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रिक्त सरकारी पदों में बेरोजगार युवाओं की भर्ती क्यों नहीं कराई जाती?

लखनऊ

 20-07-2023 10:02 AM
आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

हमारे देश भारत में 800 मिलियन से अधिक नागरिक 18 से 65 वर्ष के बीच की कामकाजी उम्र में आते हैं। हर साल इस संख्या में 1.5 मिलियन युवा कर्मचारी और जुड़ जाते हैं। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि देश में इन 800 मिलियन कामकाजी लोगों के लिए केवल लगभग 40 मिलियन औपचारिक नौकरियाँ हैं, जिनमें से 25 मिलियन सरकारी (केंद्र और राज्य, एक साथ) और 15 मिलियन निजी क्षेत्र में हैं। जिनमें से भी सरकारी आंकड़ों के अनुसार, देश के विभिन्न सरकारी कार्यालयों में तकरीबन 9,79,327 पद खाली हैं। और देश के लाखों युवा योग्य होने के बावजूद यहां-वहां भटक रहे हैं। आखिर क्यों? मार्च 2002 में केंद्र सरकार में लगभग 9.4 प्रतिशत सरकारी पद खाली थे, वहीं मार्च 2022 में यह संख्या 25 प्रतिशत तक बढ़ गई है। इसका मतलब है कि वर्तमान सरकार में लगभग एक चौथाई पद खाली हैं। यह जानकारी केंद्र सरकार के नियमित नागरिक कर्मचारियों के वेतन और भत्तों पर केंद्रित वार्षिक रिपोर्ट (Report) से मिली है। इस रिपोर्ट के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि हाल के वर्षों में ऐसी रिक्तियां अपने उच्चतम स्तर के करीब हैं।
कई महत्वपूर्ण सरकारी मंत्रालयों और विभागों में कई पद खाली हैं। गृह मंत्रालय में रिक्ति दर 11.1 प्रतिशत है, जबकि रेलवे, डाक और रक्षा (नागरिक पद) विभागों में रिक्ति दर क्रमशः 20.5%, 38.7%और 40.2% है। राजस्व विभाग, जो सभी मंत्रालयों में सबसे अधिक प्रमुख माना जाता है, में भी स्वीकृत पदों में से 41.6 प्रतिशत पद रिक्त हैं।
इनके अलावा पदों की श्रेणी के आधार पर रिक्त पदों की संख्या निम्नवत दी गई है:
- ग्रुप ए (Group A): 23,584 पद।
- ग्रुप बी (Group B): 1,18,807 पद।
- ग्रुप सी (Group C): 8,36,936 पद।
दिसंबर 2022 तक विभिन्न विभागों एवं मंत्रालयों में रिक्त पदों की संख्या निम्न प्रकार है:
- रेल मंत्रालय में 2,93,943 रिक्तियां
 -रक्षा मंत्रालय में 2,64,704 रिक्तियां
- गृह मंत्रालय में 1,43,536 रिक्तियां
- उपराष्ट्रपति सचिवालय में 64 में से 8 रिक्तियां
- कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा मंत्रालय में 13 रिक्तियां
- सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन मंत्रालय में 14 रिक्तियां हालांकि, विडंबना तो यह है कि एक तरफ जहां सरकार इन रिक्त पदों को भरने में असमर्थ है वही जो पद भरे हुए हैं उन पर सरकार अपना खजाना लुटा रही है। इन रिक्तियों की अधिक संख्या के बावजूद, कर्मचारियों के वेतन पर सरकार द्वारा किये जाने वाला खर्च दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार ने अपने कर्मचारियों के वेतन पर 2.6 ट्रिलियन (सरकारी खर्च का लगभग 6-9 प्रतिशत) रुपये खर्च किए। 2021-2022 तक रेलवे कर्मचारियों सहित वेतन और पेंशन (Pension) पर किया जाने वाला आवर्ती व्यय (Recurring Expenses) बढ़कर 34.4 ट्रिलियन रुपये हो गया है जो 2013-2014 के बाद से लगभग दोगुना है। इस असमानता को देखते हुए लोगों द्वारा समय-समय पर मांग की जाती रही है कि जनसंख्या के सापेक्ष, सरकारी कर्मचारियों की कमी को दूर करने के लिए अधिक नियुक्तियाँ होनी चाहिए। हालाँकि, अधिकांश लोग स्थायी तौर पर सरकारी नौकरी पाने की इच्छा रखते हैं किंतु सरकार द्वारा वर्तमान में, कई कार्यों के लिए स्थाई पदों के स्थान पर अनुबंध श्रम (Contract Labor) का उपयोग किया जा रहा है। इस संदर्भ में प्रधानमंत्री ने हाल ही में ऐसे पदों की मांग को उजागर करते हुए 70,000 नियुक्ति पत्र वितरित भी किए।
‘कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय’ के अनुसार केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में कुल 9,79,327 रिक्तियां हैं। मंत्रालय के मुताबिक, सरकार द्वारा कुल 40.4 लाख पदों को मंजूरी दिए जाने के बावजूद भी ये रिक्तियां ज्यों की त्यों हैं। कई लोग मानते हैं कि हाल के दशकों में, भारत में सरकारी सेवाओं का ध्यान जन-केंद्रित होने के बजाय कर्मचारी-केंद्रित अधिक हो गया है। इसका मतलब यह है कि सरकार को अब एक ऐसी संस्था के रूप में नहीं देखा जाता है जो अपने नागरिकों को अच्छी सेवाएं प्रदान करती है, बल्कि एक ऐसे संगठन के रूप में देखा जाता है जो अपने कर्मचारियों के लिए नौकरी की सुरक्षा, उच्च वेतन और भत्तों की सुविधाएं प्रदान करने को प्राथमिकता देती है।
