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कढ़ाई की कला एक समृद्ध, विविध, रचनात्मक और सुंदर शैली है जो प्राचीन काल से हमारी पारंपरिक
संस्कृति का हिस्सा है। कढ़ाई सुई धागे से वस्त्रों पर की जाने वाली सुंदर कलाकारी है जो वस्त्रों को अलंकृत
करने और सजाने के लिए की जाती है। एक पारंपरिक कढ़ाई शैली में विभिन्न प्रकार की तकनीकें और प्रक्रियाएँ
सम्मिलित होती हैं। वर्तमान समय में कढ़ाई का उपयोग अलग-अलग तरीके से विभिन्न प्रकार के कपड़ों को
और अधिक सुंदर बनाने के लिए किया जा रहा है। प्रसिद्ध फैशन डिजाइनर (Fashion Designer) भी अपने
डिजाइन में कढ़ाई को शामिल करते हैं। कढ़ाई उद्योग देश की अर्थव्यवस्था में भी विशेष योगदान देता है।
कढ़ाई कला में कुशलता के लिए आवश्यक है कि इसके बुनियादी टांकों में दक्षता प्राप्त की जाए। इसके अलावा
सही टांके और सही कपड़े के संयोजन की परख होना भी आवश्यक है। कढ़ाई वह शिल्प है जो सुई-धागे का
उपयोग करके कपड़े तथा अन्य वस्तुओं को सजाने का कार्य करता है। कढ़ाई में सुई धागे के अलावा मोती,
पत्थर, शीशे और मनके आदि का भी उपयोग किया जाता है। आज के समय में कढ़ाई के धागे की भी एक
विस्तृत किस्म उपलब्ध है।
शुरुआती कढ़ाई की कुछ मुख्य बुनियादी तकनीक और टांके इस प्रकार हैं: चेन सिलाई, बटन सिलाई, कंबल या
ब्लैंकेट सिलाई, रनिंग सिलाई, साटिन सिलाई, क्रॉस सिलाई। यह टांके आज भी हाथ की कढ़ाई की मूलभूत
तकनीक बने हुए हैं। रूप और सौंदर्यशास्त्र के संदर्भ में, रंग, बनावट, कपड़ों पर इस्तेमाल की जाने वाली
समृद्धि और सुंदर कढ़ाई व्यक्ति के धर्म, सामाजिक स्थिति और जातीय पहचान को प्रकट करने का माध्यम
है। पारंपरिक रूप से कढ़ाई सूती, ऊनी, रेशम और जरी के धागों के साथ की जाती थी और इसमें अन्य
सजावटी सामग्री जैसे मोती, पत्थर, धातु जैसे सोना, चांदी, गोले, पंख इत्यादि का भी उपयोग किया जाता था।
कढ़ाई एक रचनात्मक शैली है। जिस प्रकार एक लेखक कहानी को लिखता है।
उसी प्रकार कढ़ाई भी सुई और
धागे से कपड़े पर गड़ी गई एक कहानी है, जो निर्माता के भाव तथा अभिव्यक्ति को दर्शाती है। कढ़ाई करने के
बाद वस्त्र की सुंदरता और अधिक बढ़ जाती है। कला और महंगे फैशन के क्षेत्र में इसका गहरा प्रभाव पड़ता है।
कशीदाकारी और विलासितापूर्ण फैशन पर इसके प्रभाव का अध्ययन हमें सामाजिक इतिहास के कई कालखंडों
और तथ्यों में ले जाता है। अपने आस-पास की वस्तुओं के सौंदर्य मूल्य को बढ़ाने के लिए कढ़ाई करना मनुष्य
का सबसे पुराना कौशल रहा है। इस कला की पुरातनता ने इस कौशल को एक अनूठी गहराई प्रदान की है।
प्रत्येक क्षेत्र की अपनी अलग कढ़ाई शैली और तकनीक होने से यह कौशल विशिष्ट तरीके से समृद्ध बना है।
ऐसा माना जाता है कि सभ्यता की शुरुआत से ही कपास, कपड़े और धागे की खेती होती रही है जिसके बाद से
ही कढ़ाई अस्तित्व में है।
वस्त्र डिजाइनर और उच्च फैशन ब्रांड अपने कपड़ों पर व्यापक रूप से कढ़ाई का उपयोग करते हैं। अपने वस्त्रों
का मूल्य बढ़ाने के लिए वे वस्त्रों को कढ़ाई के माध्यम से अलंकृत करना पसंद करते हैं। परंतु वर्तमान समय
में इस कला के कारीगर कला में मंदी, कम मजदूरी, बढ़ते फैशन उद्योग के दबाव और बहुत अधिक परिश्रम
