भारत के कई लोगों की तरह, लखनऊ के भी कई लोग, पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं। पुनर्जन्म, जिसे पुनरुत्थान के रूप में भी जाना जाता है, एक दार्शनिक या धार्मिक अवधारणा है कि, किसी जीवित प्राणी का गैर-भौतिक सार, जैविक मृत्यु के बाद एक अलग भौतिक रूप या शरीर में एक नया जीवन शुरू करता है। पुनर्जन्म से जुड़ी अधिकांश मान्यताओं के अनुसार, मनुष्य की आत्मा अमर है और भौतिक शरीर के नष्ट होने के बाद भी ये नष्ट नहीं होती है। तो आइए, आज पुनर्जन्म और पुनरुत्थान के बीच अंतर के बारे में जानते हैं। आगे हम हिंदू धर्म में, पुनर्जन्म की अवधारणा के बारे में बात करेंगे। इस संदर्भ में, हम संसार के चक्र पर कुछ प्रकाश डालेंगे। फिर हम, मोक्ष और उसके महत्व के बारे में जानेंगे। आगे बढ़ते हुए, हम बौद्ध धर्म में पुनर्जन्म सिद्धांत पर विचार करेंगे। यहां हम इस अवधारणा के संबंध में, विद्वानों की विभिन्न मान्यताओं के बारे में भी जानेंगे। अंत में, हम यहूदी धर्म में पुनर्जन्म की अवधारणा के बारे में बात करेंगे।
पुनर्जन्म और पुनरुत्थान में क्या अंतर है?
पुनरुत्थान एक हिंदू मान्यता है, जबकि पुनर्जन्म एक बौद्ध विश्वास है। हिंदुओं का मानना है कि, प्रत्येक व्यक्ति के भीतर एक स्थायी आत्मा होती है, जो उनका असली सार है। जब वे मरते हैं, तो यह आत्मा, एक शरीर से दूसरे शरीर में स्थानांतरित हो जाती है। इसका मतलब यह है कि, अगले जन्म में भी, कोई मूलतः वही व्यक्ति रहेगा। अत्यंत दुर्लभ मामलों में, कुछ हिंदू लोग, अपने पिछले जन्मों को याद रखने में सक्षम होने का दावा करते हैं।
दूसरी ओर, बौद्धों का मानना है कि, कुछ भी कभी भी स्थायी नहीं होता (इस विचार को “अनिक्का” कहा जाता है)। इसलिए, वे एक स्थायी आत्मा के विचार को अस्वीकार करते हैं, जो एक जीवन से दूसरे जीवन की ओर बढ़ती है। वे कहते हैं कि, यह सिर्फ़ उनकी कर्म योग्यता (इस जीवन में उनके कार्यों के अच्छे या बुरे परिणाम) है, जो अगले जीवन में स्थानांतरित होती है। हमारा अगला जीवन, पिछले से किसी तरह संबंधित है, लेकिन मूलतः पिछले जैसा नहीं होता है। यह विचार अत्यधिक जटिल है, और यहां तक कि, कई बौद्धों को भी इस पर विचार करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है!
हिंदू धर्म में पुनर्जन्म की अवधारणा: संसार का एक चक्र
पुनर्जन्म या पुनरुत्थान, हिंदू धर्म में एक प्रमुख मान्यता है। हिंदू धर्म में हमारा जीवन जन्म, जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म से गुज़रता है, और इसे ‘संसार चक्र’ के रूप में जाना जाता है।
इस मान्यता के अनुसार, सभी जीवित जीवों में एक आत्मा है, जो ब्रह्म का एक अंश है। यह आत्मा ही है, जो मृत्यु के बाद एक नए शरीर में चली जाती है। आत्मा, किसी भी जीवित जीव, जैसे पौधा, जानवर या इंसान के शरीर में जा सकती है। एक बार, जब कोई जीवित प्राणी मर जाता है, तो उसकी आत्मा का पुनर्जन्म होगा, या उसके पिछले जीवन के कर्मों के आधार पर, एक अलग शरीर में उसका पुनरुत्थान होगा। उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति के पिछले जन्म में अच्छे कर्म हैं, तो उनकी आत्मा का पुनर्जन्म होगा, या वे पहले से बेहतर किसी चीज़ या जीव में पुनर्जन्म लेंगे।
मोक्ष क्या है और इसका क्या महत्व है?
