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प्राचीन काल से ही भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि ने बहुत अहम् भूमिका निभाई है। भारत में खेती को सफल बनाने के ‘हल’ जैसे कृषि औजारों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। इस औजार के बलबूते देश के किसानों ने खूब अनाज उगाया और आर्थिक तरक्की की। हालांकि, आपको जानकर खुशी होगी कि हमारे लखनऊ के किसान पुदीने की खेती करके आर्थिक तरक्की की राह पर अग्रसर हैं।
भारत में खेती का इतिहास वास्तव में बहुत प्राचीन है, जिसकी शुरुआत सिंधु घाटी सभ्यता से हुई थी। लगभग 9000 ईसा पूर्व में, लोगों ने पौधे उगाना और जानवरों को पालतू बनाना शुरू किया, जिसके बाद भारतीय कृषि की शुरुआत हो गई। समय के साथ हमारे पूर्वज खेती के औजारों और तरीकों में बहुत अच्छे हो गए। दो मानसून सीजन होने के कारण, वे साल में दो बार फसल उगा सकते थे। समय के साथ यहां की फसलों का दुनिया भर में व्यापार होने लगा और यहां के किसान पूर्वजों ने नई-नई फसलों को बोना शुरू कर दिया। यहां पर फसलों और जानवरों को इंसानों के जीवित रहने के लिए आवश्यक माना जाता था, इसलिए प्राचीन भारतीय संस्कृति में उनकी पूजा और सम्मान किया जाता था।
मध्य युग के दौरान, हमारी सिंचाई प्रणालियां और अधिक उन्नत हो गई। इसके बाद भारतीय फसलों का दुनिया के अन्य क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था पर भी बड़ा प्रभाव पड़ने लगा। कृषि विकास की गति बढ़ाने के लिए कई भूमि और जल प्रबंधन प्रणालियाँ विकसित की गईं। उत्तर वैदिक काल (लगभग 1000-500 ईसा पूर्व) में कृषि में कई बदलाव देखे गए। इन बदलावों में लोहे के औजारों की शुरुआत, व्यापक श्रेणी की फसलों की खेती और अधिक परिष्कृत सिंचाई तकनीकों का विकास करना शामिल था। लोहे के औजारों से मिट्टी को अधिक गहराई तथा कुशलता से जोतना संभव हो गया, जिससे फसल की पैदावार में भारी वृद्धि हुई। कृषि के इतिहास में “हल (Plough)” न केवल भारत बल्कि वैश्विक कृषि के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कृषि औजार साबित हुआ।
"हल, एक ऐसा कृषि औजार या तकनीक है जिसका उपयोग खेतों में रोपण से पहले मिट्टी को ढीला करने और पलटने के लिए किया जाता है।" पहले इसे बैलों और घोड़ों जैसे जानवरों द्वारा खींचा जाता था, लेकिन आज यह काम ट्रैक्टर करते हैं। मिट्टी को काटने और ढीला करने के लिए लकड़ी, लोहे या स्टील का हल बनाया जा सकता है। हल पूरे इतिहास में खेती के लिए वास्तव में महत्वपूर्ण औजार रहा है। पहले हलों में पहिए नहीं होते थे; रोमन लोग इस प्रकार के हल को "एराट्रम (Eratrum)" कहते थे। रोमनों के समय में लोग पहियों वाले हल का उपयोग करने लगे।
मिट्टी की ऊपरी परत को पलटने के लिए जुताई की जाती है। इससे सतह पर ताजा पोषक तत्व आते हैं और खरपतवार और पुरानी फसलें ढक जाती हैं, जिससे वे नष्ट हो जाती हैं। हल से बनी रेखाओं को खाँचा कहते हैं। इससे ऊपरी 5 से 10 इंच की मिट्टी को समतल बनाने में मदद मिलती है, जहां अधिकांश पौधों की जड़ें उगती हैं।
