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पर्यावरण अनुकूल जूट का भारत में विस्तार, कैसे बना हमारा देश इसका सबसे बड़ा व्यापारी?

लखनऊ

 29-03-2022 09:56 AM
पेड़, झाड़ियाँ, बेल व लतायें

जूट का उपयोग सिंधु घाटी सभ्यता में कपड़ा बनाने के लिए तीसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व से किया जाता था। शास्त्रीय पुरातनता में, प्लिनी (Pliny) ने दर्ज किया कि प्राचीन मिस्र में जूट के पौधों को भोजन के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। हो सकता है कि इसकी खेती निकट पूर्व में यहूदियों द्वारा भी की गई हो। अफ्रीका (Africa) और एशिया (Asia) में प्राचीन काल से जूट का उपयोग तने से रस्सी और बुनाई रेशा और पत्तियों से भोजन प्रदान करने के लिए किया जाता रहा है।
मुगल सम्राट अकबर (1542-1605) के युग के दौरान कई ऐतिहासिक दस्तावेजों (1590 में अबुल फजल द्वारा आइन-ए-अकबरी) में कहा गया है कि भारत के गरीब ग्रामीण जूट से बने कपड़े पहनते थे।बुनकरों द्वारा साधारण हथकरघे और हाथ के चरखों का उपयोग किया जाता था, जो सूती धागेको भी बुनते थे। इतिहास यह भी बताता है कि भारतीय, विशेष रूप से बंगाली, घरेलू और अन्य उपयोगों के लिए प्राचीन काल से सफेद जूट से बनी रस्सियों और डोरियों का इस्तेमाल करते थे। 17वीं शताब्दी से 20वीं शताब्दी के मध्य तक,ब्रिटिश शासन के तहत ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (British East India Company)पहले जूट व्यापारी थे।इस कंपनी द्वारा कच्चे जूट का व्यापार किया जाता था। 20वीं शताब्दी की शुरुआत के दौरान, मार्गरेट डोनेली प्रथम (Margaret Donnelly I) डंडी (Dundee) में एक जूट मिलके जमींदार थे, जिसने भारत में पहली जूट मिल की स्थापना की थी।जूट के पहले माल को ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा वर्ष 1793 में निर्यात किया गया था।वर्ष 1830 की शुरुआत में, डंडी के बुनकरों ने हाथ से चलाने वाली सन मशीनरी को जूट के धागे की कताई करने वाली मशीन में बदल दिया। इससे भारतीय उपमहाद्वीप (जूट का एकमात्र आपूर्तिकर्ता) से कच्चे जूट के निर्यात और उत्पादन में वृद्धि को देखा गया। वहीं उस समय तक वृद्धि के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र मुख्य रूप से कोलकाता की ओर बंगाल में थे। सर्वप्रथम बिजली से चलने वाली बुनाई का कारखाना वर्ष 1855 में कलकत्ता के पास हुगली नदी पर रिशरा में स्थापित किया गया था।वर्ष 1869 तक, लगभग 950 करघों के साथ पांच मिलें स्थापित की गईं।
विकास इतना तेज था कि, वर्ष 1910 तक, 38 कंपनियां लगभग 30,685 करघों का संचालन कर रही थीं। वर्ष 1880 के मध्य तक जूट उद्योग ने लगभग पूरे डंडी और कलकत्ता का अधिग्रहण कर लिया था। बाद में 19वीं शताब्दी में फ्रांस (France), अमेरिका (America), इटली (Italy), ऑस्ट्रिया (Austria), रूस (Russia), बेल्जियम (Belgium) और जर्मनी (Germany) जैसे अन्य देशों में भी जूट का निर्माण शुरू हुआ।19वीं शताब्दी में जूट उद्योग में उत्कृष्ट विस्तार को देखा गया। 1939 के दौरान, कलकत्ता के पास हुगली नदी पर लगभग 68,377 करघे स्थापित किए गए।जूट द्वारा बुनी गई प्रमुख वस्तुओं में से एक मोटी बोरी है। कलकत्ता में स्थापित हथकरघा इस स्थान को बोरी और अन्य बैगिंग सामग्री में विश्व स्तरीय नेतृत्व प्रदान करते हैं।स्वतंत्रता मिलने के बाद, अधिकांश जूट व्यापारियों ने भारत छोड़ना शुरू कर दिया और जूट मिल बिना स्वामित्व के बंद हो गए थे।जिनमें से अधिकांश को मारवाड़ी व्यवसायियों द्वारा अधिकृत कर लिया गया था। वहीं वर्ष 1947 के दौरान, विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान (Pakistan) के पास जूट का बेहतरीन भंडार मौजूद था। भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव पहले ही शुरू हो चुका था, अब पाकिस्तानी लोगों को जूट उद्योग की जरूरत महसूस होने लगी थी। उसके बाद से पाकिस्तानी परिवारों के अलग-अलग समूह नारायणगंज (Narayanganj) में कई मिलें स्थापित कर जूट के कारोबार में शामिल हो गए। वर्ष 1971 में, बांग्लादेश पाकिस्तान से अलग हो गया और एक स्वतंत्र राष्ट्र बन गया, जिसके बाद अधिकांश जूट मिलों को बांग्लादेश सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया। बाद में, सरकार ने बांग्लादेश की जूट मिलों को नियंत्रित करने और संभालने के लिए BJMC (बांग्लादेश जूट मिल्स कॉर्पोरेशन (Bangladesh Jute Mills Corporation)) का निर्माण किया।