City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
1158 | 445 | 1603 |
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
जिस प्रकार महादेव को अलग-अलग नामों से जाना जाता है, उनके स्वरूप भी उतने ही विविध हैं। आप शिव जी के किस रूप से परिचित हैं, यह निर्भर करता है कि आप धरती के किस क्षेत्र एवं किस कालखंड में पैदा हुए हैं।
भगवान् शिव का प्रारंभिक वर्णन ऋग्वेद और अथर्ववेद में मिलता है, जहां उन्हें रुद्र के रूप में वर्णित किया गया है। धार्मिक ग्रंथों में उनके विभिन्न अन्य नामों जैसे “शर्व, भव, उग्र, अश्नि, पशुपति, महादेव और ईशान आदि का उल्लेख किया गया है।
6वीं शताब्दी से 7वीं शताब्दी ईसवी के बीच का रचित स्कंद पुराण, विशेषतौर पर भगवान शिव की भक्ति पर ही केंद्रित है। वायुपुराण, मत्स्यपुराण, कूर्मपुराण, लिंगपुराण, शिवपुराण जैसे अन्य पुराणों में भी शैव अवधारणाओं और कहानियों से संबंधित किवदंतियां मिलती हैं। उनके सबसे प्रसिद्ध रूप “शिव लिंग” को आज भी व्यापक तौर पर पूजा जाता है।
उत्तर वैदिक काल में शिव के “रुद्र” स्वरूप को सर्वोच्च ईश्वर के रूप में पूजा जाता था। पुराणिक युग तक हिंदू समाज में शिव संप्रदाय या पंथ का सबसे ज्यादा अनुकरण किया जाता था। माना जाता है कि भगवान शिव से जुड़ा सबसे पहला संप्रदाय “पशुपत शैववाद” था। इसके अलावा गैर-पौराणिक शैवों का भी एक अन्य संप्रदाय “कापालिक” था। कापालिक परंपरागत रूप से एक खोपड़ी-शीर्ष त्रिशूल (खटवांगा) और एक खोखली खोपड़ी को भीख के कटोरे के रूप में प्रयोग करते थे। वे भगवान शिव के उग्र रूप, भैरव को पूजते थे। इसके अलावा मध्य भारत में, कलामुख नामक एक समान संप्रदाय प्रमुख था । कालमुखों के पतन के बाद, वीर -शैवों ने मध्य भारत पर अपना प्रभुत्व जमा लिया। शैव सिद्धांत पर आधारित “त्रिकशैव धर्म” का विकास आज के कश्मीर में हुआ था।
स्थान के आधार पर शिव की प्रतिमाओं में विविधता नज़र आती है। हालाँकि, पवित्र शिव लिंग सदियों से स्थिर और ज्यों का त्यों बना हुआ है।
वैष्णववाद की भांति ही, शैव धर्म भी शिव के कई (भैरव, वीरभद्र, लकुलीश, शरभ, हरिहर, दक्षिणमूर्ति) अवतारों को मानता है। इसके अलावा शैव पुराणों में शिव के कई अन्य रूपों जैसे गजसुरसंहार शिव, त्रिपुरंतक शिव, अंधकांत शिव, एकपाद शिव आदि के भी वर्णन मिलते है। कुषाण काल में, शिव की प्रतिमा पर यक्ष का प्रभाव नज़र आता है, जहाँ शिव के कुछ गुणों को यक्ष की मूर्ति पर जोड़ा गया था। इसके अलावा, शिव प्रतिमाओं में उनकी तीसरी आंख, विशेष महत्व रखती है। कुषाण काल की मथुरा क्षेत्र की कई मूर्तियों में भगवान शिव की तीसरी आंख को क्षैतिज दिखाया गया है किंतु गुप्तकाल के दौरान की मूर्तियों में उनके तीसरे नेत्र की स्थिति लंबवत कर दी गई । साथ ही दक्षिण भारत में भगवान शिव के नटराज, दक्षिणमूर्ति एवं अर्धनारीश्वर रूप अधिक व्यापक हो गए।
गुड्डीमल्ललिंगम शिव, शिव छवियों के बेहतरीन शुरुआती नमूनों में से एक है। साथ ही महाराष्ट्र में चौथी से पांचवीं शताब्दी ईसवी के बौने शिव की शानदार प्रतिमा अब राष्ट्रीय संग्रहालय में संरक्षित है।
चोल काल के दौरान, दक्षिण भारत में भगवान शिव की कांसे (Bronze) से निर्मित कुछ बेहतरीन मूर्तियां बनाई गई थी , जिनमें से सबसे प्रसिद्ध एक बैल पर लेटे हुए शिव की मूर्ति है, जिसे शिव वृषभाना के रूप में भी जाना जाता है।
इसके साथ ही भगवान शिव का नटराज स्वरूप उनके प्रसिद्ध तांडव नृत्य को दर्शाता है। नटराज का सबसे पुराना रूप चिदंबरम के प्रसिद्ध मंदिर में रखा गया है। नटराज को “नृत्य के देवता" माना गया हैं, जिसमें वे नाट्य शास्त्र की मुद्रा में हैं। यह एक जटिल नृत्य माना जाता है, तथा इसमें हाथ, पैर और कमर की गतिविधियों के समन्वय के कई जटिल चरण शामिल हैं। इस मुद्रा में भगवान शिव दो प्रकार के नृत्य (दुनिया के निर्माण के लिए सौम्य और शांत नृत्य: ‘आनंद तांडवम’ तथा विनाश के लिए एक हिंसक और उग्र नृत्य: ‘रुद्र तांडवम’) करते हैं।
