City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
2069 | 99 | 2168 |
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
किसी भी पार्टी, पारिवारिक समारोह अथवा आम समाज में, सबसे अलग दिखाई देना और लोगों के
आकर्षण का केंद्र बने रहना, भला किसे रास नहीं आएगा! यही कारण है की, आज लोग, अच्छा और विशेष
दिखने के लिए हजारों-लाखों रूपये अपने कपड़ों अथवा परिधानों पर खर्चते हैं! हालांकि लोगों को कौन से
और कैसे कपड़ें पहनने चाहिए, यह चुनना उनका निजी अधिकार है, किंतु यदि किसी के चुनाव की भारी
कीमत, हमारे पर्यावरण और आनेवाली पीढ़ी को चुकानी पड़ें, तो यह प्रश्न निश्चित तौर पर व्यावहारिक बन
जाता है की, आपको कैसे (उत्पाद के संबध में) कपड़े पहनने चाहिए?
फैशन उद्योग ने तेजी से फैशन क्षेत्र में पूरी तरह से क्रांति ला दी है! लेकिन यह क्रांति मानवता के भविष्य
के लिए अच्छा संकेत नहीं है। दरअसल दुकान में कपड़े के हर टुकड़े के पीछे, एक विनाशकारी उद्योग खड़ा
हुआ है, जो पृथ्वी से उसके सीमित संसाधनों को छीन रहा है, तथा कपड़ा कारखानों में काम करने वाले श्रम
बल पर विनाशकारी टोल लगा रहा है।
1.भारी मात्रा में उत्पन्न हानिकारक कचरा, कपडा या फैशन उद्योग की विशेषता मानी जाती है, क्योंकि
यहाँ हर साल लगभग 40 मिलियन टन कपड़ा लैंडफिल (landfill) में जलाए जाने के लिए भेज दिया जाता
हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा की, अकेले फैशन उद्योग, कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के 8% से
अधिक के लिए जिम्मेदार है। कपड़ों के कचरे को अमेरिका से अन्य देशों में निर्यात किया जाता है, जहां
लैंडफिल सुलगता है, और हवा को प्रदूषित करता है।
2.एक सूती टी-शर्ट बनाने में लगभग 3,000 लीटर पानी और जींस की एक जोड़ी बनाने में 3,781 लीटर
पानी व्यर्थ चला जाता है।
3.फैशन उद्योग जहरीले रसायनों और रंगों से पानी और स्थानीय समुदायों को भारी प्रदूषित करता है।
4.कपड़े के लिए उपयुक्त कपास को, 'सबसे खराब' फसल कहा जाता है, क्यों की कपास की खेती में किसी
भी अन्य फसल की तुलना में अधिक कीटनाशकों की खपत होती है, और इसके लिए भारी सिंचाई की
आवश्यकता भी होती ,है जो इन कीटनाशकों को आसपास की नदियों और भूजल में मिला देती है।
5.सभी कपड़ों का 60% हिस्सा पॉलिएस्टर जैसे सिंथेटिक फाइबर (synthetic fibers such as
polyester) से बना होता है, जिसमें मौजूद माइक्रोप्लास्टिक (microplastic) समुद्र के प्रदूषण में 35%
योगदान देता है।
6.कपड़े बनाने के लिए हर साल 15 करोड़ पेड़ काटे जाते हैं। साथ ही जैव विविधता के नुकसान में परिधानउद्योग का महत्वपूर्ण योगदान है।
7.कपड़ा उद्द्योग के अंतर्गत आज 40 मिलियन लोग, आधुनिक गुलामी में जी रहे हैं और फ़ास्ट फ़ैशन
(fast fashion) के सस्ते कपड़ों की क़ीमत इन मज़दूरों से निकाली जाती है।
फैशन उद्योग के इतने सारे विरोधाभास या नुकसान देखने के बाद किसी के मन में भी यह प्रश्न उठना
लाज़मी हैं, की तो क्या हम अच्छे कपड़े पहनना ही छोड़ दें?
