Post Viewership from Post Date to 21-Mar-2023 31st Day
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
1062 449 1511

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

हमारा देश व शहर लखनऊ भूकंप के प्रति कितना संवेदनशील और तैयार है, क्या अब बढ़ गया है खतरा?

लखनऊ

 16-02-2023 10:34 AM
सिद्धान्त I-अवधारणा माप उपकरण (कागज/घड़ी)

तुर्की (Turkey) और सीरिया (Syria) में आए जबरदस्त भूकंप के बाद मची तबाही देखकर आपके मन में भी यह सवाल अवश्य उठा होगा कि हमारा देश और शहर लखनऊ भूकंप के प्रति कितना संवेदनशील और कितना तैयार है? आज के इस लेख में हम इसी बेहद जरूरी प्रश्न की पड़ताल करेंगे। भारतीय उपमहाद्वीप में विनाशकारी भूकंपों का विस्तृत इतिहास रहा है। भूकंपों की आवृत्ति और तीव्रता अधिक होने के कई कारण होते हैं। भारतीय उपमहाद्वीप के संदर्भ में सबसे बड़ा कारण यह है कि भारतीय टेक्टोनिक प्लेट (Indian Tectonic Plate) लगभग 47 मिमी प्रति वर्ष की दर से एशिया (Asia) की ओर बढ़ रही है। भारत के भौगोलिक आंकड़े यह दर्शाते हैं कि हमारे देश की तकरीबन 58% भूमि भूकंप क्षेत्र के दायरे में आती है। विश्व बैंक (The World Bank) और संयुक्त राष्ट्र (The United Nations) की एक संयुक्त रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 2050 तक तूफान और भूकंप भारत में लगभग 200 मिलियन शहरवासियों को प्रभावित करेंगे। भारत में भूकंप विज्ञान और संबद्ध विषयों के क्षेत्र में विभिन्न गतिविधियों की जिम्मेदारी ‘पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय’ (Ministry of Earth Sciences) के ‘राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र’ (National Center for Seismology) की होती है।
‘राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र’ द्वारा वर्तमान में की जा रही प्रमुख गतिविधियाँ निम्नप्रकार हैं-
24/7 आधार पर भूकंप की निगरानी, जिसमें सूनामी की प्रारंभिक चेतावनी के लिए वास्तविक समय भूकंपीय निगरानी (Seismic Monitoring) शामिल है।
राष्ट्रीय भूकंपीय नेटवर्क और स्थानीय नेटवर्क का संचालन तथा रखरखाव।
डेटा केंद्र (Data Center) एवं सूचना सेवाएं।
भूकंपीय खतरे और जोखिम संबंधी अध्ययन।
चूंकि, भूकंप टेक्टोनिक प्लेटों (Tectonic Plates) में हलचल के कारण उत्पन्न होते हैं, इसलिए संवेदनशीलता के आधार पर सभी प्लेटों की सीमाएं निर्धारित की गई हैं, जिन्हें भूकंप जोन या क्षेत्र कहा जाता है। प्रत्येक भूकंपीय क्षेत्र, प्रभावित क्षेत्रों की टिप्पणियों या इतिहास के आधार पर किसी विशेष स्थान पर भूकंप के प्रभावों को इंगित करता है। इन प्रभावों को ‘संशोधित “मरकैली तीव्रता पैमाने’ (Modified Mercalli Intensity Scale) या ‘मेदवेदेव-स्पोनहेउर- कार्निक पैमाने’ (Medvedev–Sponheuer–Karnik scale) जैसे वर्णनात्मक पैमानों (Descriptive scale) का उपयोग करके भी वर्णित किया जा सकता है। भारत का नवीनतम भूकंपीय क्षेत्रीकरण मानचित्र (Seismic Zoning Map), पिछले संस्करण के पांच या छह क्षेत्रों के बजाय देश को केवल चार भूकंपीय क्षेत्रों (Seismic Zone) (2, 3, 4, और 5) में विभाजित करता है। नया नक्शा (ज़ोन 5) को सबसे अधिक भूकंपीय क्षेत्र और ज़ोन 2 को सबसे कम भूकंपीय क्षेत्र के रूप में नामित करता है। इन्हें विस्तार से समझते हैं:
जोन 5: जोन 5 को बहुत उच्च क्षति जोखिम क्षेत्र (Very High Damage Risk Zone) कहा जाता है। भारत में गुजरात, हिमाचल प्रदेश, बिहार, असम, मणिपुर, नागालैंड, जम्मू और कश्मीर, पश्चिमी और मध्य हिमालय, उत्तर और मध्य बिहार, उत्तर-पूर्व भारतीय क्षेत्र, कच्छ का रण और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह इस क्षेत्र में आते हैं।
जोन 4: जोन 4 को उच्च क्षति जोखिम क्षेत्र (High Damage Risk Zone) कहा जाता है। भारत में जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, भारत-गंगा के मैदानों के हिस्से (उत्तरी पंजाब, चंडीगढ़, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, बिहार का एक बड़ा हिस्सा) , उत्तरी बंगाल, सुंदरवन तराई क्षेत्र और देश की राजधानी दिल्ली भी जोन 4 में आती है।
जोन 3: जोन 3 को मध्यम क्षति जोखिम क्षेत्र (Medium Damage Risk Zone) के रूप में वर्गीकृत किया गया। चेन्नई, मुंबई, बेंगलुरु, कोलकाता और भुवनेश्वर जैसे कई बड़े शहर इस क्षेत्र में आते हैं।
