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आपने कभी न कभी पंडित जसराज, शंकर महादेवन, अलका याग्निक, जगजीत सिंह जैसे गायकों द्वारा गया गाना "सौ रागिनियों से सजा, भारत अनोखा राग है" तो सुना ही होगा, यहां रागों को बहुत ही महत्वपूर्ण बताया गया है। दरअसल,भारतीय संस्कृति के इतिहास में हमारा शास्त्रीय संगीत, "रागों" की नींव पर ही मजबूती से खड़ा है। आज भले ही भारतीय संगीत अपनी संस्कृति की चमक खोकर केवल मनोरंजन के स्तर तक ही सीमित रह गया है, लेकिन हमारे पूर्वज "रागों" के संयोजन से ऐसे उत्कृष्ट संगीत निर्माण करने में सक्षम थे, जहां वे चाहें तो आपको गुदगुदाने पर मजबूर कर दें, या चाहें तो आपके आंखों से अंसुवन की धारा बहा दें। हालांकि, कुछ चुनिंदा कलाकार आज भी रागों को छेड़कर आपकी मनोदशा को प्रभावित कर सकते हैं।
अब यहां सबसे बड़ा प्रश्न ये उठता है कि, आखिर ‘राग’ क्या है? तो हम आपको बता दें कि राग सुरों के आरोहण (बढ़ने) और अवतरण (घटने) का ऐसा नियम है, जिससे संगीत की रचना की जाती है। रागों को भारतीय शास्त्रीय संगीत में मधुर धुनें बनाने का एक विशेष तरीका माना जाता है। यह एक संगीत विधा की तरह होते हैं, जिसके माध्यम से संगीतकार अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में सक्षम होते हैं। प्रत्येक राग में सुधार के लिए स्वर और नियमों का अपना सेट होता है। यूं तो सैकड़ों राग हैं, लेकिन, मुख्य रूप से लगभग 30 राग आमतौर पर उपयोग किए जाते हैं।
रागों का अपना ही अनोखा भावनात्मक महत्व होता है, और ये श्रोताओं में अलग-अलग भावनाएं पैदा कर सकते हैं। प्राचीन काल में, "राग" शब्द का अर्थ सामंजस्यपूर्ण स्वर और भावना होता था। रागों को दैवीय स्तर पर भी महत्वपूर्ण माना जाता था और हिंदू धर्म में इनका उपयोग आध्यात्मिक गतिविधियों और मनोरंजन के रूप में किया जाता था।
आज राग हिंदू, जैन, सिख और यहां तक कि इस्लामी संगीत परंपराओं का भी एक अनिवार्य हिस्सा बन गए हैं। प्रत्येक संस्कृति में इन्हें अपने अनूठे तरीके से उपयोग किया जाता है।
सिख धर्म में धर्मग्रंथों को विशिष्ट रागों के अनुसार गाया जाता है।
भारतीय शास्त्रीय संगीत में राग केवल एक मधुर नियम-समूह से कहीं अधिक माने जाते हैं। यह एक जटिल और अद्वितीय संगीत इकाई है, जो एक विशिष्ट मनोदशा या वातावरण का निर्माण करते हैं। हालांकि, इसे पश्चिमी संदर्भ में आसानी से परिभाषित नहीं किया जा सकता। राग से भली भांति परिचित श्रोता ही सहजता से इसके प्रदर्शन को पहचान और सराह सकते हैं। हालांकि, प्रारंभिक यूरोपीय विद्वानों ने औपनिवेशिक काल के दौरान, रागों को समझने का भरपूर प्रयास किया। उन्होंने इसे "मोड (Mode)" या मूड (mood) और ट्यून (Tune) के संयोजन के रूप में वर्णित किया।
भारतीय पौराणिक कथाओं में रागों को विभिन्न प्रतीकों, देवी-देवताओं से जोड़ने के अलावा विशिष्ट मौसमों, या भावनाओं से भी जोड़ा गया है।
भारतीय परंपरा में राग के गायन के लिए विशेष ऋतु निर्धारित है। सही समय पर गाया जाने वाला राग अधिक प्रभावी होता है।
यहां हम आपको राग और उनकी ऋतुओं के बारे में बता रहे हैं-
राग | ऋतु |
---|---|
भैरव | शिशिर |
हिंडोल | बसंत |
दीपक | ग्रीष्म |
मेघ | वर्षा |
मालकौंस | शरद |
श्री | हेमंत |
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