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जिस प्रकार मृग की नाभि में स्थित सुगंधित कस्तूरी अपनी खुशबू से पूरे जंगल में मृग की
उपस्थिति की सूचना दे देती है, उसी प्रकार प्राचीन भारतीय हिंदू महाकाव्य रामायण भी अपने गहरे
वेदांतिक अर्थों एवं नैतिक शिक्षाओं की सम्पन्नता के कारण न केवल भारत वरन विश्व के कोने-
कोने में विभिन्न संस्करणों के रूप में फ़ैल गई है।
अंको में गिनने पर रामायण तीन सौ से लेकर एक हजार तक की संख्या तक विविध रूपों में मिलती
हैं। इनमें से संस्कृत में रचित वाल्मीकि रामायण (आर्ष रामायण) सबसे प्राचीन मानी जाती है।
वाल्मीकि रामायण के पहले अध्याय को मूल-रामायण कहा जाता है, जिसे देवर्षि नारद ने ब्रह्मर्षि
वाल्मीकि मुनि को सुनाया था। मूल रामायण में श्री राम की श्रेष्ठता को दर्शाने हेतु कई संदर्भ
मौजूद हैं। एक बार दिव्य ऋषि नारद, ऋषि वाल्मीकि के आश्रम में गए, और फिर ऋषि वाल्मीकि ने
दिव्य ऋषि नारद से उस व्यक्ति के बारे में पूछा जो सबसे अधिक गुणी है और जो पूर्ण-समान है।
फिर ऋषि वाल्मीकि को पृथ्वी पर ऐसे व्यक्तित्व के बारे में बताने के लिए, जो पूरी तरह से निरपेक्ष
हैं, दिव्य ऋषि नारद, वाल्मीकि को श्री राम और रामायण के बारे में बताते हैं।
साहित्यिक शोध के क्षेत्र में भगवान राम के बारे में आधिकारिक रूप से जानने का मूल स्रोत आदि
कवी महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण ही है। इस गौरव ग्रंथ के कारण वाल्मीकि विश्व के
आदि कवि माने जाते हैं। हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार, अश्विन महीने में पूर्णिमा के दिन वाल्मीकि
जयंती मनाई जाती है। किन्तु श्रीराम-कथा केवल वाल्मीकीय रामायण तक ही सीमित न रही
बल्कि मुनि व्यास रचित महाभारत में भी 'रामोपाख्यान' के रूप में आरण्यकपर्व (वन पर्व) में यह
कथा वर्णित की गई है। इसके अतिरिक्त 'द्रोण पर्व' तथा 'शांतिपर्व' में भी रामकथा के सन्दर्भ
मिलते हैं। लोकप्रिय बौद्ध परम्परा में श्रीराम से संबंधित दशरथ जातक, अनामक जातक तथा
दशरथ कथानक नामक तीन जातक कथाएँ मौजूद हैं। रामायण से थोड़ा भिन्न होते हुए भी ये ग्रन्थ
इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठ माने जाते हैं।
जैन परम्परा के अनुसार राम का मूल नाम 'पद्म' था और जैन साहित्य में भी प्रभु श्री राम कथा
सम्बन्धी कई ग्रंथ लिखे गये, जिनमें विमलसूरि कृत 'पउमचरियं' (प्राकृत), आचार्य रविषेण कृत
'पद्मपुराण' (संस्कृत), स्वयंभू कृत 'पउमचरिउ' (अपभ्रंश), रामचंद्र चरित्र पुराण तथा गुणभद्र कृत
उत्तर पुराण (संस्कृत) मुख्य हैं। परमार भोज द्वारा भी चंपु रामायण की रचना की गई थी।
राम कथा अन्य अनेक भारतीय भाषाओं में भी लिखी गयीं। हिन्दी में 11, मराठी में 8, बांग्ला में 25,
तमिल में 12, तेलुगु में 12 तथा उड़िया में 6 रामायणें मिलती हैं। हिंदी में लिखित गोस्वामी
तुलसीदास कृत रामचरित मानस उत्तर भारत में अति लोकप्रिय है। इसके अतिरिक्त संस्कृत,
गुजराती, मलयालम, कन्नड, असमिया, उर्दू, अरबी, फारसी आदि भाषाओं में भी राम कथा लिखी
गयी।
महाकवि कालिदास, भास, भट्ट, प्रवरसेन, क्षेमेन्द्र, भवभूति, राजशेखर, कुमारदास, विश्वनाथ,
सोमदेव, गुणादत्त, नारद, लोमेश, मैथिलीशरण गुप्त, केशवदास, समर्थ रामदास, संत तुकडोजी
