रामपुर रज़ा पुस्तकालय में ऐसी कई वस्तुएं मौजूद हैं, जो इसकी सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण
उदाहरण पेश करती हैं।यहां एक आकाशीय ग्लोब भी मौजूद है, जिसे मुहम्मद इब्न जाफ़र (Muhammad
Ibn Jaffar) द्वारा 1430-31 ईस्वी में किरमन में तैयार किया गया था।यह ग्लोब पुस्तकालय की सबसे
पुरानी सम्पतियोंमें से एक है।आकाशीय ग्लोब आकाश में तारों की स्पष्ट स्थिति दिखाते हैं।इनमें सूर्य,
चंद्रमा और ग्रहों को प्रदर्शित नहीं किया जाता, क्योंकि इन पिंडों की स्थिति सितारों के सापेक्ष भिन्न
होती है।लेकिन एक्लिप्टिक (Ecliptic),जिसके साथ सूर्य गति करता है, को इसमें इंगित किया गया है।इस
तरह के ग्लोब का उपयोग न केवल खगोलीय डेटा को रिकॉर्ड करने के लिए किया जाता था, बल्कि
वेधशालाओं में काम करने वाले छात्रों को गणना के लिए और उनकी स्थिति के सम्बंध में निर्देश देने के
लिए एक उपकरण के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता था।
जहां अल-बत्तानी (Al-Battani) के सबसे महत्वाकांक्षी आकाशीय ग्लोबों में से एक में 1,022 सितारों तक
के निर्देशांक दर्ज किए गए थे, (जिन्हें मुस्लिम खगोलविदों ने अपनी खोजों के दौरान नामित किया
था),वहीं इस विशिष्ट ग्लोब में राशि चिन्हों के नामों के साथ साठ तारे दर्शाए गए हैं, जिन्हें एक्लिप्टिक
लाइन के साथ उकेरा गया है।यह एक वर्ष में सूर्य के पथ को रिकॉर्ड करता है।
इसका निर्माण तैमूर
राजवंश के दौरान हुआ था तथा इस तरह के कार्य में ज्योतिष और खगोल विज्ञान का संयोजन देखने को
मिलता है।इससे यह पता चलता है, कि तैमूर शासक कला और विज्ञान को काफी सहयोग दिया करते थे।
पीतल से बना और चांदी से जड़ा गया यह आकाशीय ग्लोब उन प्रारंभिक आकाशीय ग्लोबों का एक
उत्कृष्ट उदाहरण है, जिन्हें अल-बत्तानी के पहले ग्लोब की शैली में निर्मित किया गया था, और इनका
उपयोग अवलोकन संबंधी उपकरणों के रूप में नहीं, बल्कि सेक्स्टेंट (Sextants), क्वाड्रंट्स (Quadrants)
या आर्मिलरी (Armillary) गोले के उपयोग के माध्यम से एकत्रित किए गए आकाशीय डेटा को सटीक
रूप से रिकॉर्ड करने के लिए किया गया।
ग्लोब के आधार के पास कुफिक लिपि में एक अभिलेख है, जो इस ग्लोब के निर्माता मुहम्मद इब्न
जाफर इब्न उमर अल-अस्तुरलबी के हस्ताक्षर हैं।खगोलीय ग्लोब आकाश के गोलाकार नक्शे हैं, जिनका
उपयोग कुछ खगोलीय या ज्योतिषीय गणनाओं के लिए एक उपकरण के रूप में किया जाता है। जैसे-जैसे
वैज्ञानिकों और खगोलविदों को आकाश और ग्रहों की जानकारी होती गयी, वैसे-वैसे खगोलीय ग्लोब भी
और अधिक विस्तृत और सटीक होते चले गये। इसके पीछे की धारणा यह है, कि ग्लोब एक ऐसा क्षेत्र
है, जो पृथ्वी को उसके काल्पनिक केंद्र के रूप में दर्शाता है, जिस पर तारे और नक्षत्र बनाए गये हैं। इसे
एक हार्नेस में रखा गया है जो इसे घूमने और विभिन्न अक्षांशों पर झुकने की अनुमति देता है।
माना जाता है, कि सबसे पहले ग्लोब का निर्माण थेल्स ऑफ़ मिल्टस (Thales of Miletus) द्वारा
किया गया था। साथ ही यह भी माना जाता है, कि शायद सबसे पुराना ग्लोब जो अस्तित्व में है,“फार्नेस
ग्लोब (Farnese Globe)” है, जिसे तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में बनाया गया था।आज यह नेपल्स
(Naples) के राष्ट्रीय पुरातत्व संग्रहालय में मौजूद है। इसे एक यूनानी ग्लोब की रोमन प्रति भी माना
