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क्या आप जानते हैं कि हमारे शहर लखनऊ के चिड़ियाघर ‘नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान’ के योजना निर्माता कौन थे? वह थे सर पैट्रिक गेडेस (Sir Patrick Geddes), जो स्कॉटलैंड (Scotland) के एडिनबर्ग (Edinburgh) शहर के निवासी एवं शहरी नियोजक थे तथा जिन्हें “पर्यावरण-अनुकूल शहरी नियोजन” के जनक के रूप में जाना जाता है। लखनऊ के ‘नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान’ की स्थापना 29 नवंबर, 1921 को वेल्स के राजकुमार, ‘एडवर्ड’ (Prince of Wales (Edward) की लखनऊ यात्रा की स्मृति के रूप में की गई थी। 9 दिसंबर 1921 को वेल्स के राजकुमार लखनऊ पहुंचे और उन्होंने यहां चार दिन बिताए थे। अपने प्रवास के दौरान, राजकुमार ने किंग जॉर्ज अस्पताल (King George’s Hospital) का दौरा किया, जिमखाना (Gymkhana) में सवारी की तथा लखनऊ रेजीडेंसी (Lucknow Residency) के खंडहरों का दौरा किया, जहां वर्ष 1857 में भारतीय विद्रोह हुआ था। राजकुमार ने अपनी भारत यात्रा मूल रूप से भारत में ब्रिटिश राजशाही (British East India Company) के कुछ उपनिवेशों का दौरा करने के लक्ष्य के रूप में की थी। क्योंकि, तब प्रथम विश्व युद्ध बस खत्म ही हुआ था, और इन उपनिवेशों को सैन्य शक्ति और आर्थिक रूप से भारी नुकसान हुआ था। यह दौरा ब्रिटिश राज के लिए एक प्रचार ही था, क्योंकि तब भारत अकाल से भी जूझ रहा था और अंग्रेज, युद्ध में मारे गए 70,000 से अधिक भारतीयों की मौत के कारण आपदा में था।
जबकि गेडेस ने उद्यान का निर्माण लखनऊ सुधार योजना के रूप में किया था। उनकी शहरी नियोजन में विशेषज्ञता थी। भारत में उन्होंने दिल्ली, इंदौर एवं हमारे लखनऊ शहर के लिए नियोजन तथा योजना की थी। इंदौर और लखनऊ के निर्माण में गेडेस के कई डिज़ाइन अपनाए भी गए थे। दरअसल, पैट्रिक गेडेस उनके चिड़ियाघर के लिए हैम्बर्ग (Hamburg, Germany) के पास स्थित, जर्मनी के सबसे प्रथम चिड़ियाघर, न्यूयॉर्क जूलॉजिकल पार्क (New York Zoological Park) से प्रेरित हुए थे जिसे हेगनबेक (Hagenbeck) ने डिजाइन किया था। दरअसल न्यूयॉर्क के इस उद्यान में जानवरों को उनके प्राकृतिक आवास में ही रखने का प्रयास किया गया था। हेगनबेक एशिया (Asia) और अफ्रीका (Africa) से यूरोप (Europe) में विदेशी जानवरों को आयात करते थे। इसके अलावा जर्मन विकासवादी जीवविज्ञानी, अर्न्स्ट हेकेल (Ernst Haeckel) के काम ने भी गेडेस को लखनऊ चिड़ियाघर के डिजाइन की संकल्पना करने के लिए प्रेरित किया, जहां मानव सभ्यता को दोबारा दोहराया जा सके। उन्होंने जीवन और पर्यावरण के बीच परस्पर संबंध के एक मॉडल के रूप में एक शहर के भीतर चिड़ियाघर की स्थापना की, जो एक आदर्श शहर के लिए एक मॉडल बन जाता है, एक ऐसा शहर जो अपने क्षेत्र के भीतर, मानव विकास की उच्चतम उपलब्धि को दर्शाता है।
उद्यान की स्थापना की कल्पना तत्कालीन गवर्नर ‘सर हरकोर्ट बटलर’ (Sir Harcourt Butler) की थी। वास्तव में, यह चिड़ियाघर शुरूआत में एक शाही बाग था, जिसे नवाब गाजी-उद-दीन हैदर (1814-1827) के समय में बनाया गया था। फिर बाद में नवाब नसीरुद्दीन हैदर (1827-1837) ने इस बाग का नाम बदलकर बनारसी बाग कर दिया। कहा तो यह भी जाता है कि नसीरुद्दीन हैदर के काल में यह बाग एक आम का बगीचा था। आज भी, कई स्थानीय लोग अपनी बोलचाल की भाषा में इसे बनारसी बाग ही कहते हैं। नवाबों द्वारा शाम के समय बैठने के लिए यहाँ एक बारादरी बनवाई गई थी, जो आज भी पूरी भव्यता और गरिमा के साथ इस प्राणी उद्यान के मध्य में स्थित है।