किसी हिंदू व्यक्ति के जीवन का अंतिम लक्ष्य, मोक्ष तक पहुंचना है। मोक्ष का अर्थ, संसार से मुक्ति है और यह केवल किसी हिंदू व्यक्ति के कई बार पुनर्जन्म लेने के बाद ही, साध्य हो सकता है। यदि कोई हिंदू, कई जन्मों से अच्छे कर्म प्राप्त करता है, तो उसने परम ज्ञान प्राप्त और खुद को भौतिक संसार की बाधाओं से मुक्त कर लिया होगा। एक बार, ऐसा होने पर, एक हिंदू की आत्मा को किसी अन्य प्राणी के रूप में पुनर्जन्म लेने की आवश्यकता नहीं रहती है और वह संसार से मुक्त होने के लिए तैयार हो जाता है। परिणामस्वरूप, आत्मा, मोक्ष प्राप्त करेगी और ब्रह्म के साथ पुनः जुड़ जाएगी।
बौद्ध धर्म में पुनर्जन्म सिद्धांत:
पुनर्जन्म सिद्धांत, जिसे कभी-कभी ‘स्थानांतरगमन’ के रूप में भी जाना जाता है, यह दावा करता है कि, पुनर्जन्म संसार के छह लोकों में से एक में होता है। ये छह लोक – देवता लोक, अर्ध-देवता, मनुष्य, पशु लोक, भूत लोक और नरक लोक, हैं। जैसा कि विभिन्न बौद्ध परंपराओं में कहा गया है, पुनर्जन्म, हमारे कर्म द्वारा निर्धारित होता है। अच्छे क्षेत्रों में पुनर्जन्म, कुसल कर्म (अच्छे या कुशल कर्म) द्वारा निर्धारित होता है। जबकि, बुरे क्षेत्रों में पुनर्जन्म , अकुसल कर्म (बुरे या अकुशल कर्म) के कारण होता है।
पुनर्जन्म के संबंध में बौद्ध धर्म में विभिन्न मान्यताएं:
कुछ बौद्ध परंपराएं, इस बात पर जोर देती हैं कि, विज्ञान (चेतना), हालांकि लगातार बदलती रहती है, एक सातत्य या धारा (संतान) के रूप में मौजूद है, और वही पुनर्जन्म से गुज़रती है। थेरवाद जैसी कुछ परंपराएं, इस बात पर ज़ोर देती हैं कि, पुनर्जन्म तुरंत होता है और कोई भी “चीज़” (यहां तक कि चेतना भी नहीं) पुनर्जन्म के लिए जन्मों-जन्मों तक नहीं चलती है। तिब्बती बौद्ध धर्म जैसी अन्य बौद्ध परंपराएं, मृत्यु और पुनर्जन्म के बीच एक अंतरिम अस्तित्व (बारदो) मानती हैं, जो 49 दिनों तक चल सकता है। यह विश्वास तिब्बती अंत्येष्टि अनुष्ठानों को संचालित करता है। अब लुप्त हो चुकी एक बौद्ध परंपरा – पुद्गलवाद, का दावा है कि, एक अवर्णनीय व्यक्तिगत इकाई (पुद्गल) थी, जो एक जीवन से दूसरे जीवन में स्थानांतरित होती है।
यहूदी धर्म में पुनर्जन्म का क्या अर्थ है?
ल्यूरियानिक कबाला (Lurianic Kabbalah) के अनुसार, जब हम दुनिया में आते हैं, तो हम आत्मा–संघ के एक विशेष विन्यास के रूप में प्रवेश करते हैं। ये आत्मा–संघ एक मूल स्रोत से आती है, जिसे निश्मत एडम हारिशोन(Nishmat Adam Harishon), या पहले इंसान की आत्मा कहा जाता है। इसलिए ऐसा नहीं है कि, प्रत्येक प्राणी या व्यक्ति के पास एक “आत्मा” है। बल्कि, इस सिद्धांत के अनुसार, प्रत्येक प्राणी का गठन, आत्मा की इस श्रृंखला के समूह से होता है। हमारे पास कोई आत्मा नहीं है – बल्कि, हम आत्मा-संघ के कई अलग-अलग हिस्सों से मिलकर बने अस्तित्व के रूप में मौजूद हैं।
जबकि, इस जीवन में हम अपने भीतर मौजूद आत्मा–संघ के संस्थापन को प्रभावित करने के उद्देश्य पर हैं, हम उस आध्यात्मिक कार्य के सच्चे लाभार्थी नहीं हैं। बल्कि, हम जो कुछ भी करते हैं, वह निश्मत एडम हारिशोन, के संस्थापन के लिए है। इसका तात्पर्य यह है कि, हमारा आध्यात्मिक कार्य उस सर्व-समावेशी आत्मा को ठीक करना है, जिससे सभी प्राणी आते हैं। इसे ‘टिक्कुन ओलम(Tikkun olam)’ में संलग्न होना, माना जाता है। यह, स्वयं के उन हिस्सों में उपचार लाकर, साध्य होता है, जिन्हें ठीक करने के लिए हम दुनिया में पैदा हुए हैं। इस प्रकार, यहूदी धर्म के अनुसार, पुनर्जन्म की हमारी प्रक्रिया हमारे बारे में नहीं है, यह एडम हारिशोन की आत्मा को ठीक करने या संस्थापन के बारे में है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/3mrzpzm4
https://tinyurl.com/54mjswxr
https://tinyurl.com/24h87uw9
https://tinyurl.com/4nmkpjwz
चित्र संदर्भ
1. संसार को दर्शाते बौद्ध धर्म के भावचक्र को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. बौद्ध धर्म के जीवनचक्र को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. हिंदू पुनर्जन्म चक्र को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. योग मुद्रा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. इज़राइल संग्रहालय, जेरूसलम में रखी 1727 की एक प्रार्थना पुस्तक में बारूक दयान एमेस (Baruch Dayan Emes) के आरेख को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)