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हमारे शहर लखनऊ में हनुमान जी को समर्पित “संकट मोचन हनुमान मंदिर” एक पवित्र हिंदू मंदिर है। लखनऊ में स्थापित इस मंदिर का इतिहास 1950 के दशक जितना पुराना है, जब नीम करौली बाबा नाम के एक तेजस्वी हिंदू संत महाराज जी ने लखनऊ में गोमती नदी के तट पर एक छोटा मंदिर बनाने का फैसला किया था। नीम करौली बाबा या नीम करौरी बाबा या महाराज जी की गणना बीसवीं शताब्दी के सबसे महान संतों में की जाती है।
नीम करौली बाबा के नाम और चमत्कारों के किस्सों से आज देश का प्रत्येक हनुमान भक्त परिचित है। जी हाँ, यह वही बाबा हैं जिनकी कृपा का जिक्र दुनिया की सबसे अधिक मूल्यवान मोबाइल फ़ोन निर्माता कंपनी ‘एप्पल’ (Apple) के संस्थापक स्टीव जॉब्स (Steve Jobs) और दुनिया की सबसे बड़ी सोशल नेटवर्किंग साइट (Social Networking Site) फेसबुक (Facebook) के संस्थापक मार्क ज़ुकेरबर्ग (Mark Zuckerberg) द्वारा भी किया गया है। क्या आप जानते है कि हमारे लखनऊ के संकट मोचन हनुमान मंदिर का निर्माण और अभिषेक भी बाबा नीम करौली बाबा द्वारा ही किया गया था। समय के साथ यह मंदिर स्थानीय लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय हो गया और लोग हनुमान जी से आशीर्वाद लेने के लिए यहां पर आने लगे।
हालाँकि, 1960 में, लखनऊ शहर में एक विनाशकारी बाढ़ आई और पुराना मंदिर एवं पास का पुल बह गया। किंतु इस भयानक बाढ़ का पानी भगवान हनुमान की मूर्ति को छू भी ना सका । इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने एक नए मंदिर के निर्माण के लिए एक नवनिर्मित पुल के पास भूमि का एक नया भूखंड आवंटित किया। नए मंदिर का निर्माण 1970 के दशक में पूरा हुआ था, और तब से, यह लखनऊ में सबसे प्रसिद्ध और सर्वाधिक देखे जाने वाले मंदिरों में से एक बन गया है। मंदिर, वास्तुकला की पारंपरिक हिंदू शैली में बनाया गया है, जिसकी दीवारों पर जटिल नक्काशी और सुंदर चित्रकारी की गई हैं। आसपास के सभी क्षेत्रों के लोग इस संकटमोचन हनुमान मंदिर में पूजा करने और हनुमानजी से आशीर्वाद लेने आते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में प्रार्थना करने से लोगों की कठिनाइयां दूर होती हैं और उनके जीवन में सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। यह मंदिर हनुमान जन्मोत्सव और नवरात्रि जैसे विशेष अवसरों के दौरान अपने जीवंत और उत्सवपूर्ण माहौल के लिए भी जाना जाता है।
आप सभी हनुमान जी के भक्तों को यह जानकर प्रसन्नता होगी कि जल्द ही हमारे लखनऊ शहर में भगवान हनुमान की बहुत बड़ी प्रतिमा की स्थापना भी होने वाली है। यह प्रतिमा 108 फुट ऊँची होगी जिसे गोमती नदी के किनारे हनुमत धाम में स्थापित किया जायेगा । हनुमत धाम हनुमान भक्तों के लिए एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है और लखनऊ शहर में एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल माना जाता है। झूलेलाल पार्क में भगवान लक्ष्मण की प्रस्तावित 151 फीट की मूर्ति के बाद यह प्रतिमा लखनऊ में दूसरी सबसे ऊंची प्रतिमा होगी। प्रतिमा को शहर के इकाना स्टेडियम (Ekana Stadium) को डिजाइन करने वाले सिन्हा बंधुओं द्वारा डिजाइन किया गया है । प्रतिमा का निर्माण हनुमत धाम में करीब ढाई एकड़ जमीन पर किया जाएगा। हरिद्वार में भगवान शिव की मूर्ति की ही भांति इस प्रतिमा में भी हनुमान जी बैठे हुए दिखाई देंगे। प्रतिमा के जीर्णोद्धार और स्थापना से क्षेत्र में पर्यटन को और बढ़ावा मिलने और शहर में अधिक आगंतुकों को आकर्षित करने की उम्मीद है। भगवान हनुमान की यह नई प्रतिमा भक्तों तथा आगंतुकों के लिए आस्था और भक्ति का प्रतीक होने वाली है।
सनातन धर्म के अनुसार, प्रत्येक देवता हमारे प्रबुद्ध मन के एक पहलू का प्रतिनिधित्व करते हैं। एक प्रमाण के तौर पर पवन पुत्र हनुमान हमारे मन के प्रतीक माने जाते हैं जो अनुशासन, सेवा, निश्छलता और भक्ति से परिपूर्ण हैं। एक बार जब प्रभु श्री राम ने उनसे पूछा, “हनुमान आप मुझे कैसे देखते हैं?"