जूट उद्योग ने बंगाल के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में, बंगाल में केवल एक विनिर्माण उद्योग था, जी कि जूट का था। इसने बंगाल के कुल औद्योगिक कार्यबल का लगभग आधा भाग नियोजित किया। 1900-1 में, जूट विनिर्माताओं का निर्यात मूल्य बंगाल के पूरे निर्यात व्यापार का लगभग एक तिहाई था।बंगाल में अधिकांश इतिहास के दौरान, जूट कारखानों में तीन-चौथाई मजदूर गैर-बंगाली थे। बंगालियों ने आम तौर पर उद्योग में केवल बिचौलियों के स्थान का चयन किया।
उद्योग के लिए कच्चा जूट पूर्वी बंगाल से आता था।1855 में पहली जूट मिल की स्थापना से पहले, हथकरघा बुनकरों ने जूट रेशा का इस्तेमाल गरीबों के लिए सुतली, रस्सी, मोटे कपड़े और मछली पकड़ने और नौकादि बाँधने की रस्सी के लिए भी किया था।वहीं अंग्रेजों द्वारा तेल और पानी मिलाकर जूट के रेशे की कठोर और भंगुर प्रकृति को नरम करने का उपाय भी खोजा गया।जिसने रेशा को अधिक लचीला और आसानी से अलग करने योग्य बना दिया और इसके परिणामस्वरूप प्रयोग करने योग्य धागे का उत्पादन हुआ।
1868 और 1873 के बीच इन मिलों ने बड़ा मुनाफा कमाया। 1874 में पांच नई कंपनियां और 1875 में 8 और कंपनियां शुरू हुईं। इस प्रकार, बंगाल ने जूट उद्योग में उन्नीसवीं सदी के अंत में एक वास्तविक वृद्धि का अनुभव किया।जूट मिलों की स्थापना के साथ, बंगाल बोरियों का एक प्रमुख निर्यातक बन गया। कलकत्ता डंडी का एक शक्तिशाली प्रतियोगी प्रतीत हुआ और अमेरिका (America) सहित विश्व के कई हिस्सों में डंडी डंडी के हेसियन (Hessian) बाजार में सफलतापूर्वक प्रवेश किया, मुख्यतः क्योंकि कलकत्ता को जूट के सामान के उत्पादन में काफी लाभ था। साथ ही यह स्थिति पूर्वी बंगाल और असम के जूट उत्पादक जिलों में भी काफी अच्छी थी। और इसके पास श्रम काफी सस्ता था। मिलें 15 से 16 घंटे चलती थीं, और कभी-कभी तो रोजाना 22 घंटे भी। इससे कलकत्ता के निर्माताओं को मौद्रिक दृष्टि से स्पष्ट लाभ हुआ।1900 और 1920 के बीच 20 वर्षों के दौरान उद्योग का विकास काफी सार्थक था। जूट का व्यापार वर्तमान में भारतीय उपमहाद्वीप के आसपास केंद्रित है। बांग्लादेश कच्चे जूट का सबसे बड़ा निर्यातक है, और भारत में जूट के सामान की स्थानीय कीमत अंतरराष्ट्रीय कीमतके बराबर है।जूट के लगभग 75% सामान का उपयोग पैकेजिंग सामग्री, मोटे बोरे और बोरियों के रूप में किया जाता है।जूट का तीसरा प्रमुख बाजार कार्पेट बैकिंग क्लॉथ (Carpet Backing Cloth) का महत्वतेजी से बढ़ रहा है। वर्तमान में, यह दुनिया के जूट के सामान की खपत का लगभग 15% हिस्सेदार है।शेष उत्पाद औद्योगिक उपयोग के लिए कालीन के लिए धागा, रस्सियों, कंबल, भराई, सुतली, सजावटी कपड़े और विविध वस्तुएं हैं।जूट ने गैर-बुनकर उद्योग में प्रवेश किया है क्योंकि यह सबसे अधिक लागत प्रभावी उच्च तन्यता वाले वनस्पति फाइबर में से एक है।इसलिए, जूट की मांग ने मोटर संबंधी उद्योग में अपनी जगह बना ली है। जूट का उपयोग अब कारों और ऑटोमोबाइल (Automobiles) के लिए अधिक पर्यावरण के अनुकूल आंतरिक सज्जा के निर्माण के लिए किया जा रहा है।

संदर्भ :-
https://bit.ly/3DfEijQ
https://bit.ly/3iCzzPN
https://bit.ly/36AJKBP
https://bit.ly/3tIgKRB

चित्र संदर्भ
1. जूट बैग स्टाल - 39वां अंतर्राष्ट्रीय कोलकाता पुस्तक मेला - मिलन मेला परिसर - कोलकाता 2015-02-06 को दर्शाता एक चित्रण (Max Pixel)
2. आदमजी जूट मिल्स को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. जूट मिल को दर्शाता एक चित्रण (BusinessStandard)
4. जूट के बेग को दर्शाता एक चित्रण (Pixabay)



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