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रामपुर को अपनी समृद्ध पाक विरासत के लिए जाना जाता है, तथा मुरब्बा इन पारंपरिक व्यंजनों का ही एक हिस्सा है।इसे रामपुर सहित भारत के लगभग हर घर में बनाया जाता है। रामपुर अपने आम के मुरब्बे के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है, जिसे बनाने के लिए यहां आम की स्थानीय किस्म रामपुरी आम का उपयोग किया जाता है। आम का मुरब्बा रामपुर में एक लोकप्रिय मिठाई है और इसे अक्सर यहां त्योहारों और विशेष अवसरों पर परोसा जाता है।तो चलिए आज आम की मुरब्बा रेसिपी के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं तथा जानते हैं, कि इसकी उत्पत्ति कैसे हुई?
मुरब्बा एक प्रकार का मीठा व्यंजन है, जिसे बनाने के लिए फलों को चीनी की चाशनी में पकाया जाता है।
फलों को चाशनी में तब तक पकाया जाता है जब तक कि वे नर्म न हो जाएं और चाशनी गाढ़ी न हो जाए।आम का मुरब्बा एक मीठा और खट्टा, सुगंधित कच्चे आम से बना मुरब्बा है, जिसे भारतीय जैम भी कहा जा सकता है। यह उन तरीकों में से एक है जिससे आप आम को संरक्षित कर सकते हैं तथा उस सीजन में भी इसका आनंद ले सकते हैं, जब आम मौजूद नहीं होता। मुरब्बे में इलायची और केसर का स्वाद इसे और भी अधिक स्वादिष्ट बना देता है।मुरब्बा, जिसके औषधीय लाभ भी होते हैं,को सूखे और गीले दोनों तरीकों से तैयार किया जा सकता है। आम के अलावा आंवला, खरबूज,सेब, बेर, खुबानी आदि से भी मुरब्बा तैयार किया जा सकता है तथा चपाती, थेपला, आलू पराठा, खिचड़ी आदि के साथ परोसा जा सकता है।
मुरब्बे की उत्पत्ति की कहानी वैश्विक व्यापार, विजय, प्रवासन और खाद्य विज्ञान के साथ जुड़ी हुई है। मुरब्बा शब्द अरबी भाषा का शब्द है। इब्न सय्यर अल-वर्राक की 10वीं सदी की रसोई की किताब “एनल्स ऑफ द खलीफ्स किचन (Annals of the Caliphs’ Kitchen) में मुरब्बायत (मुरब्बे) की तैयारी के लिए एक पूरा अध्याय लिखा गया है। इसमें अदरक, खजूर, खीरा, नींबू और अन्य फलों से बने मुरब्बे की रेसिपी मौजूद है।अरब के लोग अपने मुरब्बों को जड़ी-बूटियों और मसालों के साथ बनाते थे और उनके औषधीय गुणों के लिए उन्हें खाते थे। मुरब्बे के लिए वे शब्द “अंबिजत” का उपयोग करते थे।
अंबिज आम के लिए उपयोग किया जाने वाले फारसी शब्द ‘अंबाह’ का पुराना अरबी संस्करण है।आम तौर पर जैम के लिए अंबिजत शब्द का प्रयोग किया जाता है।विद्वानों का कहना है, कि प्राचीन भारतीय परंपरा में आम को शहद में संरक्षित किया जाता था, तथा यह प्रक्रिया अरब में बेतहाशा लोकप्रिय थी, जिसे वे अंबिजत कहते थे।संयोग से, जब लाहौर के गवर्नर दौलत खान लोधी ने बाबर को दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी से लड़ने के लिए आमंत्रित किया, तो निमंत्रण के साथ शहद में संरक्षित आधे पके आम भी भेजे। बाबर ने इसे एक शुभ शगुन के रूप में देखा और भारत की यात्रा करने का फैसला किया। ऐसा माना जाता है कि भारत में मुरब्बा बनाने की कला पश्चिमी एशिया (Asia) से आई थी, हालांकि बाबर के उपाख्यान से यह मालूम होता है कि चाशनी में फलों को संरक्षित करने की तकनीक मुगलों के आगमन से पहले की है।
