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प्राचीन भारतीय ग्रंथों में, मंदिरों को एक महत्वपूर्ण स्थान के रूप में वर्णित किया गया है। प्राचीन समय में मंदिरों का निर्माण हिंदू जीवन शैली के महत्वपूर्ण पहलुओं और विचारों का प्रतिनिधित्व करने के लिए किया गया था। एक मंदिर में वह प्रत्येक तत्व (अग्नि, जल, प्रकृति और देवता) होता है, जिससे जीवन की उत्पत्ति मानी जाती है। हिंदू मंदिरों में आपको ध्वनि और सुगंध से लेकर, शाश्वत और सार्वभौमिक विचारों, आदर्श सिद्धांतों तथा स्त्री और पुरुष दोनों के ही पहलुओं के समावेश नजर आ जाएंगे। हिंदू मंदिर यह दर्शाते हैं कि “इस संसार में सब कुछ आपस में जुड़ा हुआ हैं।”। यहां पर प्रत्येक क्रिया, स्थान, जीव या वस्तु का मूल एक ही है। जब भक्त किसी मंदिर में आते हैं, तो वे 64 या 81 वर्गों के पैटर्न (Pattern) में विशेष स्थानों की परिक्रमा करते हैं। इन स्थानों में कला, नक्काशीदार खंभे और जीवन के चार महत्वपूर्ण पहलुओं (अर्थ (समृद्धि या धन) काम (आनंद या मैथुन), धर्म (गुण या नैतिक जीवन) और मोक्ष (मुक्ति या आत्म-ज्ञान) को परिलक्षित करती हुई मूर्तियां होती हैं। मंदिर के केंद्र में, मुख्य भगवान की प्रतिमा स्थापित की जाती है। मूर्ति की स्थापना वाला यह स्थान सर्वोच्च सिद्धांत का प्रतीक माना जाता है।
एक हिंदू मंदिर लोगों को सोचने, मन और दिमाग को शुद्ध करने तथा अपने भीतर गहरी समझ विकसित करने के अनुरूप बनाया जाता है। हिंदू परंपरा में, सामाजिक जीवन और अध्यात्मिक जीवन के बीच कोई स्पष्ट अंतर नहीं है। इसलिए, हिंदू मंदिर भी केवल धर्म केंद्रित संरचना न होकर आम दिनचर्या के ही एक अंग माने जाते हैं। हिंदू मंदिरों की एक और विशेषता है, जो इन्हें विश्व की किसी भी अन्य संरचना से प्रथक करती है, और वह विशेषता होती है, “इन मंदिरों की अद्भुत वास्तुकला, निर्माण सामग्री तथा उनकी शैली।”
दक्षिण भारत में चोल शासकों (लगभग 850 ई. से 1250 ई.) के शासनकाल को मंदिरों की वास्तुकला को सुधारने और परिष्कृत करने के लिहाज से मंदिरों का स्वर्णिम युग माना जाता है। चोल शासकों ने युद्ध में विजय से प्राप्त या दान-पुन्य से हासिल किये गए धन का उपयोग मुख्य रूप से “पत्थरों के बेहद मजबूत और नक्काशीदार मंदिरों, तथा सुंदर कांस्य की मूर्तियां बनाने के लिए किया।”
चोलों ने पल्लव राजवंश के पारंपरिक तौर-तरीकों का पालन करते हुए इन मंदिरों का निर्माण किया। पल्लव दक्षिण भारत में वास्तुशिल्प नवाचारों को शुरू करने वाले पहले राजवंश थे। चोलों ने पल्लवों से सीख लेकर अनेक मंदिर बनवाये। चोल वास्तुकारों ने अन्य समकालीन कला और स्थापत्य स्कूलों से भी प्रेरणा ली, जिसके परिणामस्वरूप ऊंचे मंदिर और जटिल डिजाइन तैयार हुए। उन्होंने अपने राज्य (आधुनिक तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्से ।) में कई मंदिर बनवाए।
मंदिरों के अलावा, चोलों ने अस्पतालों, सार्वजनिक भवनों और महलों का भी निर्माण किया, हालांकि ये संरचनाएं लकड़ी और ईंटों जैसी खराब होने वाली सामग्रियों से बनी थी इसलिए लंबे समय तक टिकी न रह सकी। लेकिन उनके द्वारा निर्मित पत्थरों की संरचनाएं मानो अमर हो गई।
चोल राजाओं की मंदिरों के निर्माण में बहुत अधिक रूचि नजर आती है। उनका मानना था कि मंदिर केवल प्रार्थना करने के लिए एक केंद्रित इमारत न होकर उनके राज्य में व्यापार करने के लिए भी जरूरी हैं। चोल शासक शक्तिशाली योद्धा, अच्छे शासक और महान निर्माता थे। उनके शासनकाल में मंदिर, शहरों के केंद्र की तरह हुआ करते थे। चोल राजाओं और कलाकारों ने विभिन्न स्थानों से प्रेरणा लेकर द्रविड़ शैली की भवन निर्माण शैली को अद्भुत बना दिया।
चोल साम्राज्य में मंदिर राजा की शक्ति का आधार माने जाते थे। ये मंदिर सिर्फ धार्मिक केंद्र नहीं थे, बल्कि इन्होने आर्थिक, शैक्षिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन के केंद्र के रूप में भी काम किया। चोलों ने द्रविड़ कला और वास्तुकला में महारत हासिल की, और आज उनके मंदिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महत्वूर्ण माने जाते हैं। यहां तक कि चोल साम्राज्य की संरचनाओं को विश्व धरोहर स्थलों के रूप में यूनेस्को (UNESCO) की विशेष सुरक्षा भी प्राप्त हुई।
चोल साम्राज्य ने लगभग 1500 वर्षों तक शासन किया और इनके शासनकाल में निर्मित मंदिर वास्तुकला के चमत्कार माने जाते हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख मंदिरों की सूची निम्नवत दी गई है:
