हमारा शहर लखनऊ, जो अक्सर अपने ऐतिहासिक स्थलों और इमारतों के लिए जाना जाता है, प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर बाग बगीचों के लिए भी मशहूर है। यहां के बगीचे हमें प्रकृति के अंदर झांकने का एक सुनहरा अवसर प्रदान करते हैं, जहां आकर हम प्रकृति के आश्चर्यों का पता लगा सकते हैं। क्या आप जानते हैं कि, पौधों में प्रजनन करने और अपने नए पौधे को जन्म देने, अपनी प्रजातियों को बनाए रखने और जीवित रहने का एक अनूठा तरीका होता है। वे ऐसा, बीज, बीजाणु और कई अन्य तरीकों, जैसे कि, उनके तनों या जड़ों से नए पौधे उगाने के माध्यम से करते हैं। इस प्रक्रिया में, फूलों की एक बड़ी भूमिका होती है, क्योंकि जब ये फूलों हवा, पानी या कीड़ों द्वारा परागित होते हैं, तो इनसे बीज उत्पन्न होते हैं। प्रत्येक छोटे बीज में एक पूरे नए पौधे के जन्म एवं विकास की क्षमता होती है, जो यह दर्शाता है कि प्रकृति कितनी अद्भुत और रचनात्मक हो सकती है। तो आइए आज, हम पौधों में प्रजनन के तरीकों के बारे में जानते हैं और समझते हैं कि, पौधों द्वारा अपने अस्तित्व और प्रसार को सुनिश्चित करने के लिए किन विधियों एवं रणनीतियों का उपयोग किया जाता है और बीजों द्वारा प्रजनन कैसे होता है ? इसके साथ ही, हम उन जटिल प्रक्रियाओं पर प्रकाश डालेंगे, जिनसे बीजों का निर्माण होता है और पौधों के जीवन चक्र में, उनकी क्या भूमिका होती है। अंत में हम, अंकुरण के शुरुआत की प्रक्रिया पर प्रकाश डालेंगे और एक बीज की आकर्षक यात्रा को उजागर करेंगे कि किस प्रकार, यह एक युवा पौधे में बदल जाता है।
पौधों में प्रजनन के तरीके-
पौधों में 'प्रजनन' वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा पौधे अपनी 'संतान' अर्थात नए पौधे उत्पन्न करते हैं। वास्तव में सभी सजीव प्रजातियों के निरंतर अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए पौधों का यह प्रजनन अत्यंत आवश्यक है। आप यह तो जानते ही होंगे कि फूल वाले पौधे कैसे प्रजनन करते हैं। लेकिन, क्या आपने कभी सोचा है कि बिना फूलों वाले पौधों में प्रजनन प्रक्रिया कैसे होती है? वे लैंगिक और अलैंगिक रूप से भी प्रजनन कर सकते हैं। यद्यपि यह सुनकर आपको अवश्य ही आश्चर्य हो रहा होगा लेकिन यह सत्य है कि पौधों में अलैंगिक प्रजनन बहुत अधिक आम है। वास्तव में, पादप साम्राज्य आश्चर्यों से भरा है। आइए, लैंगिक प्रजनन को समझने से शुरुआत करें।
लैंगिक प्रजनन:
लैंगिक प्रजनन में, माता-पिता से प्राप्त, मूल आनुवंशिक सामग्री, ' डी एन ए'(DNA) है। डी एन ए पौधों की यौन कोशिकाओं से प्राप्त होता है, जिन्हें 'युग्मक' कहा जाता है। 'निषेचन' की प्रक्रिया द्वारा दो यौन कोशिकाओं से आनुवंशिक सामग्री प्राप्त होती है जिनसे छोटे पौधे पैदा होते हैं। फूल वाले और बिना फूल वाले दोनों तरह के पौधे लैंगिक रूप से प्रजनन कर सकते हैं।
फूलों वाले पौधों में लैंगिक रूप से प्रजनन की प्रक्रिया:
फूल वाले पौधों को 'आवृतबीजी' (Angiosperms) के रूप में जाना जाता है। आवृतबीजी पौधों में तने, जड़ें और पत्तियां भी होती हैं। फूलों से बीज पैदा होते हैं, इन फूलों के भीतर नर और मादा अंग होते हैं। ये पौधे 'परागण' द्वारा प्रजनन करते हैं।