यह भी एक तथ्य है कि चपरासी, ड्राइवर (Driver), स्टेनोग्राफर (Stenographer), क्लर्क (Clerk) या कांस्टेबल (Constable) जैसे ग्रुप डी पदों पर कार्य करने वाले कर्मचारियों को आज प्रति माह 60,000-80,000 रुपये से अधिक वेतन प्राप्त हो रहा है। इसके अतिरिक्त, आवास, बच्चों के लिए शिक्षा भत्ते और आजीवन पेंशन जैसे अन्य लाभ भी प्राप्त होते हैं। जबकि देखा जाए तो निजी क्षेत्र में उच्च पदों पर कार्य करने वाले कर्मचारियों को भी लगभग समान या इससे कम वेतन ही प्राप्त होता है और कुछ लोग तो बेहद योग्य होने के बावजूद बेरोजगार घूम रहे हैं। यहां हम यह नहीं कह रहे हैं कि किसी भी कर्मचारी को कम वेतन प्राप्त होना चाहिए, बल्कि हमारा कहना यह है कि सरकार को केवल कुछ व्यक्तियों पर सारा धन लुटाने के बजाय जनसंख्या के अनुपात में नौकरियां उपलब्ध करानी चाहिए। पहले पूरे राज्य में पुलिस बल की देखरेख करने वाले केवल कुछ उप महानिरीक्षक (Deputy Inspector General (DIG) और एक महानिरीक्षक (Inspector General (IG) ही होते थे। वही आजकल, अधिकांश प्रमुख राज्यों में केवल कुछ दर्जन कामों की निगरानी के लिए एसपी, डीआईजी, आईजी, अतिरिक्त महानिदेशक (Additional Director General (ADG) और महानिदेशक (Director General (DG) के लगभग 200-300 पद होते हैं। यदि देखा जाए, तो इनमें से अधिकतर वरिष्ठ अधिकारियों के पास कोई वास्तविक जिम्मेदारियां ही नहीं हैं। इसी तरह, भारत में कर विभागों (आयकर, सीमा शुल्क और जीएसटी) में हजारों आयुक्त, प्रधान आयुक्त, मुख्य आयुक्त और प्रधान मुख्य आयुक्त स्तर के पद हैं, जबकि इस काम के लिए केवल कुछ सौ पद भी पर्याप्त होंगे।
इन सभी रिक्त पदों को भरने के लिए, सरकार ने ग्रुप बी और ग्रुप सी सेवाओं में लगभग 98% रिक्तियों को भरने पर ध्यान केंद्रित करते हुए, अगले 1.5 वर्षों में 10 लाख लोगों को नियुक्त करने की योजना बनाई है। यह भर्ती प्रक्रिया कर्मचारी चयन आयोग, संघ लोक सेवा आयोग, और रेलवे भर्ती बोर्ड जैसी प्रमुख एजेंसियों के माध्यम से की जाएगी। इन एजेंसियों ने पिछले कुछ वर्षों में बड़ी संख्या में कर्मचारियों की भर्ती की है, जिसमें संघ लोक सेवा आयोग (Union Public Service Commission (UPSC) ने लगभग 13,200 कर्मचारियों की भर्ती की है और एसएससी कर्मचारी चयन आयोग (Staff Selection Commission (SSC) ने 1 लाख से अधिक कर्मचारियों की भर्ती की है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन (Abraham Lincoln) ने एक बार लोकतांत्रिक सरकार का वर्णन “लोगों की, लोगों के द्वारा, लोगों के लिए" सरकार के रूप में किया था। हालाँकि, आधुनिक भारत में इसके विपरीत यह कहना अधिक सटीक है कि सरकार “सरकारी कर्मचारी की, सरकारी कर्मचारी द्वारा, सरकारी कर्मचारी के लिए" है।
इस समस्या के समाधान के तौर पर, कई जानकार सलाह देते हैं कि सरकार को कानून प्रवर्तन जैसे अपने मुख्य कार्यों से संबंधित सेवाओं को छोड़कर अपनी सभी सेवाओं के लिए कर्मचारियों को अनुबंध पर नियुक्त करना चाहिए।
सरकार को आपसी सहमति के आधार पर नवीनीकरण की संभावना के साथ, 5 साल की अवधि के लिए रिक्तियों को भरने के लिए बाजार दरों पर लोगों को नियुक्त करना चाहिए। नियुक्ति प्रक्रिया को सरल बनाया जाना चाहिए, जिससे संबंधित विभागाध्यक्षों को निर्णय लेने की अनुमति मिल सके। इसी प्रकार सीमित स्थायी नियुक्तियों के लिए भी कार्यकाल 20 वर्ष तक सीमित होना चाहिए। 20 वर्षों के बाद, केवल सर्वश्रेष्ठ अधिकारियों को सेना के समान कड़ाई से पदानुक्रमित नौकरशाही संरचना में उच्च स्तर पर पदोन्नत किया जाना चाहिए। यदि सरकार सरकारी कर्मचारियों की नियुक्ति और रोजगार की स्थितियों को बदलने के लिए महत्वपूर्ण कदम नहीं उठाती, तो इससे न केवल भारतीय युवा रोजगार से वंचित रहेंगे बल्कि मौजूदा भर्ती प्रथाएं भारत को दिवालियापन की ओर धकेल सकती हैं।

संदर्भ
https://tinyurl.com/3rpkz45h
https://tinyurl.com/4pdxr58t
https://tinyurl.com/357b3crx

चित्र संदर्भ

1. विभिन्न पेशेवरों को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. एक सरकारी कर्मचारी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. पढाई करती युवतियों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. सरकारी मंत्रियों को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
5. सरकारी भवन के बाहर युवाओं को दर्शाता चित्रण (Max Pixel)



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