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उत्तर प्रदेश सरकार का कहना है कि ‘नमामि गंगे’ कार्यक्रम के माध्यम से गंगा नदी के पानी की गुणवत्ता में सुधार हुआ हैं। इसका फायदा यह हो रहा हैं कि गंगा नदी में पाई जाने वाली डॉल्फ़िन (Dolphin) अब पानी साफ होने के कारण नदी में वापस दिखने लगी हैं। सरकार का दावा है कि 2014 में शुरू हुए इस महत्वाकांक्षी कार्यक्रम के तहत 23 परियोजनाओं को पूरा किया गया हैं। इसी कार्यक्रम के तहत राज्य में प्रति दिन 460 मिलियन लीटर से अधिक अपशिष्ट जल को गंगा में बहने से सफलतापूर्वक रोका गया है। इस परियोजना के तहत झांसी, कानपुर, उन्नाव, शुक्लागंज, सुल्तानपुर, बुढाना, जौनपुर और बागपत जिलों में लगभग 33 न्यूनतम तरल निर्वहन (Minimal Liquid Discharge (MLD) क्षमता के अतिरिक्त अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र भी बनाए जा रहे हैं जिसकी लागत लगभग ₹2304.55 करोड़ होगी।
अच्छा जलीय जीवन किसी भी नदी के स्वास्थ्य का सूचक होता है। डॉल्फ़िन की गंगा नदी में उपस्थिति इंगित करती है कि नदी का पानी ताज़ा और स्वच्छ है। साथ ही, ये डॉल्फ़िन नदी के पारिस्थितिकी तंत्र की खाद्य श्रृंखला के शीर्ष पर हैं और उनकी घटती संख्या नदी के पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को गंभीर रूप से प्रभावित करती है । अतः इनका नदी में रहना महत्वपूर्ण हैं। विश्व में डॉल्फिन की कुल 88 ज्ञात प्रजातियों में से केवल चार प्रजातियां ही मीठे पानी की हैं। उनमें से एक प्रजाति हमारे भारत में गंगा नदी में पाई जाती है। इस डॉल्फिन का वैज्ञानिक नाम प्लैटॆनिस्टा गैंगेटिका (Platanista Gangetica) हैं। गंगा डॉल्फ़िन को स्थानीय रूप से सुसु (Susu) के नाम से भी जाना जाता है। यह गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों में पाई जाती हैं। यही डॉल्फिन भारत की राष्ट्रीय जलीय जीव भी है।
किंतु आज अनियोजित विकास और बढ़ते मानव जनित दबावों ने गंगा नदी को इस शानदार प्राणी के लिए मौत का फंदा बना दिया है। गंगा-ब्रह्मपुत्र-कर्णफुली नदी प्रणालियों और अंतर्देशीय जलमार्ग परियोजना हेतु बनाए गए कई बैराजों के कारण, इस जीव के निवास स्थानों में लगातार ऐसी बाधाएं उत्पन्न होती रही हैं, जिन्होंने इस लुप्तप्राय प्रजाति के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया है। पहले डॉल्फ़िन को गंगा नदी में हिमालय की तलहटी से लेकर बंगाल की खाड़ी तक देखा जा सकता था। पहले डॉल्फ़िन गंगा और उसकी सभी सहायक नदियों में पाई जाती थी। किंतु अब उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में तथा भारत-नेपाल सीमा पर गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों पर कई बैराज बनाए जा चुके हैं। वर्षों से नदी पर बने इन बैराजों के कारण, इन डॉल्फिन की उपस्थिति अब छोटे इलाकों तक ही सीमित रह गई है। जल प्रदूषण, पनबिजली का उत्पादन, विकास परियोजनाओं और औद्योगिक अपवाह के कारण हुए निवास स्थान में गिरावट, अवैध शिकार और समुदायों के बीच जागरूकता की कमी के कारण होने वाली आकस्मिक मौतों से भी डॉल्फ़िन को खतरा है। जबकि, डॉल्फ़िन के लिए एक बड़े खतरे के रूप में नायलॉन (Nylon) जाल का उपयोग करके मछली पकड़ने की अनियंत्रित गतिविधि भी हैं।
इन सभी से न केवल डॉल्फ़िन बल्कि घड़ियाल (मगरमच्छ), कछुए तथा मछली की कई प्रजातियाँ भी प्रभावित हुई हैं। छोटे–छोटे स्थानों में सिमट जाने के कारण डॉल्फिन का प्रजनन प्रभावित होता है, जिससे इनका वितरण भी असामान्य हो गया है ।