इसका उत्तर है, बिल्कुल नहीं? क्यों की इन सभी नुकसानों से बचकर फैशन करने का भी एक उपाय है, जिसे
"स्थाई फैशन" या सतत फैशन (Sustainable fashion) के नाम से जाना जाता है।
स्थाई फैशन को ईको-फैशन (eco-fashion) के रूप में भी जाना जाता है। यह फैशन उत्पादों और फैशन
प्रणाली में, अधिक पारिस्थितिक अखंडता और सामाजिक न्याय की दिशा में परिवर्तन को बढ़ावा देने की
एक प्रक्रिया है। इस सतत प्रक्रिया के तहत फैशन के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने से वायु प्रदूषण , जल
प्रदूषण और समग्र जलवायु परिवर्तन का मुकाबला किया जा सकता है, जो संभवतः अगली सदी में लाखों
लोगों की अकाल मृत्यु को रोक सकता है। नैतिक और टिकाऊ फैशन, कपड़ों की सोर्सिंग, निर्माण और
डिजाइनिंग की दिशा में एक सकारात्मक दृष्टिकोण है, जो बड़े पैमाने पर उद्योग और समाज के लिए लाभ
को बढ़ाने के साथ ही साथ पर्यावरण पर इसके दुष्प्रभावों को भी कम करता है।
सस्टेनेबल या एथिकल (sustainable or ethical) कपड़ों ने भारतीय बाजार में अपनी पहचान बनानी शुरू
कर दी है। श्रमिकों को उचित भुगतान करने से लेकर, प्राकृतिक कपड़ों और रंगों के उपयोग तक, कई ब्रांड,
वस्त्र उद्योग की दुनिया में इस नए बदलाव को अपना रहे हैं।
हालांकि भारतीय भूमि के लिए यह अवधारणा नई नहीं है! हमारे अधिकांश नेताओं और विचारकों ने
स्वदेशी के उपयोग का प्रचार किया है। कपड़े बनाने के लिए जैविक रूप से उगाए गए कपड़े भारत में वर्षों से
प्रयोग किये जाते रहे हैं। आज नए डिजाइनर वास्तव में ऐसे शानदार संग्रह लेकर आ रहे हैं जो, खादी और
गांजा (Khadi and Hemp) जैसे कपड़ों से बनाए जाते हैं। इस क्षेत्र में बी लेबल (B label) एक उभरता हुआ
भारतीय ब्रांड है, जिसने जैविक कपड़ों का प्रचार और समर्थन किया है।
आज पर्यावरण के अनुकूल कपड़े गुणवत्ता से कोई समझौता किए बिना बनाए जाने लगे हैं। वे स्टाइलिश,
अच्छी तरह से डिज़ाइन किए गए और टिकाऊ हैं, हालांकि थोड़े महंगे जरूर हैं।
पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों के खरीदारों की इस अचानक वृद्धि के पीछे मुख्य कारणों में से एक
जागरूकता का बढ़ना भी है। कई ब्रांड, कपड़ों के पुनर्चक्रण और अनुकूलन को भी बढ़ावा दे रहे हैं, जो इस
दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
आज कई भारतीय जान चुके है कि वे एक ही समय में अच्छा दिखने के साथ-साथ, पर्यावरण को बचाने में
भी योगदान दे सकते हैं। लोग बिना सोचे-समझे कई कपड़े खरीदने के बजाय, अपनी खपत को सीमित
करने की कोशिश कर रहे हैं, जो की एक अच्छा संकेत हैं!
संदर्भ
https://bit.ly/37U6oFH
https://bit.ly/3vu0gfx
https://bit.ly/37l1tOh
चित्र संदर्भ
1. अनुपयोगी कपड़ों को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
2. कपड़ों की रंगाई को दर्शाता एक चित्रण (Rawpixel)
3. पुनर्नवीनीकरण और छोड़े गए पेपर बुक पेजों से बना गोल्डन बुक गाउन, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. कार्बनिक कपास को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.