तब हनुमान जी इस प्रश्न का उत्तर तीन-भागों में देते हैं-
“जब मैं मानता हूं कि मैं शरीर हूं, तब मैं आपका वफादार सेवक हूं। जब मैं जानता हूँ कि मैं आत्मा हूँ, तो मैं स्वयं को आपके शाश्वत प्रकाश की चिंगारी के रूप में मानता हूँ। और जब मुझे सत्य का दर्शन होता है, तो मेरे प्रभु, मुझे आप और मैं, एक ही दिखाई देते हैं।”
अपने इस उत्तर के साथ हनुमान जी हमें वे तीन अवस्थाएँ दिखाते हैं जिनसे होकर हम अपनी आध्यात्मिक खोज की राह परप्रवाहित होते हैं:
१. पहले उत्तर के अनुसार कई बार हम अपने व्यक्तित्व के साथ तादात्म्य स्थापित कर लेते हैं, और अपने शरीर (मन और अहंकार) को ही “मैं” मान लेते हैं। उस समय हम मान सकते हैं कि हम यहां भगवान का काम करने और उसके हर रूप की सेवा करने के लिए आए हैं। यह सेवा के योग ‘कर्मयोग’ की नींव है।
२. वही एक स्तर ऊपर उठकर जब हम महसूस करते हैं कि हम उस ईश्वर का ही एक रूप हैं। तब हम महसूस करते हैं कि हम ईश्वरीय प्रकाश से अलग नहीं हैं और हमारा अस्तित्व हमारे अंदर विद्यमान ईश्वर की उपस्थिति की ही अभिव्यक्ति है। यहीं पर भक्ति और राजयोग का समागम होता है।
३. लेकिन तीसरे स्तर पर हमारी धारणा में सबसे नाटकीय बदलाव तब होता है जब सभी परदे उठ जाते हैं और हमें सत्य का दर्शन होता है। तब हम यह जान लेते हैं कि हम सभी एक हैं, हम ही स्रोत हैं और हम ही तत्व हैं । यह स्तर ज्ञान योग की धारणा पर केंद्रित है।
जो चीज़ हनुमान जी को इस पूर्ण दृष्टि को प्राप्त करने की अनुमति देती है वह है उनका विश्वास और उनकी श्रद्धा। यह विश्वास साधना के पांच आवश्यक स्तरों का मूल माना जाता है। सच्चा विश्वास सत्य के प्रत्यक्ष अनुभव पर आधारित होता है। यह हमें शक्ति देता है, जो हमें जीवन के उतार-चढ़ाव में अविचलित रहने की अनुमति देता है। जैसे-जैसे हमारी क्षमता बढ़ती है, यह हमारी याददाश्त (स्मृति) को भी विकसित करती है, और हम अपने विस्मृत स्रोत की निरंतर याद की स्थिति में आ जाते हैं।
जैसे-जैसे हम अपने भीतर विद्यमान दिव्य उपस्थिति पर ध्यान केंद्रित करते हैं, हमें अनुभव होता है कि प्रेम के दाता और प्राप्तकर्ता अर्थात प्रेमी और प्रेमिका हम खुद ही हैं। यह प्रबुद्ध अवस्था की स्पष्ट धारणा है अर्थात पूर्ण ज्ञान (प्रज्ञा) की प्राप्ति है । हमें पता चलता है कि हम, वह सब हैं जो मौजूद हैं, हम एक हैं जो कई रूप में दिखाई देते हैं ।
हनुमान जी का स्वभाव भी ऐसा ही है, उन में वह आस्था है जो पहाड़ों को हिला देती है, और सभी चीजों में भगवान की सेवा करती है। उनका मन पूरी तरह से परमात्मा पर केंद्रित है वह खुद को जानता है और सभी भय से मुक्त है। बजरंगबली को शक्ति और भक्ति का देवता माना जाता है। इन्हें संकटमोचन के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है “जो कठिनाइयों से मुक्ति दिलाता है।"
संदर्भ
https://bit.ly/3ZwQZAp
https://bit.ly/2zYiY3s
https://bit.ly/42YMLV4
चित्र संदर्भ
1. बाबा नीम करौली द्वारा निर्मित लखनऊ के संकट मोचन हनुमान मंदिर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. नीम करौली बाबा को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. लखनऊ के संकट मोचन हनुमान मंदिर के प्रवेश द्वार को दर्शाता चित्रण (flickr)
4. जाखू हनुमान जी की मूर्ति को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. राम-लखन को अपने कंधों में उठाए हनुमान जी को दर्शाता एक चित्रण (creazilla)
6. हनुमान जी को अंगूठी देते प्रभु श्री राम को संदर्भित करता एक चित्रण (creazilla)
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