लखनऊ की वृद्धि के साथ हम निवासियों को नहीं भूलना है सकारात्मक पर्यावरणीय व्यवहार

लखनऊ

 19-05-2022 09:47 AM
नगरीकरण- शहर व शक्ति

शहरीकरण को आर्थिक विकास का इंजन माना जाता है! अर्थात देश में जितने अधिक शहर बढ़ेंगे, उतनी ही अधिक, एक आम आदमी की आय बढ़ेगी और देश की आर्थिक स्थिति भी सुधरेगी। लेकिन इस प्रकार हासिल की गई आर्थिक तरक्की की एक बड़ी खामी यह भी है की, बहुत अधिक शहरीकरण न केवल कई मूलभूत सुविधाओं तक आम आदमी की पहुंच घटा रहा है, साथ ही यह जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता की हानि, और अन्य वैश्विक प्रक्रियाओं में गड़बड़ी की आवृत्ति और गंभीरता को बढ़ा रहा हैं। लेकिन सबसे गंभीर मामला यह है कई लोगों को मामले की गंभीरता का अंदाज़ा भी नहीं है!
हाल के दशकों में शहरों का तेजी से विकास हुआ है। शहर कई लोगों को सुनहरे अवसर प्रदान करते हैं, लेकिन, आज इन शहरों को व्यापक और बढ़ती असमानता, निरंतर खपत और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति बढ़ती संवेदनशीलता का सामना करना पड़ रहा है। हाल ही किये गए एक शोध में जलवायु परिवर्तन की स्थिति के प्रति शहरी लचीलापन और स्थिरता में सुधार करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्टैंडर्ड एंड टेक्नोलॉजी (National Institute of Standards and Technology (NIST) तथा अन्य सहयोगी शोधकर्ताओं द्वारा किए गए, एक नए अध्ययन में तटीय पारिस्थितिक तंत्र (coastal ecosystem) तथा शहरी और उपनगरीय तरीकों के बीच एक अंतर पर प्रकाश डाला गया। जिसके परिणामों से पता चला है कि, शहरी केंद्रों के निवासियों में अक्सर उपनगरीय क्षेत्रों (suburban areas) के निवासियों की तुलना में, तटीय पारिस्थितिक तंत्र की सरल, और कम यथार्थवादी (less realistic) समझ होती है। 'शहरी' की हमारी परिभाषा में एक महानगरीय क्षेत्र के भीतर औपचारिक और अनौपचारिक बस्तियों के साथ-साथ एक शहरी क्षेत्र अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं और उत्सर्जन के माध्यम से पैदा होने वाले पदचिह्न शामिल हैं। शोध ने शहरी आबादी के बीच पर्यावरण-समर्थक कार्रवाई (pro- environmental action) के प्रति कम रूचि को भी उजागर किया है। जानकार ऐसे मुद्दे को शहरीकृत ज्ञान सिंड्रोम (urbanized knowledge syndrome) के रूप में संदर्भित करते हैं, जो प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र के लिए हानिकारक हो सकता है और प्राकृतिक आपदाओं के प्रति सामुदायिक लचीलेपन (community flexibility) को भी बाधित कर सकता है।
वैज्ञानिक अनुमान लगा रहे है की निरंतर बढ़ता शहरीकरण, न केवल प्रणाली के पारिस्थितिक आयाम(ecological dimension) को प्रभावित कर रहा है, बल्कि सिस्टम के सामाजिक आयाम को भी प्रभावित कर रहा है, जिसके परिमाण स्वरूप लोगों में सकारात्मक पर्यावरणीय व्यवहार के प्रति अरुचि देखी जा रही है। जलवायु परिवर्तन के चौराहे पर खड़ी, मानव आबादी को स्वस्थ पारिस्थितिक तंत्र की गिरावट, तेजी से बढ़ते शहरीकरण, और बढ़ती सामाजिक आर्थिक अनिश्चितता के आवर्ती झटकों (recurring shaking) से निपटने के लिए तैयार रहना चाहिए। इससे उभरने के