वर्ष 1862 में अवध के मुख्य आयुक्त, चार्ल्स विंगफील्ड (Charles Wingfield) के नाम पर इस उद्यान का नाम बदलकर विंगफील्ड पार्क (Wingfield Park) कर दिया गया। 1921 में, वेल्स के राजकुमार की भारत यात्रा के उपलक्ष्य में उद्यान को उनके नाम पर “प्रिंस ऑफ वेल्स जूलॉजिकल गार्डन ट्रस्ट” (Prince of Wales Zoological Gardens Trust) के नाम से एक चिड़ियाघर में बदल दिया गया। इसके बाद, वर्ष 2001 में इस प्राणी उद्यान के नाम को “प्रिंस ऑफ वेल्स जूलॉजिकल गार्डन ट्रस्ट” से बदलकर “लखनऊ प्राणी उद्यान” कर दिया गया था। जबकि, एक बार फिर वर्ष 2015 में प्राणी उद्यान का नाम “लखनऊ प्राणी उद्यान” से बदलकर “नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान” कर दिया गया।
हालांकि अब तक तो इस उद्यान के केवल नाम ही बदलते थे किंतु अब इस उद्यान का स्थान ही बदलने वाला है। अब यह चिड़ियाघर जल्द ही राज्य की राजधानी से बाहर एक नए स्थान पर अर्थात कुकरैल वन क्षेत्र में स्थानांतरित होने वाला है। लखनऊ चिड़ियाघर को स्थानांतरित करने की योजना के साथ ही कुकरैल चिड़ियाघर और रात्रि सफारी परियोजना को वन विभाग ने इस वर्ष के अंत तक पूरा करने का लक्ष्य रखा है। कुकरैल के 2,027 हेक्टेयर वन क्षेत्र में चिड़ियाघर और रात्रि सफारी उद्यान का निर्माण किया जाएगा।
यह परियोजना राज्य में पर्यावरण पर्यटन को बढ़ावा देगी। इससे स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन भी होगा और आसपास के क्षेत्रों में सांस्कृतिक, आर्थिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा मिलेगा। इसके अलावा, इससे वन्यजीव संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा और वन्यजीव और वनों के बारे में जागरूकता बढ़ेगी।
इस उद्यान में कई दुर्लभ प्रजाति के पेड़ पाए जाते है, जिनमें पारिजात और बरगद आदि शामिल हैं। कहा जाता है कि यहां का पारिजात का एक पेड़ 100 साल से भी अधिक पुराना है। इस उद्यान में स्तनधारियों, पक्षियों और सरीसृपों की 100 से भी अधिक प्रजातियां हैं। लेकिन अब इन्हें, कुकरैल में उनके नए आवास में स्थानांतरित किया जाएगा, जो उनके वर्तमान आवास अर्थात लखनऊ चिड़ियाघर के आकार से दोगुने आकार का है। वर्तमान में हजरतगंज परिसर में स्थित यह उद्यान 29 हेक्टेयर भूमि क्षेत्र में फैला हुआ है, जबकि नए उद्यान का भूमि क्षेत्र 60 हेक्टेयर से अधिक होगा। 1921 में उद्यान की स्थापना होने के बाद, वर्ष 1950 तक यह उद्यान विभिन्न निकायों के तहत प्रबंधित था। फिर 1966 में इसका प्रशासनिक नियंत्रण वन विभाग को दे दिया गया था।
संदर्भ
https://tinyurl.com/46ndd4j9
https://tinyurl.com/27mtx9sc
https://tinyurl.com/4kvry7c9
https://tinyurl.com/3tujuppv
https://tinyurl.com/4pdn3ps9
https://tinyurl.com/5n7v5mf4
चित्र संदर्भ
1. लखनऊ प्राणी उद्यान को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. लखनऊ प्राणी उद्यान के गेट को दर्शाता चित्रण (youtube)
3. कुकरैल वन क्षेत्र को दर्शाता चित्रण (youtube)
4. कुकरैल वन क्षेत्र के भीतरी दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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