जाता है। 10वीं शताब्दी के एक महत्वपूर्ण खगोल शास्त्री अल-सूफ़ी (Al-Sufi) की पुस्तक, द बुक ऑफ़
कॉन्स्टेलेशन (The Book of the Constellations), में नक्षत्रों का सटीक वर्णन मिलता है, जो यूनानी
परंपराओं को अरबी परंपराओं के साथ जोड़ता है। नक्षत्रों की इस पुस्तक ने इस्लामिक दुनिया में ग्लोब के
निर्माताओं के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में कार्य किया। एरहार्ट वीगेल (Erhardt Weigel) नाम के
एक व्यक्ति जो जर्मनी (Germany) में जेना (Jena) विश्वविद्यालय में खगोल विज्ञान के प्रोफेसर थे, ने
भी 18वीं शताब्दी के अंत में एक खगोलीय ग्लोब का निर्माण किया था। उन्होंने एक खोखले केंद्र में एक
लैम्प रखा, जो कि उभरे हुए तांबा क्षेत्र में मौजूद छोटे से एक छेद के माध्यम से प्रकाश को आगे भेज
रहा था। इन छोटे छिद्रों से सितारों को दिखाया जाता था और चार बड़े छेदों में से एक के माध्यम से
ग्लोब को देखने पर तारों को उनके सही विन्यास में देखा जा सकता था। प्रशांत द्वीप समूह में समुद्री
यात्रा करने वाले लोगों ने इन ग्लोबों का उपयोग खगोलीय नेविगेशन को सीखाने के लिए भी किया।
वर्तमान समय में कोरोना महामारी के कारण स्कूल और मनोरंजन स्थल बंद कर दिए गए हैं, लेकिन यह
एक ऐसा समय है, जब लोग एक सार्थक विज्ञान अनुभव प्राप्त कर सकते हैं, तथा अनेकों तरीकों से रात
के आसमान में मौजूद सितारों की ओर अपना ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।रात के आकाश और उसमें
मौजूद सितारों को देखना बहुत रोचक होता है, तथा यह एक अच्छा समय है, जब इनका एक सुखद
अवलोकन किया जा सकता है, क्यों कि महामारी के कारण लगी तालाबंदी की वजह से आसमान और
उसमें मौजूद सितारें स्पष्ट रूप से दिखने लगे हैं।
इनका अवलोकन करने के लिए आप दूरबीन, छोटी
दूरबीन, ऑनलाइन संसाधन आदि का उपयोग कर सकते हैं।यहां तक कि सामान्य नग्न आंखों से भी रात
के आसमान में बहुत कुछ देखा जा सकता है।
आकाश की वस्तुएं एक वर्ष के दौरान एक पूर्ण चक्र के माध्यम से प्रवास करती हैं। जैसे-जैसे पृथ्वी सूर्य
के चारों ओर घूमती है, विभिन्न तारे और नक्षत्र दिखाई देने लगते हैं, जिससे आप पूरे वर्ष नए नज़ारों
का आनंद ले सकते हैं। एक प्लैनिस्फीयर (Planisphere)या स्काई व्हील (Sky wheel), जो कि एक
घूमने वाली प्लास्टिक डिस्क है, की मदद से आप किसी भी तारीख और समय में रात के आकाश का
लुफ्त उठा सकते हैं। ग्रह, तारों के बीच घूमते रहते हैं, इसलिए उन्हें देखना मुश्किल होता है, किंतु
ऑनलाइन इंटरेक्टिव मानचित्र की मदद से उन्हें रात के आकाश में किसी भी स्थान पर किसी भी समय
देखा जा सकता है। इसके अलावा रात के आकाश को देखने के लिए आप अपने स्मार्टफोन में मौजूद
कुछ सम्बंधित ऐप का भी उपयोग कर सकते हैं।
संदर्भ:
https://bit.ly/3ylSrIp
https://bit.ly/2TyxGuk
https://bit.ly/3qKfs5g
https://bit.ly/3e1FDj1
https://bit.ly/3hgMiI7
चित्र संदर्भ
1. रामपुर की रजा पुस्तकालय तथा आकाशीय ग्लोब का एक चित्रण (prarang)
2. दीया एड-दीन मुहम्मद (Diya ad-din Muhammad) द्वारा लाहौर में बनाया गया आकाशीय ग्लोब का एक चित्रण (wikimedia )
3. 17 वीं सदी की दूरबीन का एक चित्रण (wikimedia)
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