1. तंजावुर में बृहदीश्वर मंदिर: चोल शासक "राजा राजा" द्वारा निर्मित और वास्तुकार सामा वर्मा द्वारा लगभग 1003-1010 ईस्वी में डिजाइन किए गए इस मंदिर में 3.7 मीटर ऊंचे शिव लिंग के साथ दुनिया का सबसे ऊंचा शिखर (टॉवर) है। इसकी सादगी ने दक्षिण भारत से बाहर की वास्तुकला को भी प्रेरित किया।
स्थान: मेम्बलम रोड, बालागणपति नगर, तंजावुर, तमिलनाडु 61300
2. गंगैकोण्ड चोलपुरम का मंदिर: चोल सम्राट राजेंद्र प्रथम द्वारा निर्मित यह मंदिर तंजावुर मंदिर के स्त्री समकक्ष के रूप में वर्णित किया जाता है। इसमें 4 मीटर ऊंचा शिव लिंग है और यह चोल साम्राज्य में प्रशासन के लिए महत्वपूर्ण स्थल माना जाता था।
स्थान: गंगैकोण्ड चोलपुरम, तमिलनाडु 612901
3. दारासुरम में ऐरावतेश्वर मंदिर: अन्य चोल मंदिरों की तुलना में छोटा और राजराजा द्वितीय द्वारा निर्मित यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इसमें 24 मीटर ऊंचा शिखर और इस मंदिर की डिज़ाइन अद्वितीय है, जिसे 'नित्य विनोद (Nitya-Vinoda)' के रूप में जाना जाता है।
स्थान: गुरुनाथन पिल्लई कॉलोनी, धरासुरम, कुंभकोणम, तमिलनाडु 612702
4. विजयला-चोलेश्वरम: देश के सबसे पुराने पत्थर के मंदिरों में से एक, विजयला-चोलेश्वरम मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और प्रारंभिक चोलन कला का प्रदर्शन करता है।
स्थान: नार्थमलाई, तमिलनाडु 622101
5. अयिकुडी बालासुब्रमण्यम स्वामी मंदिर: इस मंदिर में मुख्य देवता बालासुब्रमण्यम स्वामी की एक सुंदर छोटी मुलावर मूर्ति है, जिन्हें राम सुब्रमण्यम स्वामी के नाम से भी जाना जाता है। चोल वंश के सभी मंदिरों में से, यह मंदिर निश्चित रूप से हिंदुओं के सबसे प्रतिष्ठित पूजा स्थलों में से एक है।
स्थान: अयिकुडी, तमिलनाडु 627852
जिस प्रकार चोल शासकों ने अपने साम्राज्य को भव्यता प्रदान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, उसी प्रकार हमारे रामपुर के शासकों और नवाबों ने भी नवनिर्मित रामपुर में मंदिरों और भव्य इस्लामिक इमारतों के निर्माण पर बहुत अधिक ध्यान दिया। पूरे रामपुर की विविध इमारतें धार्मिक सौहार्द का जीवंत प्रमाण हैं।
आइये इन संरचनाओं पर एक नजर डालते हैं:
1. कोसी शिव मंदिर: रामपुर में 1880 के दशक में लाला हरध्यान, लाला दीन दयाल और लाला त्रिभुवन नाथ ने मिलकर कोसी मंदिर का निर्माण करवाया। इस मंदिर में शिवलिंग सहित मां दुर्गा, राधा कृष्ण, विष्णु-लक्ष्मी की प्रतिमांए स्थापित की गयी हैं। यहां स्थापित शिवलिंग पर लगभग 137 वर्षों से निरंतर जलधारा प्रवाहित हो रही है।
2. भाई साहब भाईजी गुरूद्वारा
3. गुरु नानक दरबार
4. दुर्गा मंदिर
5. मंदिर दत्तराम जी
6. महालक्ष्मी मंदिर
रामपुर में हिंदु मंदिरों के अलावा जैन और ईसाई धार्मिक स्थल भी हैं
इसके साथ ही यहां इस्लामिक धार्मिक स्थल भी मौजूद हैं:
1. दरगाह मौलवी साहब
2. ज़ीनत मस्जिद
3. मस्जिद अला खां
4. मस्जिद उमर तलब मुल्ला इरम
5. मस्जिद सैयदान
संदर्भ
https://tinyurl.com/5e6z8prr
https://tinyurl.com/pzw6w5z4
https://tinyurl.com/27tt7a7v
https://tinyurl.com/4m7m9wkn
https://tinyurl.com/4m7m9wkn
https://tinyurl.com/4xt27mje
चित्र संदर्भ
1. बृहदीश्वर मंदिर के स्मारकीय प्रवेश द्वार को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
2. पेरिया कोविल, बृहदेश्वर मंदिर को दर्शाता चित्रण (Wikimedia
3. तमिलनाडु के तंजावुर में बृहदेश्वर मंदिर को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
4. कोणार्क सूर्य मंदिर के विहंगम दृश्य को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
5. c.1030 में राजेंद्र चोल प्रथम के अधीन चोल साम्राज्य के विस्तार को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
6. तंजावुर में बृहदेश्वर मंदिर को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
6. गंगैकोण्ड चोलपुरम के मंदिर को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
7. दारासुरम में ऐरावतेश्वर मंदिर को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
8. विजयला-चोलेश्वरम मंदिर को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
9. अयिकुडी बालासुब्रमण्यम स्वामी मंदिर को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
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