Post Viewership from Post Date to 01-Sep-2021 (5th Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
1747 132 1879

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

उष्णकटिबंधीय जंगलों के लाभ तथा वन क्षेत्र को बचाने के निर्धारित वैश्विक लक्ष्य व् प्रयास

लखनऊ

 27-08-2021 10:19 AM
जंगल

हमारा शहर लखनऊ नवाबों की शान के साथ ही विविध प्रकार की प्राकृतिक जड़ी बूटियों के संदर्भ में भी जाना जाता है। लखनऊ शहर में आर्गेमोन मेक्सिकाना (Argemone mexicana) नामक एक बहुपयोगी जड़ी-बूटी भी पाई जाती है। उष्णकटिबंधीय कांटेदार जंगलों में पाई जाने वाली इस औषधि को कटेला, बारबांडा जैसे स्थानीय नामों से भी जाना जाता है, इसके अलावा भी उत्तर प्रदेश के उष्णकटिबंधीय जंगल अनेक बहुमूल्य औषधियों का घर हैं।
उष्णकटिबंधीय कांटेदार वन और झाड़ियाँ ऐसे वन या क्षेत्र होते हैं, जहाँ वर्ष भर में औसतन 70 सेमी से कम वर्षा होती है, वर्षा का यह स्तर सामान्य से बेहद कम माना जा सकता है। ऐसे जंगल आमतौर पर भारत के अर्ध-शुष्क क्षेत्रों जैसे राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दक्कन के पठार के शुष्क क्षेत्रों में ही देखे जाते हैं।
कम वर्षा होने के बावजूद इस प्रकार के वनों की अपनी विशेषताएं हैं
1. इन जंगलों में छोटे पेड़ों के साथ कई कांटेदार वनस्पतियां भी पाई जाती हैं।
2. यहां पाए जाने वाले अधिकांश पेड़ बाबुल, कीकर, खैर, प्लम, कैक्टस और खजूर इत्यादि होते हैं।
3. मिट्टी से पोषक तत्वों की कमी के कारण जड़ें व्यापक रूप से भूमिगत क्षेत्र में फैली हुई रहती हैं, ताकि वे मिट्टी से पोषक तत्वों की तलाश निरंतर वृद्धि कर सकें।
4. यहाँ के अधिकांश पेड़ों अथवा पोंधों में नुकीले कांटे पाए जाते हैं जिस कारण जानवर भी इन्हें जड़ से नहीं उखाड़ पाते।
5. इन कांटेदार जंगलों में गधे, ऊंट, रैटलस्नेक (rattlesnakes), जंगली हिरण, नीलगाय और खरगोश जैसे जानवर पनपते हैं।
6.जंगलों में पेड़ साल के अधिकांश दिनों में पत्ती रहित रहते हैं। इसलिए, उन्हें कभी-कभी काँटेदार झाड़ियों या झाड़-झंखाड़ के जंगल भी कहा जाता है।
7. इन जंगली क्षेत्रों में आर्द्रता 50% से कम पाई जाती है, और यहाँ का तापमान 25 से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है।
उत्तर प्रदेश में (0.21%) उष्णकटिबंधीय अर्ध सदाबहार वन, (19.68%), उष्णकटिबंधीय नम पर्णपाती वन, (50.66%) उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती , (4.61%) उष्णकटिबंधीय कांटे और (2.35%) समुद्र तट और दलदली वन पाए जाते हैं।
1951 में अविभाजित उत्तर प्रदेश में वन क्षेत्र 30,245 वर्ग किमी दर्ज किया गया था। 1999 में उत्तरांचल (आज के उत्तराखंड) को यू.पी. से अलग कर दिया गया। और 2011 की वन रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश में केवल वन क्षेत्र केवल 16,888 वर्ग किमी दर्ज किया गया। उत्तर प्रदेश के मामले में, वन क्षेत्र में गिरावट का मुख्य कारण सड़कों, सिंचाई, बिजली, पेयजल, खनन उत्पादों आदि की बढ़ती मांगों को देखते हुए गैर-वन उद्देश्यों के लिए वन भूमि के कटाव को जिम्मेदार ठहराया गया। इसके अलावा अतिक्रमणकरियों ने भी यहां के विशाल वन क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया और इसे पूरी तरह नष्ट कर दिया गया। अक्टूबर 2008 से जनवरी 2009 तक एकत्र किए गए, उपग्रह डेटा (satellite data) की व्याख्या के आधार पर, यू.पी. 14,338 वर्ग किलोमीटर के रूप में अनुमानित किया गया है, जिसमें 1,626 वर्ग किमी बहुत घने, 4,559 वर्ग किमी मध्यम घने और 8,153 वर्ग किमी खुले जंगल हैं।
2003 की जिलेवार वन आच्छादन की राज्य वन रिपोर्ट में 1% से कम वन क्षेत्र वाले 10 जिलों का उल्लेख किया गया था। 2011 की रिपोर्ट में 11 जिलों का संकेत दिया गया था। राज्य के अधिकांश (32) जिलों को 2003 की रिपोर्ट में 1 से 3% वर्ग वन क्षेत्र में शामिल किया गया था। इन जिलों में से बुलंदशहर, हमीरपुर, झांसी, सीतापुर ने वन क्षेत्र में गिरावट दर्ज की है, जबकि ज्योतिबाफुले नगर, मथुरा, रामपुर और सुल्तानपुर ने अपने वन क्षेत्र में वृद्धि की है, और उरैया ने 2003 से कोई बदलाव नहीं दिखाया है। 2011 आगरा, इटावा और उन्नाव ने तक अपने वृक्षों के आवरण में सुधार किया है, बिजनौर, जालौन ने गिरावट दर्ज की है। दूसरी ओर बहराइच (12.37%), ललितपुर (11.35%), लखनऊ (11.79%) और सहारनपुर (10.06%) वर्ग में हरे भरे वन क्षेत्र शामिल हैं। सकारात्मक रूप से लखनऊ और सहारनपुर में वन क्षेत्रों में सुधार दर्ज किया गया है, किंतु बहराइच और ललितपुर में गिरावट दर्ज की गई है। यदि हम उत्तर प्रदेश की तुलना लखनऊ के वनावरण से करें तो पाते हैं की लखनऊ का वनावरण 11.91% है जबकि उत्तर प्रदेश का मात्र 6% है। वन विभाग द्वारा केंद्र प्रायोजित सहायता अनुदान योजना का क्रियान्वयन करके एनजीओ (NGO) के सहयोग से देश को हरा-भरा करने के लिए कई परियोजनाओं को लागू किया गया है, जिनकी परियोजनाओं को राष्ट्रीय वनीकरण पारिस्थितिकी-विकास बोर्ड (एनएईबी), भारत सरकार द्वारा स्वीकृत किया गया है। राज्य में वन विभाग द्वारा शहरी वानिकी (urban forestry) को बढ़ावा देने के लिए एक योजना भी लागू की जा रही है।
वन आवरण की कमी से वन संसाधनों, मिट्टी और जल संसाधनों पर और जैव-भू-रासायनिक चक्रों के कामकाज पर स्पष्ट प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जंगलों की कमी से ग्रीनहाउस गैसों में भी वृद्धि होती है। राष्ट्रीय वन नीति यह निर्धारित करती है कि राष्ट्रीय लक्ष्य देश के कुल भूमि क्षेत्र का कम से कम एक तिहाई वन कवर के तहत होना चाहिए। किंतु वन संरक्षण के संदर्भ में सरकार और स्वयं सहायता समूहों की कई महत्वकांशी योजनाओं को घातक कोरोना महामारी में बुरी तरह प्रभावित किया है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी एक ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार नोवल कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी ने देशों के सामने अपने जंगलों के प्रबंधन में आने वाली चुनौतियों को और भी अधिक बढ़ा दिया है। समाज के सबसे कमजोर वर्गों में से कुछ, विशेष रूप से ग्रामीण गरीब और स्वदेशी लोग अपनी सबसे आवश्यक निर्वाह आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जंगलों का रुख करने लगे हैं।
इससे चिंताजनक रूप से वन प्रणालियों पर दबाव काफी बढ़ गया है। वनों के विस्तार हेतु संयुक्त राष्ट्र द्वारा वृक्षरोपण के कुछ लक्ष्य निर्धारित किये गए थे, जिसमे भारत को प्रति वर्ष 200,000 हेक्टेयर वन और वृक्ष आवरण अतिरिक्त जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है। योजना में पहला वैश्विक वन लक्ष्य 2030 तक वन क्षेत्र को तीन प्रतिशत बढ़ाने का रखा गया है। किंतु कोरोना महामारी ने जनहित के इस लक्ष्य को प्रभावित कर दिया है।