महाराज आदि चार सौ से अधिक कवियों तथा संतों ने अलग-अलग भाषाओं में राम तथा रामायण
के दूसरे पात्रों के बारे में काव्यों/कविताओं की रचना एवं अनुवाद किया है।
वर्तमान में प्रचलित अनेक राम-कथानकों में आर्ष रामायण, अद्भुत रामायण, कृत्तिवास रामायण,
बिलंका रामायण, मैथिल रामायण, सर्वार्थ रामायण, तत्वार्थ रामायण, प्रेम रामायण, संजीवनी
रामायण, उत्तर रामचरितम्, रघुवंशम्, प्रतिमानाटकम्, कम्ब रामायण,आदि मुख्य हैं।
भारत ही नहीं वरन विदेशों में भी तिब्बती रामायण, पूर्वी तुर्किस्तान की खोतानी रामायण,
इंडोनेशिया की ककबिन रामायण, जावा का सेरतराम, सैरीराम, रामकेलिंग, पातानी रामकथा,
इण्डोचायना की रामकेर्ति (रामकीर्ति), खमैर रामायण, बर्मा (म्यांम्मार) की यूतोकी रामयागन,
थाईलैंड की रामकियेन आदि रामचरित्र का बखूबी बखान करती है। इसके अलावा कई विद्वान
मानते हैं कि ग्रीस के कवि होमर (Greek poet Homer) का प्राचीन काव्य इलियड (Poetry
Iliad), रोम के कवि नोनस की कृति डायोनीशिया (Dionysia) तथा रामायण की कथा में भी
समानता है।
नीचे रामायण के कुछ सबसे प्रमुख संस्कृत संस्करण दिए गए हैं। इनमें से कुछ मुख्य रूप से
वाल्मीकि की कथा का वर्णन करते हैं, जबकि अन्य परिधीय कहानियों और दार्शनिक व्याख्याओं
पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं:
१. अध्यात्म रामायण या आध्यात्मिक रामायण को ब्रह्माण्ड पुराण से निकाला गया है, जिसे
पारंपरिक रूप से व्यास के नाम से जाना जाता है। इसे अवधी में तुलसीदास की रामचरितमानस की
प्रेरणा माना जाता है। वाल्मीकि रामायण जहां राम के मानव स्वभाव पर जोर देती है, वहीं
अध्यातम रामायण, कहानी को उनकी दिव्यता के दृष्टिकोण से बताती है। यह वाल्मीकि के
समानांतर सात कांडों में संगठित है।
२. वशिष्ठ रामायण (योग वशिष्ठ): यह मुख्य रूप से वशिष्ठ और राम के बीच एक संवाद है, जिसमें
वशिष्ठ अद्वैत वेदांत के कई सिद्धांतों को आगे बढ़ाते हैं। इसमें कई उपाख्यान और दृष्टांत
कहानियां शामिल हैं।
३. वासुदेवही: लगभग चौथी शताब्दी सीई, महाराष्ट्र प्राकृत में संघदासगं वाचक द्वारा चौथी-पांचवीं
शताब्दी सीई के आसपास लिखा गया था।
४. दशग्रीव राक्षस चरित्रम वधम: लगभग 6 वीं शताब्दी सीई में कोलकाता की इस पांडुलिपि में पांच
कांड हैं: बालकंद और उत्तराखंड गायब हैं। यह संस्करण राम को भगवान से ज्यादा एक इंसान के
रूप में चित्रित करता है।
५. आनंद रामायण: लगभग 15वीं शताब्दी सीई की यह रामायण राम के जीवन के अंतिम वर्षों का
वर्णन करती है और इसमें रावण द्वारा सीता का अपहरण तथा राम द्वारा रामेश्वरम में शिव
लिंगम की स्थापना शामिल है।
रामायण की कहानी को अन्य संस्कृत ग्रंथों में भी वर्णित किया गया है, जिनमें महाभारत (वन पर्व
के रामोख्यान पर्व में), विष्णु पुराण के साथ-साथ अग्नि पुराण भी शामिल हैं।
निम्नलिखित रामायण के उन संस्करणों में से हैं जो भारत के बाहर उभरे हैं:
#पूर्वी एशिया
१. चीन, युन्नान - लंगका सिप होर (ताई लू भाषा)
२. जापान - रामेना या रामेंशो
#दक्षिण पूर्व एशिया
१. कंबोडिया — रीमकेर
२. इंडोनेशिया:
३. बाली — रामकवका
४. जावा - काकाविन रामायण, योगेश्वर रामायण
५. सुमातरा – रामायण स्वर्णद्वीप
६. लाओस - फ्रा लक फ्रा लाम, ग्वे ड्वोराहबीक
