यह बात तो हम सभी जानते हैं कि ईरान एक मुस्लिम बहुल (98.5%) आबादी वाला राष्ट्र है। किन्तु क्या आप जानते हैं कि चीन जैसे देश में भी बौद्ध धर्म का विस्तार करने में, ईरान या मध्य एशिया (Asia) के कुछ मंगोल राजाओं (Mongol kings) जैसे अर्गन खान (Arghun Khan) और अबाका खान (Abaqa Khan) का अहम योगदान रहा है। लेकिन फिर प्रश्न यह उठता है कि स्वयं ईरान में बौद्ध धर्म का विस्तार कैसे संभव हो गया?
दुनिया के सबसे प्रमुख धर्मों में से एक बौद्ध धर्म की जड़ें भारत में निहित हैं। हालाँकि, बौद्ध धर्म केवल भारत तक ही सीमित नहीं था। समय के साथ इसकी शिक्षाएं और अनुयायी दुनिया के विभिन्न हिस्सों में फैले। ईरान (Iran) भी ऐसा ही एक क्षेत्र था, जहां बौद्ध धर्म ने अपना गहरा प्रभाव छोड़ा जिसके बाद तत्कालीन ईरानी विद्वानों द्वारा इसके प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई गई ।
छठी शताब्दी ईसा पूर्व में एकेमेनिड राजवंश (Achaemenid Dynasty) के गठन के दौरान, कई भारतीयों ने भिक्षुओं के रूप में धार्मिक जीवन जीने के लिए अपने घरों को त्याग दिया था । ऐसे ही एक भिक्षु गौतम बुद्ध भी थे, जिनकी शिक्षाओं ने बड़ी तेजी के साथ पूरे भारत के हजारों लोगों को प्रभावित कर दिया था।
बौद्ध धर्म में परिवर्तित होने के बाद मौर्य वंश के एक भारतीय राजा अशोक के शासन में बौद्ध धर्म, भारतीय सीमाओं से परे कश्मीर, कंधार और काबुल तक फैल गया। बाद में यह धर्म ज़ेहन (Zeyhun), सागर, खुरासान (Khorasan), बल्ख तथा बुखारा और अंततः फारसी साम्राज्य तक फैल गया। बौद्ध धर्मान्तरित ईरानी लोगों द्वारा बहुत ही कम समय में बल्ख में एक भव्य मंदिर का निर्माण भी कर दिया गया और ऐसे ही कई मंदिर तेरहवीं शताब्दी ए.एच.(19वीं शताब्दी ई.) तक फले-फूले। वहां से यह धर्म फारसी साम्राज्य के पूर्वी हिस्सों तक भी पहुंच गया। इसके बाद ईरानी विद्वानों ने इस्लाम के जन्म के बाद भी इसके प्रचार-प्रसार में अहम योगदान दिया। उन्होंने फारसी साम्राज्य और उसके इलावा बौद्ध धर्म को संदर्भित करती हुई कई पुस्तकें भी लिखीं।
ईसा (Christ) के जन्म से 80 से 60 साल पहले अलेक्जेंडर पॉलीहिस्टर (Alexander Polyhistor) द्वारा लिखी गई एक किताब में बौद्ध धर्म का, ईरान और विशेष रूप से बल्ख के साथ इसके संबंध का वर्णन किया गया है , जिसमें कहा गया है कि पहली शताब्दी ईसवी के दौरान बल्ख बौद्ध मंदिरों के लिए प्रसिद्ध था और बल्ख में बड़ी संख्या में ईरानी नागरिक बौद्ध मत के अनुयायी थे और बौद्ध धर्म का प्रचार और प्रचार करते थे।
चीनी अभिलेखों से पता चलता है कि ईसा के जन्म से 67 साल पहले चीन में बौद्ध धर्म का प्रचार भी ईरान से पारसी मिशनरियों (Parsi Missionaries) और भिक्षुओं के प्रयासों के कारण ही हुआ था। इन मिशनरियों में पार्थियन राजकुमार ‘एन शि काओ’ (An Shi Cao) भी थे, जिन्होंने बौद्ध धर्म के सिद्धांतों और भिक्षुओं के तपस्वी जीवन के वैराग्य का गहनता से अध्ययन किया था। 148 ईसवी में, वह चीन की राजधानी लुइंग (Luying) पहुंचे, और वहां उन्होंने 170 ईसवी तक बौद्ध धर्म का प्रचार किया। यहां उन्होंने बौद्ध धर्म की पवित्र पुस्तकों का चीनी भाषा में अनुवाद किया।
