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भारतीय शास्त्रीय संगीत के उभरते अवसर और नए आयाम।

लखनऊ

 31-03-2021 12:03 PM
ध्वनि 1- स्पन्दन से ध्वनि
शास्त्रीय संगीत को भारतीय संस्कृति की आत्मा कहा जाता है। भारतीयों का शास्त्रीय संगीत के प्रति लगाव किसी से भी छुपा नहीं है। यह भारत की विभिन्न संस्कृतियों तथा विभिन्नताओं को एक माला में पिरोने का काम करता है। कई वर्षों की कड़ी मेहनत और कठिन परिश्रम के पश्चात ही कोई कुशल और तेजस्वी शास्त्रीय संगीतज्ञ निखर के आता है। साथ ही तेज़ी से बढ़ते वैश्वीकरण ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को नए आयाम भी दिए हैं। जानते हैं कैसे?

भारतीय शास्त्रीय संगीत मानवीय चेतना को नए आयाम पर ले जाता है। शोध से पता चला है कि शास्त्रीय संगीत से मन को एकाग्रता मिलती है। यह हमारी स्मरण शक्ति को बढ़ाता है। निश्चित ही इससे हमारे आत्मविश्वास का स्तर ऊपर उठता है। विश्व भर में शास्त्रीय संगीत के तरफदार हर कहीं मिल जायेंगे। टीवी , लाइव स्टेज शो, अथवा किसी त्यौहार अथवा अन्य सांस्कृतिक मौके पर कार्यक्रम प्रस्तुत करने पर अच्छी आय मिलती है। साथ ही बढ़ते इंटरनेट के प्रसार ने संगीत के माध्यम से आय पाने की नयी संभावनाएं उत्पन्न कर दी हैं। परन्तु देश में संगीत को आज भी एक शौक अथवा जूनून के रूप में अपनाया जाता है,न कि एक व्यवसाय अथवा पेशे के रूप में। जिसका प्रमुख कारण है:-
1. जागरूकता का अभाव।
चूँकि भारतीय संगीत अपनी एक समृद्ध विरासत रखता है। लेकिन फिर भी पर्याप्त अवसरों और मार्गदर्शन के अभाव में छात्र इसे पेशे के रूप में चुनने से बचते हैं।
2. अभिभावक भी संगीत को शौकिया तौर पर देखते हैं।
कार्यकारी निदेशक, दिल्ली स्कूल ऑफ म्यूजिक गीता उप्पल कहती हैं। कि “हालांकि पिछले कुछ सालों से पश्चिमी शास्त्रीय संगीत ने नए आयामों को छुआ है। परन्तु फिर भी माता पिता इसे एक शौक के रूप में ही देख रहे हैं”। वह कहती हैं की हम कार्यशालाओं और परामर्श केन्द्रों के माध्यम से अभिभावकों को संगीत के प्रति जागरूक कर रहे हैं।
भारत में शास्त्रीय संगीत को आगे बढ़ाने में भारतीय शास्त्रीय संगीत संस्थानों का सबसे प्रमुख योगदान रहा है।
उत्तर प्रदेश के लखनऊ जिले में प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक और संगीतज्ञ विष्णु नारायण भातखंडे और राय उमानाथ बाली द्वारा 1926 में भातखंडे संगीत संस्थान डीम्ड विश्वविद्यालय की स्थापना की गयी। यहाँ के वातावरण में संगीत हवा की लहरों के साथ बहता है। वाद्य यंत्रों की खनक और घुंघरुओं की झंकार से पूरा वातावरण संगीतमय हो जाता है। इस संस्था से पं.एस एन रतनजंकर,अनूप जलोटा,कनिका कपूर और तलत महमूद आदि जैसे कई जाने-माने संगीतज्ञ संबंध रखते हैं। भातखंडे संगीत संस्थान के द्वारा शास्त्रीय संगीत को न केवल हिंदुस्तान वरन पूरे विश्व में प्रसार करने का श्रेय जाता है।
शास्त्रीय संगीत वृहद रूप से फैला हुआ क्षेत्र है यहाँ एक बेहतर भविष्य बनाने की अपार संभावनाएं हैं:-
1. कम उम्र से ही भारतीय शास्त्रीय संगीत सीखना शुरू कर देना चाहिए।
बेहतर होगा यदि कोई 5 से 8 वर्ष के बीच ही शास्त्रीय संगीत की दीक्षा लेना शुरू कर दे। क्यों की इस उम्र में आवाज़ की सीमा बढ़ाने सुनने की कला और विभिन्न मॉड्यूलेशन तकनीकों की पहचान करना आसान हो जाता है।
2. यहाँ से सीखें भारतीय शास्त्रीय संगीत।
भारत में संगीत प्रेमी हर तरफ व्याप्त हैं। देश के हर कोने में आपको ऐसे लोग मिल जायेंगे जो संगीत की उपाधि देने का दावा करते हैं। शुरू करने के लिए आप प्रयाग संगीत समिति अलाहबाद और प्राचीन कला केंद्र चंडीगढ़ से जुड़े शास्त्रीय संगीत संस्थानों अथवा उनके स्वतंत्र (Freelance) शिक्षकों से सीख सकते हैं। वे यूजीसी द्वारा मान्यता प्राप्त भारत में सबसे पुरानी संगीत प्रतिष्ठान हैं।
3. किस भारतीय संगीत शैली को चुनें?
अर्द्ध शास्त्रीय (Semi classical) संगीत को बड़े पैमाने पर सुना और पसंद किया जाता है। जबकि शास्त्रीय रागों की जटिलताओं को एक सीमित स्तर का संगीत वर्ग ही समझ पाता है। शास्त्रीय संगीत के बढ़ते वैश्वीकरण के साथ ही श्रोताओं में भारतीय शास्त्रीय और अर्द्ध शास्त्रीय संगीत दोनों रूपों के मिश्रण की बहुत मांग हैं।
4. सार्वजनिक प्रदर्शन दें।
यदि एक बार आप अपनी शास्त्रीय संगीत शैली पर पकड़ मजबूत कर लें। फिर सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शन करने में बिलकुल भी संकोच न करें। किसी भी छोटे कार्यक्रम से शुरू कर सकते हैं। अपनी क्षमता को प्रदिर्शित करने के किसी भी अवसर को व्यर्थ न जाने दें। आप पाएंगे कि बढ़ते अनुभव के साथ आपकी संगीत शैली में नया निखार आ रहा है।