७. मलेशिया - हिकायत सेरी रामा, हिकायत महाराजा वाना
८. म्यांमार (बर्मा) – यम जातदाव (यमायना)
९. फिलीपींस मिंडानाओ - महाराडिया लवाना, दरंगेन (मोरो)
१०. थाईलैंड - रामकियेन
११. लैन ना का साम्राज्य - फोम्माचकी
१२. सिंगापुर-श्री मरिअम्मन
१३. वियतनाम - ट्रूयन दि थोआ वेंग या ट्रूयन दि ज़ोआ वेन्ग
#दक्षिण एशिया
१. नेपाल - सिद्धि रामायण (नेपाल भाषा), भानुभक्तको रामायण (नेपाली भाषा)
२. श्रीलंका - जानकीहरन
15वीं शताब्दी में थाईलैंड की राजधानी अयुत्या नाम का एक शहर था, जो स्थानीय भाषा में
अयोध्या ही है। 18वीं सदी में जब बर्मी सैनिकों ने इस शहर पर कब्ज़ा कर लिया, तो एक नए राजा
का उदय हुआ। उन्होंने खुद को राम प्रथम कहा, उसने उस शहर की स्थापना की जिसे अब हम
बैंकॉक (Bangkok) के नाम से जानते हैं, इसके बाद उन्होंने महाकाव्य रामकियन लिखा, जो
स्थानीय भाषा में रामायण माना जाता है और इसे राष्ट्रीय महाकाव्य बनाया, और इसे एमराल्ड
बुद्ध के मंदिर की दीवारों पर भित्ति चित्रों के रूप में चित्रित किया।
उन दिनों, ब्रिटिश प्राच्यवादियों और औपनिवेशिक “फूट डालो और राज करो” की नीति से बहुत
पहले, कोई भी बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म के बीच अंतर नहीं करता था। राम दक्षिण पूर्व एशिया के
बौद्धों के लिए उतने ही नायक थे जितने वे दक्षिण एशिया के हिंदुओं के लिए थे। जल्द ही वह
स्थानीय राजाओं के लिए एक आदर्श बन गए। रामायण के माध्यम से राजत्व का यह वैधीकरण
1,000 साल से भी पहले शुरू हुआ था, मोन भाषा में बर्मा से एक पत्थर के शिलालेख पर, 11 वीं
शताब्दी के, बागान वंश के राजा क्यांजित ने घोषणा की कि वह अपने पिछले अस्तित्व में अयोध्या
के राम के करीबी रिश्तेदार थे।
12वीं शताब्दी के कंबोडिया में बने अंगकोर वट खंडहर में, रामकर, रामायण के नक्काशीदार
एपिसोड मिलते हैं। नोम पेन्ह में शाही महल परिसर की दीवारों पर रामायण पर आधारित भित्ति
चित्र भी हैं।
थाईलैंड और बर्मा की तरह, कंबोडिया के राजा आज थेरवाद बौद्ध धर्म का पालन करते हैं। लेकिन
सदियों पहले, उन्होंने महायान बौद्ध धर्म का पालन किया। और इससे पहले उन्होंने हिंदू धर्म का
पालन किया। ये धर्म भारत में उत्पन्न हुए और ओडिया और तमिल समुद्री व्यापारियों के माध्यम
से दक्षिण पूर्व एशिया तक पहुंचे। उन्होंने सामानों का आदान-प्रदान किया और ऐसी ही कहानियों
को साझा किया।
सन्दर्भ
https://bit.ly/3SXaXkM
https://bit.ly/3eeAebl
https://bit.ly/3Cembum
चित्र संदर्भ
1. रामायण के विभिन्न संस्करणों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. विश्वामित्र के साथ राम और लक्ष्मण की यात्रा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. राम, लक्ष्मण और माता सीता को जैन आचार्य युगलचरण के साथ दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
4. वाट प्रा काओ में रामायण को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
5. ऋषि विश्वामित्र के साथ राम और लक्ष्मण, को दर्शाता एक चित्रण (Look and Learn)
6. 12वीं शताब्दी के कंबोडिया में बने अंगकोर वट खंडहर में, रामकर, रामायण के नक्काशीदार एपिसोड मिलते हैं, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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