पौधे या तो 'स्व-परागण' या 'पर-परागण' कर सकते हैं:
- स्व-परागण (Self-pollination), तब होता है जब किसी पौधे का परागकण अपने स्वयं के अंडे को निषेचित करता है। यह प्रक्रिया 'उभ्यलिंगी' पौधों में बहुत आम है जिनमें एक ही फूल में मादा और नर दोनों यौन अंग होते हैं।
- पर-परागण (Cross-pollination), तब होता है जब एक पौधे का परागकण किसी भिन्न पौधे के फूल के वर्तिकाग्र तक पहुंच जाता है।
बिना फूलों वाले पौधों में लैंगिक रूप से प्रजनन की प्रक्रिया:
बिना फूलों वाले पौधों में प्रजनन की प्रक्रिया बीजाणुओं या बीजों के माध्यम से होती है। शैवाल (Algae), लिवरवॉर्ट्स(Liverworts) और हॉर्नवॉर्ट्स (Hornworts) जैसे पौधे, जिन्हें 'ब्रायोफाइटा' (Bryophytes) के नाम से जाना जाता है, बीजाणुओं द्वारा प्रजनन करते हैं। ब्रायोफ़ाइटा असंवहनी पौधे होते हैं, जिसका अर्थ है कि उनमें जड़ें, तने और पत्तियां नहीं होती हैं। ब्रायोफ़ाइटा नर युग्मक (शुक्राणु) पानी द्वारा मादा युग्मक (अंडे) तक पहुंचते हैं। जब शुक्राणु अंडे को निषेचित करता है, तो बीजाणु संपुट उत्पन्न होते हैं। फ़र्न जैसे संवहनी पौधे, जिनमें जड़ें, तना और पत्तियाँ होती हैं, लेकिन फूल नहीं, भी बीजाणुओं द्वारा प्रजनन करते हैं। कॉनिफ़र, जिन्हें 'अनावृतबीजी या शंकुधारी' भी कहा जाता है, बीज द्वारा प्रजनन करते हैं। हालाँकि, इनमें फूल नहीं होते हैं। शंकुधारी पौधों में शंकु के अंदर बीज उगता है जिससे प्रजनन होता हैं। ये शंकु कुछ सप्ताहों में पक जाते हैं, और फिर बीज बिखर जाते हैं।
अलैंगिक प्रजनन:
जो पौधे अलैंगिक प्रजनन द्वारा प्रजनन करते हैं, उनकी संतानें मूल पौधे के समान होती हैं, इसका मुख्य कारण यह है कि नर और मादा युग्मकों का संलयन नहीं होता है। आनुवंशिक रूप से समान संतानों को 'क्लोन' (Clones) कहा जाता है। क्लोनों में आनुवंशिक विविधता का अभाव होता है। इससे वे बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं। और इसी कारण ये पौधे पर्यावरण में होने वाले परिवर्तनों के प्रति कम अनुकूलनीय होते
हैं। अलैंगिक प्रजनन की कुछ विधियों में वानस्पतिक प्रसार और विखंडन शामिल हैं:
वानस्पतिक प्रसार: वानस्पतिक प्रसार के लिए बीज या बीजाणु की आवश्यकता नहीं होती है। इसके बजाय, संतान सीधे मूल पौधे से बढ़ती है। विभिन्न प्रजातियों में वानस्पतिक प्रसार भिन्न-भिन्न तरीके से होता है। पौधों में वानस्पतिक प्रजनन के कुछ रूप निम्नलिखित हैं:
- कंद: ये भूमिगत कलियाँ हैं, जिनसे मांसल पत्तियाँ निकलती हैं। कन्द विकसित होने वाले पौधों के लिए खाद्य भंडारण इकाइयाँ होती हैं। लहसुन, प्याज़, डैफ़ोडिल अर्थात नरगिस (Daffodil) और ट्यूलिप (Tulip) के पौधे कन्द के माध्यम से प्रजनन करते हैं।
- घनकंद: ये कंद के समान होते हैं, लेकिन इनमें कंद के समान परतें नहीं होती हैं। वे समान आकार में बढ़ते हैं और प्रतिकूल परिस्थितियों में भी निष्क्रिय रह सकते हैं। घनकंद को कई टुकड़ों में काटा जा सकता है और प्रत्येक टुकड़े को एक नया पौधा पैदा करने के लिए लगाया जा सकता है। केला और अगावे में घनकंद द्वारा प्रजनन होता है।
