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क्या आप जानते हैं कि भारत में 46% सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें से 29% आपराधिक मामले बेहद गंभीर हैं। इस प्रकार के चिंताजनक आंकड़ों को देखकर किसी के मन में भी यह प्रश्न उठ सकता है कि, चोर के कंधों पर खजाने की रखवाली की ज़िम्मेदारी देना कितना उचित है?
राजनीति के अपराधीकरण का सीधा अर्थ यही होता है कि राजनीति में अपराधियों की भागीदारी बढ़ रही है। अर्थात आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति चुनाव में भाग लेते हैं और संसद या राज्य विधानमंडल के सदस्य के रूप में चुने जाते हैं। आज यह व्यापक रूप से माना जा रहा है कि राजनीति उस मुकाम पर पहुंच गई जहां विधायक ही कानून तोड़ने वाले बन गए है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में अपराधियों और राजनीति के बीच बढ़ता गठजोड़ सच्चे लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए एक बड़ा खतरा बन गया है। वास्तव में राजनीति में बिना आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों की तुलना में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों का प्रभाव अधिक होता है।
आइये आपराधिक पृष्ठभूमि वाले संसद सदस्यों के बढ़ते प्रतिशत पर एक नजर डालते है:
2004- 24%
2009-30%
2014-34%
2019-43%
संसद सदस्यों (सांसदों) के खिलाफ आपराधिक मामले
संसद में आपराधिक रिकॉर्ड वाले सदस्यों की बढ़ती संख्या किसी भी स्वस्थ लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा मानी जाती है। भारत में राजनीति के अपराधीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति राज्य तंत्र के राजनीतिक नियंत्रण, भ्रष्टाचार, वोट बैंक की राजनीति और कानूनी व्यवस्था में खामियों से जुड़ी है। कुछ राजनेता अवैध गतिविधियों को करने हेतु पुलिस जैसी सरकारी एजेंसियों को नियंत्रित करके अपनी शक्ति का उपयोग करते हैं। जब आपराधिक गतिविधियों में शामिल राजनेता सरकारी अधिकारियों के ऊपर बैठ जाते हैं, तो वे अपने फायदे के लिए सरकारी कार्यप्रणाली का इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे अधिकारियों द्वारा भ्रष्ट प्रथाओं को प्रोत्साहित भी किया जा सकता है।
राजनीति का अपराधीकरण, समाज में हिंसा की संस्कृति को संदर्भित करता है, जो युवा लोगों के अनुसरण के लिए एक गलत मिसाल कायम करता है। यह एक शासन प्रणाली के रूप में लोकतंत्र में लोगों के विश्वास को भी कम कर सकता है। राजनीति का अपराधीकरण लोकतंत्र के तीन मुख्य स्तंभों, अर्थात् संसद, न्यायपालिका और कार्यपालिका को कमजोर करता है। यह एक लोकतांत्रिक प्रणाली की मौलिक अवधारणा को उलट सकता है, जो एक लोकतांत्रिक देश के रूप में भारत के भविष्य के लिए हानिकारक हो सकता है।
आइये अब आपराधिक उम्मीदवारों की अयोग्यता पर कानूनी पहलू / संवैधानिक प्रावधान पर एक नजर डालते हैं:
भारत के विधि आयोग द्वारा अपनी 179वीं रिपोर्ट में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में संशोधन की सिफारिश की। इसके तहत सुझाव दिया गया कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को पांच साल के लिए या दोषमुक्त होने तक अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए। साथ ही यह भी सिफारिश की गई कि जो व्यक्ति चुनाव लड़ना चाहता है, उसे किसी भी लंबित मामले के बारे में प्राथमिकी/शिकायत की प्रति (Photocopy) के साथ विवरण तथा सभी संपत्तियों का भी विवरण प्रस्तुत करना होगा। लेकिन राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति की कमी के कारण सरकार द्वारा सिफारिश पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।
एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (Association of Democratic Reforms) में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले में, धारा 33-ए को सम्मिलित करके लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में संशोधन किया गया था, जिसमें एक उम्मीदवार को यह जानकारी देने की आवश्यकता होती है कि क्या वह दो साल के कारावास के साथ किसी अपराध का आरोपी है या कोई लंबित मामले जिनमें आरोप तय किए गए हैं तथा क्या उन्हें एक वर्ष या उससे अधिक के लिए दोषी ठहराया गया है।
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में चुनाव लड़ने के लिए किसी व्यक्ति को अयोग्य घोषित करने के मानदंड का उल्लेख है। अधिनियम की धारा 8 में कहा गया है कि दो साल से अधिक की जेल की सजा पाने वाला व्यक्ति जेल की अवधि समाप्त होने के बाद छह साल तक चुनाव नहीं लड़ सकता है।
आइये अब राजनीति के अपराधीकरण के कारणों पर एक नजर डालते हैं:
१. राजनीति के अपराधीकरण का सबसे महत्वपूर्ण कारण राजनेताओं और नौकरशाही के बीच बढ़ती सांठगांठ है।
२. प्रशासन, लोकतंत्र और कानून में राजनेताओं के बढ़ते हस्तक्षेप को भी राजनीति के अपराधीकरण का एक अन्य कारण माना जा सकता है।
३. चुनाव के समय, राजनीतिक दल, वोट खरीदने के लिए बड़ी रकम खर्च करते हैं, इस दौरान मतदाता भी इस बात पर ध्यान नहीं देते हैं कि वे किसे वोट देने जा रहे हैं? या यह कि राजनीतिक दल के पास इतनी बड़ी रकम आई कहाँ से?