महामारी ने पूरी दुनिया में विभिन्न सांस्कृतिक क्षेत्रों को अस्त व्यस्त कर दिया है। शास्त्रीय संगीत भी इससे अछूता नहीं है। वायरस के बढ़ते मामलों के भय से शहरों में स्कूल, कॉलेज, और संस्थान इत्यादि सब बंद। हैं ऐसे में बढ़ते डिजिटल पाठ्यक्रम एक उभरते हुए समाधान के रूप में सामने आये है। उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी (यूपीएसएनए) ने अपने 57 वर्षों की विरासत में पहली बार 225 से अधिक छात्रों को वीडियो कॉलिंग और रिकॉर्ड किए गए व्याख्यान के माध्यम से कथक और अन्य शास्त्रीय संगीत का ऑनलाइन प्रशिक्षण दिया। इसी तर्ज पर देश के अन्य संस्थानों ने भी छात्रों को शास्त्रीय संगीत का प्रशिक्षण देना आरम्भ कर दिया है। जिसने छात्रों और संस्थानों के लिए नयी और व्यापक संभावनाएं उत्पन्न कर दी हैं।

संदर्भ:
https://bit.ly/3spccw5
https://bit.ly/3fcWxMV
https://bit.ly/31oxUEA
https://bit.ly/3lRN9iZ

चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र भातखंडे संगीत संस्थान को दर्शाता है। (विकिपीडिया)
दूसरी तस्वीर में भातखंडे संगीत संस्थान को दिखाया गया है। (collegebatch.com)
तीसरी तस्वीर में भातखंडे संगीत संस्थान द्वारा नृत्य दिखाया गया है। (bhatkhandemusic.edu)


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