- कंद (गाँठ): ये तनों के रूप में होते हैं और अधिकांश कंदों में छोटी-छोटी पत्तियां होती हैं, जिनमें प्रत्येक में एक कली होती है, जो एक नए पौधे में विकसित होने की क्षमता रखती है। आलू और कचालू में कंद के माध्यम से प्रजनन होता है।
- प्रकंद: जड़ों के साथ भूमिगत तने को प्रकंद कहते हैं, इनसे शाखाएं बनती हैं और नए अंकुर पैदा होते हैं। अदरक और बांस प्रकंद के उदाहरण हैं।
- भूस्तारी: ये ज़मीन पर उगने वाली शाखाओं की तरह दिखते हैं। इनमें जड़ें विकसित होती हैं और नए पौधे विकसित होते हैं। स्ट्रॉबेरी और पुदीना इसके अच्छे उदाहरण हैं।
अलैंगिक प्रजनन का एक फ़ायदा यह होता है कि इसके द्वारा उत्पन्न पौधा तेज़ी से परिपक्वता तक पहुंच है। चूंकि नया पौधा वयस्क पौधे या पौधे के हिस्सों से उत्पन्न होता है, यह अंकुर से भी अधिक मज़बूत होता है।
बीज द्वारा प्रजनन:
अधिकांश फूल वाले पौधे अपने प्रजनन के लिए बीज का उत्पादन करते हैं। एक बीज में एक लघु पौधा होता है, जो आनुवंशिक रूप से अपने माता-पिता से भिन्न होता है।
बीज द्वारा प्रजनन की प्रक्रिया में तीन मुख्य चरण हैं:
- परागण - परागण वह प्रक्रिया है, जिसमें नर परागकोश से निकला नर परागकण फूल के मादा भाग, वर्तिकाग्र से मिलता है।
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निषेचन - अगला चरण निषेचन है, जिसमें परागकण का केंद्रक और वर्तिकाग्र का अंडा मिलकर भ्रूण बन जाता है।
- बीज निर्माण - जैसे-जैसे भ्रूण विकसित होता है, मूल पौधे के पोषक तत्वों से उसके अस्तित्व और प्रारंभिक विकास में सहायता के लिए बीज के भोजन भंडार का निर्माण होता है। फिर बीज का पानी सूख जाता है और इसका आवरण सख्त हो जाता है, पकने के बाद, यह फैलने के लिए तैयार हो जाता है।
आम तौर पर, अधिकांश फूलों में, नर और मादा दोनों भाग होते हैं। लेकिन कुछ पौधों में दो अलग-अलग प्रकार के फूल होते हैं, जिनमें से एक में केवल मादा भाग होते हैं और दूसरे में केवल नर भाग होते हैं। इन्हें एकल-लिंगी फूल कहा जाता है और ये, या तो एक ही पौधे पर या पूरी तरह से
अलग-अलग पौधों पर हो सकते हैं:
- पिंघल वृक्ष (हेज़ल) एक ही पौधे पर दो तरह के फूलों का एक विशिष्ट उदाहरण है, जिसमें छोटे फूल मादा होते हैं और साथ ही अधिक दिखावटी नर फूल भी होते हैं।
- कुछ पौधों, जैसे स्किमिया (Skimmia), में अलग-अलग नर और मादा पौधे होते हैं, जिनमें से प्रत्येक केवल एक ही लिंग के फूल पैदा करते हैं।
परागण आमतौर पर दो मुख्य साधनों - कीट या वायु - द्वारा होता है:
- कीट-परागण वाले पौधे मधुमक्खियों जैसे परागणकों को अपने गंध और रंग जैसे संकेतों के माध्यम से फूलों की ओर आकर्षित करते हैं। विभिन्न प्रकार के कीट विभिन्न प्रकार के फूलों को पसंद करते हैं, जबकि रात में उड़ने वाले पतंगे सफ़ेद, समृद्ध सुगंधित फूलों से आकर्षित होते हैं, भौंरे चमकीले रंग के फूलों को पसंद करते हैं।
- वायु-परागण वाले पौधे, जैसे घास आदि में परागकण अत्यंत हल्का होता है जिसे हवा द्वारा ले जाया जा सकता है। वायु-परागण वाले पौधों में कीटों को आकर्षित करने के लिए रंगीन या सुगंधित फूलों की आवश्यकता नहीं होती है।