लगभग 6,000 साल पहले मेसोपोटामिया और सिंधु घाटी सभ्यता में हमारे पूर्वजों ने बड़े हल खींचने के लिए बैलों का उपयोग करना शुरू कर दिया, जिन्हें आर्ड (Ard ) या स्क्रैच प्लो (Scratch Plough) कहा जाता है। जुताई का सबसे पुराना प्रमाण चेक गणराज्य के बुबेनेक (Bubeneč,) में लगभग 3500-3800 ईसा पूर्व का मिलता है। भारत में लगभग 2800 ईसा पूर्व कालीबंगा में एक जुता हुआ खेत मिला है। भारत के बनावली में प्रारंभिक आर्ड (Ard) का एक मॉडल खोजा गया था, जिसमें दिखाया गया था कि यह कैसा दिखता था। टूट जाने पर भी आर्ड को ठीक करना या दोबारा बनाना आसान होता था।
हलों का वर्गीकरण:
हलों को मुख्य रूप से दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
1) एकतरफ़ा हल (One Way Plough): यह हल मिट्टी को दाहिनी ओर मोड़ देता है, और यह हल का सर्वाधिक प्रचलित रूप है।
2)दो-तरफ़ा हल (Two-Way Plough): यह हल मिट्टी को दाएं और बाएं दोनों तरफ घुमाता है। इसकी ब्लेड के दो सेट एक फ्रेम पर होते हैं जो घूम सकते हैं, एक सेट से दूसरे सेट में बदल सकते हैं। इस घुमाव के लिए मैकेनिकल या हाइड्रोलिक सिलेंडर (Mechanical Or Hydraulic Cylinders) का उपयोग किया जाता है। इस प्रकार के हल सीढ़ीदार या अनियमित आकार के खेतों के लिए उपयोगी साबित होते हैं। हालांकि इस प्रकार के हल कम प्रचलित हैं।
चलिए अब हल के विभिन्न भागों के बारे में जानते हैं:
1) हल का निचला भाग: हल का जमीन काटने वाला भाग।
2) हल का फ़्रेम (Frame): भागों को एक साथ रखने वाली मुख्य संरचना।
3) अटैचमेंट (कल्टर्स और जॉइंटर्स (Attachments (Coulters & Jointers): बेहतर कटिंग के लिए अतिरिक्त हिस्से।
4) हल अड़चन (Plough Hitch): यह भाग हल को खींचने वाले वाहन या जानवर से जोड़ता है।
5) गहराई समायोजन तंत्र: यह भाग नियंत्रित करता है कि हल कितनी गहराई तक खोदेगा।
क्या आप जानते हैं कि उत्तर उत्तर प्रदेश के मेहनती किसान देश में सबसे अधिक, लगभग 80% मेंथा यानि पुदीना पैदा करते हैं। मेंथा का उपयोग बहुमूल्य इसका तेल बनाने में किया जाता है। पुदीना मुख्य रूप से रामपुर, मुरादाबाद में उगाया जाता है। लेकिन, आपको जानकर ख़ुशी होगी कि हाल ही में हमारे लखनऊ, बाराबंकी, और सीतापुर जैसे क्षेत्रों में भी इसकी खेती होने लगी है।
पुदीने की खेती राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसका उपयोग मिठाई, श्रृंगार और दवा आदि बनाने में किया जाता है। मेंथा की पत्तियों को भाप देकर बनाया जाने वाला मेंथा तेल मूल्यवान होता है। इसे फरवरी में लगाया जाता है और मई के मध्य से काटा जाता है। तेल में मेन्थॉल (एक मूल्यवान पदार्थ) होता है, जिसका भारत में बड़ी मात्रा में व्यापार होता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/4jr26xmc
https://tinyurl.com/w9y6k3m6
https://tinyurl.com/ysrfjz6z
https://tinyurl.com/38pxfvrw
चित्र संदर्भ
1. पुदीने और किसान को दर्शाता चित्रण (FeelGoodPal, Wallpaper Flare)
2. भारत में किसानी को दर्शाता चित्रण (Look and Learn)
3. हल खींच रहे बैलों के जोड़े को दर्शाता चित्रण (Look and Learn)
4. मोल्ड-बोर्ड हल को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
5. एक पारंपरिक हल के विभिन्न भागों को दर्शाता चित्रण (Flickr)
6. हल जोतते भारतीय किसान को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
7. मेंथा की खेती को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
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