लिए सतत शहरी संसाधन और सेवा प्रावधान (Sustainable Urban Resources and Service Provision), को भौतिक प्रवाह के प्रबंधन से परे होना चाहिए। साथ ही हमें अनुकूल और लचीली शहरी प्रणालियों का निर्माण करना चाहिए, जो झटके और गड़बड़ी के प्रति अधिक लचीले होते है। पारिस्थितिक समझ बढ़ाने की प्रक्रियाओं में शहरी अंतरिक्ष और प्रौद्योगिकियों (urban space and technologies) की भूमिका को पहचानना भी महत्वपूर्ण है। इहमें शहरी शासन चक्र के सभी चरणों, बुनियादी सेवाओं के समान प्रावधान, नवाचारों को बढ़ावा देने, और बदलती शहरी गतिशीलता के लिए लचीलापन भी आवश्यक है। साथ ही हमें ऐसे उपायों की आवश्यकता भी है, जो सभी स्तरों पर बिजली के वितरण की निगरानी और सुधार कर सकते हैं।
तेजी से बढ़ते शहरीकरण के परिणामस्वरूप जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता की हानि, आर्थिक संकट, और अन्य वैश्विक प्रक्रियाएं जैसे बाढ़, सूखा, तूफान, गर्मी की लहरें, और समुद्र के स्तर में वृद्धि के साथ- साथ महामारी और आर्थिक अस्थिरता के प्रसार जैसी मुश्किलों की, आवृत्ति और गंभीरता भी बढ़ रही हैं। ये मुश्किलें, सतत शहरी विकास के संयोजन के साथ, शहरों के लिए भी नई चुनौतियां भी पेश करते हैं, और उनकी कमजोरियों और अपर्याप्त प्रबंधन प्रतिमानों (Inadequate Management Patterns) को उजागर करती हैं! उदाहरण के तौर पर, ब्राजील के एक शहर साओ पाउलो (Sao Paulo) के शहरी वाटरशेड पर अतिक्रमण (encroachment on urban watershed) और अमेज़ॅन के वनों की कटाई के संगम के परिणामस्वरूप शहर में पानी की मांग में भारी बढ़ोतरी हुई है। इसी तरह, कोविड -19 महामारी ने एक अभूतपूर्व स्वास्थ्य संकट के साथ-साथ आर्थिक प्रभावों पर भी दस्तक दी, जिसके कारण नौकरियों, किफायती आवास और भोजन की कमी हुई है। शहरों का कामकाज, जटिल सामाजिक, पारिस्थितिकी और तकनीकी प्रणालियों पर निर्भर करता है। शहरवासी, तकनीकी बुनियादी ढांचे और संस्थागत व्यवस्था के जटिल नेटवर्क के माध्यम से पानी, बिजली, भोजन, स्वास्थ्य और अन्य सेवाओं तक पहुंचते हैं। जटिल और अन्योन्याश्रित शहरी प्रणालियों (interdependent urban systems) में समन्वय के लिए शासन के पर्याप्त रूपों की आवश्यकता होती है।
सामाजिक-पारिस्थितिकी-तकनीकी बातचीत का एक उदाहरण, बाढ़ सुरक्षा बुनियादी ढांचा (तकनीक) भी है, जिसे योजनाकारों द्वारा योजनाबद्ध और डिजाइन किया जाता है, और शहरी आबादी को तूफानी लहरों, नदी के बाढ़ और तटीय और तटवर्ती इलाकों में बढ़ते समुद्र के स्तर से बचाने के लिए बनाया जाता है।

संदर्भ
https://bit.ly/3LriTXk
https://bit.ly/39wRtlK
https://go.nature.com/3a7CnDu

चित्र संदर्भ
1  लखनऊ में नवाब सआदत अली खां के मकबरे को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
2. शहर से होने वाले कार्बन उत्सर्जन को दर्शाता एक चित्रण (Envirotec Magazine)
3. मिट्टी की नमी और जलवायु परिवर्तन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. साओ पाउलो ब्राज़ील मौसम 2022 को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



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