४. राजनीति के अपराधीकरण को बढ़ाने में देश का कुशासन भी अहम भूमिका निभाता है, जिसके तहत चुनाव की प्रक्रिया को नियंत्रित करने के लिए उचित कानून और नियम नहीं हैं।
५.राजनीति के अपराधीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति राज्य मशीनरी पर राजनीतिक नियंत्रण, भ्रष्टाचार, वोट बैंक की राजनीति और सबसे बढ़कर, कानूनी व्यवस्था में खामियों से भी जुड़ी हुई है।
आइये अब सुझाए गए उपायों पर एक नजर डालते हैं?
•आरपी अधिनियम ( RP: Representation of the People) में संशोधन करके ऐसे व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से रोका जा सकता है जिनके ऊपर कोई गंभीर आरोप लगा हुआ हो।
•अपने नेता को चुनने या वोट देने से पहले मतदाताओं के लिए एक प्रकार का जागरूकता कार्यक्रम शुरू किया जाना चाहिए ताकि वे उस व्यक्ति की आपराधिक पृष्ठभूमि को जान सकें।
•राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के लिए चुनाव आयोग को अधिक अधिकारों के साथ, आयोग को और अधिक मजबूती देनी चाहिए। br>
•आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को टिकट देने वाले राजनीतिक दलों पर जुर्माना लगाया जाना चाहिए।
•चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति के आपराधिक रिकॉर्ड का प्रकाशन पार्टी की वेबसाइट (Website) के बजाय आम जनता के लिए आसानी से उपलब्ध हो, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश लोग इंटरनेट के उपयोग को ठीक से नहीं जानते हैं।
•इस मुद्दे के समाधान के लिए न्यायिक प्रक्रिया को तेज करने के प्रयास किए जा सकते हैं, जिससे भ्रष्टाचार और आपराधिक गतिविधियों को जड़ से खत्म करने में मदद मिलेगी।
•सभी राजनीतिक दलों के लिए एक साथ आना और गंभीर आपराधिक आरोपों वाले व्यक्तियों को राजनीतिक व्यवस्था से बाहर रखने के लिए आम सहमति विकसित करना भी महत्वपूर्ण है।
•यह भी सुनिश्चित करना आवश्यक है कि सार्वजनिक जीवन में अपराधियों और भ्रष्टाचारियों के प्रति कोई नरमी न बरती जाए।
इस संदर्भ में आवश्यक कदम उठाते हुए, भारतीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा राजनीतिक दलों को आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को चुनने से रोकने में मदद करने के लिए एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले कुछ वर्षों में कुछ महत्वपूर्ण फैसले देकर इस समस्या को हल करने की कोशिश की है। उदाहरण के लिए,
➼2013 में, यह कहा गया कि सजायाफ्ता राजनेताओं को उनके पदों से तुरंत अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए।
➼2014 में, यह आदेश दिया कि निर्वाचित प्रतिनिधियों के लिए परीक्षण एक वर्ष के भीतर पूरा किया जाना चाहिए।
➼2017 में, सरकार को राजनेताओं के खिलाफ मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतें बनाने और राजनीतिक दलों को मतदाताओं को उनके उम्मीदवारों के आपराधिक मामलों के बारे में बताने के लिए कहा।
दुर्भाग्य से, ये अहम् फैसले भी आपराधिक पृष्ठभूमि वाले राजनेताओं को निर्वाचित होने से नहीं रोक पाए। क्यों कि इसके लिए कानून में बदलाव की आवश्यकता होगी, जिसे केवल संसद द्वारा ही किया जा सकता है। दुर्भाग्य से, संसद के कई सदस्यों की खुद की आपराधिक पृष्ठभूमि रही है, इसलिए वे कानून को बदलने की मूर्खता क्यों करेंगे! यह वास्तव में भारतीय लोकतंत्र के लिए एक बड़ी समस्या है। भारत में अनेक लोकतान्त्रिक संस्थाएँ होते हुए भी वे सदैव प्रभावी नहीं होती हैं। कई राजनेता भ्रष्ट हैं, और वे अपने पदों का उपयोग उन लोगों के बजाय खुद को लाभ पहुँचाने के लिए करते हैं। इसे ठीक करने के लिए, लोगों को मुद्दों के बारे में अधिक जागरूक और एकजुट होने की आवश्यकता है। तभी हम एक ऐसी व्यवस्था बनाने की उम्मीद कर सकते हैं जहां राजनेताओं को उनकी क्षमताओं के लिए चुना जाए, न कि उनकी आपराधिक पृष्ठभूमि के आधार पर।
संदर्भ
https://bit.ly/41AmElR
https://bit.ly/3mG0yzB
https://bit.ly/40j7K2b
https://bit.ly/3A6oAXu
चित्र संदर्भ
1. राजनीतिक अखाड़े में अपराधी को संदर्भित करता एक चित्रण (Prarang)
2. राजनैतिक रैली को दर्शाता एक चित्रण (Prarang)
3. दिल्ली में राजनैतिक रैली को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
4. चुनाव लड़ने से प्रतिबन्ध को संदर्भित करता एक चित्रण (Prarang)
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