और समय लगने के कारण इस क्षेत्र से दूरी बना रहे हैं। वे इस कला को अपनी आने वाली पीढ़ी को हस्तांतरित
करने में भी कम रुचि दिखा रहे हैं। कशीदाकारी में यह गिरावट अवश्य ही महंगे फैशन उद्योग को प्रभावित
करेगी। इसकी उच्च मांग और स्रोतों की कम संख्या के कारण इसकी कीमत में बढ़ोत्तरी होगी। रॉयल स्कूल
ऑफ़ एम्ब्रायडरी (Royal School of Embroidery) जैसे कुछ स्कूल हैं जो आज भी छात्रों को यह कला
सिखाते हैं। यूरोपीय देशों की तुलना में विकासशील देशों में कढ़ाई कार्य अधिक किफायती है। यही कारण है कि
कई बड़े फैशन हाउस (Fashion Houses) आज भी एशियाई देशों से कढ़ाई खरीदते हैं। इस उद्योग में
लगातार गिरावट के निराकरण हेतु फैशन डिजाइनरों और हाई स्ट्रीट ब्रांडों (High Street Brands) को इस
शिल्प को न केवल एक सौंदर्य के तरीके से उजागर करना चाहिए, बल्कि कला को पुनर्जीवित करने के प्रयासों
में भी सहायता करनी चाहिए।
पश्चिमी कढ़ाई संग्रह में से कुछ सुंदर कलाकारियाँ भारत से ही हैं। सूती वस्त्रों का एक महत्वपूर्ण आयातक होने
के साथ, 17वीं शताब्दी के बाद उपमहाद्वीप से कढ़ाई कार्य की आपूर्ति व्यवसायिक रूप से भी की जाती थी।
भारतीय कढ़ाई को सूक्ष्म और रंगीन चमकदार रेशम कढ़ाई के लिए जाना जाता था। मुगल काल से लेकर 18वीं
शताब्दी तक के कढ़ाई कार्य वाले वस्त्रों को सबसे बेहतरीन और आकर्षक माना जाता था। बीते कुछ समय से
कढ़ाई मशीनों ने पारंपरिक हस्तनिर्मित कढ़ाई का स्थान ले लिया है। आधुनिक मशीनें विभिन्न प्रकार की कढ़ाई
करने में सक्षम हैं, लेकिन फिर भी हाथ की कढ़ाई का मुकाबला नहीं कर सकतीं।
भारतीय कढ़ाई ने अपनी समृद्ध पारंपरिक विरासत के साथ-साथ सबसे विशिष्ट भारतीय हस्तशिल्पों में से एक
होने के कारण भारत की शीर्ष निर्यात वस्तुओं में से एक बनने जैसी बड़ी प्रगति की है। इसके अलावा भारत
कढ़ाई में इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री की आपूर्ति करने वाले सबसे बड़े केंद्रों में से एक है। गुड़गांव स्थित
जे.जी. ब्रांड्स (J. G. Brands) अमेरिका (America) और ब्राजील (Brazil) के बाजार में बड़े पैमाने पर मोती
और मनके वाली कढ़ाई कार्य की आपूर्ति करता है। मोदी एम्ब्रायडरीज (MODI Embroideries) इस क्षेत्र में नए
हैं जो हस्तनिर्मित कढ़ाई वस्त्रों की आपूर्ति करते हैं। वर्तमान समय में ग्राहक नरम और आरामदायक वस्त्रों को
अधिक पसंद करते हैं। इसलिए कशीदाकारी में भी इस बात को ध्यान में रखकर सही धागे और वस्त्र को चुनने
में अधिक ध्यान दिया जा रहा है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3Bveh0x
https://bit.ly/3d2lAUd
https://bit.ly/3Qsta8c
चित्र संदर्भ
1. सुई और धागे से कपड़े पर गड़ी जा रही कढ़ाई, को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
2. कपड़े के एक टुकड़े पर कढ़ाई करते दो आदमीयों को दर्शाता एक चित्रण (Look and Learn)
3. कड़ाई करते आदिवासी परिवार को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. कड़ाई करती महिला को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
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