संदर्भ
https://bit.ly/3jjvNvA
https://bit.ly/3sX1hej
https://bit.ly/2ZmjOoa
https://bit.ly/3gzfdGm
https://bit.ly/3kuFXsK
https://brainly.in/question/1803826
https://bit.ly/3zkP5Gx

चित्र संदर्भ
1. उष्णकटिबंधीय जंगलों का एक चित्रण (utkaltoday)
2. उष्णकटिबंधीय वर्षा वन, उत्तर पूर्वी भारत का एक चित्रण (flickr)
3. जंगलों के विनाश को संदर्भित करता एक चित्रण (ucsdnews)
4. जंगलों के निवासियों का एक चित्रण (masterfile)



***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • होबिनहियन संस्कृति: प्रागैतिहासिक शिकारी-संग्राहकों की अद्भुत जीवनी
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:30 AM


  • अद्वैत आश्रम: स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं का आध्यात्मिक एवं प्रसार केंद्र
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:32 AM


  • जानें, ताज महल की अद्भुत वास्तुकला में क्यों दिखती है स्वर्ग की छवि
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:25 AM


  • सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध अमेठी ज़िले की करें यथार्थ सैर
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:34 AM


  • इस अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर जानें, केम्ब्रिज और कोलंबिया विश्वविद्यालयों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:33 AM


  • क्या आप जानते हैं, मायोटोनिक बकरियाँ और अन्य जानवर, कैसे करते हैं तनाव का सामना ?
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:20 AM


  • आधुनिक समय में भी प्रासंगिक हैं, गुरु नानक द्वारा दी गईं शिक्षाएं
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:32 AM


  • भारत के सबसे बड़े व्यावसायिक क्षेत्रों में से एक बन गया है स्वास्थ्य देखभाल उद्योग
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:22 AM


  • आइए जानें, लखनऊ के कारीगरों के लिए रीसाइकल्ड रेशम का महत्व
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:26 AM


  • वर्तमान उदाहरणों से समझें, प्रोटोप्लैनेटों के निर्माण और उनसे जुड़े सिद्धांतों के बारे में
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:32 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id