विभिन्न प्रयासों के बावजूद, कई मानव जनित कारक अभी भी इस लुप्तप्राय डॉल्फ़िन आबादी के लिए खतरा बने हुए हैं। 2016 के बाद से, जब केंद्र सरकार ने गंगा नदी पर अंतर्देशीय जलमार्ग की घोषणा की, तो विशेषज्ञों ने चिंता जताई कि इस परियोजना से गंगा नदी में पाई जाने वाली डॉल्फ़िन और उनके आवास को खतरा होगा। इसके साथ ही एक अन्य समस्या यह भी है कि अधिकांश जलीय जानवर नदी की नहर प्रणाली में प्रवाहित हो जाते हैं, जिसके कारण भी उनके जीवन को खतरा उत्पन्न हो जाता है। डॉल्फ़िन संरक्षण कार्रवाई में यह एक गंभीर मुद्दा है। अभी हाल ही में जनवरी के महीने में एक मादा गंगा डॉल्फिन एक नहर में भटक गई थी। वह तैर कर प्रतापगढ़ जिले में लालगंज क्षेत्र की सगरा नहर में आ गई थी। 30 घंटे से अधिक समय के बचाव प्रयासों के बाद, स्थानीय मछुआरों के सहयोग से, ‘कछुआ जीवन रक्षा गठबंधन’ (Turtle Survival Alliance(TSA) द्वारा डॉल्फ़िन को नहर से बाहर निकाला गया और राजभवन घाट, कालाकांकर में गंगा नदी में छोड़े जाने वाले स्थान पर ले जाया गया। टीएसए पिछले 10 वर्षों से उत्तर प्रदेश में डॉल्फिन बचाव कार्यक्रम चला रहा है। टीएसए ने पिछले 10 वर्षों में गंगा की नहर प्रणालियों से 26 गंगा डॉल्फिन को बचाया है। डॉल्फ़िन बचाव कार्यक्रम को बढ़ावा देने के लिए विशेषज्ञों ने गंगा, ब्रह्मपुत्र और उनकी सहायक नदियों के बैराज के आसपास अधिक गश्त और शोध करने का आह्वान भी किया है।
हालांकि, यह समस्या 2013 से पहले भी मौजूद थी, लेकिन तब इन जीवों के फंसे होने और बचाव के बारे में ज्यादा जागरूकता और जानकारी उपलब्ध नहीं होती थी।
गंगा डॉल्फिन के संरक्षण की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए, केंद्र सरकार ने भारत में ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ (Project Tiger) की तर्ज पर ‘प्रोजेक्ट डॉल्फिन’ (Project Dolphin) की घोषणा भी की है। डॉल्फिन बचाने के लिए प्रोजेक्ट डॉल्फिन एक अच्छी पहल है। ‘नमामि गंगे’ कार्यक्रम के माध्यम से किए गए प्रयासों के द्वारा भी डॉल्फिन बचाव कार्यक्रम को मदद मिलेगी। इस पहल के माध्यम से, गंगा में अपशिष्ट जल की रिहाई में भारी कमी आई हैं तथा नए अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र बनाए गए है। हाल के वर्षों में कम प्रदूषण के कारण डॉल्फ़िन की संख्या में बढ़ोतरी भी हो सकती है।
हाल ही के दिनों में बृजघाट, नरौरा, कानपुर, मिर्जापुर और वाराणसी क्षेत्रों में भी डॉल्फिन के प्रजनन की खबर आई है, जिससे भविष्य में इनकी संख्या और बढ़ने की संभावना है। वर्तमान में उत्तर प्रदेश में गंगा में डॉल्फिन की कुल संख्यालगभग 600 होने का अनुमान है। नमामि गंगे कार्यक्रम का उद्देश्य एक एकीकृत दृष्टिकोण अपनाकर गंगा नदी को प्रदूषण से बचाना तथा फिर से जीवंत करना है । इसके तहत गंगा नदी में बहने वाले नालों का दोहन करके अपशिष्ट जल के अवरोधन और मोड़ पर ध्यान केंद्रित किया गया हैं। उत्तर प्रदेश में 20 स्थानों पर 2014-2022 की अवधि के दौरान नदी के पानी की गुणवत्ता के आकलन से पता चलता है कि नदी के चयनित 20 स्थानों का पानी गुणवत्ता के मानदंडों को पूरा करता है।
दिसंबर 2006 में, चीन (China) की यांग्त्ज़ी (Yangtze) नदी के गहन सर्वेक्षण के बाद उस नदी में पाई जाने वाली बैजी (Baiji) डॉल्फ़िन को विलुप्त घोषित कर दिया गया था। बैजी का विलुप्त होना 50 वर्षों में एक बड़ी स्तनपायी प्रजाति की विलुप्ति का पहला मामला है। आज दुनिया में केवल गंगा, सिंधु और अमेज़न, ये तीन ही नदियाँ हैं जहाँ मीठे पानी की डॉल्फ़िन प्रजातियाँ पाई जाती हैं। रिपोर्टों से पता चला है कि बैजी डॉल्फ़िन की संख्या में तेजी से गिरावट आई थी और उन्हें बचाने के प्रयास भी किए गए थे, लेकिन तब तक उन्हें बचाने के लिए बहुत देर हो चुकी थी। शानदार गंगा डॉल्फ़िन को इसी दुर्भाग्य से बचाने के लिए, गंगा नदी में सक्रिय कार्रवाई और सतत विकास का कोई विकल्प नहीं है।
संदर्भ
https://bit.ly/3G4ag5j
https://bit.ly/40v1UMi
https://bit.ly/42QiqI8
चित्र संदर्भ
1. गंगा नदी की शानदार डॉल्फिन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. एक भारतीय के हाथों में गंगा नदी की शानदार डॉल्फिन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. प्लैटॆनिस्टा गैंगेटिका को संदर्भित करता एक चित्रण (Rawpixel)
4. अपने प्राकृतिक आवास में गंगा नदी की शानदार डॉल्फिन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. नदी में तैरती प्लैटॆनिस्टा गैंगेटिका को दर्शाता चित्रण (flickr)
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