शिव ब्रह्मांड में संतुलन बनाए रखने के लिए यह रचनात्मक और विनाशकारी नृत्य करते हैं। भारत के साथ-साथ पूरे विश्व में अनेक नर्तक शिव के सम्मान में यह लौकिक नृत्य करते हैं। हिंदू धर्म के लोग अपने परिवार को किसी भी बुराई से बचाने के लिए अपने घरों में नटराज की मूर्तियां रखते हैं। शिव के सृजन और विनाश के नृत्य की तुलना, उप-परमाणु स्तर पर कणों के निर्माण और विनाश के कभी न खत्म होने वाले चक्र से की जाती है।
भगवान शिव का एक अन्य महत्वपूर्ण प्रतीक गंगा नदी हैं, जो उनकी जटाओं में उलझी हुई है। माना जाता है कि पृथ्वी पर उनकी उत्पत्ति इक्ष्वाकु वंश के राजा सागर के साठ हजार पुत्रों को तारने के लिए हुई थी। भागीरथी की प्रार्थना पर जैसे-जैसे माँ गंगा धरती की ओर बढ़ रही थी, वैसे-वैसे उनका वेग और जल की मात्रा भी बढ़ रही थे। माना जाता है कि धरती को इस वेग से नष्ट होने से बचाने के लिए भगवान शिव ने माँ गंगा को अपनी जटाओं में स्थान दिया, ताकि वह शांति से नीचे पृथ्वी पर प्रवाहित हो सकें। गंगा नदी भगवान शिव के निवास स्थल “हिमालय” से निकलती है, और बंगाल की खाड़ी में मिलती हैं।
शिव का एक अर्थ “पारलौकिक” भी होता है,अर्थात ऐसे भगवान जो अंतरिक्ष या समय के बंधनों से परे हैं और जिन्हें किसी रूप की आवश्यकता नहीं है। उनका प्रतीकात्मक रूप 'लिंगम' उनकी प्रजनन शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। नंदी (सफेद बैल) भगवान शिव के संरक्षक माने जाते हैं। बैल को यौन ऊर्जा एवं उर्वरता का प्रतीक माना जाता है। नंदी की पीठ पर सवार भगवान शिव इन अभी आवेगों को वश में करने वाले प्रतीक रूप हैं। देवी पार्वती भगवान शिव की पत्नी एवं श्री गणेश और कार्तिकेय उनके पुत्र हैं। शिव को अर्धनारीश्वर अर्थात ‘आधा पुरुष और आधी स्त्री’ भी कहा गया है। भगवान शिव के प्रतीक शिव लिंग में लिंगम और योनी दोनों शामिल हैं। शिव पुरुष (मानवता) हैं, जबकि देवी पार्वती प्रकृति हैं। प्रतीकात्मक रूप से शिव के दो, तीन, चार, आठ, दस या बत्तीस हाथ भी हो सकते हैं। उनके हाथों में हमें त्रिशूल, चक्र, परसु, डमरू, अक्षमाला, मृग, पासा, डंडा ,धनुष, खटवांगा (जादू की छड़ी), भाला, पद्म (कमल), कपाल (खोपड़ी-कप), दर्पण, खड्ग (तलवार) इत्यादि दिखाई देते हैं।
माथे पर तीन क्षैतिज रेखाएँ शिव का पवित्र चिह्न मानी जाती हैं जो इस बात का प्रतीक है कि तीनों लोकों को नष्ट करने के लिए भगवान शिव को सक्रिय रूप से कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं है। ब्रह्म देव द्वारा बनाई गई त्रिआयामी दुनिया यानी शरीर, संपत्ति और प्रकृति अंततः स्वयं ही नष्ट हो जाएगी।
संदर्भ
https://bit.ly/3lHTwJw
https://bit.ly/3S3WNiA
https://bit.ly/3Kd4CRe
चित्र संदर्भ
1. आदियोगी की प्रतिमा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. मुरुदेश्वर में शिव प्रतिमा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. दूसरी शताब्दी ईस्वी के तीन सिर वाले शिव, गांधार, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. नृत्य के भगवान के रूप में 19वीं शताब्दी की प्रतिमा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. शिव तांडव को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. शिव को एक तपस्वी योगी और देवी पार्वती के साथ एक गृहस्थ के रूप में दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
7. शिवलिंग को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.