भारत विश्व का सबसे बड़ा पीतल के बर्तन बनाने वाला देश है। इस कला का भारत में हज़ारों वर्षों से अभ्यास किया जा रहा है। पुरातत्व अभिलेखों के अनुसार, तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से भारत में पीतल लोकप्रिय था और अधिकांश देवी-देवताओं की मूर्तियाँ इसी धातु से बनाई जाती थी। उत्तर प्रदेश में रामपुर के करीब स्थित मुरादाबाद पीतल के काम के एक केंद्र के रूप में प्रसिद्ध है और विश्व भर में हस्तशिल्प उद्योग में खुद के लिए एक जगह बना चुका है।
ऐसा माना जाता है कि वर्तमान के सीरिया या पूर्वी तुर्की के धातुकर्मियों द्वारा 3000 ईसा पूर्व में टिन के साथ तांबे को पिघलाकर कांस्य नामक धातु को बनाया गया था और ऐसा माना जाता है कि उनके द्वारा कई बार आकस्मक रूप से पीतल बना दिया जाता था, क्योंकि टिन और जस्ता अयस्क के भंडार कभी-कभी एक ही स्थान में एक साथ पाए जाते हैं, और दोनों ही सामग्रियों का समान रंग और गुण होता है। लगभग 20वीं ईसा पूर्व से 20वीं ईस्वी तक, भूमध्य सागर के आसपास के धातुकर्मी टिन से जस्ता अयस्क को अलग करने में सक्षम हो गए थे और इसका उपयोग पीतल के सिक्के और अन्य वस्तुओं को बनाने के लिए किया जाने लगा था। अधिकांश जस्ता को कैलामाइन (Calamine) नामक एक खनिज को गर्म करके निकाला जाता था, जिसमें विभिन्न जस्ता यौगिक होते हैं। लगभग 300 ईस्वी की शुरुआत में, पीतल धातु का उद्योग जर्मनी और नीदरलैंड में विकसित हो गया था। यद्यपि पहले के धातुकर्मी जस्ता अयस्क और टिन अयस्क के बीच अंतर को पहचानने में सक्षम हो गए थे, लेकिन फिर भी वे यह नहीं समझ पाए थे कि जस्ता एक धातु है। 1746 में एंड्रियास सिगिस्मंड मार्ग्राफ (Andreas Sigismund Marggraf)(1709-1782) नामक एक जर्मन वैज्ञानिक ने जस्ता की पहचान की और इसके गुणों को निर्धारित किया। 1781 में इंग्लैंड में पीतल बनाने के लिए तांबा और जस्ता धातु के संयोजन की प्रक्रिया का आविष्कार किया गया था। वहीं आग्नेय शस्त्र के लिए पहले धातु कारतूस आवरण को 1852 में पेश किया गया, हालांकि कई अलग-अलग धातुओं की पेशकश की गई लेकिन इस कार्य के लिए पीतल ही सबसे सुगम रहा था। वर्तमान समय में जिस रूप में ये शिल्प मौजूद है, वो लगभग 400 वर्ष पहले आई थी और शुरू में जंडारा गुरु समुदाय के ठठेरों के समक्ष प्रचलित थी। 19वीं सदी की शुरुआत में मुरादाबाद में पीतल के उद्योग की पेशकश हुई और इस कला को ब्रिटिश द्वारा विदेशी बाज़ारों में ले जाया गया। बनारस, लखनऊ, आगरा और कई अन्य स्थानों से आए अन्य प्रवासी कारीगरों ने मुरादाबाद में पीतल उद्योग के मौजूदा समूह का गठन किया था। 1980 में पीतल जैसे विभिन्न अन्य धातु जैसे लोहा, एल्यूमीनियम आदि को भी मुरादाबाद के कला उद्योग में पेश किया गया था। नई तकनीकों जैसे विद्युत आवरण, लाह लगाना, चूर्ण आवरण आदि का भी उद्योग में उपयोग शुरू होने लगा। पीतल का उत्पादन करने के लिए उपयोग की जाने वाली निर्माण प्रक्रिया में उपयुक्त कच्चे माल को पिघले हुए धातु में मिलाया जाता है, जिसे बाद में जमने के लिए रख दिया जाता है। ठोस धातु के आकार और गुणों को वांछित पीतल का उत्पादन करने के लिए सावधानीपूर्वक नियंत्रित संचालन की एक श्रृंखला के माध्यम से बनाया जाता है। 600 से अधिक इकाइयों के निर्यात और घरेलू बाजारों के लिए पीतल के बर्तन का निर्माण करने के साथ, मुरादाबाद संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, जर्मनी और मध्य पूर्व जैसे देशों में हर साल 2,200 करोड़ रुपये का माल निर्यात करता है। हालांकि, जैसा कि हर शिल्प में होता है, पर्ण धातु के कार्य को भी आधुनिक तकनीकों के अनुरूप मशीनीकरण, औजारों और डिजाइनों के साथ घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों के लिए विकसित और अनुकूलित किया गया है। जिसके चलते मुरादाबाद बाज़ार से ग्राहक अब पीतल या चांदी के बने बेहतर या पारंपरिक उत्पादों को नहीं खरीदते हैं, क्योंकि मुरादाबाद में, 50% से अधिक शिल्पकार अब एल्यूमीनियम, तांबा या स्टेनलेस स्टील (Stainless Steel) जैसी सस्ती धातुओं का उपयोग कर रहे हैं। इस कारण से श्रमिकों द्वारा पीतल या चांदी के उत्पाद को काफी कम कर दिया गया है। साथ ही मुरादाबाद के कई दुकानदारों का कहना है कि, श्रमिकों को बेहतर कीमतें और मुख्य रूप से अनुबंध के आधार पर कार्य देने के बावजूद भी, कारीगरों की अगली पीढ़ी शिल्प जारी रखने के लिए उतने उत्सुक नहीं हैं। यद्यपि उन्हें नहीं लगता कि भविष्य अंधकारमय है। वे बताते हैं कि कुछ लोगों की शिल्प कला में रुचि की वजह से ये शिल्प उस स्थान की संस्कृति से इतनी आसानी से दूर नहीं होगी।5.पीतल की ढलाई(Dsource)
संदर्भ :-
http://www.dsource.in/resource/brass-work-moradabad/introduction
http://www.iitk.ac.in/designbank/Moradabad/History.html
http://blog.directcreate.com/past-present-future-the-sheet-metal-work-of-moradabad-uttar-pradesh/
http://www.madehow.com/Volume-6/Brass.html
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