एक अन्य पार्थियन राजकुमार, एन हवान (An Huwan) ने भी चीन में बौद्ध धर्म का प्रचार किया। उन्होंने अपने अच्छे नैतिकता और उद्देश्यों के कारण खूब प्रसिद्धि प्राप्त की। एक अन्य चीनी वैज्ञानिक येन फ़ो ताओ (Yen Fo Tao) और एन हुवन (An Huwen) ने दो बौद्ध पुस्तकों का चीनी भाषा में अनुवाद किया और चीन में बौद्ध धर्म की पकड़ को मजबूत किया।
अर्गन खान जो कि 1284 से 1291 तक मंगोल साम्राज्य के इल्खा (Ilkha) का शासक था, अबाका खान का पुत्र था और बौद्ध धर्म का पालन करता था लेकिन ईसाइयों के प्रति मित्रवत था। अर्गन खान ने पवित्र भूमि में मुस्लिम मामलुकों के खिलाफ यूरोपीय लोगों के साथ गठबंधन बनाने की कोशिश की लेकिन असफल रहे।
हालांकि बौद्ध धर्म का फारसी साम्राज्य के पूर्वी हिस्से और उससे आगे भी महत्वपूर्ण प्रभाव था, लेकिन इस बात का कोई सबूत नहीं है कि इसने ईरान के मध्य, पश्चिमी या दक्षिणी हिस्सों में आधिकारिक माज़दीन धर्म को प्रभावित किया हो। बहरहाल, इसने इस्लाम के जन्म के बाद भी ईरान के पूर्व में रहस्यमय संप्रदायों को बहुत प्रभावित किया था । बौद्ध धर्म का प्रभाव मैनिकिइज्म (Manichaeism) में भी दिखाई देता है, जो कई वर्षों तक सासानिद साम्राज्य (Sassanid Empire) के आधिकारिक धर्मों में से एक था। ईरान में इस्लाम के मुख्य धर्म बनने से पहलेबौद्ध धर्म का ही प्रचलन था। हालांकि, 224 ईसवी में सासानिद शासन के दौरान, पारसी धर्म (Zoroastrianism) को राजकीय धर्म बना दिया गया, जिसके बाद वहांविशेष रूप से मध्य एशिया में कई बौद्ध स्थलों को जला दिया गया । बाद में, 5वीं शताब्दी में, श्वेत हूणों ने पूर्वी सासानियाई प्रदेशों में शेष बौद्ध स्थलों पर धावा बोल दिया। युद्ध के बाद पूर्वी ईरान और अफगानिस्तान में अरब शासन कायम होने के बाद वहां बौद्ध धर्म का पतन हो गया। अफगानिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान और ईरान जैसे देशों में बौद्ध स्थलों के प्रमाण आज भी मिलते हैं। बामियान और हड्डा (Bamiyan and Hada) जैसे कुछ स्थानों में, बौद्ध धर्म 8वीं या 9वीं शताब्दी तक जीवित रहा।
संदर्भ
https://bit.ly/3YZ6O2i
https://bit.ly/42vF2xA
https://bit.ly/3ZWJhAp
https://bit.ly/3Jlqx6J
चित्र संदर्भ
1. मंगोल राजा अर्गन खान और उसके खातून को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. गौतम बुद्ध को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. चीन में बौद्ध अनुयाइयों को संदर्भित करता एक चित्रण (GetArchive)
4. अर्गन खान को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. चीनी भिक्षु को संदर्भित करता एक चित्रण (Needpix)
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