अंकुरण की प्रक्रिया:
अंकुरण प्रक्रिया तब शुरू होती है जब बीज द्वारा पानी को अवशोषित कर लिया जाता है। इस प्रक्रिया में अंकुर विकास के लिए आवश्यक कई जैव रासायनिक घटनाओं की शुरुआत होती है। उदाहरण के लिए, ऐल्यूरोन परत से स्रावित एंजाइम भ्रूणपोष में मौजूद स्टार्च (Starch) को तोड़ते हैं और इसे सरल शर्करा में परिवर्तित करते हैं जो भ्रूण को पोषण देते हैं। घास के अंकुर के सभी संरचनात्मक घटक भ्रूण से उत्पन्न होते हैं। भ्रूणपोष, विकासात्मक प्रक्रिया के लिए, ऊर्जा का एक त्वरित स्रोत प्रदान करता है, जबकि बीजपत्र, जो वसा और तेल से भरपूर होता है, विकास के बाद के चरणों के लिए ऊर्जा प्रदान करता है। अंकुरण की प्रक्रिया, तब पूर्ण मानी जाती है जब मूलक (जो प्राथमिक जड़ होती है) मूलांकुर को सुरक्षात्मक आवरण को तोड़ता है और बीज से बाहर निकलता है।
अंकुर के विकसित होने पर पहला पत्ता दिखाई देता है। घास के अंकुरों में, एक महत्वपूर्ण संरचना होती है जिसे कोलियोप्टाइल (Coleoptile) कहते हैं, जो मिट्टी के माध्यम से बीजपत्र मध्यक की रक्षा करती है और उसे आगे बढ़ाती है। एक बार जब कोलियोप्टाइल, बीज से बाहर आ जाता है, तो बीजपत्र मध्यक बढ़ना शुरू हो जाता है, जो कोलियोप्टाइल के आधार को ऊपर की ओर धकेलता है। जब कोलियोप्टाइल, मिट्टी की परत को तोड़कर बाहर निकलता है और प्रकाश के संपर्क में आता है, तो बीजपत्र, मध्यक का बढ़ना बंद हो जाता है। बीजपत्र, मध्यक भ्रूण पर स्थित मध्य रेखा से निकलता है और कोलियोप्टाइल के आधार पर समाप्त होता है। बीजपत्र मध्यक का बढ़ना बीज में संग्रहित ऊर्जा पर निर्भर करता है। यदि कम ऊर्जा के कारण, बीजपत्र मध्यक कोलियोप्टाइल को मिट्टी की सतह तक नहीं बढ़ा पाते, तो अक्सर अंकुर विफल हो जाते हैं। इस घटना में पत्तियाँ मिट्टी की परत के नीचे बिखर सकती हैं जिसके परिणामस्वरूप अंकुर मर सकते हैं। प्रकाश के संपर्क में आने पर, अंकुर की पत्तियाँ प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के माध्यम से ऊर्जा की आपूर्ति करना शुरू कर देती हैं। इस बिंदु पर, अंकुर अपनी भोजन आपूर्ति के लिए बीज से स्वतंत्र हो जाता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/54vf5h2d
https://tinyurl.com/ux4m46wa
https://tinyurl.com/yc8nfyfk
चित्र संदर्भ
1. एक सुंदर पुष्प को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. पुष्पीय पौधों की कामुकता के मूल तत्वों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. रैननकुलस ग्लैबेरिमस (Ranunculus glaberrimus) नामक फूल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. कलंचो पिन्नाटा (Kalanchoe pinnata) के पत्ते के किनारे पर नई कोपलों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. तने की कटिंग (stem cutting) से वानस्पतिक प्रजनन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. परागण को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
7. अंकुरण की प्रक्रिया को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)