिग्रस्त) नोट नष्ट कर दिए जाते हैं।
भारत में बैंक नोट चार प्रेसों में छापे जाते हैं। ये प्रेस नासिक, देवास, मैसूर और सालबोनी में हैं। इनमें से दो भारत सरकार के स्वामित्व में और दो प्रेसों का नियंत्रण रिजर्व बैंक करता है। रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किए गए सभी नोट (₹2, ₹5, ₹10, ₹20, ₹50, ₹100, ₹200, ₹500, ₹2000) तब तक वैध होते हैं, जब तक इन्हें वापस नहीं ले लिया जाता। वे आरबीआई अधिनियम, 1934 की धारा 26 के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा समर्थित हैं। भारत सरकार द्वारा जारी किए गए ₹1 के नोट भी वैध मुद्रा हैं।
चलिए अब यह जान लेते हैं कि आप एक असली नोट की पहचान उसकी किन विशेषताओं को देखकर कर सकते हैं:
1. सुरक्षा धागा: ₹10, ₹20 और ₹50 के बैंक नोटों के सामने की तरफ एक चांदी के रंग का मशीन-पठनीय सुरक्षा धागा या परत मुद्रित होती है। यह पीछे की तरफ भी पूरी तरह से एम्बेडेड (Embedded) होती है। पराबैंगनी प्रकाश के तहत धागा दोनों तरफ पीले रंग में चमकता है।
2. इंटैग्लियो मुद्रण (Intaglio Printing): ₹100 और उससे अधिक मूल्यवर्ग में इंटैग्लियो यानी गांधी जी का चित्र, रिज़र्व बैंक की मुहर, गारंटी और वादा खंड, अशोक स्तंभ प्रतीक, आरबीआई के गवर्नर (RBI Governor) के हस्ताक्षर, और दृष्टिबाधित व्यक्तियों के लिए पहचान चिह्न मुद्रित होते हैं।
3. सी-थ्रू रजिस्टर (See-Through Register): प्रत्येक मूल्यवर्ग के अंक का एक भाग अग्रभाग (सामने) पर और दूसरा भाग पीछे मुद्रित होता है।
4. वॉटरमार्क और इलेक्ट्रोटाइप वाटरमार्क (Watermark And Electrotype Watermark): बैंक नोटों की वॉटरमार्क विंडो (Watermark Window) में प्रकाश तथा छाया प्रभाव और बहु-दिशात्मक रेखाओं के साथ गांधी जी का चित्र मुद्रित होता है।
5. रंग बदलने वाली स्याही: ₹200, ₹500 और ₹2000 के बैंक नोटों पर 200, 500 और 2000 के अंक रंग बदलने वाली स्याही में मुद्रित होते हैं। जब बैंक नोटों को सपाट रखा जाता है तो इन अंकों का रंग हरा दिखाई देता है, लेकिन जब बैंक नोटों को एक कोण पर रखा जाता है, तो यह नीले रंग में बदल जाता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/yuy6rhh7
https://tinyurl.com/4smeaajh
https://tinyurl.com/ytxft4rp
https://tinyurl.com/3e8hkxvf
https://tinyurl.com/bdhx69mf
https://tinyurl.com/2yjta754
चित्र संदर्भ
1. पुराने और नए भारतीय नोट को दर्शाता चित्रण (PICRYL, Flickr)
2. चीनी शब्दों के साथ एक युआन राजवंश मुद्रण प्लेट और बैंकनोट को दर्शाता चित्रण (worldhistory)
3. भारत सरकार-10 रुपये (1910) को दर्शाता चित्रण (PICRYL)
4. बैंक ऑफ हिंदोस्तान - सोलह सिक्के रुपये (1770) को दर्शाता चित्रण (PICRYL)
5. महारानी विक्टोरिया के चित्र के साथ 1861 के 20 रुपये के नोट को दर्शाता चित्रण (PICRYL)
6. भारतीय रिज़र्व बैंक की मुहर को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
7. UV लाइट के तहत 2000 रुपए के भारतीय नोट को दर्शाता चित्रण (flickr)
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