रोहेलखण्‍ड में अफगानी संगीत का विस्‍तार

लखनऊ

 10-11-2020 08:35 PM
ध्वनि 1- स्पन्दन से ध्वनि

हाल ही में रामपुर के रजा पुस्‍तकालय से दो पुस्‍तकें “उत्‍तर प्रदेश के रोहेलखण्‍ड क्षेत्र की संगीत परंपरा” (संध्‍या रानी) और “रामपुर दरबार का संगीत एवं नवाबी रस्‍में” (नफीस सिद्दीकी) मिलीं, जो रोहिलखण्‍ड के संगीत के विषय में विस्‍तृत जानकारी देती हैं। 18वीं शताब्दी की शुरुआत में अफगान रोहिला जनजातियों के लोग बड़ी संख्या में रोहिलखण्‍ड एवं उसके आस पास के क्षेत्र बरेली, रामपुर और नजीबाबाद में बस गए। यहीं से इन्‍होंने अपनी संस्‍कृति और सभ्‍यता का विस्‍तार शुरू किया, जिनमें से एक संगीत भी प्रमुख था। यहां कई हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत और शीर्ष संगीतकारों के घरानों का उदय हुआ। संगीत के अलावा, यह क्षेत्र लोकगीत परंपराओं के लिए भी प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र में बसने के बाद, अफगान रोहिलों ने पश्तों के स्‍थान पर स्थानीय भाषा को अपनाया- देशी, फारसी और अरबी शब्दों का मिश्रण जिसे हम आज उर्दू के रूप में जानते हैं।
यह तथ्य सर्वविदित है कि अवध के विघटन के बाद, नवाब वाजिद अली शाह के विद्रोह और 1857 के विद्रोह के परिणामस्वरूप अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर को रंगून भेज दिया गया, इनके समकाली अधिकांश संगीतकार और नर्तक अन्य राज्यों में स्थानांतरित हो गए जैसे रामपुर, बड़ौदा, हैदराबाद, मैसूर और ग्वालियर के अलावा कई अन्य छोटी छोटी रियासतें में। 1857 के बाद रामपुर हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत और नृत्य के एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में उभरा। यहाँ के कल्बे अली खान और हामिद अली खान जैसे शासकों ने अच्‍छी गुणवत्ता वाले कलाकारों को आकर्षित किया। संध्‍या रानी द्वारा लिखित पुस्‍तक में रोहिलखण्‍ड संगीत की विस्‍तृत जानकारी दी गयी है, जिसका मूल अफगानिस्‍तान था। इसे तीन भागों लोक गीत, लोककथा और चहारबैत में विभाजित किया गया है। जिसमें लोक गीत और लोककथाएँ ज्यादातर मौसमों और विभिन्न अवसरों जैसे बाल जन्म, विवाह और त्योहारों से संबंधित हैं, चहारबैत एक विशेष रूप है जो रामपुर और इसके आसपास के क्षेत्रों में अधिक प्रचलित है। लोक कथाओं को किस्सा और राग भी कहा जाता है और लोक गायकों द्वारा गायी जाने वाली कहानियों में मुख्‍यत: अल्‍लाह, पंदैन(Pandain), ढोल, त्रियछत्री (Triyacharit), गोपीचंद्र, भ्रथहरी, जहापीर(Jaharpeer), श्रवण कुमार और मोरध्‍वज शामिल हैं।
चहारबैत, जिसे चारबैत के नाम से भी जाना जाता है, की उत्पत्ति पश्तो में हुयी थी, जो कि अफगानिस्तान के लोकप्रिय लोक संगीत का हिस्सा है। इसे पठानी राग भी कहते हैं। इसमें चार छंद हैं और पहले तीन छंदों के तुक समान हैं जबकि चौथा छंद अलग है। भारत में मुस्तकीम खान को इसका निर्माता माना जाता है और उनके बेटे अब्दुल करीम खान इस रूप के एक कुशल कलाकार थे। चहारबैत को भी मिश्रित भाषा में बनाया गया था और गायकों के एक समूह द्वारा गाए जाने वाले संगीत वाद्ययंत्र ढफ का उपयोग करके इसे गाया जाता था। इस समूह को अखाड़ा कहा जाता था। संरक्षकों द्वारा इन चहारबैत अखाड़ों के बीच प्रतिस्पर्धात्मक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते थे।
रामपुर के नवाब, विशेष रूप से कल्बे अली खान का, लोक संगीत के इस रूप के प्रति विशेष लगाव था। इस पुस्तक में वाद्ययंत्र जैसे ढोल, खंजरी, खरताल, नौबत, चमेली, चंग, नाल, नागर और एकटकरा के बारे में बहुमूल्य जानकारी दी गई है, जिसे इस क्षेत्र में लोक कलाकारों द्वारा बजाया जाता है। यहां रामपुर घराना, सहसवान घराना और भिंडी बाजार घराना सहित हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के कई घरानों का जन्‍म हुआ। बहादुर हुसैन खान, इनायत खान, फिदा हुसैन खान, निसार हुसैन खान, छज्जू खान, नजीर खान, खादिम हुसैन खान, अंजनी बाई मालपेकर और अमन अली खान इन घरानों के शीर्ष कलाकार थे।
शाहजहाँपुर में एक जीवंत सरोद घराना था, जिसका प्रतिनिधित्व कौकब खान और सखावत हुसैन खान करते थे। रामपुर दरबार के मुख्य संगीतकार वज़ीर खान और नवाब हामिद अली ख़ान के गुरु, अलाउद्दीन ख़ान और हाफ़िज़ अली ख़ान दोनों के गुरु भी थे, उनके घराने को भी रामपुर परंपरा से जोड़ा जाता है। तबला विशेषज्ञ अहमद जान थिरकवा और खयाल प्रतिपादक मुश्ताक हुसैन खान जैसे महान कलाकार भी लंबे समय तक रामपुर दरबार से जुड़े रहे। नफीस सिद्दीकी की पुस्तक में कुछ महिला गायकों के बारे में भी जानकारी मिलती है। नवाब अहमद अली खान (1794-1840) द्वारा कई महिला गायकों को नियुक्त किया गया था। माना जाता है कि भारत में अफगान संगीत लाने में बाबर का भी विशेष योगदान रहा है, हेरात में तैमुर वंश के विघटन के बाद बाबर भारत आया और अपने साथ तैमुर दरबार के संगीतकार और कलाकारों को लाया, जिन्‍होंने मुगल दरबार में अपनी कला का प्रदर्शन एवं विस्‍तार किया। जिसका उल्‍लेख बाबर के दस्‍तावेजों में भी किया गया है।

संदर्भ:
https://www.thehindu.com/entertainment/music/tales-of-musical-akharas/article30634576.ece
https://bit.ly/2XIW3oy
चित्र सन्दर्भ:
पहली छवि मुश्ताक हुसैन खान और निसार हुसैन खान द्वारा पठान राग रिकॉर्डिंग दिखाती है।(scroll)
दूसरे चित्र में पठान राग पेश करते कलाकारों का चित्रण है।(prarang)
तीसरी छवि उस्मान वज़ीर खान के साथ रामपुर में रज़ा लाइब्रेरी की छवि दिखाती है, जिन्होंने रोहिलखंड के संगीत और इसके इतिहास का विस्तृत विवरण देने वाली दो पुस्तकें लिखी हैं।(prarang, the hindu)


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