जोन 2: जोन 2 को कम क्षति जोखिम क्षेत्र (Low Damage Risk Zone) के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इस क्षेत्र में भूकंप आने की संभावना कम होती है। इस क्षेत्र के अंतर्गत त्रिची या तिरुचिरापल्ली (Tiruchirappalli), बुलंदशहर, मुरादाबाद, गोरखपुर, चंडीगढ़ जैसे शहर आते हैं।
जोन 1: भारत के किसी भी क्षेत्र को जोन 1 के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है। सरकार के अनुसार, भारत के आठ राज्यों के शहर और कस्बे तथा केंद्र शासित प्रदेश जोन-5 में आते हैं। यहीं पर सबसे अधिक तीव्रता वाले भूकंप आने का खतरा रहता है। यहां तक कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली भी उच्च क्षति जोखिम क्षेत्र अर्थात जोन-4 में आती है।
भारत का मध्य हिमालयी क्षेत्र न केवल भारत, बल्कि दुनिया में सबसे सक्रिय भूकंपीय क्षेत्रों में से एक माना जाता है। उदाहरण के तौर पर, 1905 में, हिमाचल प्रदेश राज्य का कांगड़ा जिला एक बड़े भूकंप से प्रभावित हुआ था। 1934 में, बिहार-नेपाल में भूकंप आया था, भूकंप की तरंगों की तीव्रता को मापने वाले गणितीय पैमाने अर्थात‘रिक्टर पैमाने’ पर इसकी तीव्रता 8.2 मापी गई थी। इस आपदा में तकरीबन 10,000 लोग मारे गए थे। इसके अलावा 1991 में, उत्तराखंड के उत्तरकाशी में 6.8 तीव्रता के भूकंप में 800 से अधिक लोग मारे गए थे। 2005 में, कश्मीर में 7.6 तीव्रता के भूकंप के बाद 80,000 लोग मारे गए थे। एक रिपोर्ट के अनुसार, देश की राजधानी दिल्ली तीन सक्रिय भूकंपीय दोष रेखाओं (सोहना, मथुरा और दिल्ली-मुरादाबाद) के पास स्थित है। विशेषज्ञों के अनुसार दिल्ली-एनसीआर (Delhi-NCR) में सबसे जोखिम भरा इलाका गुरुग्राम है क्योंकि यह सात फॉल्ट लाइन (Seven Fault Lines) पर स्थित है। इनके सक्रिय हो जाने पर उच्च तीव्रता का एक ऐसा भूकंपआ सकता है , जो तबाही मचा देगा।
चूंकि दिल्ली-एनसीआर हिमालय के करीब है, इसलिए, टेक्टोनिक प्लेटों (Tectonic Plates) में होने वाले छोटे-बड़े बदलाव भी यहां पर महसूस किये जा सकते हैं। हिमालय क्षेत्र का प्रत्येक भूकंप, दिल्ली-एनसीआर को भी प्रभावित करता है। यदि बात लखनऊ की करें, तो नवाबों का यह शहर भूकंप के प्रति कुछ स्तर तक सुरक्षित माना जाता है। इसका प्रमुख कारण यह है कि हमारा शहर गंगा के मैदानी इलाकों में स्थित है, जो झटके के प्रभाव को कम करने के लिए “झटका अवशोषक” (Shock Absorbers )” के रूप में कार्य करती है। लखनऊ भूकंपीय क्षेत्र 3 के अंतर्गत आता है।
हालांकि, बीते तीन दशकों में हिमालयन फ्रंटल फॉल्ट (Himalayan Frontal Fault) की सक्रियता (जो हिमालय को गंगा के मैदान से अलग करती है) काफी बढ़ गई है, जिसके परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में भी भूकंप की आवृत्ति में वृद्धि हुई है। इस विषय पर व्यापक शोध करने वाले और लखनऊ विश्वविद्यालय में भूविज्ञान के प्रोफेसर ध्रुवसेन सिंह (Dhruvsen Singh) के अनुसार भारतीय उपमहाद्वीप की प्लेट धीरे-धीरे उत्तर दिशा में यूरेशियन प्लेट (Eurasian Plate) की ओर बढ़ रही है। इस बदलाव के कारण टेक्टोनिक हलचल भी बढ़ी है, जो हिमालय में भूकंप का कारण बनती है। जानकारों के अनुसार “छोटे भूकंपों का आना अच्छा संकेत माना जाता है” क्योंकि वे समय-समय पर टेक्टोनिक प्लेटों की गति के कारण उत्पन्न ऊर्जा को बाहर की ओर प्रवाहित कर देते हैं। इस प्रकार यह एक बड़े भूकंप को रोकते हैं। लखनऊ में पिछले कुछ वर्षों में हल्के भूकंप के बाद महसूस किए गए झटकों की संख्या, लगभग 20 साल पहले की समान स्थितियों की तुलना में बड़ी हैं। भूजल का लगातार दोहन इसके पीछे का एक प्रमुख कारण हो सकता है। भूजल स्वाभाविक रूप से पृथ्वी की सतह के नीचे मिट्टी की परतों को आपस में बांधे रखता है, जिससे एक उच्च लोच (Elasticity) बनता है। यह लोच बदले में झटके के अवशोषक के रूप में कार्य करता है। किंतु आज लखनऊ में जमीन के नीचे लगभग 100 मीटर तक पानी की परत सूख गई है, इसलिए यह लचीलापन भी काफी कम हो गया है। 2014 के आये भूकंप का प्रमुख कारण यही लचीलेपन की कमी थी। हालांकि, यह साबित करने के लिए और अध्ययन की आवश्यकता है। तेजी से घटता भू-जल, सूखे के साथ-साथ भूकंप के संदर्भ में भी एक बड़ी चिंता का विषय है। इसलिए तत्काल निवारक कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।