एक लोकप्रिय परिकल्पना के अनुसार मुरब्बा वर्तमान जॉर्जिया (Georgia) के गुरजिस्तान (Gurjistan) के खानाबदोश जनजातियों के साथ यहां पहुंचा।कुछ लोग पुर्तगालियों को भारत में मुरब्बे की रेसिपी को लाने का श्रेय देते हैं। खाद्य इतिहासकार माइकल क्रोंडल (Michael Krondl) का मानना है कि चीनी में फलों को संरक्षित करने की तकनीक पुर्तगालियों की थी।1800 के दशक की शुरुआत में, स्कॉटिश चिकित्सक-वनस्पतिशास्त्री फ्रांसिस हैमिल्टन (Francis Hamilton) ने लिखा था, कि मालदेह (वर्तमान में मालदा - Malda) अपने मोरोबा (मुरब्बा) के लिए प्रसिद्ध था, जो भारत के पश्चिम से आए "मोहम्मदों" द्वारा शुरू की गई एक कला थी।मूल कहानी भले ही कुछ भी हो, लेकिन यह सत्य है कि मुग़ल महाकाव्यों की मदद से तथा अपनी लोकप्रियता से मुरब्बे ने देश की पाक संस्कृति में अपना स्थान पक्का किया। मुगल बादशाह साल भर अपने पसंदीदा फलों का आनंद लेना चाहते थे और इसलिए उनका संरक्षण एक चिंता का विषय बन गया। मसालों से भरे अचारों की एक श्रृंखला के साथ,स्वादिष्ट फलों और चीनी से बने मीठे मुरब्बे को भी शाही भोजन में शामिल कर लिया गया।
विशिष्ट स्वाद के अलावा मुरब्बे के कई औषधीय गुण भी हैं।उदाहरण के लिए, बेल के मुरब्बे को दस्त और पेचिश जैसी पेट की बीमारियों को ठीक करने के लिए खाया जाता है।अदरक के मुरब्बे को खांसी और सर्दी के लिए तथा आंवले के मुरब्बे को प्रतिरक्षा बढ़ाने और पाचन में सहायता करने के लिए खाया जाता है।आंवले में क्रोमियम, जिंक, कॉपर, आयरन और अन्य खनिज प्रचुर मात्रा में होते हैं, इसलिए इसके मुरब्बे का सेवन शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करने में सहायक है। यह जोड़ों की सूजन,अल्सर, कब्ज, खून की कमी, कील और मुँहासे, मासिक धर्म में ऐंठन, दृष्टि दोष आदि के उपचार में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। तो चलिए अब आम के मुरब्बे की एक रेसिपी से जानते हैं, कि आम का मुरब्बा कैसे बनाया जाता है।
आम का मुरब्बा बनाने के लिए सबसे पहले कच्चे आमों को धोकर सुखा लीजिये, तथा फिर उन्हें छील लीजिए। इसके बाद आम को कद्दूकस कीजिए तथा 4 से 5 हरी इलायची और 1-2 लौंग को ओखली में पीस लीजिए।
एक पैन में 1.5 कप चीनी के साथ कद्दूकस किया हुआ आम लीजिए। चीनी की मात्रा आम के खट्टेपन और आपके स्वाद पर निर्भर करती है। चीनी की जगह गुड़ के पाउडर का उपयोग भी किया जा सकता है।अब मिश्रण को धीमी आंच पर पकाएं तथा अच्छे से मिलाते रहें।मिश्रण को चलाते रहें, ताकि चीनी क्रिस्टलाइज (Crystalize) न हो।जब चीनी की चाशनी पकने लगे तो आप देखेंगे कि मिश्रण में बुदबुदाहट आ रही है और मिश्रण गाढ़ा होने लगेगा।जब मिश्रण में चीनी 2 तार की हो जाए तो गैस बंद कर दें।
पिसी हुई इलायची और लौंग को मिश्रण में मिलाएं। ठंडा होने पर आम के मुरब्बे को एक साफ कांच के जार या बोतल में डालें। रेफ्रिजरेटर में यह 3 महीने से अधिक समय तक और कमरे के तापमान पर लगभग 15 से 20 दिनों तक सुरक्षित रहता है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3KJ1qvl
https://bit.ly/3A1TRuK
https://bit.ly/3L7V4qO
https://bit.ly/3UHoe2V
चित्र संदर्भ
1. आम के मुरब्बे को संदर्भित करता एक चित्रण (wikipedia)
2. आम मुरब्बे को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
3. इब्न सय्यर अल-वर्राक की 10वीं सदी की रसोई की किताब “एनल्स ऑफ द खलीफ्स किचन को दर्शाता एक चित्रण (amazon)
4. आंवले के मुरब्बे को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
5. आम के मुरब्बे को संदर्भित करता एक चित्रण (wikipedia)
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