संदर्भ
https://bit.ly/3lx6Dx5
https://bit.ly/3JZNZIs
https://bit.ly/3YJBqW0

चित्र संदर्भ
1. लखनऊ में स्थित बड़ा इमामबाड़ा को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. विवर्तनिक प्लेट। ऑर्थोगोनल प्रोजेक्शन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. फोटो जियोलॉजी प्लेट्स बेसाल्ट ज्वालामुखी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. काइनेमेट्रिक्स मरकैली तीव्रता पैमाने’ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. ताइवान में आए एक भूकंप के बाद की स्थिति को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. भूजल की स्थिति को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • नदियों के संरक्षण में, लखनऊ का इतिहास गौरवपूर्ण लेकिन वर्तमान लज्जापूर्ण है
    नदियाँ

     18-09-2024 09:20 AM


  • कई रंगों और बनावटों के फूल खिल सकते हैं एक ही पौधे पर
    कोशिका के आधार पर

     17-09-2024 09:18 AM


  • क्या हमारी पृथ्वी से दूर, बर्फ़ीले ग्रहों पर जीवन संभव है?
    पर्वत, चोटी व पठार

     16-09-2024 09:36 AM


  • आइए, देखें, महासागरों में मौजूद अनोखे और अजीब जीवों के कुछ चलचित्र
    समुद्र

     15-09-2024 09:28 AM


  • जाने कैसे, भविष्य में, सामान्य आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस, पार कर सकता है मानवीय कौशल को
    संचार एवं संचार यन्त्र

     14-09-2024 09:23 AM


  • भारतीय वज़न और माप की पारंपरिक इकाइयाँ, इंग्लैंड और वेल्स से कितनी अलग थीं ?
    सिद्धान्त I-अवधारणा माप उपकरण (कागज/घड़ी)

     13-09-2024 09:16 AM


  • कालिदास के महाकाव्य – मेघदूत, से जानें, भारत में विभिन्न ऋतुओं का महत्त्व
    जलवायु व ऋतु

     12-09-2024 09:27 AM


  • विभिन्न अनुप्रयोगों में, खाद्य उद्योग के लिए, सुगंध व स्वाद का अद्भुत संयोजन है आवश्यक
    गंध- ख़ुशबू व इत्र

     11-09-2024 09:19 AM


  • लखनऊ से लेकर वैश्विक बाज़ार तक, कैसा रहा भारतीय वस्त्र उद्योग का सफ़र?
    मध्यकाल 1450 ईस्वी से 1780 ईस्वी तक

     10-09-2024 09:35 AM


  • खनिजों के वर्गीकरण में सबसे प्रचलित है डाना खनिज विज्ञान प्रणाली
    खनिज

     09-09-2024 09:45 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id